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गड़ना  : अ० [सं० गर्त्त, प्रा० गड्ड-गड्ढा] १. हिन्दी गड़ना का अकर्मक रूप। २. जमीन के अंदर खोदे हुए गड्ढे में गाड़ा जाना। जैसे–तार या खंभा गड़ना, कब्र में मुरदा या लाश गड़ना। मुहावरा–गड़े मुरदा उखाड़ना=पुरानी या बीती हुई बातें फिर से उठाकर उनके संबंध में झगड़ना या तर्क-वितर्क या वाद-विवाद करना। ३. ऊपर से किसी प्रकार का दबाव पड़ने पर नीचेवाले तल में धँसना या प्रिविष्ट होना। मुहावरा–(लज्जा के मारे) जमीन में गड़ना=लज्जा के कारण ऐसी स्थिति में होना कि मुँह दिखाने या शिर उठाने का साहस न होता हो। जैसे–मैं तो उनकी बातें सुनकर लज्जा के मारे जमीन में गड़ गया। ४. किसी चीज का कुछ अंश जमीन के अन्दर इस प्रकार जमना या स्थापित होना कि वह चीज वहाँ स्थापित हो जाए। जैसे–किले पर झंडा गडऩा। ५. उक्त के आधार पर लाक्षणिक रूप में, कहीं प्रविष्ट होकर स्थापित या स्थित होना। उदाहरण–उर में माखन चोर गड़े। ६. किसी कड़ी या नुकीली चीज का शरीर के किसी अंग में कुछ छेद करते हुए उसेक अंदर धसना या पहुँचाना। चुभना। जैसे–पैर में काँटा या हाथ में सूई गड़ना। ७. किसी परकीय या बाह्य पदार्थ के शरीर में आने या होने के कारण उसके दबाव में किसी अंग में पीड़ा या कष्ट होना। जैसे–भोजन ना पचने के कारण पेट गड़ना, धूल का कण पड़ने के कारण आँख गड़ना। ८. लाक्षणिक रूप में, किसी अनुचित अनुपयुक्त या असोभन बात का मन में कुछ कसक या खटक उत्पन्न करना। खटकना। जैसे–इतने सुन्दर चित्रों के बीच में वह भद्दा चित्र तो हमें गड़ रहा था। ९. आँख या ध्यान के संबंध में, किसी विशिष्ट उद्देश्य से किसी चीज या बात पर स्थित या स्थिर होना। जमना। जैसे–(क) मेरी आँखें उसके चेहरे पर गड़ी थी। (ख) सबका ध्यान उसकी बातों पर गड़ा था।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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