शब्द का अर्थ
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चक्ष :
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पुं० [सं०√चक्ष् (देखना,बोलना)+अच्] नकली दोस्त। स्वार्थी मित्र। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
चक्षण :
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पुं० [सं०√चक्ष्+ल्.युट-अन] १. कृपा-दृष्टि। २. अनुग्रह पूर्ण व्यवहार। ३. बातचीत। कथन। ४. मद्य आदि के साथ खाने की चाट। चक्खी। |
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चक्षम :
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पुं० पुं० [सं०√चक्ष्+अम्] १. बृहस्पति। २. उपाध्याय। |
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चक्षा(क्षस्) :
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पुं० [सं०√चक्ष्+अस्] १. बृहस्पति। २. आचार्य। |
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चक्षुःपथ :
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पुं० [ष० त०] १. दृष्टि-पथ। २. क्षितिज। |
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चक्षुःश्रवा(वस्) :
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वि० [ब० स०] नेत्रों से सुननेवाला। पुं० साँप। |
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चक्षु (क्षुस्) :
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पुं० [सं०√चक्षु+उस्०] १. देखने की इंद्रिय। आँख। नेत्र। २. पश्चिमी एशिया के वंक्षु नद (आधुनिक आक्सस नदी) का एक पुराना नाम। |
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चक्षुरपेत :
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वि० [चक्षुक-अपेत, तृ० त०] नेत्रहीन। अंधा। |
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चक्षुरिंद्रिय :
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स्त्री० [चक्षुर-इंद्रिय,कर्म० स०] देखने की इंद्रिय। आँख। नेत्र। |
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चक्षुर्दर्शनावरण :
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पुं० [चक्षुर्-दर्शन,तृ० त० चक्षुर्दर्शन-आवरण, ष० त०] जैन शास्त्र में वे कर्म जिनके उदय होने से चक्षु द्वारा दिखाई पड़ने में बाधा होती है। |
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चक्षुर्मल :
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पुं० [ष० त०] आँख से निकलनेवाला मल या कीचड़। |
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चक्षुर्वन्य :
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वि० [तृ० त०] नेत्र रोग से ग्रस्त या पीड़ित। |
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चक्षुर्विषय :
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पुं० [ष० त० ] १. वे सब चीजें या बातें जो आँख से दिखाई देती हैं। २. क्षितिज। वि० जो चक्षुओं का विषय हो। |
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चक्षुर्हा(र्हन्) :
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वि० [सं० चक्षुस्√हन् (मारना)+क्विप्, उप० स०] जिसके देखने मात्र से कोई चीज नष्ट हो जाती हो। |
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चक्षुष्कर्ण :
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पुं० [ब० स०] सर्प। साँप। |
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चक्षुष्पति :
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पुं० [ष० त०] सूर्य। |
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चक्षुष्पथ :
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पुं० [ष० त०] १. दृष्टि-पथ। २. क्षितिज। |
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चक्षुष्मान्(मत्) :
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वि० [सं० चक्षुस्+मतुप्] १. आँखोंवाला। २. सुंदर आँखोंवाला। |
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चक्षुष्य :
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वि० [सं० चक्षुस्+यत्] १. नेत्र संबंधी। २. जो देखने में प्रिय लगे। मनोहर। सुंदर। ३. जो नेत्रों के लिए हितकर हो। ४. नेत्रों से उत्पन्न होनेवाला। पुं० १. आँखों में लगाने का अंजन या सुरमा। २. केतकी। केवड़ा। ३. सहिंजन। ४. तूतिया। |
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चक्षुष्या :
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स्त्री० [सं० चक्षुष्य+टाप्] १. सुंदर नेत्रोंवाली स्त्री। २. वनकुलथी। चाकसू। ३. मेढ़ासींगी। |
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चक्षुस् :
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पुं०=चक्षु। |
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