| शब्द का अर्थ | 
					
				| कलंक					 : | पुं० [सं०√कल् (गति)+ क्विप्, कल्-अंक, कर्म० सं०] [विं० कलंकित, कलंकी] १. दाग। धब्बा। २. कोई ऐसा अनुचित कर्म या कार्य जिससे ख्याति, प्रतिष्ठा या मर्यादा पर बट्टा लगता हो। अपयश या कुख्याति करानेवाला कार्य या उसका लक्षण। | 
			
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				| कलंकष					 : | पुं० [सं० कर√कष्+ खच्(बा०) मुम् र को ल] १. शेर। सिंग। २. एक प्रकार का पुराना बाजा। | 
			
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				| कलंकांक					 : | पुं० [सं० कलंक-अंक, ब० स०] १. वह जिसके अंक या शरीर में कोई कलंक (दाग या धब्बा) हो। २. चंद्रमा में दिखाई पड़नेवाला दाग या धब्बा। | 
			
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				| कलंकित					 : | वि० [सं० कलकं+इतच्] १. जिस पर कोई कलंक लगा हो या लगाया गया हो। कलंक से युक्त। २. कोई अनुचित या निंदनीय काम करने पर जिसकी लोक या समाज में कुख्याति या बदनामी हुई हो। जिस पर कलंक लगा हो। ३. (लोहा अथवा और कोई धातु) जिस पर जंग लगा हो अथवा मैल जमा हुआ हो। | 
			
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				| कलंकी (किन्)					 : | विं० [सं० कलंक+इनि] [स्त्री० कलंकिनी] कोई अपराध या दुष्कर्म करने के कारण जिस पर कलंक लगा हो और इसीलिए जो दूषित या निदनीय समझा जाता हो। पुं०=कल्कि (अवतार)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| कलंकुर					 : | पुं० [सं० क√लंक् (गति)+णिच्+उरच्] पानी का भँवर। | 
			
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