शब्द का अर्थ
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गूँ :
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पुं० [फा०] १. रंग। जैसे–गुलगँ=गुलाब के रंग का। २. ढंग। प्रकार। ३. वर्ग। |
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गूँगा :
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वि० [फा० गुँग=जो बोल न सके] [वि० स्त्री० गूँगी] १. (व्यक्ति) जिसकी वाक्-शक्ति ऐसी विकृति हो कि कुछ भी बोल न सके। जैसे–गूँगा लड़का। २. जिसमें मनुष्य की तरह शब्दों का उच्चारण करने की शक्ति न हो। जैसे–पशु-पक्षी गूँगे होते हैं। पुं० वह जो बोल न सकता हो। पद–गूँगे का गुड़ =ऐसी स्थिति जिसमें उसी प्रकार अनुभूति का वर्णन न हो सके, जिस प्रकार गूँगा व्यक्ति गुड़ खाने पर भी उसकी मिठास का वर्णन नही कर सकता। गूँगे का सपना=गूँगे का गुड़। गूँगी पहेली वह पहेली जो मुँह से न कही जाए, इशारों से कही जाय। मुहावरा–गूँगे का गुड़ खानाकोई ऐसा अनुभव करना जिसका वर्णन न हो सकता हो। |
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गूँगी :
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स्त्री० [हिं० गूँगा] पैर में पहनने का एक प्रकार का छल्ला। |
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गूँच :
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स्त्री० [सं० गुञ्ज] गुंजा। घुँघची। |
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गूँछ :
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स्त्री० [देश०] गहरे पानी में रहनेवाली एक प्रकार की बड़ी मछली। बूँछ। |
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गूँज :
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स्त्री० [सं० गुंज] १. भौंरों का गुन-गुन शब्द करना। गुंजन। २. मक्खियों के भिनभिनाने का शब्द। ३. किसी तल या सतह से परावर्तित होकर सुनाई पड़नेवाला शब्द या ध्वनि। ४. किसी स्थान में होनेवाली किसी बात की विस्तृत चर्चा। धूम। जैसे–शहर में इस बातकी गूँज है। ५. किसी प्रकार के कार्य की प्रतिक्रिया। (ईको) ६. किसी स्थान पर किसी विशिष्ट बात के होने की अधिक या विस्तृत चर्चा। जैसे–आज-कल शहर में इस बात की बहुत गूँज हैं। ७. लट्टू में नीचे की ओर जड़ी हुई वह लोहे की कील जिस पर लट्टू घूमता है। ८. नथ, बाली, आदि में सुन्दरता के लिए लपेटा हुआ छोटा पतला तार। |
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गूँजना :
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अ० [सं० गुंजन] १. भौरों का गुंजारना। गुंजन करना। २. मक्खियों का भिनभिनाना। ३. किसी शब्द का किसी तल से टकरा कर फिर से सुनाई पड़ना। प्रतिध्वनि होना। ४. (किसी चर्चा का) किसी स्थान में फैलना। |
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गूँझ :
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स्त्री०==गूँज। |
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गूँठ :
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पुं० [हिं० गोठा=छोटा, नाटा] एक प्रकार का छोटा कद का पहाड़ी टट्टू। |
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गूँथना :
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स० गूथना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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गूँदना :
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स० =गूँथना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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गूँदा :
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पुं०==गोंदा। |
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गूँदी :
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स्त्री० [?] गँधेला नाम का पेड़ जिसकी जड़, छाल और पत्तियाँ औषध के काम में आती हैं। |
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गूँधना :
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स० [सं० गुध=क्रीड़ा] १. किसी प्रकार के चूर्ण में थोड़ा-थोड़ा पानी (अथवा कोई तरल पदार्थ) मिलाते तथा हाथ से मलते हुए उसे गाढ़ा अवलेह के रूप में लाना। माँड़ना। सानना। जैसे–आटा गूँथना। २. दे० ‘गूँधना’। |
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गू :
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पुं०==गुह (मल)। |
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गूगल, गूगुल :
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पुं० =गुग्गुल। |
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गूजर :
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पुं० [सं० गुर्जर] [स्त्री० गुजरी, गुजरिया] १. गुर्जर देश में रहनेवाली एक प्राचीन जाति। २. अहीर। ग्वाला। ३. क्षत्रियों का एक भेद। |
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गूजरी :
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स्त्री० [सं० गुर्जरी] १. गूजर जाति की स्त्री। २. ग्वालिन। ३. पैरों में पहने जाने का एक प्रकार का गहना। ४. गुर्जरी नाम की रागिनी। |
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गूजी :
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स्त्री० [हिं० गुजुवा की स्त्री०] काले रंग का एक प्रकार का छोटा कीड़ा। |
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गूझना :
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अ०=छिपना। स० ==छिपाना। |
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गूझा :
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पुं० [सं० गुह्यक, प्रा० गुज्झा] [स्त्री० गुझिया] १. बड़ी गुझिया (पकवान)। २. मलद्वार। गुदा। पुं० =गुज्झा (रेशा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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गूटी :
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स्त्री० [देश०] १. लीची का पेड़ लगाने का एक ढंग या प्रकार। २. चौपायों का एक रोग। |
