| शब्द का अर्थ | 
					
				| ग़ैर					 : | वि० [अ०] १. प्रस्तुत से भिन्न। कुछ और या कोई और। जैसे–गैर मौरूस=मौरूसी से भिन्न। २. अन्य। दूसरा। ३. जिसके साथ आत्मीयता का संबंध न हो। जैसे–गैर आदमी, गैरमर्द। ४. दूसरे या दूसरों से संबंध रखनेवाला। जैसे–गैर इलाके या गैर मुल्क का। मुहावरा–गैर करना (क) गैरों या परायों का सा व्यवहार करना। (ख) वैर-विरोध या शत्रुता करना। ५. कथित से भिन्न होने के कारण ही विपरीत या विरूद्ध। जैसे–गैर जरूरी, गैर मुमकिन, गैर वाजिब, गैर हाजिर आदि। पुं० दे० गैयर। स्त्री० १. दे० ‘गैल’। २. दे० ‘घर’। | 
			
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				| ग़ैर-आबाद					 : | वि० [अ०+फा०] १. (प्रदेश) जिसमें मनुष्यों की बस्ती न हो। २. (भूमि) जो जोती-बोई न गयी हो या न जाती हो। | 
			
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				| ग़ैर-इंसाफी					 : | स्त्री० [अ०] अन्याय। | 
			
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				| ग़ैर-जरूरी					 : | वि० [अ०] अनावश्यक। | 
			
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				| ग़ैर-जिम्मेदार					 : | वि० [अ०+फा०] [भाव० गैर-जिम्मेदारी] १. जो जिम्मेदार या जबावदेह न हो। २. जो अपनी जिम्मेदारी या उत्तरदायित्व न समझता हो। अनुत्तदायी। | 
			
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				| ग़ैरत					 : | स्त्री० [अ०] मन में होनेवाली अपने ही संबंध में वह खेदजनक भावना जो कोई अनुचित या अशोभन काम करने पर उत्पन्न होती है या होनी चाहिए। लज्जा। शर्म। | 
			
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				| ग़ैरतदार					 : | वि० [अ०+फा०] लज्जाशील। | 
			
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				| ग़ैरतमंद					 : | वि० ==गैरतदार। | 
			
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				| ग़ैर-दखीलदार					 : | पुं० [अ०+फा०] वह असामी (या खेतिहर) जिसे दखीलकारी वाले अधिकार प्राप्त न हो। (नान्आँकुपेन्सी टेनेन्ट)। | 
			
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				| ग़ैर-मजरूआ					 : | वि० [अ०] (भूमि) जो जोती-बोई न गयी हो या न जाती हो। | 
			
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				| ग़ैर-मनकूला					 : | वि० [अ०] (पदार्थ या सम्पत्ति) जिसे एक स्थान से उठाकर दूसरे स्थान पर न ले जाया जा सके। अचल। स्थावर। | 
			
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				| ग़ैर-मामूली					 : | वि० [अ०] १. नित्य या नियम से भिन्न। २. असाधारण। | 
			
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				| ग़ैर-मिसिल					 : | वि० [अ०] १. जो मिसिल में न हो, बल्कि उसके बाहर हो। २. किसी दूसरे वर्ग या विभाग का। ३. अनुचित। ४. जो उपयुक्त अवसर पर न हो। बे-मौके। ५. अशिष्टतापूर्वक या अश्लील। (परहास, व्यंग्य आदि के संबंध में प्रयुक्त) जैसे–गैरमिसिल। दिल्लगी। | 
			
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				| ग़ैर-मुनासिब					 : | वि० [अ०] जो मुनासिब अर्थात् उचित न हो। अनुचित। | 
			
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				| ग़ैर-मुमकिन					 : | वि० [अ०] जो मुमकिन अर्थात् संभव न हो। असंभव। | 
			
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				| ग़ैर-मुल्की					 : | वि० [अ०] १. गैर या दूसरे देश का। विदेशी। २. दूसरे राज्यों या राष्ट्रों से संबंध रखनेवाला। पर-राष्ट्रीय। | 
			
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				| ग़ैर-रस्मी					 : | वि० [अ०+फा०] (कार्य या व्यवहार) जो परंपरा, रीति आदि के अनुसार न किया गया हो। | 
			
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				| ग़ैर-वसली					 : | स्त्री० [अ०] कच्चे मकानों की छत छाने की वह प्रणाली जिसमें बाँस की पतली कमाचियों को दृढ़तापूर्वक केवल बुन देते हैं और उन्हें रस्सियों से नहीं बाँधते। | 
			
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				| ग़ैर-वसूल					 : | वि० [अ०] [भाव० गैर-वसूली] जो वसूल या प्राप्त न हुआ हो, अभी वसूल होने को बाकी हो। | 
			
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				| ग़ैर-वाजिब					 : | वि० [अ०] अनुचित। नामुनासिब। | 
			
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				| ग़ैर-सरकारी					 : | वि० [अ०] १. जो सरकारी या राज्यकीय न हो बल्कि उससे भिन्न हो। अराजकीय। २. जिसके लिए सरकार उत्तरदायी न हो। (वक्तव्य आदि)। | 
			
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