| शब्द का अर्थ | 
					
				| जतु					 : | पुं० [सं०√जन् (उत्पन्न होना)+उ, त आदेश] १. वृक्ष में से निकलनेवाला गोंद। २. लाक्षा। लाख। ३. शिलाजीत। | 
			
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				| जतुक					 : | पुं० [सं० जंतु√कै (प्रतीतहोना)+क] १. हीग। २. लाख। ३. त्वचा पर का काला चिन्ह। लच्छन। | 
			
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				| जतुका					 : | पुं० [सं० जतुक+टाप्] १. पहाड़ी नामक लता जिसकी पत्तियाँ ओषधि के काम आती है। २. चमगादड़। ३. लाक्षा। लाख। | 
			
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				| जतुकारी					 : | स्त्री० [सं० जतुक्√ऋ (गमनादि)+अण्-ङीष्] पपड़ी नामक लता। | 
			
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				| जतु-कृष्णा					 : | स्त्री० [उपमि० स०] जतुका या पपड़ी नामक लता। | 
			
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				| जतु-गृह					 : | पुं० [मध्य० स०] १. घास-फूस की झोपड़ी। २. लाख का वह घर जो वारणावत में दुर्योधन ने पांडवों के रहने के लिए बनवाया था। | 
			
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				| जतुनी					 : | स्त्री० [सं० जतु√नी (पहुँचाना)+क्विप्] चमगादड़। | 
			
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				| जतु-पुत्रक					 : | पुं० [सं० जतु-पुत्र मध्य० स०√कै (प्रतीत होना)+क] १. शतरंज का मोहरा। २. चौंसर की गोटी। | 
			
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				| जतु-रस					 : | पुं० [ष० त०] राख से बनाया जानेवाला लाल रंग जिसे स्त्रियाँ पैरों, हाथों आदि पर लगाती हैं। अलक्तक। आलता। महावर। | 
			
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