| शब्द का अर्थ | 
					
				| जघन					 : | पुं० [√ हन् (मारना)+अच्, द्वित्व] १. पेड़। (विशेषतः स्त्रियों का)। २. चूतड़। ३. जंघा। जाँघ। ४. सेना का पिछला भाग। | 
			
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				| जघन-कूप					 : | पुं० [ष० त०] चूतड़ के ऊपर का गड्ढा। | 
			
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				| जघनकूपक					 : | पुं० [जघनकूप√ कै (शब्द करना)+क] जघन-कूप।(दे०)। | 
			
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				| जघन-चपला					 : | स्त्री० [ब० स०] १. दुश्चरित्रा स्त्री। कुलटा। २. वह स्त्री जो बहुत तेजी से नाचती हो। ३. आर्या छंद का एक भेद जिसका कोई पूर्वार्द्ध आर्या छंद का और उत्तरार्द्ध चपला छंद का होता है। | 
			
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				| जघनी(निन्)					 : | वि० [सं० जघन+इनि] जिसके नितंब बड़े-बड़ें हों। | 
			
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				| जघन्य					 : | वि० [सं० जघन+यत्] [भाव० जघन्यता] १. अंतिम सीमा पर का। चरम। २. बहुत ही निंदनीय और बुरा। गर्हित। ३. क्षुद्र। नीच। पुं० १. नीच जाति का व्यक्ति। २. पीठ पर का पुट्ठे के पास का भाग। | 
			
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				| जघन्यज					 : | पुं० [सं० जघन्य√ जन् (उत्पत्ति)+ड] १. शूद्र। २. अंत्यज। | 
			
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				| जघन्य-भ					 : | पुं० [कर्म० स०] आर्द्रा, अश्लेषा, स्वाति, ज्येष्ठा, भरणी और शतभिषा ये छः नक्षत्र। | 
			
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