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द्वार  : पुं० [सं०√दृ (विदारण)+णिच्+अच्] १. किसी घेरे, चहारदीवारी, दीवार आदि में आवागमन के लिए बना हुआ कोई खुला विशेषता मुख्य स्थान जिसमें प्रायः खोलने और बंद करने के लिए दरवाजे पल्ले आदि लगे होते हैं। मुहा०—द्वार द्वार फिरना=(क) कार्य-सिद्धि के लिए अनेक प्रकार के लोगों के यहाँ पहुँचकर अनुनय करना। (ख) भीख माँगना। (किसी का आकर) द्वार लगना=किसी उद्देश्य या कार्य के लिए दरवाजे पर आकर पहुँचना। जैसे—संध्या को बरात द्वार लगेगी। (किसी के) द्वार लगना=किसी उद्देश्य या कार्य सिद्धि के लिए किसी के दरवाजे (या किसी के यहाँ) जाकर बैठना। उदा०—यह जान्यो जिय राधिका द्वारे हरि लागे।—सूर। २. उक्त स्थान या अवकाश को आवश्यकतानुसार बंद करने के लिए उसमें लगाये जानेवाले लकड़ी, लोहे आदि के पल्ले। मुहा०—द्वार लगना=दरवाजा बंद होना। (किसी बात के लिए) द्वार लगना=दूसरों की बातें चुपके से या छिपकर सुनने के लिए दरवाजों की आड़ में छिपकर खड़े होना। द्वार लगाना=किवाड़ या दरवाजा बंद करना। ३. दो स्थानों के बीच पड़नेवाला कोई ऐसा अवकाश या मार्ग जिससे होकर किसी प्रकार की आने-जाने की क्रिया होती हो। जैसे—किसी समय खैबर का दर्रा भारत वर्ष में आने-जाने का मुख्य द्वार था। ४. लाक्षणिक रूप में, काम करने का वह विधि-विहित या नियत मार्ग जो उपाय या साधन के अंग के रूप में हो। मार्ग-साधन। (चैनेल) जैसे—धन कमाने का एक ही द्वार है, पर गवाने के सैकड़ो। मुहा०—(किसी काम या बात के लिए) द्वार खुलना=किसी काम या बात के होने के लिए मार्ग या साधन निकलना। जैसे—अब आपके लिए सरकारी नौकरी का द्वार खुल गया है। ५. शारीरिक इंद्रियों के विशिष्ट छिद्र या मार्ग जिनमें से होकर शरीर के विकार बाहर निकलते रहते हैं और जिनके द्वारा कुछ चीजें शरीर के अंदर जाती है। जैसे—आँख, कान, नाक, मुँह आदि।
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द्वार-कंटक  : पुं० [ष० त०] दरवाजे की कीली या सिटकिनी।
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द्वार-कपाट  : पुं० [ष० त०] दरवाजे का पल्ला।
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द्वारका  : स्त्री० [सं० द्वार+कै (प्रकाशित होना)+क—टाप्] गुजरात की एक प्राचीन नगरी जिसे कुशस्थली भी कहते हैं, और जो आज-कल एक प्रसिद्ध तीर्थ है। जरासंध के उत्पातों से दुःखी होकर श्रीकृष्ण मथुरा छोड़कर यहाँ जा बसे थे।
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द्वारकाधीश  : पुं० [द्वारका-अधीश ष० त०] १. श्रीकृष्णचंद्र। २. श्रीकृष्ण की वह मूर्ति जो द्वारका में है।
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द्वारकानाथ  : पुं० [ष० त०]=द्वारकाधीश।
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द्वारकेश  : पुं० [द्वारका-ईश ष० त०]=द्वारकाधीश।
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द्वारचार  : पुं० दे० ‘द्वार-पूजा’।
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द्वार-छेंकाई  : स्त्री० [हिं० द्वार+छेंकना=रोकना] १. विवाह के समय की एक रीति, जो विवाह कर के वधू समेत अपने घर आने पर होती है। इसमें बहन वर और वधू का रास्ता रोककर खड़ी हो जाती और कुछ पाने पर रास्ता छोड़ती है। २. उक्त अवसर पर बहन को मिलनेवाला धन या नेग।
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द्वार-ताल  : पुं० दे० ‘ताला-बंदी’।
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द्वार-पंडित  : पुं० [मध्य० स०] मध्ययुग में, किसी राजा के यहाँ रहनेवाला प्रधान पंडित।
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द्वारप  : पुं० [सं० द्वार√पा (रक्षा)+क] १. द्वारपाल। २. विष्णु।
