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जूँ  : स्त्री० [सं० यूका, पा० ऊका] काले रंग का एक बहुत छोटा स्वदेज कीड़ा जो सिर के बालों में पड़ जाता है। (लाउस)। क्रि० प्र०–पड़ना। पद–जूँ की चाल=बहुत धीमी चाल। मुहावरा–(किसी के) कानों पर जूँ तक न रेंगना=किसी के कुछ कहने सुनने पर भी उसका नाम मात्र को भी परिणाम या फल न होना। पुं० [सं० युज्, प्रा० जुआ] जूआ (गाड़ी या हल का)। उदाहरण–जूं सहरी भ्रूह नयण मृग जूता।–प्रिथीराज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जूँठ  : स्त्री०=जूठन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जूँठन  : स्त्री०=जूठन।
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जूँडिहा  : पुं० [हिं० झुंड] वह बैल जो झुंड में सबसे आगे चलता हो।
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जूँदन  : पुं० [देश०] [स्त्री० जूँदनी] बंदर। (मदारी)।
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जूँमुँहा  : वि० [हिं० जूँ+मुँह] (वह व्यक्ति) जो देखने में सीधा-सादा होने पर भी वास्तव में बहुत बड़ा धूर्त्त हो।
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जू  : स्त्री० [सं०√जू (गमनादि)+क्विप्] १. सरस्वती। २. वायुमंडल। ३. घोड़े, बैल आदि पशुओं के मस्तक पर का टीका। अव्य०=जो।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) अव्य=जी।
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जूआ  : पुं० [सं० युग] १. गाड़ी हल आदि के आगे की वह लकड़ी जो जोते जानेवाले पशुओं के कंधे पर रखी तथा बाँधी जाती है। २. चक्की में की वह लकड़ी जिसे पकड़कर उसे चलाया जाता है। मूठ। पुं० [सं० द्यूत, प्रा० जूअ] १. वह खेल जिसमें हार या जीत होने पर कुछ निश्चित या नियत धन विपक्षी से लिया या उसे दिया जाता है। २. इस प्रकार धन लगाकर खेल खेलने की क्रिया या भाव। ३. कोई ऐसा जोखिम का काम जिसमें हानि और लाभ दोनों अनिश्चित होते हैं।
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जूआ खाना  : पुं० [हिं० जूआ+फा० खानः] वह घर या स्थान जहाँ बैठकर लोग जूआ खेलते हों।
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जूक  : पुं० [यूना० ज्यूकस] तुला राशि।
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जूजू  : पुं० [अनु०] एक कल्पित जीव जिसका नाम लेकर छोटे बच्चों को डराया जाता है। हौआ।
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जूझ  : स्त्री० [हिं० जूझना] १. जूझने की क्रिया या भाव। २. युद्ध। लड़ाई।
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जूझना  : अ० [सं० युद्ध वा हिं० जूझ] १. शारीरिक बल लगाते हुए किसी से लड़ना। उठा-पटक और हाथा-बाही करना। जैसे–योद्धाओं का आपस में जूझना। २. शारीरिक बल लगाते हुए कोई प्रयत्न करना। जैसे–कुरसी या मेज से जूझना। ३. व्यर्थ ही बहुत अधिक तकरार या हुज्जत करना।
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जूट  : पुं० [सं०√जूट् (मिलना)+अच्] १. सिर के उलझे हुए और ने तथा बड़े बालों की लट या उन्हें लपेट कर बाँधा हुआ जूड़ा। जैसे–सिर पर जटा-जूट रखना। २. शिव की जटा। पुं० [अ०] पटसन।
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जूटना  : स० [हिं० जूटना का स० रूप] जुटाना।
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जूठ  : वि०=जूठा। स्त्री०=जूठन।
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जूठन  : स्त्री० [हिं० जूठा] १. वह खाद्य पदार्थ जो किसी ने जूठे छोड़े हों। किसी के खाने पीने से बची हुई जूठी वस्तु। मुहावरा–(किसी के यहाँ) जूठन गिराना=किसी के यहाँ निमंत्रित होकर भोजन करना। जैसे–प्रार्थना है कि आज संध्या को मेरे यहाँ आकर जूठन गिराइये। २. वह पदार्थ जो किसी दूसरे के द्वारा एक या अनेक बार काम में लाया जा चुका हो और जिसमें किसी प्रकार की नवलता या नवीनता न रह गई हो।
