| शब्द का अर्थ | 
					
				| खंड					 : | पुं० [सं०√खंड्(टुकड़ा करना)+घञ्] १. किसी की टूटी या फूटी हुई वस्तु को कोई अंश। टुकड़ा। २. किसी सम्पूर्ण वस्तु का कोई विशिष्ट भाग या विभाग। जैसे–रामायण का तृतीय खंड। ३. किसी इमारत या भवन का कोई तल्ला या मंजिल। (स्टोरी) ४. किसी धारा या उपधारा का कोई स्वतंत्र अंश। ५. कुछ विशेष कार्यों के लिए व्यवस्थित रूप से किया हुआ विभाग। ६. पुराणों के अनुसार पृथ्वी के नौ मुख्य विभाग जो इस प्रकार हैः–भरत, इलावृत, किंपुरुष, भद्र, केतुमाल, हरि, हिरण्य, रमा और कुश। ७. उक्त के आधार पर नौ की संख्या का सूचक शब्द। ८. किसी राज्य का कोई प्रदेश या प्रांत। ९. कच्ची चीनी। खाँड। पुं० [सं० खड्ग] खाँड़ा नाम का शस्त्र। उदाहरण–किक्क सरण रह पाइ किक्क खल खंडणि खंडै।–चंदवरदाई। वि० [खंड+अच्] १. खंडित। अपूर्ण। विकलांग। विभक्त। २. लघु या छोटा। | 
			
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				| खंड-कंद					 : | पुं० [कर्म.स.] शकरकंद। | 
			
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				| खंडक					 : | वि० [सं०√खंड+ण्युल्-अक] १. खंड या विभाग करनेवाला। २. खंडन करनेवाला। पुं० [खंड+क] १. खाँड या मिसरी। २. नाखूनों वाला प्राणी। | 
			
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				| खंड-कथा					 : | स्त्री० [कर्म.स.] १. कोई अधूरी या छोटी कहानी। कथा या कहानी का टुकड़ा या भाग। २. प्राचीन भारतीय साहित्य में, करुण रस-प्रधान एक प्रकार की कथा या कहानी जिसमें ब्राह्मण या मंत्री नायक होता था और जिसमें प्रायः विरह का वर्णन होता था। ३.परवर्ती काल में और आज-कल भी उपन्यास का वह प्रकार या भेद जिसके प्रत्येक खंड या भाग में अलग-अलग छोटी कहानियाँ होती है। | 
			
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				| खंड-काव्य					 : | पुं० [कर्म.स.] ऐसी पद्यबद्ध रचना जिसमें किसी महापुरुष या विशिष्ट व्यक्ति के जीवन की किसी एक या कुछ महान् घटनाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन होता है। जैसे–मेद्यदूत। सिद्धराज। | 
			
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				| खंड-ग्रहण					 : | पुं० [कर्म.स.] वह ग्रहण जिसमें सूर्य या चंद्रमा के सारे बिंब पर छाया न पड़े, कुछ ही अंश पर छाया पड़े। ‘खग्रास’ का विरूद्धार्थक। (पार्शल इक्लिप्स) | 
			
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				| खँडचिला					 : | पुं० [देश.] धान की एक जाति। उदाहरण–औ संसार तिलक खँडचिला।–जायसी। | 
			
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				| खंडज					 : | पुं० [सं० खंड√जन् (उत्पन्न होना)+ड] एक प्रकार की शक्कर या गुड़। | 
			
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				| खंडत					 : | वि० खंडित।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| खंड-ताल					 : | पुं० [कर्म.स.] संगीत में, एक प्रकार का ताल। | 
			
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				| खंड-धारा					 : | स्त्री० [ब.स.] कैंची। कतरनी। | 
			
