| शब्द का अर्थ | 
					
				| खाम					 : | पुं० [सं० स्कम्भ, पा० प्रा० खंभ, बँ० खाँबा, उ० गु० मरा० खाँब] १. खंभा। स्तम्भ। २. जहाज या नाव का मस्तूल। पुं० [हिं० खामना] १. चिट्ठी रखने का लिफाफा। २. संधि। जोड़। ३.जोड़ या संधि पर लगाया जाने वाला टाँका। वि० [सं० क्षाम](यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) १. कटा-फटा या टूटा-फूटा हुआ। २. क्षीण। वि० [फा०] १. कच्चा। २. जो दृढ़ या पुष्ट न हो। ३.जिसे अनुभव न हो। ४. अनुचित और निराधार। जैसे– खाम, खयाली। | 
			
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				| खामखयाली					 : | स्त्री० [फा०] ऐसी अनुचित धारणा या विचार, जिसका कोई पुष्ट आधार न हो। अकारण या व्यर्थ की धारणा। | 
			
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				| खामखाह, खामखाही					 : | क्रि० वि०=खाहमखाह। | 
			
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				| खामना					 : | स० [सं० स्कंभन=मूँदना, रोकना, प्रा०खंभन] १. गीली मिट्टी आदि से किसी पात्र का मुँह बंद करना। २. गोंद लगाकर लिफाफें का मुँह बन्द करना। | 
			
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				| खामी					 : | स्त्री० [फा०] १. खाम या कच्चे होने का अवस्था या भाव। कच्चापन। २. अच्छी तरह पक्व या पुष्ट न होने की अवस्था या भाव। ३. अनुभव. ज्ञान आदि की अपूर्णता। नादानी। ४. कमी। त्रुटि। | 
			
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				| खामुशी					 : | स्त्री०=खामोशी। | 
			
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				| खामोश					 : | वि० [फा०] १. जो कुछ बोल न रह गया हो। चुप। मौन। २. शांत। | 
			
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				| खामोशी					 : | स्त्री० [फा०] खामोश होने की अवस्था या भाव। मौन। चुप्पी। | 
			
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				| खामहखाह					 : | क्रि. वि० [फा० ख्वाहम ख्वाह] १. चाहे आवश्यकता अथवा इच्छा हो चाहे न हो। बिना आवश्यकता के और प्रायः व्यर्थ। जैसे–तुम खाहमखाह दूसरों के झगड़ों में पड़ते हो। | 
			
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