शब्द का अर्थ
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तरु :
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पुं० [सं०√तृ+उन्] १. पेड। वृक्ष। २. पूर्वी भारत में होनेवाला एक प्रकार का चीड़ जिससे तारपीन का बढ़िया तेल निकलता है। |
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समानार्थी शब्द-
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तरुआ :
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पुं० [हिं० तरना-तलना] उबाले हुए धान का चावल। भुजिया चावल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० तलवा (पैर का)। |
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तरुण :
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वि० [सं०√तृ+उनन्] १. जो बाल्यावस्था पार करके सांसारिक जीवन की आरंभिक अवस्था में प्रवेश कर रहा हो। जवान। जैसे–तरुण व्यक्ति। २. जो जीवन की आरंभिक अवस्था में हो। जैसे–तरुण पौधा। ३. जिसमें ओज, नवजीवन या शक्ति हो। जैसे–तरुण हँसी ४. नया। नवीन। पुं० १. बड़ा जीरा। २. मोतिया। (पौधा और उसका फूल)। ३. रेंड़। |
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तरुणक :
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पुं० [सं० तरुण+कन्] अंकुर। |
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तरुण-ज्वर :
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पुं० [कर्म० स०] ऐसा ज्वर जो सात दिन पार करके और आगे चल रहा हो। |
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तरुण-तरणी :
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पुं० [कर्म० स०] मध्याह्र का सूर्य। |
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तरुणता :
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स्त्री० [सं० तरूण+तल्-टाप्] तरुण होने की अवस्था या भाव। |
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तरुण-दधि :
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पुं० [कर्म० स०] पाँच या अधिक दिन से पड़ा हुआ। बासी दही जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। (वैद्यक)। |
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तरुण-पीतिका :
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स्त्री० [कर्म० स०] मैनसिल। |
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तरुण-सूर्य :
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पुं० [कर्म० स०] मध्याह्र का सूर्य। |
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तरुणाई :
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स्त्री० [सं० तरुण+हिं० आई (प्रत्यय)] तरुण होने की अवस्था या भाव। जवानी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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तरुणाना :
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अ० [सं० तरुण+हिं० आना (प्रत्यय)] तरुण होना। जवानी पर आना। |
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तरुणास्थि :
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स्त्री० [सं० तरुण-अस्थि, कर्म० स०] पतली लचीली हड्डी। |
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तरुणिमा(मन्) :
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स्त्री० [सं० तरुण+इमानिच्] तरुण होने की अवस्था या भाव। तरुणाई। |
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तरुणी :
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वि० स्त्री० [सं० तरुण+ङीष्] जवान। युवा। स्त्री० १.जवान स्त्री। युवती। २.चीड़ नामक वृक्ष। ३. घीकुंआर। ४. जमाल गोटा। दंती। ५. मोतिया नाम का पौधा और उसका फूल। ६.संगीत में मेघ राग की एक रागिनी। |
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तरु-तलिका :
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स्त्री० [सं० मध्य० स] चमगादर। |
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तरुन :
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वि० पुं०=तरुण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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तरुनई :
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स्त्री०=तरुणाई।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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तरुनाई :
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स्त्री०=तरुणाई।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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तरुनापन :
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पुं० [हिं० तरुन+पन (प्रत्यय)] तारुण्य। जवानी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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तरुनापा :
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पुं० [हिं० तरुन+पन (प्रत्य०)] युवावस्था। जवानी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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तरुबाँही :
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पुं० [सं० तर+हिं० बाँह] वृक्ष की बाँह अर्थात् शाखा। |
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तरुभुक् :
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पुं० [सं० तरु√भुज् (खाना)+क्विप्] बाँदा। बंदाक। |
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तरुभुज :
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पुं० [सं० तरु√भुज्+क] दे० ‘तरुभुक्’। |
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तरु-राग :
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पुं० [ब० स०] नया कोमल पत्ता। किशलय। |
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तरु-राज :
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पुं० [ष० त०] १. कल्पवृक्ष। २. ताड़ का पेड़। |
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तरुरुहा :
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स्त्री० [सं० तरु√रुह् (उगना)+रु–टाप्] बाँदा। |
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तरु-रोपण :
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पुं० [ष० त०] १. वृक्ष उगाने की क्रिया। २. वह विद्या जिसमें वृक्ष लगाने, बढ़ाने और उनकी रक्षा करने की कला सिखाई जाती है। (आरबोरी कलचर)। |
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तरुरोहिणी :
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स्त्री० [सं० तरु√रुह्+णिनि-ङीप्] बाँदा। |
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तरुवर :
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पुं० [स० त०] १. श्रेष्ठ या बड़ा वृक्ष। २. रहस्य संप्रदाय में, (क) प्राण। (ख) परमात्मा या ब्रह्म। |
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तरुवरिया :
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स्त्री० [हिं० तरवारि] तलवार। उदाहरण–लिहलन ढाल तरुवरिया त अवरु कटरिया नु हो।–गीत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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तरु-वल्ली :
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स्त्री० [ष० त०] जतुका लता। पानड़ी। |
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तरुसार :
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पुं० [ष० त०] कपूर। |
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तरुस्था :
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स्त्री० [सं० तरु√स्था (ठहरना)+क–टाप्] बाँदा। |
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