| शब्द का अर्थ | 
					
				| दंत					 : | पुं० [सं०√दम (दण्ड देना)+तन्] १. दांत। २. ३२ की संख्या। ३. गाँव की हिस्सेदारी में बहुत ही छोटा हिस्सा, जो पाई से भी कम होता था। (कौड़ियों में दाँत के जो चिह्न होते हैं, उनके आधार पर स्थित मान) ४. कुंज। ५. पर्वत की चोटी। पुं० [सं० दन्ती] हाथी। उदाहरण—खाग त्याग करि दीपतों, के वी दंत कुदाल।—जटमल। | 
			
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				| दंतक					 : | पुं० [सं० दन्त+कन्] १. दाँत। २. पहाड़ की चोटी। ३. एक तरह का पत्थर। | 
			
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				| दंत-कथा					 : | स्त्री० [मध्य० स०] कोई ऐसी अप्रामाणिक अथवा कल्पित कथा, जिसे लोग परम्परा से सुनते चले आये हों। | 
			
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				| दंतकर्षण					 : | पुं० [सं० दन्त√कृष् (खींचना)+ल्यु—अन] जंभीरी नींबू। | 
			
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				| दंतकार					 : | पुं० [सं० दन्त√कृ (करना)+अण्] टूटे या निकाले हुए दाँत नये सिरे से बनानेवाला चिकित्सक। दाँतों का डाक्टर। (डेन्टिस्ट)। | 
			
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				| दंत-काष्ठ					 : | पुं० [मध्य० स०] दतुवन। दातुन। | 
			
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				| दंत-काष्ठक					 : | पुं० [ब० स०, कप्] आहुल्य वृक्ष। तरवट का पेड़। | 
			
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				| दंतकूर					 : | पुं० [ब० स०] युद्ध। संग्राम। | 
			
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				| दंतक्षत					 : | पुं० [सं०] दाँत काटने से अंग पर बननेवाला चिह्न या निशान। | 
			
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				| दँतखोदनी					 : | स्त्री० [हिं० दाँत+खोदना] धातु का वह छोटा पतला, लंबा टुकड़ा जिससे दाँतों की संधियों में फँसी चीजें खोदकर बाहर निकाली जाती हैं। | 
			
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				| दंत-घर्ष					 : | पुं० [ष० त०] १. ऊपर और नीचे के दाँतों में होनेवाली रगड़। २. उक्त रगड़ से होनेवाला शब्द। ३. दे० ‘दाँता-किटकिट।’ | 
			
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				| दंतच्छद					 : | पुं० [सं० दन्त√छद् (ढकना)+णिच्+घ, ह्रस्व] होंठ। | 
			
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				| दंतच्छदोपमा					 : | स्त्री० [सं० दन्तच्छद-उपमा, ब० स०] बिंबाफल। कुँदरू। | 
			
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				| दंत-जात					 : | वि० [ब० स० (पर निपात)] १. (बच्चा) जिसके दाँत निकल आए हों। २. बच्चों के नये दाँत निकलने के लिए उपयुक्त (काल या समय)। | 
			
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				| दंत-ताल					 : | पुं० [ब० स०] ताल देने का एक तरह का प्राचीन बाजा। | 
			
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				| दंत-दर्शन					 : | पु० [ष० त०] (क्रोध या चिड़चिड़ाहट में) दाँत निकालने की क्रिया या भाव। दाँत दिखाना। | 
			
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				| दंत-धावन					 : | पु. [ष० त०] १. दातुन, मंजन आदि से दाँत और मुँह का भीतरी भाग साफ करने की क्रिया। २. दातुन। ३. करंज का पेड़। ४. खैर का पेड़। ५. मौलसिरी। | 
			
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				| दंत-पत्र					 : | पुं० [ब० स०] कान में पहनने का एक गहना। | 
			
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				| दंत-पत्रक					 : | पुं० [ब० स०, कप्] कुंद का फूल। | 
			
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				| दंत-पवन					 : | पुं० [ष० त०] १. दाँत शुद्ध करने की क्रिया। दंतधावन। २. दतुवन। दातुन। | 
			
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				| दंतपार					 : | स्त्री० [हिं० दंत+उपारना] दाँत की पीड़ा। दाँत का दर्द। | 
			
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				| दंत-पुप्पुट					 : | पुं० [ष० त० ?] एक रोग, जिसमें मसूढ़ों में सूजन आ जाती है और पीड़ा होती है। | 
			
