शब्द का अर्थ
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कंस :
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पुं० [सं०√कम् (इच्छा)+स] १. काँसा नामक धातु। २. काँसे का बना हुआ कोई छोटा पात्र। ३. सुराही। ४. मँजीरा। ५. मथुरा के राजा उग्रसेन का पुत्र जो श्रीकृष्ण के हाथों मारा गया था। ६. प्राचीन भारत की आढ़क नाम की तौल या माप। |
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समानार्थी शब्द-
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कंसक :
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पुं० [सं० कंस+कन्] १. काँसे का बना हुआ बरतन। २. दे० ‘कंसिक’। |
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कंस-ताल :
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पुं० [कर्म० स०] झाँझ। |
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कंसवती :
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स्त्री० [सं० कंस+मतुप्-ङीष्] उग्रसेन की कन्या का नाम। |
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कंस-शत्रु :
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पुं० [ष० त०] श्रीकृष्ण। |
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कँसहँड़ी :
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स्त्री० [सं० काँसा+हाँड़ी] देग या बटलोही के आकार का एक बरतन। |
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कंसाराति :
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पुं० [सं० कंस-अराति, ष० त०] श्रीकष्ण। |
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कंसारि :
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पुं० [सं० कंस-अरि, ष० त०] श्रीकृष्ण। |
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कंसिक :
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वि० [सं० कंस+टिठन्-इक] काँसे का बना हुआ। |
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कंसीय :
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वि० [सं० कंस+छ-ईय] १. काँस संबंधी। काँसे का। २. काँसे के पात्र से संबंध रखनेवाला। |
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कंसुआ :
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पुं० [हिं० कांस] कांसे के रंग का (भूरा) एक कीड़ा, जो ईख, ज्वार, बाजरे आदि की फसल को हानि पहुँचाता है। |
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कंसुभ :
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वि० [सं० कुसुंभ] कुसुंभ के फूल के रंग का। कुसुंभी। |
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कंसुला :
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पुं० [हिं० काँसा] [स्त्री० अल्प० कंसुली] काँसे का एक चौखूँटा टुकड़ा, जिसके पहलों में गोल-गोल गड्ढे होते हैं, जिससे सुनार घुँघरू बनाते हैं किटकिरा। पाँसा। |
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कँसुवा :
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पुं०=कंसुआ। |
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