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				| खंडन					 : | पुं० [सं०√खंड्+ल्युट्-अन] १. खंड-खंड या टुकड़े-टुकड़े करने की क्रिया या भाव। २. विभक्त या विभाजित करना। हिस्सों में बाँटना। ३. कही हुई कोई बात अथवा प्रतिपादित किये हुए सिद्धांत के दोष दिखलाकर उसे अमान्य या गलत ठहराना। (कन्ट्राडिक्शन) ४. अपने संबंध में किसी के द्वारा लगाये गये आरोप या अभियोग का निराकरण करते हुए उसे झूठा सिद्ध करना। (रेफ्यूटेशन) ५. नृत्य में, मुँह या होंठ इस प्रकार चलाना जिससे खाने, पढ़ने, बड़बड़ाने आदि का भाव प्रकट होता हो। ६. कार्य की सिद्धि में होनेवाली बाधा अथवा इससे उत्पन्न निराशा। ७. विद्रोह या विरोध। वि०खंड या टुकड़े करनेवाला। | 
			
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				| खंडनक					 : | वि० [सं० खंडक] १. खंड या टुकड़े करनेवाला। २. खंडित करनेवाला। ३.जिससे कोई तर्क या बात खंडित होती है। ४. कोई ऐसी परस्पर विरोधी बात जिससे अपने ही पक्ष का खंडन होता हो। (कनट्रैडिक्टरी) | 
			
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				| खंडन-मंडन					 : | पुं० [द्व.स.] किसी बात या सिद्धांत के पक्ष तथा विपक्ष अथवा उसकी अच्छाई तथा बुराई दोनों के संबंध में दोनों पक्षों का कुछ कहना। | 
			
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				| खंडना					 : | स.[सं० खंडन] १. खंड या टुकड़े करना। तोड़ना। २. हिस्से लगाना। ३. मत, सिद्धांत आदि का खंडन करना और उसे अयुक्त सिद्ध करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| खंडनी					 : | स्त्री० [सं० खंड] १. मध्ययुग में, वह कर जो राज्य बड़े ज़मीदारों और राजाओं से लेता था। २. किस्त। ३. खंडी। | 
			
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				| खंडनीय					 : | वि० [सं०√खंड्+अनीयर्] १. जो तोड़े-फोड़े जाने के योग्य हो। २. (मत या सिद्धांत) जिसका खंडन आवश्यक और उपयुक्त हो। | 
			
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				| खंड-पति					 : | पुं० [ष० त.] राजा। | 
			
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				| खंड-परशु					 : | पुं० [ब.स.] १. महादेव। शिव। २. विष्णु। ३. परशुराम। ४. राहु। ५. टूटे हुए दाँतों वाला हाथी। | 
			
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				| खंडपाल					 : | पुं० [सं० खंड√पाल् (बचाना)+णिच्+अण्] हलवाई। | 
			
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				| खँडपूरी					 : | स्त्री० [हिं.खाँड+पूरी] एक प्रकार की मीठी पूरी जिसमें मेवें आदि भरे रहते हैं। | 
			
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				| खंड-प्रलय					 : | पुं० [ष.त.] वह प्रलय जिसमें पृथ्वी को छोड़कर सृष्टि का और कोई पदार्थ बाकी नहीं रह जाता और जो एक चतुर्युगी अथवा ब्रह्मा का एक दिन बीत जाने पर होता है। | 
			
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				| खंड-प्रस्तार					 : | पुं० [ब स.] संगीत में एक प्रकार का ताल। | 
			
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				| खंड-फण					 : | पुं० [ब.स.] साँप की एक जाति। | 
			
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				| खँडबरा					 : | पुं० [हिं० खाँड+बरा] १. एक प्रकार का पकवान। मीठा। बड़ा। २. मिसरी का लड्डू। खँडौरा। | 
			
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				| खंड-मेरु					 : | पुं० [ब. स.] छंद शास्त्र में प्रस्तार के अन्तर्गत मेरु नामक प्रक्रिया या रीति का एक अंग या विभाग। | 
			
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				| खंड-मोदक					 : | पुं० [मध्य.स.] गुड़। | 
			
