| शब्द का अर्थ | 
					
				| नाराचिका					 : | स्त्री० [सं०] छन्द शास्त्र में वितान वृत्त का एक भेद जिसके प्रत्येक चरण में नगण, रगण, लघु और गुरु होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाँउँ					 : | पुं०=नाम।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाँखना					 : | सं० [सं० नक्ष्] १. फेंकना। २. नष्ट करना। स० [सं० रक्षण ?] १. रखना। २. डालना (डिं०)। उदा०–रजतिणि सिर नाँखे गज-राज।–प्रिथीराज। | 
			
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				| नाँगा					 : | वि० [स्त्री० नाँगी]=नंगा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [हिं० नंगा] वह साधु जो नंगा रहता हो। दे० ‘नागा’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाँघना					 : | स०=लाँघना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाँठना					 : | अ० [सं० नष्ट] नष्ट होना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाँद					 : | स्त्री० [सं० नंदक] चौडे़ मुँह तथा गोल पेंदेवाला मिट्टी का एक प्रकार का पात्र जिसमें गाय, भैंस आदि को चारा खिलाया जाता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाँदना					 : | अ० [सं० नंदन] १. आनंदित या प्रसन्न होना। २. दीपक का बुझने के पहले कुछ भभककर जलना। ३. दीपक की लौ का रह-रहकर नाचना या हिलना। अ० [सं० नाद] १. नाद या शब्द करना। २. शोर मचाना। चिल्लाना। ३. छींकना। | 
			
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				| नांदिकर					 : | पुं० [सं० नांदी√कृ+ट, ह्रस्व] सूत्रधार जो नांदी का पाठ करता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नांदी					 : | स्त्री० [सं०√नन्द् (समृद्धि)+घञ्, पृषो० सिद्धि] १. अभ्युदय। समृद्धि। २. नाटक में वह आशीर्वादात्मक पद्य जो सूत्रधार अभिनय आरंभ करने से पहले मंगलाचरण के रूप में उच्च स्वर में गाता या पढ़ता है। मंगलाचरण। | 
			
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				| नांदीक					 : | पुं० [सं० नांदी√कै (प्रकाशित होना)+क] १. तोरण स्तंभ। २. दे० ‘नांदीमुखश्राद्ध’। | 
			
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				| नांदी-पट					 : | पुं० [ष० त०] लकड़ी की वह रचना जिससे कूएँ का ऊपरी भाग ढका जाता है। | 
			
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				| नांदी-मुख					 : | पुं० [ब० स०] १. कूएँ के ऊपर का ढकना। २.परिवार में किसी प्रकार की वृद्धि होने के शुभ अवसर पर पितरों का आर्शीवाद प्राप्त करने के लिए किया जानेवाला श्राद्ध। वृद्धि श्राद्ध। वि० (पितर) जिनके उद्देश्य से नांदी-मुख श्राद्ध किया जाता है। | 
			
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				| नांदीमुखी					 : | स्त्री० [सं०] एक प्रकार का वर्ण-वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः दो नगण, दो तगण और दो गुरु होते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाँघना					 : | सं०=लाँघना। | 
			
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				| नाँब					 : | पुं० [सं०] अपने आप उगनेवाला धान। | 
			
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				| नाँयँ					 : | पुं०=नाम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) अव्य०=नहीं।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाँवँ					 : | पुं०=नाम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाँवगर					 : | पुं० [सं० नौका+घर] मल्लाह। | 
			
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				| नाँवाँ					 : | पुं० [हिं० नाम] १. नाम। २. बही-खाते में किसी के नाम पड़ी हुई चीज या रकम। ३. नगद रुपए-पैसे जो दिये या लिये जाने को हों। ४. दाम। मूल्य। | 
			
