| शब्द का अर्थ | 
					
				| दिवाल					 : | वि० [हिं० देना+वाल (प्रत्य०)] देनेवाला। जो देता हो। जैसे—यह एक पैसे की दीवाल नहीं है। (बाजारू) स्त्री०=दीवार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| दिवालय					 : | पुं०=देवालय (मंदिर)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| दिवाला					 : | पुं० [हिं० दिया+बालना=जलाना] १. महाजन या व्यापारी की वह स्थिति जिसमें वह विधिवत् यह घोषित करता है कि मेरे पास अब यथेष्ट धन नहीं बचा है, और इसलिए मैं लोगों का ऋण चुकाने में असमर्थ हूँ। क्रि० प्र०—बोलना। विशेष—ऐसी स्थिति में लेनदार न्याय की दृष्टि से या तो उससे कुछ भी वसूल नहीं कर सकते या उसके पास जो थोड़ा-बहुत धन बचा होता है, वही सब लेनदार अपने-अपने हिस्से के मुताबित बाँट लेते हैं। मुहावरा—दिवाला निकालना या मारना=दिवालिया बन जाना। ऋण चुकाने में असमर्थ हो जाना। २. किसी पदार्थ का कुछ भी बचा न रह जाना। पूर्ण अभाव। जैसे—उनकी अक्ल का तो दिवाला निकल गया है। | 
			
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				| दिवालिया					 : | वि० [हिं० दिवाला+इया (प्रत्य०)] जिसने दिवाला निकाला हो। जिसके पास ऋण चुकाने के लिए कुछ भी न बच रहा हो। | 
			
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				| दिवाली					 : | स्त्री० [देश०] वह तस्मा या पट्टी, जिसे खींचकर खराद, सान आदि चलाई जाती है। स्त्री०=दीवाली। | 
			
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