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शब्द का अर्थ

थक  : पुं०=थाक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
थकन  : स्त्री०=थकान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
थकना  : अ० [सं० स्था+कृ, प्रा० थक्कन] १. अधिक समय तक कोई काम या परिश्रम करने तथा शारीरिक शक्ति के अत्यधिक व्यय हो जाने के कारण ऐसी स्थिति में आना या होना जिसमें अंग-अंग शिथिल होने लगते हैं। शरीर की शक्तियों का मन्द पड़ना और शिथिल होना। श्रांत होना। विशेष—इस क्रिया का प्रयोग स्वयं व्यक्ति के लिए भी होता है और उसके शरीर के अंगों अथवा शरीर के सम्बन्ध में भी। जैसे—(क) चलते-चलते हम थक गये। (ख) दिन भर की दौड़-धूप से टाँगें या सारा शरीर थक गया है। २. कोई काम करते-करते ऐसी स्थिति में आना कि मन में वह काम और अधिक या फिर करने का उत्साह न रह जाय। हार जाना। जैसे—हम समझाते-समझाते थक गये, पर वह कुछ सुनता ही नहीं। ३. वृद्धावस्था के कारण शरीर का बहुत-कुछ शिथिल हो जाना और पूरा काम करने के योग्य न रह जाना। जैसे—वृद्धावस्था के कारण अब हम बहुत थक चले हैं। अ० [सं० स्थग्] चकित या मोहित होने के कारण स्तब्ध हो जाना।
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थकर  : स्त्री०=थकान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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थकरी  : स्त्री० [हिं० थाक] खस आदि कुछ विशिष्ट पौधों की सींकों की कूँची जिससे स्त्रियाँ बाल झाड़ा करती थीं।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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थकाथक  : अव्य० [अनु०] १. थक-थक शब्द करते हुए। २. निरंतर। लगातार। ३. अधिक मात्रा में। वि० ढेर-सा। यथेष्ट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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थकान  : स्त्री० [हिं० थकना] १. थके हुए होने की अवस्था या भाव। २. थकने के कारण होनेवाला शारीरिक शक्ति का ऐसा क्षय जिसकी पूर्ति विश्राम करने से आप से आप हो जाती है। जैसे—अभी वे यात्रा की थकान मिटा रहे हैं।
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थकाना  : स० [हिं० थकना] ऐसा काम करना या कराना जिससे कोई थक जाय।
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थका-माँदा  : वि० [हिं० थकना+फा० माँदः] जो इतना अधिक थक गया हो कि अशक्त और अस्वस्थ-सा जान पड़ने लगे।
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थकार  : पुं० [सं०] ‘थ’ अक्षर या वर्ण।
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थकाव  : पुं० [हिं० थकना] थकावट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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थकावट  : स्त्री० [हिं० थकना+आवट (प्रत्य०)] थकने के कारण होनेवाली वह अनुभूति या अवस्था जिसमें अंग टूटने लगते हैं और कोई काम करने को जी नहीं चाहता। क्रि० प्र०—आना।—मिटाना।
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थकाहट  : स्त्री०=थकावट।
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थकित  : वि० [हिं० थकना] १. थका हुआ। २. चकित। ३. मुग्ध। मोहित।
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थकिया  : स्त्री० [हिं० थक्का] १.गाढ़ी चीज की जमी हुई मोटी तह। छोटा थक्का। २. वह पिंड जो गली हुई धातु ठंडी होने पर बनता है।
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थकैनी  : स्त्री०=थकावट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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थकौहाँ  : वि० [हिं० थकना+औहाँ (प्रत्य०)] [स्त्री० थकौंही] थका हुआ। शिथिल। पद—थकौहें ढार=इस रूप में कि मानों बहुत थका हुआ हो।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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थक्कर  : पुं० [हिं० थाक] १. दे० ‘थक्का’। २. झुंड। समूह।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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थक्का  : पुं० [सं० स्था+कृ; बँग० थाकना=ठहरना] [स्त्री० थक्की, थकिया] १. गीले और गाढ़े द्रव पदार्थ की जमी हुई मोटी तह या पिंड। जैसे—खून का थक्का, दही या मक्खन का थक्का। २. गलाई हुई धातु के जमने से बना हुआ पिंड। जैसे—लोहे या सोने का थक्का। क्रि० प्र०—जमना।—बँधना।
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