| शब्द का अर्थ | 
					
				| दोहर					 : | स्त्री० [हिं० दो+धड़ी=तह] दो पाटोंवाली चादर। दोहरी सिली हुई चादर। | 
			
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				| दोहर-कम्मा					 : | पुं० [हिं० दोहरा+काम] व्यर्थ परिश्रम करके दोबारा किया जाने वाला ऐसा काम जो पहली बार ही ठीक तरह से किया जा सकता था। | 
			
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				| दोहराना					 : | स० [हिं० दोहरा] १. दोहरा करना। २. दोबारा करना। दोहराना। अ० १. दोहरा होना। २. दोबारा किया जाना। दोहराया जाना। | 
			
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				| दोहरक					 : | पुं० [हिं० दो+हरा (प्रत्य०)] [स्त्री० दोहरी] १. दो तहों, परतों या पल्लोंवाला। २. जो दो बार किया जाय या किया जाता हो। जैसे—दोहरी सिलाई। ३. दुगुना। दूना। ४. दो पक्षों पर लागू होनेवाला (कथन)। पुं० १. लगे हुए पानों के दो बीड़े जो एक ही पत्ते में लपेटे हुए हों। २. कतरी हुई सुपारी। पुं० [दोहा] दोहे की तरह का एक छन्द जो दोहे के विषम पादों में एक एक मात्रा घटा देने से बनता है। | 
			
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				| दोहराई					 : | स्त्री० [हिं० दोहराना] १. दोहराने की क्रिया या भाव। दोबारा कोई काम करना। २. किसी काम को अधिक ठीक बनाने के लिए उसे अच्छी तरह देखना। ३. दोहराने के बदले में मिलनेवाला पारिश्रमिक। | 
			
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				| दोहराना					 : | स० [हिं० दोहरा] १. किसी चीज को दो तहों या परतों में मोड़ना। दोहरा करना। २. कोई काम या बात फिर से उसी प्रकार करना या कहना। पुनरावृत्ति करना। ३. किये हुए काम को फिर से आदि से अंत तक इस दृष्टि से देखना कि उसमें कहीं कोई कसर या भूल तो नहीं रह गयी है। संयो० क्रि०—जाना।—डालना।—देना। | 
			
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				| दोहरापाट					 : | पुं० [हिं० दोहरी+पट] कुश्ती का एक पेंच। | 
			
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