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				| नाँह					 : | पुं० [सं० नाथ] पति। स्वामी। अव्य०=नहीं।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| ना					 : | अव्य० [सं० न] एक प्रत्यय जिसका प्रयोग किसी को कोई काम करने से या निषेध करने के लिए ‘न’ या नहीं की तरह होता है। जैसे–ना, ऐसा मत करो। विशेष–कुछ अवस्थाओं में लोग इसका प्रयोग भी न की तरह केवल आग्रह करने या जोर देने के लिए करते हैं। जैसे–अभी बैठो ना,अर्थात् बैठो न। पुं० [सं० नाभि] नाभि।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=नर (मनुष्य)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) उप० [सं० न से फा०] एक उपसर्ग जिसका प्रयोग विशेषणों, और संज्ञाओं से पहले अभाव, नहिकता, अथवा विरोधी भाव प्रकट करने के लिए होता है। जैसे–ना-लायक, ना-समझी आदि। | 
			
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				| ना-इत्तिफाकी					 : | स्त्री० [फा०] १. इत्तिफाक अर्थात् मैत्रीपूर्ण एकता का अभाव होना। २. मतभेद। | 
			
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				| नाइन					 : | स्त्री० [हिं० नाई] १. नाई जाति की स्त्री। २. नाई की पत्नी। | 
			
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				| नाइब					 : | पुं०=नायब। | 
			
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				| नाईं					 : | स्त्री० [सं० न्याय] समान दशा। अव्य० १. तुल्य। समान। २. की तरह। जैसे। उदा०–कीन्ह प्रनामु तुम्हारिहि नाई।–तुलसी। ३. लिए। वास्ते। उदा०—अल्लह राम जिवउं तेरे नाईं।–कबीर। | 
			
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				| नाई					 : | पुं० [सं० नापित] वह जो लोगों के बाल काटता और हजामत बनाता हो। नापित। हज्जाम। स्त्री० [?] नाकुलीकंद। स्त्री० [हिं० नखना=डालना]=नरका। (हल के पीछे की नली)। | 
			
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				| नाउ					 : | स्त्री०=नाव पुं०=नाम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| नाउत					 : | पुं० [देश०] ओझा। सयाना। | 
			
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				| नाउन					 : | स्त्री०=नाइन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| ना-उमेंद					 : | वि०=ना-उम्मीद। | 
			
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				| ना-उम्मीद					 : | वि० [फा०] [भाव० ना-उम्मीदी] जिसे आशापूर्ण होने की संभावना न दिखाई पड़ती हो। | 
			
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				| नाऊ					 : | पुं०=नाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| नाकंद					 : | वि० [फा० ना+कंद] १. (बछड़ा) जिसके दूध के दाँत अभी न टूटे हों। २. मूर्ख। | 
			