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				| दंतपुर					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्राचीन नगर, जिसमें राजा ब्रह्मदत्त ने महात्मा बुद्ध का एक दाँत स्थापित करके उस पर एक मंदिर बनवाया था। | 
			
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				| दंत-पुष्प					 : | पुं० [ब० स०] १. निर्मली। २. [उपमि० स०] कुंद का फूल। | 
			
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				| दंत-फल					 : | पुं० [ब० स०] १. कनकफल। निर्मली। २. कपित्थ। कैथ। | 
			
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				| दंतफला					 : | स्त्री० [सं० दन्तफल+टाप्] पिप्पली। | 
			
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				| दंत-मांस					 : | पुं० [मध्य० स०] मसूड़ा। | 
			
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				| दंतमूल					 : | पुं० [ष० त०] १. दाँत की जड़। २. दाँत का एक रोग। | 
			
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				| दंत-मूलिका					 : | स्त्री० [ब० स०, कप्+टाप् (इत्व)] जमालगोटे का पेड़। दंती वृक्ष। | 
			
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				| दंतमूलीय					 : | वि० [सं० दन्तमूल+छ—ईय] (वर्ण) जिसका उच्चारण करते समय जिह्वा का अग्रभाग दंत-मूल को स्पर्श करता हो। जैसे—त, थ, द और ध वर्ण। | 
			
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				| दंत-लेखन					 : | पुं० [ष० त०] एक तरह का यंत्र जिससे प्राचीन काल में मसूढ़ों में से मवाद निकाली जाती थी। | 
			
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				| दंतवक्र					 : | पुं० [ब० स०] शिशुपाल के भाई का नाम, जिसका वध श्रीकृष्ण ने किया था। | 
			
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				| दंत-बीज					 : | पुं० [ब० स०] अनार। | 
			
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				| दंत-वस्त्र					 : | पुं० [ष० त०] होंठ। ओष्ठ। | 
			
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				| दंत-वीणा					 : | स्त्री० [मध्य० स०] १. एक तरह का बाजा। २. दाँत किटकिटाने की क्रिया या उससे होनेवाला शब्द। | 
			
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				| दंत-वेष्ट					 : | पुं० [ष० त०] १. एक प्रकार का दंत-रोग। २. मसूढ़ा। ३. हाथी के दाँत पर चढ़ाया जानेवाला धातु का छल्ला। | 
			
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				| दंत-वैदर्भ					 : | पुं० [ष० त०] दाँत का एक रोग। | 
			
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				| दंतव्यसन					 : | पुं० [ष० त०] दाँतों का टूटना। | 
			
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				| दंत-शंकु					 : | पुं० [मध्य० स०] चीर-फाड़ करने का एक उपकरण जो जौ के पत्तों के आकार का होता था। (सुश्रुत)। | 
			
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				| दंत-शठ					 : | पुं० [स० त०, टाप्] वे वृक्ष जिनके फल खाने से खटाई के कारण दाँत गुठले हो जाएँ। जैसे—कैथ, कमरख, जंभीरी नींबू आदि। | 
			
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				| दंत-शठा					 : | स्त्री० [स० त०, टाप्] १. खट्टी नोनिया। अमलोनी। २. चुक। चूक। | 
			
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				| दंत-शर्करा					 : | स्त्री० [ष० त०] दाँतों का एक रोग। | 
			
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				| दंत-शाण					 : | पुं० [ष० त०] दाँतों पर लगाने का रंगीन मंजन। मिस्सी। | 
			
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				| दंत-शूल					 : | पुं० [ष० त०] दाँत की जड़ में होनेवाली पीड़ा। | 
			
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				| दंत-शोफ					 : | पुं० [ष० त०] दाँत के मसूड़ों में होने वाला एक प्रकार का फोड़ा। दंतार्बुद। | 
			
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				| दंत-हर्ष					 : | पुं० [ब० स०] दाँतों की वह टीस, जो अधिक ठंढी या खट्टी वस्तु खाने से होती है। दाँतों का खट्टा होना। | 
			
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				| दंतहर्षक					 : | पुं० [सं० ष० त०] जंभीरी नींबू। | 
			
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				| दंताघात					 : | पुं० [दन्त-आघात, तृ० त०] दाँत से किया जानेवाला आघात। पुं० [दन्त+आ√हन् (पीड़ा पहुँचाना)+अण्] नींबू, जिससे दाँतों को आघात पहुँचता है। | 
			