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				| खंडर					 : | पुं०=खँडहर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| खँडरना*					 : | स.[सं० खंडन] १. खंड-खंड या टुकड़े-टुकड़े करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) उदाहरण–ताहि सियपुत्र तिल-तूल सम खंडरै।–केशव। २. =खंडना (खंडन करना)। | 
			
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				| खँडरा					 : | पुं० [सं० खंड+हिं० बरा] १. एक प्रकार का मीठा बड़ा। २. बेसन का बना हुआ हुआ बड़ा। | 
			
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				| खंडरिच					 : | पुं०=खंजन (पक्षी)। | 
			
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				| खंडल					 : | पुं० [स. खंड√ला (लेना)+क] खंड धारण करनेवाला। पुं० =खंड। (डिं.)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| खंडल छोर					 : | पुं० [हिं० खाँड+छोरना=खोलना] बुंदेलखंड में होली के दिनों में होनेवाली एक प्रकार की प्रतियोगिता जिसमें बाँस के ऊपरी सिरे पर बँधा हुआ गुड़ और रूपया खोल लाने का प्रयत्न किया जाता है। | 
			
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				| खंड-लवण					 : | पुं० [कर्म० स०] काला नमक। | 
			
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				| खंडला					 : | पुं० [सं० खंड] छोटा खंड या टुकड़ा। कतला। पुं० =खँडरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| खंडवारा					 : | पुं०=खँडरा (बड़ा)। | 
			
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				| खंड-वर्षा					 : | स्त्री० [कर्म० स०] ऐसी वर्षा जो रह-रह अथवा रुक-रुककर हो अथवा नगर के किसी एक भाग में तो हो और दूसरे भाग में न हो। | 
			
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				| खँडवानी					 : | स्त्री० [हिं० खाँड+पानी] १. पानी में खाँड आदि घोलकर बनाया हुआ शर्बत। २. बरातियों के पास भेजा जानेवाला जलपान और शर्बत। | 
			
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				| खंड-विकार					 : | पुं० [ष० त०] खाँड से बनी हुई चीनी या सफेद शक्कर। | 
			
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				| खंड-विला					 : | पुं० [?] एक प्रकार का धान और उसका चावल। | 
			
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				| खंड-वृष्टि					 : | स्त्री०=खंड वर्षा। | 
			
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				| खंड-व्यायाम					 : | पुं० [ब० स०] ऐसा नृत्य जिसमें केवल कमर और पैरों को गति देते हैं। | 
			
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				| खंडशः (स्)					 : | अ० य.[सं० खंड+शस्] खंडों के रूप में। खड-खंड करके। | 
			
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				| खंड-शर्करा					 : | स्त्री० [उपमित.स.] १.खंडसारी। चीनी। २. मिसरी। | 
			
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				| खंड-शीला					 : | स्त्री० [ब० स०, टाप्] १. वह युवती जिसका कौमार्य खंडित हो चुका हो। २. दुश्चरित्रा स्त्री। ३. वेश्या। | 
			
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				| खंडसर					 : | पुं० [सं० खंड+सृ (गति)+अच्] चीनी। | 
			
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				| खँड़सार					 : | स्त्री० [सं० खंड+शाला] वह कारखाना जहाँ पुराने देशी ढंग से चीनी बनती है। | 
			
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				| खँडसारी					 : | स्त्री० [देश०] खँड़सार में बनी हुई अर्थात् देशी चीनी। | 
			
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				| खँड़साल					 : | पुं०=खँडसार। | 
			
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				| खँडहर					 : | पुं० [सं० खंड+हिं० घर] १. वह स्थान जिस पर बनी हुई इमारत या भवन खंड-खंड होकर गिर पड़ा हो। गिरे या टूटे हुए मकान का बचा हुआ अंश। २. चित्रकला में, किसी चित्र में का वह स्थान जो भूल से खाली छूट गया हो और जिसमें सौन्दर्य के विचार से कुछ अंकित होना आवश्यक तथा उचित हो। | 
			
