| शब्द का अर्थ | 
					
				| जगन					 : | पुं० [सं० यज्ञाग्नि](यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) १. यज्ञ की अग्नि। २. यज्ञस्थल। उदाहरण–जो वै जाँ गृहि गृहि जगन जागवै।–प्रिथीराज। स्त्री० [हिं० जागना] जागने की क्रिया या भाव। पुं० =जगण। | 
			
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				| जगनक					 : | पुं० [देश०] महोबे के राजा परमाल के दरबार का एक प्रसिद्ध कवि। | 
			
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				| जगना					 : | अ० [सं० जागरण] १. जाग्रत होना। जागना। २. अग्नि, दीप-शिखा आदि का प्रज्वलित होना। जैसे–ज्योति जगना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| जगनी					 : | स्त्री० [?] १. एक प्रकार का पौधा। २. उक्त पौधे के बीज जिनका तेल निकाला जाता है। | 
			
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				| जगनु					 : | पुं० [सं० जगन्नु] १. अग्नि। २. कीड़ा। ३. जंतु। पुं०=जुगनूँ। | 
			
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				| जगन्नाथ					 : | पुं० [जगत्-नाथ, ष० त०] १. जगत के नाथ, ईश्वर। २. विष्णु। ३. उड़ीसा प्रदेश की पुरी नगरी के एक प्रसिद्ध देवता। | 
			
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				| जगन्नाथ-क्षेत्र					 : | पुं० [ष० त०] उड़ीसा प्रदेश की पुरी नामक नगरी जो एक तीर्थस्थल है। जगन्नाथपुरी। | 
			
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				| जगन्नाथ-धाम(न्)					 : | पुं० [ष० त०] जगन्नाथपुरी। | 
			
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				| जगन्नियंता(तृ)					 : | पुं० [जगत्-नियतृ, ष० त०] वह जो जगत् का नियत्रण करता हो। ईश्वर। | 
			
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				| जगन्निवास					 : | पुं० [जगत्-निवास, ष० त०] ईश्वर। परमेश्वर। | 
			
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				| जगन्नु					 : | पुं० [सं० जगत्√ नम् (नम होना)+डु] १. अग्नि। २. कीड़ा। ३. जंतु। | 
			
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				| जगन्मंगल					 : | पुं० [जगत्-मंगल, ब० स०] काली का एक कवच। | 
			
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				| जगन्मय					 : | पुं० [सं० जगत्-+मय] विष्णु। | 
			
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				| जगन्मयी					 : | स्त्री० [सं० जगन्मय+ङीष्] १. लक्ष्मी। २. वह शक्ति जो जगत् का संचालन करती है। | 
			
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				| जगन्माता(तृ)					 : | स्त्री० [जगत्-मातृ, ष० त०] दुर्गा। | 
			
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				| जगन्मोहिनी					 : | स्त्री० [जगत्-मोहिनी, ष० त०] १. दुर्गा। २. महामाया। | 
			
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