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				| नाक					 : | स्त्री० [सं० नासिका] १. जीव-जंतुओं या प्राणियों के चेहरे पर का वह उभरा हुआ लंबोतरा अंग जो आँखों के नीचे और मुख-विवर के ऊपर बीचो-बीच रहता है और जिसमें दोनों ओर वे दो नथने या छिद्र रहते हैं; जिनसे वे सांस लेते और सूँघते हैं। साँस लेने और सूँघने की इंद्रिय। विशेष–(क) नाक से बोलने और स्वरों आदि का उच्चारण करने में भी सहायता मिलती है। (ख) मस्तक या मस्तिष्क के अंदर के मल का कुछ अंश प्रायः कफ आदि के रूप में दोनों नथनों के रास्ते बाहर निकलता है। (ग) लोक व्यवहार में, नाक को प्रायः प्रतिष्ठा, मर्यादा, सौंदर्य आदि के प्रतीक के रूप में भी मानते हैं, जिसके आधार पर इसके अधिकतर मुहावरे बने हैं। पद–नाक का बाँसा=नाक के दोनों नथनों के बीच का भीतरी परदा। (किसी की) नाक का बाल=ऐसा व्यक्ति जो किसी बड़े आदमी का घनिष्ठ समीपवर्ती हो और साथ ही उस बड़े आदमी पर अपना यथेष्ट प्रभाव रखता हो। जैसे–उन दिनों वह खवास राजा साहब की नाक का बाल हो रहा था। नाक की सीध में=बिना इधर-उधर घूमे या मुड़े हुए और ठीक सामने या सीधे। जैसे–नाक की सीध में चले जाओ, सामने ही उनका मकान मिलेगा। बैठी हुई नाक=चिपटी नाक। मुहा०–नाक कटना=प्रतिष्ठा या मर्यादा नष्ट करना। इज्जत बिगाड़ना। (ख) अपनी तुलना में किसी को बहुत ही तुच्छ या हीन प्रमाणित अथवा सिद्ध करना। जैसे–यह मकान मुहल्ले भर के मकानों की नाक काटता है। नाक-कान (या नाक-चोटी) काटना=बहुत अधिक अपमानित और दंडित करने के लिए शरीर के उक्त अंग काटकर अलग कर देना। (किसी के आगे या सामने) नाक घिसना या रगड़ना=बहुत ही दीन-हीन बनकर और गिड़गिड़ाते हुए किसी प्रकार की प्रार्थना प्रतिज्ञा या याचना करना। नाक (अथवा नाक भौं) चढ़ाना या सिकोड़ना=आकृति से अरुचि, उपेक्षा, क्रोध, घृणा, विरक्ति आदि के भाव प्रकट या सूचित करना। जैसे–आप तो दूसरों का काम देखकर यों ही नाक (अथवा नाक-भौ) चढ़ाते या सिकोड़ते हैं। नाक तक खाना=इतना अधिक खाना या भोजन करना कि पेट में और कुछ भी खा सकने की जगह न रह जाय। (किसी स्थान पर) नाक तक न दी जाना=इतनी अधिक दुर्गंध होना कि आदमी से वहाँ खड़ा न रहा जा सके। नाक पकड़ते दम निकलना=इतना अधिक दुर्बल होना कि छू जाने से गिर पड़ने या मर जाने का डर हो। अधिक अशक्त या क्षीण होना। नाक पर उँगली रख कर बातें करना=स्त्रियों या हिजड़ों की तरह नखरे से बातें करना। नाक पर गुस्सा रहना या होना=ऐसी चिड़चिड़ी प्रकृति होना कि बात-बात पर क्रोध प्रकट होता रहे। जैसे–तुम्हारी तो नाक पर गुस्सा रहता है; अर्थात् तुम जरा सी बात पर बिगड़े जाते हो। (कोई चीज) किसी की नाक पर रख देना=किसी की चीज उसके मांगते ही तुरंत या ठीक समय पर उसे लौटा या दे देना। तुरंत दे देना। जैसे–हम हर महीने किराया उनकी नाक पर रख देते हैं। नाक पर दीया बाल कर आना=यशस्वी, विजयी या सफल होकर आना। (अपनी) नाक पर मक्खी न बैठने देना=इतनी खरी या साफ प्रकृति का होना कि किसी को भी कुछ भी कहने-सुनने का अवसर न मिले। (किसी की) नाक पर सुपारी तोड़ना या फोड़ना=बहुत अधिक तंग या परेशान करना। नाक फटना या फटने लगना=कहीं इतनी अधिक दुर्गंध होना कि आदमी से वहाँ खड़ा न रहा जा सके। नाक-भौं चढ़ाना या सिकोड़ना=दे० ऊपर ‘नाक चढ़ाना या सिकोड़ना’। नाक