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किलक  : स्त्री० [हिं० किलकना] १. निकलने की क्रिया या भाव। २. आनंदसूचक शब्द। हर्षध्वनि। किलकार। स्त्री० [फा० किलक] एक प्रकार का बढ़िया नरकट जिससे लिखने के लिए कलमें बनाई जाती हैं।
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किलकना  : अ० [अनु] १. बंदरों का प्रसन्न होने पर जोर-जोर से की-की शब्द करना। २. किलकारी मारना।
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किलकार  : स्त्री० [हिं० किलकना] १. बंदरों का की-की शब्द। २. बहुत प्रसन्न होकर चिल्लाने की क्रिया।
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किलकारना  : अ० [हिं० किलकार से] १. की-की शब्द करना। २. जोर से आवाज करना। चिल्लाना।
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किलकारी  : स्त्री०=किलकार।
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किलकिंचित  : पुं० [सं० किल-किम्-चित्, तृ० त०] साहित्य में संयोग श्रंगार के अन्तर्गत ११ भावों में से एक जिसमें नायिका की एक ही भाव-भंगी से कई भाव एक साथ सूचित होते हैं।
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किलकिल  : स्त्री० [अनु०] १. कलह। तकरार। २. व्यर्थ की कहा-सुनी या बकवाद। स्त्री०=किलकार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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किलकिला  : स्त्री० [सं०√किल्+क, द्वित्व, टाप्] किलकार। पुं० १. समुद्र की लहरों के टकराने से होनेवाला शब्द। २. प्राचीन कवियों के अनुसार एक समुद्र का नाम। पुं० [सं० कृकल] कौंड़िल्ला की जाति का एक छोटा पक्षी जो जलाशयों में से मछलियाँ पकड़कर खाता है। (किंगफिशर)
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किलकिलाना  : अ० [अनु०] [भाव० किलकिलाहट]=किलकारना।
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किलकी  : स्त्री० [फा० किलक=नरकट या कलम] बढ़इयों का एक औजार जिससे वे काष्ठ पर निशान लगाते हैं। स्त्री० [हिं० किलकना] १. किलकने की क्रिया या भाव। २. बेचैनी। विकलता। उदाहरण—धुनि सुनि कोकिल की बिरहिन को किलकी।—सेनापति।
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किलकैया  : पुं० [देश] चौपायों के खुरों में होनेवाला एक रोग। पुं० [हिं० किलकना] किलकने वाला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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