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जूठा  : वि० [सं० जुष्ठ, प्रा० जुट्ठ] १. (खाद्य पदार्थ) जो किसी के खाने-पीने के बाद बच रहा हो। उच्छिष्ट। २. (खाद्य पदार्थ) जिसे किसी ने मुँह लगाकर या उसमें का कुछ अंश खा-पीकर अपवि या अशुद्ध कर दिया हो। जैसे–कुत्ते या बिल्ली का जूठा भोजन। ३. (पात्र या साधन) जिसके द्वारा अथवा जिसमें कुछ खाया पीया गया हो। जैसे–जूठा बरतन, जूठा हाथ। ४. (कथन या विषय) जिसका किसी ने पहले उपभोग, प्रयोग या व्यवहार कर लिया हो और इसलिए जिसमें कोई चमत्कार या नवलता न रह गई हो। जैसे–दूसरों की जूठी उक्ति। पुं०=जूठन।
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जूड़  : वि० [सं० जड़] [क्रि० जुड़वाना, जुड़ाना] ठंढ़ा। शीतल। पुं०=जूड़ा।
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जूड़न  : पुं० [देश०] कुछ कालापन लिये खैरे रंग का एक प्रकार का बड़ा पहाड़ी बिच्छू।
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जूड़ा  : पुं० [सं० जूट] १. सिर के बड़े-बड़े बालों को लपेटकर गोलाकार बाँधने या गाँठ लगाने से बननेवाला रूप। २. चोटी। कलगी। ३. मूँज आदि का पूला।
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जूड़ी  : स्त्री० [हिं० जूड़] जाड़ा देकर आनेवाला ज्वर। विषम ज्वर। शीत ज्वर।
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जूण  : स्त्री०=योनि।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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जूत  : पुं० [हिं० जूता] १. जूता। २. बड़ा और भारी या मोटा जूता।
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जूता  : पुं० [सं० युक्त, प्रा० जुत्त] १. कंकड़, काँटे, कीचड़, मिट्टी आदि से पैरों की रक्षा करने के लिए उनमें पहने जानेवाले उपकरण की जोड़ी जो चमड़े, टाट, रबर आदि की बनी होती है। उपानह। जोड़ा। विशेष–(क) हमारे देश में इसकी गिनती बहुत ही उपेक्ष्य और तुच्छ चीजों में होती है और इससे मारना बहुत ही अपमान-जनक और तिरस्कार सूचक होता है। (ख) मुहावरों आदि में इसका प्रयोग एक वचन में भी होता है और बहुवचन में भी। मुहावरा–(आपस में)जूता उछलना=(क) अपराध में जूतों से मारपीट होना। (ख) आपस में बहुत ही निकृष्ट प्रकार की कहा-सुनी और थुक्का-फजीहत होना। (किसी पर) जूता उछालना=किसी के संबंध में बहुत ही अपमान-जनक बातें कहना। (किसी का) जूता उठाना=बहुत ही तुच्छ या हीन बनकर छोटी-छोटी सेवाएँ तक करना। (किसी पर) जूता उठाना=जूते से आघात या प्रहार करने पर उद्यत होना। जूता खाना=(क) जूतों की मार खाना। (ख) बहुत ही बुरी तरह से अपमानित और तिरस्कृत होना। जूता घुमाना=जूता चलाना। (देखें)। (आपस में) जूता चलना=(क) आपस में जूतों से मार-पीट होना। (ख) आपस में बहुत बुरी तरह से कहा-सुनी या थुक्का-फजीहत होना। जूता चलाना=छोटे-मोटे चोर का पता लगाने के लिए वह टोना या तांत्रिक उपचार करना जिसमें जूता चारों तरफ घूमता रहता है, पर चोर का नाम लेने पर ठहर या रुक जाता है। (किसी पर) जूता चलाना=किसी को मारने के लिए उस पर जूता फेंकना। (किसी का) जूता चाटना= स्वार्थवश बहुत ही दीन-हीन बनकर किसी की खुशामद और तुच्छ सेवाओं में लगे रहना। (किसी को) जूता देना=जूते से प्रहार करना। (किसी पर) जूता पड़ना=बहुत ही बुरी तरह से अपमानित, तिरस्कृत या लांछित होना। जूता मारना=बहुत ही बुरी तरह से अपमानित या तिरस्कृत करना। (किसी पर) जूता पड़ना या बैठना=बहुत ही अपमान जनक या तिरस्कार सूचक व्यवहार होना। (किसी पर) जूता लगना=जूता पड़ना (देखें ऊपर) (पैर में) जूता लगना=पैर में जूते की