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गूड़ी :
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स्त्री० [सं० गुहा वा गुह्य] अनाज की बाली में का वह गड्ढा जिसमें से दाना निकाल लिया गया हो। |
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गूढ़ :
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वि० [सं०√Öगुह (छिपाना)+क्त] १. छिपा हुआ। गुप्त। जैसे–गूढ़ापाद। २. (किलष्ट या पेचीदा बात) जिसका अभिप्राय या आशय सहज में लोग न समझ सकते हों। अर्थ-गर्भित। जटिल। दुरूह। जैसे–गूढ़ विषय। ३. जिसमें कोई विशेष अभिप्राय छिपा हो। गंभीर। पुं० १. स्मृति में पाँच प्रकार के साक्षियों में से वह जिसे अर्थी ने प्रत्यर्थी की बात बतला या सुना दी हो। २. गूढ़ोक्ति नामक अलंकार। (साहित्य) |
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गूढ़चर :
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पुं० =गुप्तचर। उदाहरण–इन्द्रिय अगूढ़ चोर मारि दै।–देव। वि० छिपकर घूमने-फिरनेवाला। |
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गूढ़-चारी (रिन्) :
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वि० पुं० [सं० गूढ़√Öचर् (गति)+णिनि, उप० स०]=गूढ़चर। |
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गूढ़ज :
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पुं० [सं० गूढ़जन् (उत्पन्न होना)+ड, उप० स०] वह पुत्र जिसे पति के घर रहते हुए भी पत्नी ने अपने किसी सवर्ण जार से पैदा किया हो। |
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गूढ़-जात :
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पुं० [पं० त०]=गूढ़ज। |
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गूढ़-जीवी (विन्) :
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पुं० [सं० गूढ़√जीव्(जीना)+णिनि, उप० स०] वह जिसकी जीविका के साधन का किसी को पता न चले। |
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गूढ़ता :
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स्त्री० [सं० गूढ़+तल्-टाप्] गूढ़ होने की अवस्था या भाव। |
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गूढ़त्व :
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पं० [ब० स०] गूढ़ता। |
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गूढ़-नीड़ :
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पुं० [ब० स०] खंजन पक्षी। |
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गूढ़-पत्र :
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पुं० [ब० स०] १. करील वृक्ष। २. अंकोट वृक्ष। ३. [कर्म० स०] मतदान-पत्र (बैलेट)। |
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गूढ़-पथ :
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पुं० [कर्म० स०] १. छिपा हुआ रास्ता। जैसे–सुंरग। २. [ब० स०] अंतःकरण या अंतरात्मा। |
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गूढ़-पद,गूढ़-पाद :
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पुं० [ब० स०] सर्प। साँप। |
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गूढ़-पुरुष :
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पुं० [कर्म.स० ] जासूस। भेदिया। |
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गूढ़-पुष्प :
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पुं० [ब० स०] १. पीपल, बड़, गूलर, पाकर इत्यादि वृक्ष जिनमें फूल नहीं होते अथवा नहीं दिखाई देते। २. मौलसिरी। |
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गूढ़-भाषित :
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पुं० [कर्म० स०] ऐसे शब्दों में कही हुई बात जो सब की समझ मे न आती हो। |
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गूढ़-मंडप :
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पुं० [कर्म० स०] देव मन्दिर के अंदर का बरामदा या दालान। |
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गूढ़-मार्ग :
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पुं० [कर्म० स०] सुरंग। |
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गूढ़-मैथुन :
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पुं० [ब० स०] काक। कौआ। |
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गूढ़-लेख :
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पुं० [कर्म० स०] लिखने या संवाद भेजने की गुप्त लिपि प्रणाली। (साइफर)। |
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गूढ़-व्यंग्य :
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पुं० [कर्म० स०] काव्य में एक प्रकार की लक्षणा जिसमें व्यंग्य का अभिप्राय जल्दी सब की समझ में नहीं आ सकता। |
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गूढ़-संहिता :
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स्त्री० [ष० त०] वह संग्रह जिसमें गूढ़-लेख के नियमों, संकेतों सिद्धान्तों आदि का विवेचन हो। (साइफर कोड)। |
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गूढांग :
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पुं० [गूढ़-अंग, कर्म० स०] १. इन्द्रिय, गुदा आदि गुप्त अंग। २. [ब० स०] कछुआ। |
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गूढ़ा :
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स्त्री० [सं० गूढ़] १. ऐसी बात जिसका अर्थ जल्दी सब की समझ में न आवे। २. पहेली। (राज) |
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गूढ़ाशय :
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पुं० [गूढ़-आशय, कर्म० स०]=गूढ़-पुरुष (जासूस)। |
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गूढ़ोक्तर :
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स्त्री० [गूढ़-उत्तर,कर्म० स०] साहित्य में उत्तर अलंकार का एक भेद जिसमें किसी बात का दिया जानेवाला उत्तर अपने में कोई और गूढ़ अर्थ छिपाये होता है। |
