शब्द का अर्थ
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कलपंत :
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पुं०=कल्पांत। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
कलप :
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पु० [सं० कलाप] झुंड। समूह। उदा०—करी चीह चिक्कार करि कलप भग्गे।—चंदबरदाई। पुं० [सं० कल्प=रचना] १. कलफ। माँड़ी। २. खिजाब। ३. दे० ‘कल्प’। |
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कलपत्तर :
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पुं० [सं० कल्पतरु] एक प्रकार का पहाड़ी वृक्ष जिसकी सफेद लकड़ी बहुत मजबूत होती है। |
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कलपना :
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सं० [सं० कल्पन] १. केवल अनुमान के आधार पर और अपने मन में किसी बात का स्वरुप बनाना या स्थिर करना। कल्पना करना उदा०—कोटि प्रकार कलपि कुटिलाई।—तुलसी। २. किसी का ध्यान करना। उदा०—ब्रह्मादिक सनकादि महामुनि कलपत दीड़ कर जोरि। सूर। ३. रचना करना। गढ़ना। बनाना। ४. कतर या काटकर अलग करना। उदा०—कलपि माथ जेहि दीन्ह सरीरु।—जायसी। ५. पेड़-पौधों की कलम काटकर उसे नई जगह लगाना। उदा०—सोरह सिंगार कै नवेलिन सहेलिन हूँ कीन्ही केलि मन्दिर में कलपति केरे हैं।—पद्याकर। अ० बहुत अधिक कष्ट या दुःख में पड़ने पर रह-रह कर संतप्त होना और अपने मनस्ताप की चर्चा करते हुए बिलखना। बराबर मन तड़पते रहने पर विलाप करना। जैसे—किसी के अत्याचार से पीड़ित होकर अथवा किसी के वियोग या शोक में कलपना। उदा०—नेकु तिहारे निहारे बिना कलपै जिय पल धीरज लेखौ।—पद्याकर। पद—रोना-कलपना (देखें ‘रोना’ के अन्तर्गत)। स्त्री० बहुत दुःखी होने पर उक्त प्रकार से कलपने, तड़पने या विकल होने की किया या भाव। मुहा०—(किसी की) कलपना लेना=ऐसा अनुचित काम करना जिससे कोई कलपे तथा कलप कर कोसे। किसी को कलपा कर उसका अभिशाप लेना। |
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कलपनी :
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स्त्री० [सं० कल्पनी] कतरनीय़। कैंची। (डिं०) |
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कलप-बिरिछ :
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पुं० =कल्प-वृक्ष। |
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कलप-बेलि :
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स्त्री०=कल्पवल्ली (कल्प-वृक्ष)। |
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कलपांत :
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पुं०=कल्पांत। |
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कलपाना :
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सं० [हिं० कलपना का प्रेर०] १. किसी को कलपने में प्रवृत्त करना। २. ऐसा अनुचित या निर्दयतापूर्ण काम करना, जिससे कोई बहुत दुःखी होकर कलपने लगे। |
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कलपून :
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पुं० [देश०] एक प्रकार का सदाबहार वृक्ष जिसकी लकड़ी लाल रंग की होती और इमारत के कामों के लिए अच्छी समझी जाती है। |
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कलप्पना :
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अ० स०=कलपना। |
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कलप्ना :
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पुं० [मला० कलपा=नारियल] किसी-किसी नारियल के बीच में से निकलनेवाली नीलापन लिये हुए सफेद रंग की एक कड़ी वस्तु जिसे ‘नारियल या मोती’ भी कहते हैं। |
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