रगड़ के कारण घाव होना। (आपस में) जूतों दाल बाँटना=बहुत ही बुरी तरह से या नीचों की तरह लड़ाई-झगड़ा होना। (किसी के साथ) जूतों से बात करना=(क) जूतों से मारना। (ख) बहुत ही बुरी तरह से अपमानित और तिरस्कृत करना। अत्यन्त अनादरपूर्ण व्यवहार करना। २. ऐसा व्यय जो बहुत ही बुरे या प्रहार के रूप में हो। जैसे–इनके फेर में सौ रुपये का जूता तुम्हें भी लगा। (अर्थात् तुम्हें भी व्यर्थ सौ रुपए खर्च करने पड़े)। पद–चाँदी का जूता=घूस आदि के रूप में घन का ऐसा व्यय जो किसी को दबाकर अपने अनुकूल या वश में करने के लिए हो। नगद रिश्वत। जैसे–चाँदी का जूता तुम्हें भी ठीक या (सीधा) कर देगा।
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जूताखोर  : वि० [हिं० जूता+फा० खोर] जो बार-बार अपमानित और तिरस्कृत होने पर भी निंदनीय आचरण या व्यवहार न छोड़ता हो। परम निर्लज्ज और हीन।
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जूति  : पुं० [सं०√जू (वेग)+क्तिन्] वेग। तेजी।
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जूतिका  : स्त्री० [सं० जूति√कै (प्रकाशित होना)+क-टाप्] एक तरह का कपूर।
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जूतिया  : पुं०=जीवत्पुत्रिका (व्रत)।
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जूती  : स्त्री० [हिं० जूता] १. स्त्रियों के पहनने का जूता जो अपेक्षया कुछ छोटा और हलका होता है। विशेष–इससे संबंद्ध अधिकतर मुहावरे मुख्यतः स्त्रियों में ही चलते हैं। मुहावरा–जूतियाँ चटकाना=व्यर्थ इधर-उधर घूमते रहना या मारे मारे फिरना। (किसी की) जूतियाँ सीधी करना=बहुत ही तुच्छ और हीन बनकर किसी की छोटी-छोटी सेवाएँ तक करना। (किसी को) जूती की नोक पर मारना=बहुत ही उपेक्ष्य तुच्छ या हेय समझना। (किसी की) जूती के बराबर न होना=किसी की तुलना में बिलकुल तुच्छ या नगण्य होना। (किसी को) जूती पर रखकर रोटी देना=किसी को बहुत ही तुच्छ या हीन ठहराते हुए अपने पास रखकर खिलाना-पिलाना।
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जूतीकारी  : स्त्री० [हिं० जूती+कार] लगातार जूतों की मार। (परिहास) जैसे–जब तक इसकी जूतीकारी न होगी तब तक यह सीधा न होगा।
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जूतीखोर  : वि०=जूताखोर।
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जूतीछिपाई  : स्त्री० [हिं० जूती+छिपाना] १. विवाह के समय की एक रसम जिसमें बधू की बहनें और सहेलियाँ वर को तंग करने के लिए उसके जूते कहीं छिपाकर रख देती हैं। २. उक्त रसम के बाद वह धन या नेग जो जूता चुरानेवाली लड़कियों को दिया जाता है।
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जूती-पैजार  : स्त्री० [हिं० जूती+फा० पैजार] १. आपस में होनेवाली जूतों की मार-पीट। २. बहुत ही बुरी तरह से या नीच लोगों की तरह होनेवाली कहा-सुनी या लड़ाई-झगड़ा।
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जूथ  : पुं०=यूथ।
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जूथका  : स्त्री०=यूथिका। (जूही)।
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जूथिक  : स्त्री०=यूथिका (जूही)।
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जून  : पुं० [सं० द्युवन्=सूर्य] समय। बेला। पुं० [सं० जूर्ण] तिनका। तृण। पुं० [अं०] ईसवीं सन का छठा महीना। स्त्री० [सं० योनि] योनि। जैसे–कुत्ते बिल्ली की जून पाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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जूना  : पुं० [सं० जूर्ण-एक तृण] १. घास-फूस आदि बटकर बनाई हुई रस्सी जो बोझ आदि बाँधने के काम आती है। २. घास-फूस आदि का पूला। वि० [सं० जीर्ण](यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) १. पुराना। २. बुड्ढा। वृद्ध। पुं० [देश०] १. एक प्रकार का पौधा जो प्रायः बागों में शोभा के लिए लगाया जाता है। २. उक्त पौधे का पीले रंग का सुन्दर फूल।
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जूप  : पुं० [सं० द्यूत,प्रा० जूब](यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) १. जूआ (खेल)। २. विवाह के उपरान्त वर और वधू को खिलाया जूए का एक खेल। पुं० [सं० यूप] खंभा। स्तम्भ। उदाहरण–कित गय वे सब भूल भूप लारे बजमारे।-नंददास।
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जूमना  : अ० [अ,.जमा] इकट्ठा होना। जुटना। स० इकट्ठा करना। जुटाना।
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जूर  : पुं० [हिं० जुरना] १. जोड़कर रखी हुई चीजों का समूह। संचय। २. ढेर। राशि।
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जूरना  : स०=जोड़ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स० [हिं० जूरी] एक पर एक रखकर गड्डियाँ या थाक लगाना।
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जूरा  : पुं० [सं० यून] [स्त्री० अल्पा० जूरी] घास या पत्तों का पूला। जट्टी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=जूड़ा।
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जूर्ण  : पुं० [सं०√जूर् (बढ़ना)+क्त] एक प्रकार का तृण।
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जूर्णि  : स्त्री० [सं० ज्वर् (रोग)+नि] १. तेजी। वेग। २. देह। शरीर। ३. स्त्रियों का एक रोग। वि० १. वेगवान्। तेज। २. गला हुआ। द्रवित ३. तपानेवाला। ४. प्रशंसा या स्तुति करनेवाला। ४. खुशामदी। पुं० १. सूर्य। २. ब्रह्मा। ३. क्रोध। गुस्सा।
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जूर्ति  : स्त्री० [सं०√ज्वर्+क्तिन्] ज्वर।
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जूलाई  : स्त्री० [अं०] अंगरेजी सन् का सातवाँ महीना।
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जूव  : वि० [सं० युवा] नौजवान। युवक। स्त्री०=युवती।
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जूषण  : पुं० [सं०√जूष् (सेवा करना)+ल्युट-अन] १. धाय का पेड़, जो फूलों के लिए लगाया जाता है। २. उक्त पेड़ का फूल।
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जूस  : पुं० [सं० जूष] १. तरकारी, दाल आदि उबालने पर उसका वह पानी या रसा जो प्रायः दुर्बल रोगियों को पथ्य के रूप में दिया जाता है। २. रोगी को दिया जानेवाला पथ्य या बहुत हलका पेय पदार्थ। ३. तरकारियों आदि का झोल या रसा। शोरबा। ४. पके हुए फूल का निचोड़ा हुआ रस। वि० [फा० जुफ्त, मि० सं० युक्त] जो गिनती संख्या में युग्म या सम ठहरे। ताक या विषम का विपर्याय। जैसे–२, ४, १॰, २॰, तब गिनती के विचार से जूस और ३, ५, ११, १९ ताक हैं।
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जूस ताक  : पुं० [हिं० जूस+फा०ताक] एक प्रकार का जूआ जिसमें,मुट्ठी में कौड़ियों भरकर विपक्षी से पूछा जाता है कि इसकी संख्या सम है या विषम।
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जूसी  : स्त्री० [हिं० जूस] ऊख के रस को उबालकर गाढ़ा करते समय उसमें से निकलनेवाली गाढ़ी तल-छट। चोटा।
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जूह  : पुं० [सं० यूथ, प्रा० जूह] १. झुंड। २. समूह।
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जूहर  : पुं०=जौहर।
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जूही  : स्त्री० [सं० यूथी] १. चमेली की तरह का एक प्रसिद्ध पौधा जिसके फूलों की गंध भीनी तथा मधुर होती है। २. उक्त पौधे का फूल।
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