| शब्द का अर्थ | 
					
				| दुकान					 : | स्त्री० [फा०] १. वह कमरा या भवन जहाँ से किसी एक अथवा कई प्रकार की चीजें ग्राहकों के हाथ प्रायः फुटकर बेची जाती हैं। जैसे—घी की दुकान, मिठाई की दुकान। २. ऐसा स्थान जहाँ कोई व्यक्ति कुछ पारिश्रमिक प्राप्त करने के लिए दूसरों की सेवाएँ करता हो। जैसे—दरजी या हज्जाम की दुकान। मुहा०—दुकान करना या खोलना=दुकान लेकर किसी चीज की बिक्री आरंभ करना। दुकान खोलना। दुकान चलना=दुकान में होने-वाले व्यवसाय की वृद्धि होना। दुकान बढ़ाना= दुकान में बाहर रखा हुआ माल उठाकर अंदर रखना और किवाड़ें बंद करना। दुकान बंद करना। दुकान लगाना=(क) दुकान का सामान फैलाकर यथास्थान बिकी के लिए रखना। (ख) बहुत-सी चीजें चारों ओर फैलाकर रखना। | 
			
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				| दुकानदार					 : | पुं० [फा०] १. वह जो दुकान करता हो। २. वह जो उस कमरे का स्वामी हो जिसमें कोई दुकान लगाये हो। ३. बहुत अधिक मोल-भाव करनेवाला व्यक्ति। (व्यंग्य) ४. वह जिसने अपनी आय का साधन बनाने के लिए कोई ढोंग रच रखा हो। ५. चालाक व्यक्ति। | 
			
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				| दुकानदारी					 : | स्त्री० [फा०] १. दुकान लगाकर सौदा आदि बेचने का काम। २. ऐसा ढोंग जो केवल अपनी आय का साधन बनाने के लिए रचा जाय। ३. बहुत अधिक मोल-भाव करना। | 
			
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				| दुकाना					 : | स० [हिं० दुकना] छिपाना। (बुंदेल०) | 
			
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