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				| दंताज					 : | पुं० [सं० दन्त+आ√जन् (प्रादुर्भाव)+ड] १. दाँतों की जड़ों या संधियों में लगनेवाले कीड़े। २. उक्त कीड़े के कारण होनेवाला दाँतों का रोग, जिसमें मसूड़ों से मवाद निकलता है। (पायरिया)। | 
			
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				| दंतादंति					 : | स्त्री० [दन्त-दन्त, ब० स० (नि० सिद्धि)] ऐसी लड़ाई जिसमें दोनों पक्ष, एक दूसरे को दाँत काटे। दाँत-कटौअल। | 
			
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				| दंतायुध					 : | पुं० [दन्त-आयुध, ब० स०] जंगली सूअर। | 
			
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				| दँतार					 : | वि० [हिं० दाँत+आर (प्रत्य०)] जिसके बड़े-बडे दाँत हों। | 
			
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				| दंतारा					 : | वि०=दँतार। | 
			
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				| दंतार्बुद					 : | पुं० [दन्त-अबुंद, ष० त०] मसूड़े में होनेवाला फोड़ा। | 
			
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				| दंताल					 : | पुं० [हिं० दँतार] हाथी। | 
			
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				| दंतालय					 : | पुं० [दन्त-आलय, ष० त०] मुख। | 
			
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				| दंतालिका					 : | स्त्री० [सं०√अल् (पर्याप्ति)+ण्वुल्—अक, टाप्, इत्व, दन्त-आलिका, ष० त०] लगाम। | 
			
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				| दंताली					 : | स्त्री० [सं० दन्त√अल्+अण्+ङीष्] लगाम। | 
			
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				| दंतावल					 : | पुं० [सं० दन्त+वलच्] (पूर्वपद दीर्घ) हाथी। | 
			
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				| दंताहल					 : | पुं० [सं० दंतावल] हाथी (डिं०)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| दंतिका					 : | स्त्री० [सं० दन्ती+कन्—टाप्, ह्रस्व] जमाल-गोटा। दंती। | 
			
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				| दंतिया					 : | स्त्री० [हिं० दाँत+इया (प्रत्य०)] बच्चों के छोटे-छोटे दाँत। पुं० [देश०] एक तरह का पहाड़ी तीतर। नीलमोर। | 
			
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				| दंती					 : | स्त्री० [सं० दन्त+ङीष्] अंडी की जाति का एक पेड़। दंती दो प्रकार की होती है—लघुदंती और बृहद्दंती। | 
			
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				| दंतीबीज					 : | पु० [ब० स०] जमालगोटा। | 
			
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				| दंतुर					 : | वि० [सं० दन्त+उरच्] जिसके दाँत आगे निकले हों। दंतुला। दाँतू। पुं० १. हाथी। २. सूअर। | 
			
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				| दंतुरक					 : | वि० [सं० दन्तुर+कन्] जिसके दाँत निकले हों। | 
			
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				| दंतुरच्छद					 : | पुं० [ब० स०] बिजौरा नींबू। | 
			
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				| दंतुरिया					 : | स्त्री० [हिं० दाँत] बच्चों के छोटे-छोटे दाँत। दँतिया।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| दंतुल					 : | वि० [सं० दंतुर] दाँतोंवाला। | 
			
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				| दंतुला					 : | वि० [सं० दंतुर] [स्त्री० दँतुली] बड़े-बड़े दाँतोंवाला। | 
			
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				| दंतोद्भेद					 : | पुं० [दन्त-उद्भेद, ष० त०] बच्चों के मुँह में दाँतों का निकलना। | 
			
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				| दंतोलूखलिक					 : | पुं० [सं० दन्त-उलूखल, उपमि० स०, दन्तोलूखल+ठन्—इक] एक प्रकार के संन्यासी जो केवल फल और बीज खाते हैं, काटी, कूटी या पीसी हुई चीजें नहीं खाते। | 
			
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				| दंतोष्ठ्य					 : | वि० [सं० दन्त-ओष्ठ, द्व० स०,+यत्] दाँतों और होठों की सहायता से उच्चरित होनेवाला। (वर्ण) जैसे—‘व्’। | 
			
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				| दंत्य					 : | वि० [सं० दन्त+यत्] १. दांत-संबंधी। दाँतों का। जैसे—दंत्य रोग। २. (वर्ण) जिसका उच्चारण दाँतों की सहायता से होता हो। विशेष—त् थ् द् और ध् दंत्य वर्ण कहे गये हैं। ‘न्’ वर्त्स्य है। ३. (औषध) जो दाँत के रोगों के लिए हितकारी हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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