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द्वार-पटी  : स्त्री० [ष० त०] दरवाजे पर टाँगने का परदा। उदा०—आये सखि द्वारपटी हाथ से हटा के पिय।—तुलसी।
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द्वारलाल  : पुं० [सं० द्वार√पाल् (रक्षा)+णिच्+अण्] [स्त्री० द्वारपाली, द्वारपालिनी, द्वारपालिन] १. वह पुरुष जो दरवाजे पर पहरा देने के लिए नियुक्त हो। ड्योढ़ीदार। दरबान। २. किसी प्रधान देवता के द्वार का रक्षक कोई विशिष्ट देवता। (तंत्र)। ३. सरस्वती नदी के तट पर का एक प्राचीन तीर्थ।
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द्वार-पालक  : पुं० [ष० त०] द्वारपाल।
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द्वार-पिंडी  : स्त्री० [ष० त०] दहलीज।
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द्वार-पूजा  : स्त्री० [मध्य० स०] १. पूजन आदि में वे धार्मिक कृत्य जो दरवाजे पर बरात आने के समय कन्या-पक्ष द्वारा होते है। द्वारचार। २. जैनों में एक प्रकार की पूजा।
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द्वारमती  : स्त्री०=द्वारका (पुरी)।
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द्वार-यंत्र  : पुं० [मध्य० स०] ताला।
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द्वारवती  : स्त्री० [सं० द्वार+मतुप्—ङीष् वत्व] द्वारका (नगरी)।
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द्वार-समुद्र  : पुं० [सं०] दक्षिण भारत का एक पुराना नगर जहाँ कर्नाटक के राजाओं की राजधानी थी।
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द्वारस्थ  : वि० [सं० द्वार√स्था (ठहरना)+क] जो द्वार पर बैठा, लगा या स्थित हो। पुं० द्वारपाल।
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द्वारा  : पुं० [सं० द्वार] १. द्वार। २. दरवाजा। ३. स्थान। जैसे—गुरुद्वारा। अव्य० [सं० द्वारात्] १. किसी माध्यम के आधार पर। जरिये। जैसे—अब तो खबरें भी रेडियों के द्वारा भेजी जाने लगीं। २. किसी के हस्ते। हाथ से। जैसे—पत्र नौकर द्वारा भेजा गया था। ३. किसी कारण या प्रक्रिया के फलस्वरूप। जैसे—(क) उदाहरण के द्वारा समझाई हुई बात। (ख) रोग के द्वारा होनेवाला कष्ट। ४. किसी के कर्तव्य या प्रयत्न से। जैसे—बच्चन द्वारा रचित मधुशाला। ५. किसी अभिकर्त्ता की मारफत।
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द्वाराचार  : पुं० [द्वार-आचार मध्य० स०]=द्वारचार (द्वार-पूजा)।
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द्वारादेयशुल्क  : पुं० [द्वार-आदेय, स० त० द्वारादेय-शुल्क, कर्म० स०] किसी स्थान के प्रवेश-द्वार पर लिया जानेवाला शुल्क या महसूल। चुंगी (कौ०)।
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द्वाराधिप  : पुं० [द्वार-अधपि ष० त०] द्वारपाल।
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द्वाराध्यक्ष  : पुं० [द्वार-अध्यक्ष ष० त०] द्वारपाल।
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द्वारावती  : स्त्री० [सं० द्वार+मतुप्, नि० दीर्घ] द्वारका (नगरी)।
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द्वारिक  : पुं० [द्वार+ठन्—इक] द्वारपाल।
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द्वारिका  : स्त्री० [सं० द्वारिका+टाप्]=द्वारका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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द्वारी (रिन्)  : पुं० [सं० द्वार+इनि] द्वारपाल। स्त्री० [सं० द्वार] छोटा दरवाजा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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