| शब्द का अर्थ | 
					
				| दैनंदिन					 : | वि० [सं० दिनंदिन+अण् नि० सिद्धि] [स्त्री० दैनंदिनी] प्रतिदिन होनेवाला। नित्य का। क्रि० वि० १. प्रतिदिन। नित्य। २. दिनों-दिन। लगातार। पुं० [सं०] पुराणानुसार एक प्रकार का प्रलय जो ब्रह्मा के पचास वर्ष बीतने पर होता है। मोहरात्रि। | 
			
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				| दैनंदिनी					 : | वि० [सं० दैनंदिन] दैनिक। स्त्री०=दैनिकी। (देखें)। | 
			
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				| दैन					 : | वि० [सं० दिन+अण्] दिन संबंधी। दिन का। पुं० [सं० दीन+अण्] दीन होने की अवस्था या भाव। दीनता। स्त्री०=देन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) प्रत्य० [सं० दायिन्] देनेवाला। जैसे—सुखदैन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| दैनिक					 : | वि० [सं० दिन+ठञ्—इक] १. दिन संबंधी। दिन का। जैसे—दैनिक समाचार। २. एक दिन में होनेवाला। ३. प्रति दिन या हर रोज किया जाने या होनेवाला। जैसे—दैनिक चर्या। ४. नित्य या बराबर होता रहनेवाला। जैसे—दैनिक चिंता, दैनिक झगड़ा। पुं० १. एक दिन काम करने का पारिश्रमिक, मजदूरी या वेतन। २. वह समाचार-पत्र जो प्रति दिन या रोज प्रकाशित होता हो। (डेली) | 
			
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				| दैनिक-पत्र					 : | पुं० [कर्म० स०] वह समाचार-पत्र जो प्रतिदिन या नित्य प्रकाशित होता हो। हर रोज छपनेवाला अखबार। | 
			
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				| दैनिकी					 : | स्त्री० [सं० दैनिक+ङीष्] जेब में रखी जानेवाली वह छोटी पुस्तिका जिसमें रोज के किये जानेवाले कामों का उल्लेख होता है। (डायरी)। | 
			
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				| दैन्य					 : | पुं० [सं० दीन+ष्यञ्] १. दीन होने की अवस्था या भाव। दीनता। २. गरीबी। दरिद्रता। ३. नम्रता। ४. साहित्य में, एक प्रकार का संचारी भाव जिसमें कष्ट, दुःख आदि के कारण मनुष्य कातर, दीन और नम्र हो जाता है। | 
			
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