शब्द का अर्थ
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कीर :
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पुं० [सं० की√ईर् (गति)+णिच्+अच्] १. तोता। शुक। २. बहेलिया। व्याध। ३. कश्मीर देश का एक नाम। ४. कश्मीर का निवासी। |
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कीरतन :
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पु०=कीर्तन। |
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कीरतनिया :
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पुं० [हिं० कीरतन-कीर्तन] वह जो प्रायः बजन आदि करता रहता हो, अथवा कीर्तन करने का व्यवसाय करता हो। कीर्त्तनकार। |
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कीरति :
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स्त्री०=कीर्ति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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कीरति-कुमारी :
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स्त्री०=राधा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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कीरा :
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पुं० [स्त्री० कीरी]=कीड़ा। |
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कीरात :
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पुं० [अ०] चार जौ की एक तौल, जो प्रायः हीरे, जवाहरात और सोना तौलने के काम आती है। किरात। (कैरट)। |
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कीरी :
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स्त्री० कीर (व्याध) जाति की स्त्री। स्त्री०=कीड़ी (छोटा कीड़ा)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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कीर्ण :
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वि० [सं०√कृ (विक्षेप)+क्त] १. फैला या बिखेरा हुआ। २. ढका हुआ। ३. धरा या पकड़ा हुआ। ४. ठहरा हुआ। स्थित। ५. चोट खाया हुआ। आहत। |
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कीर्त्तन :
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पु० [सं०√कृत्+ल्युट-अन, इत्व, दीर्घ] १. किसी के गुण, यश आदि का बार-बार या बराबर किया जानेवाला कथन या बखान। यशोवर्णन। गुण-कथन। २. ईश्वर या देवता के नाम और यश का बार-बार विशेषतः गाते-बजाते हुए किया जानेवाला कथन। |
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कीर्त्तनकार :
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पुं० [सं० कीर्त्तन√कृ (करना)+अण्] वह जो गा-बजाकर ईश्वर या देवताओं का कीर्त्तन करता हो। कीरतनिया। |
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कीर्त्तनिया :
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पुं०=कीरतनिया (कीर्त्तनकार)। |
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कीर्त्ति :
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स्त्री० [सं०√कृत्+इन् वा क्तिन्, इत्व, दीर्घ] १. पुण्य। २. किसी की वह ख्याति बड़ाई या यश जो उसे बहुत अच्छे और बड़े-बड़े काम करने पर प्राप्त होता है, और प्रायः अधिक समय तक बना रहता है। ३. वह अच्छा या बड़ा काम जिससे किसी के बाद उसका नाम हो। ४. दक्ष की एक कन्या, जो धर्म को ब्याही थी। ५. एक मातृका का नाम। ६. राधा की माता का नाम। ७. छन्द। ८. चमक, दीप्ति। ९. विस्तार। १॰. प्रसाद। ११. आर्या छन्द का एक भेद। १२. एक दस अक्षरों का वृत्त, जिसके प्रत्येक चरण में तीन सगण और एक गुरु होता है। १३. संगीत में एक प्रकार का ताल। |
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कीर्त्तित :
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भू० कृ० [सं०√कृत्+क्त, इत्व, दीर्घ] १. जो कहा गया हो या जिसका वर्णन हुआ हो। कथित। वर्णित। २. जिसका या जिसके संबंध में कीर्त्तन हुआ हो। ३. प्रशंसित और प्रसिद्ध। |
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कीर्तिदा :
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स्त्री०=यशोदा (कृष्ण की माता)। |
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कीर्त्तिमंत :
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वि०=कीर्त्तिमान्। |
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कीर्त्तिमान् (मत्) :
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वि० [सं० कीर्ति+मतुप्] १. जिसकी बहुत अधिक कीर्ति या यश हो। यशस्वी। २. जिसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैली हो। प्रसिद्ध। मशहूर। |
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कीर्तिवंत :
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वि०=कीर्त्तिमान्। |
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कीर्त्तिवान् :
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वि०=कीर्त्तिमान्। |
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कीर्त्तिशाली (लिन्) :
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वि० [सं० कीर्ति√शल् (गति)+णिनि] जिसकी विशेष कीर्त्ति हो। कीर्त्तिमान्। |
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कीर्त्ति-शेष :
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वि० [ब० स०] इस संसार में अब जिसकी कीर्ति ही शेष रह गयी हो और कुछ न रह गया हो। जो कीर्ति छोड़कर नष्ट या समाप्त हो चुका हो। |
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कीर्त्ति-स्तंभ :
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पुं० [मध्य० स०] १. वह स्तंभ या वास्तु-रचना जो किसी की कीर्ति का स्मरण कराने और उसे स्थायी रखने के लिए बनाई गई हो। २. वह कृति जिससे किसी की कीर्ति बहुत दिनों तक बनी रहे। (मॉन्यूमेन्ट)। |
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