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				| खंडा					 : | पुं० [स० खंड] चावल का छोटा टुकड़ा। किनकी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=खाँडा (शस्त्र)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| खंडाभ्र					 : | पुं० [सं० खंड-अभ्र कर्म.स.] १. दाँतों का एक रोग। २. बिखरे हुए बादल। | 
			
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				| खंडाली					 : | स्त्री० [सं० खंड-आ√ला (लेना)+क-ङीष्] १. तेल नापने का एक परिमाण। २. वह स्त्री जिसका पति धर्मद्रोही हो। ३. छोटा तालाब। ताल। | 
			
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				| खंडिक					 : | पुं० [सं० खंड+ठन्–इक] १. वह विद्यार्थी जो किसी ग्रंथ के विभिन्न विभागों का अलग-अलग अध्ययन करता हो। २. एक प्राचीन ऋषि। ३. काँख। | 
			
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				| खंडिका					 : | स्त्री० [सं० खंडिक+टाप्] १. दे.‘खंडिक’। २. किसी देय राशि का वह अंश जो किसी एक निश्चित समय प दिया जाए अथवा दिया जाने को हो। किस्त। (इन्स्टालमेन्ट) | 
			
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				| खंडित					 : | वि० [सं०√खंड्+क्त] १. (वस्तु) जिसका कोई अंश या भाग उससे कट या टूटकर अलग हो गया हो। जैसे–खंडित भारत, खंडित मूर्ति। २. (कुमारी) जिसका कौमार्य नष्ट हो चुका हो। ३. जो पूरा न हो। अपूर्ण। ४. (विचार या सिद्धांत) जिसकी त्रुटियाँ या दोष दिखलाकर खंडन किया गया हो और उसे गलत ठहराया गया हो। | 
			
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				| खंडित-विग्रह					 : | वि० [ब० स०] विकलांग। | 
			
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				| खंडित-व्यक्तित्व					 : | पुं० [सं० ब० स०] मनोविज्ञान में, प्रबल मानसिक संघर्ष के कारण उत्पन्न होनेवाली ऐसी मानसिक स्थिति जिसमें मनुष्य का अपनी चेतना-शक्ति पर पूरा-पूरा अधिकार नहीं रह जाता। (स्प्लिट पर्सनैलिटी) | 
			
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				| खंडिता					 : | स्त्री० [सं० खंडित+टाप्] साहित्य में वह नायिका जो रात भर अन्यत्र पर-स्त्री गमन करनेवाले अपने प्रिय को प्रातः पर-स्त्री-संसर्ग के चिन्ह्नों से युक्त देखकर दुःखी होती हो। इसके कई भेद हैं–मुग्धा खंडिता, मध्या खंडिता, प्रौढ़ा खंडिता आदि आदि। | 
			
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				| खंडिनी					 : | स्त्री० [सं० खंड+इनि–ङीप्] पृथिवी। | 
			
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				| खँडिया					 : | पुं० [सं० खंड+हिं० इया(प्रत्य.)] वह जो कोल्हू में पेरने के लिए गन्नों के खंड-खंड करता या गँड़ेरियाँ बनाता हो। पुं०=खंड (टुकड़ा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| खंडी					 : | स्त्री० [सं० खंड] १. गाँव के आस-पास वृक्षों का समूह। २. राज-कर। ३.चौथ नामक कर जो मराठे वसूल करते थे। ४. लगान या किराये की खंडिका। किस्त। मुहावरा–खंडी करना=किस्त बाँधना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| खँडुआ					 : | पुं० [हिं० खंड] १. कुआँ जिसकी बँधाई पत्थर के ढोकों से हुई हो। २. दे.‘कंदुआ’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| खंडेश्वर					 : | पुं० [सं० खंड-ईश्वर, ष.त.] एक खंड (देश) का स्वामी। राजा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| खँडौरा					 : | पुं० [हिं० खाड़+औरा (प्रत्य.)] १. मिसरी का लड्डू। २. ओला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| खँडौरी					 : | स्त्री० [सं० खंड] कूटे हुए चावल के टूटे हुए कण।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं |