| शब्द का अर्थ | 
					
				| जृंभ					 : | पुं० [सं०√जृंभ् (जंभाई लेना)+घञ्] १. जँभाई। २. आलस्य। | 
			
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				| जृंभक					 : | वि० [सं०√जृम्भ्+ल्युट-अक] जँभाई लेनेवाला। पुं० १. रुद्र या शिव का एक गण। २. एक प्रकार का प्राचीन अस्त्र। (कहते है कि इसके चलने पर विपक्षी योद्धाओं को जँभाइयाँ आने लगती थी और वे सो जाते थे)। | 
			
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				| जृंभण					 : | पुं० [सं०√जृम्भ्+ल्युट-अन] जँभाई लेना। | 
			
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				| जृंभमान					 : | वि० [सं०√जृंभ+शानच्] १. जो जंभाई ले रहा हो। जँभाइयाँ लेता हुआ। २. चमकता हुआ। प्रकाशमान्। | 
			
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				| जृंभा					 : | स्त्री० [सं०√जृंभ+अ-टाप्] १. जँभाई। २, आलस्य। ३. साहित्य में, एक सात्विक अनुभाव जो आलस्य से उत्पन्न माना गया है। | 
			
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				| जृंभिका					 : | स्त्री० [सं० जृंभा+कन्+टाप्, इत्व] १. जृम्भा। जँभाई। २. आलस्य। ३. एक रोग जिसमें रोगी को प्रायः जँभाई आती रहती हैं और वह धीरे-धीरे शिथिल होता जाता है। | 
			
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				| जृंभी(भिन्)					 : | वि० [सं०√जृंभ+णिनि] १. जम्हाई लेनेवाला। २. विकसित होनेवाला। | 
			
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