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गूथना :
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स० [सं० ग्रंथन] १. डोरे, तागे आदि के रूप की चीजों को समेट कर सुंदरतापूर्वक आपस में बाँधना। जैसे–चोटी या सिर के बाल गूथना। २. बिखरी हुई अथवा कई चीजों को पिरोकर एक में मिलाना। जैसे–फूलों या मोतियों की माला गूथना। ३. आपस में जोड़ने या मिलाने के लिए मोटे-मोटे टाँके लगाना। गाँथना। जैसे–गुदड़ीगूथ ना। |
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गूद :
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स्त्री० [सं० गूढ़ या हिं० गोदना] १. गड्ढा। गर्त्त। २. कम गहरा चिन्ह या रेखा। पुं० =गूदा। |
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गूदड़ :
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पुं० [हिं० गूथना] [स्त्री० गुदड़ी] जीर्ण-शीर्ण या फटा-पुराना कपड़ा जो काम में आने के योग्य न रह गया हो। पद–गूदड़शाह वा गूदड़शाँई-फटे-पुराने कपड़े सीकर पहनने वाला साधु। |
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गूदर :
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पुं०=गूदड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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गूदा :
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पुं० [सं० गुप्त, प्रा० गुप्त] [स्त्री० गूदी] १. फल आदि के अन्दर का कोमल और गुदगुदा सार भाग। जैसे–आम, इमली या नारंगी का गूदा। २. किसी चीज के अन्दर का गीला गाढ़ा सार भाग। मज्जा। (पिथ्)। ३. किसी चीज को कूटकर तैयार किया हुआ उसका कुछ गीला पिंड या रूप। (पल्प)। ४. खोपड़ी का सार भाग। भेजा। ५. गिरी। मींगी। |
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गूदेदार :
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वि० [हिं० गूदा+फा० दार] जिसके अन्दर गूदा रहता हो। |
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गून :
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स्त्री० [सं० गुण=रस्सी] १. नाव खींचने की रस्सी। २. रीहा नामक घास। |
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गूना :
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पुं० [फा० गूनः=रंग] एक प्रकार का सुनहरा रंग जो धातु की बनी हुई चीजों पर चढ़ाया जाता है। |
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गूनी :
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स्त्री० गोनी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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गूमट :
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पुं० =गुम्मट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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गूमड़ा :
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पुं०==गुमड़ा या गुम्मड़। |
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गूमना :
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स० [?] १. गूँधना। माँड़ना। सानना। २. कुचलना। रौदना। |
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गूमा :
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पुं० [सं० कुंभा, गुंभा] एक प्रकार का पौधा जिसकी गाँठों पर सफेद फूलों के गुच्छे लगते हैं। कुंभा। द्रोणपुष्पी। |
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गूरा :
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पुं० =गुल्ला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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गूल :
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पुं० =गुल्म (सेना का)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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गूलर :
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पुं० [सं० उदुंबर] १. पीपल, बरगद आदि की जाति का एक बड़ा पेड़ जिसकी डालों आदि से एक प्रकार का दूध निकलता है और जिसका फल औषधि, तरकारी आदि के रूप में खाया जाता है। उदुंबर। २. उक्त वृक्ष का फल। पद-गूलर का फूल (क) दुर्लभ वस्तु। (ख) असंभव बात। (गूलर में फूल होता ही नहीं, इसी आधार पर यह पद बना है)। मुहावरा–गूलर का पेट फड़वाना=गुप्त या दबी हुई बात का प्रकट कराना। भेद खुलवाना। पुं०=मेढ़क।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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गूलर-कबाब :
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पुं० [हिं० गूलर+फा० कबाब] एक प्रकार का कबाब जो उबले और पिसे हुए मांस से गूलर के फल के आकार का होता या गोलियों के रूप में बनाया जाता है, |
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गूलू :
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पुं० [देश०] एक प्रकार का वृक्ष। पुंड्रक। |
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गूवाक :
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पुं० =गुवाक। |
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गूषणा :
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स्त्री० [सं० गु√उष् (जलाना)+युच्-अन, टाप्] मोर की पूँछ पर बना हुआ अर्द्धचन्द्र चिन्ह्र। मोर-चंद्रिका। |
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गूह :
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पुं० [सं० गूथ] गुह। मल। मुहावरा के लिए दे० गुह के मुहा०। |
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गूहन :
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पुं० [सं०Ö गूह्+ल्युट्-अन] छिपाने का कार्य। |
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गूहा छीछी :
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स्त्री० [हिं० गूह+छीछी] ऐसा गंदा झगड़ा या लड़ाई जिससे देखने-सुनने वाले तक के मन में घृणा उत्पन्न होती हो। |
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