में तीर करना या डालना=खूब तंग या हैरान करना। बहुत सताना। नाक रगड़ना=दे० ऊपर ‘नाक घिसना’। नाक में बोलना=इस प्रकार बोलना कि श्वास का कुछ अंश नाक से भी निकले, और उच्चारण सानुनासिक हो। नकियाना। नाक लगाकर बैठना=अपने आपको बहुत प्रतिष्ठित या बड़ा समझते हुए औरों से बहुत-कुछ अलग या दूर रहना (किसी का) नाक में दम करना या लाना=बहुत अधिक तंग या हैरान करना। बहुत सताना। जैसे–इस लड़के ने हमारी नाक में दम कर दिया है। नाक मारना=दे० ऊपर ‘नाक चढ़ाना या सिकोड़ना’। नाक सिकोड़ना=दे० ऊपर। ‘नाक चढ़ाना या सिकोड़ना’। (किसी को) नाकों चने चबवाना=किसी को इतना अधिक तंग या दुःखी करना कि मानों उसे नाक के रास्ते चने चबाकर खाने के लिए विवश किया जा रहा हो। नाकों दम करना=दे० ऊपर ‘नाक में दम करना’। २. मस्तिष्क का वह तरल मल जो नाक के नथनों से होकर बाहर निकलता है। नेटा। रेंट। मुहा०–नाक छिनकना या सिनकना=नाक के रास्ते इस प्रकार जोर से हवा बाहर निकालना कि उसके साथ अंदर का कफ दूर जा गिरे। नाक बहना=सरदी आदि के कारण नाक से पतला कफ या पानी निकलना। ३. गौरव, प्रतिष्ठा या सम्मान की चीज, बात या व्यक्ति। जैसे–वही तो इस समय हमारे मुहल्ले की नाक हैं। उदा०–नाक पिनाकहिं संग सिधाई।–तुलसी। ४. किसी चीज के अगले या ऊपरी भाग में आगे की ओर निकला हुआ कुछ मोटा, नुकीला और लंबा अंग या अंश। ५. चरखे में लगी हुई वह खूँटी या हत्था जिसकी सहायता से उसे घुमाते या चलाते हैं। ६. लकड़ी का वह डंडा जिस पर रखकर पीतल आदि के बरतन खरादे जाते हैं। पुं० [सं० न-अक=दुःख, ब० स०] १. स्वर्ण। २. अंतरिक्ष। आकाश। ३. अस्त्र चालने का एक प्रकार का ढंग। पुं० [सं० नक्र] मगर की तरह का एक प्रकार का जल-जंतु। घड़ियाल। वि० [फा०] १. भरा हुआ। पूर्ण। (प्रत्यय के रूप में यौगिक शब्दों के अंत में) जैसे–खौफनाक, दर्दनाक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाक-कटैया					 : | स्त्री० [हिं० नाक+काटना] १. नाक कटने या काटे जाने की अवस्था या भाव। २. रामलीला का वह प्रसंग जिसमें लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी और जिसके स्वाँग प्रायः राम-लीला के समय निकलते हैं।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाक-चर					 : | पुं० [सं०] देवता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाकड़ा					 : | पुं० [हिं० नाक] नाक के पकने का एक रोग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| ना-कदर					 : | वि० [फा० ना+अ० कद्र] [भाव० ना-कदरी] १. जिसकी कोई कदर न हो। जिसकी कोई प्रतिष्ठा न हो। २. जो किसी की कदर या आदर करना न जानता हो। जो गुण-ग्राही न हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| ना-कदरी					 : | स्त्री० [फा० ना+अ० कद्र] ऐसी स्थिति जिस में किसी का पूरा-पूरा या उचित आदर या सम्मान न हुआ या न किया गया हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाक-कटी					 : | स्त्री० [सं०] स्वर्ग की नटी। अप्सरा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाकना					 : | स० [सं० लंघन, हिं० नाँधना] १. उल्लंगन करना। डाँकना। लाँघना। २. दौड़, प्रतियोगिता आदि में किसी से आगे बढ़ जाना। स० [हिं० नाक+ना (प्रत्य०)] १. चारों ओर से नाके या रास्ते रोकना। नाकाबंदी। करना। ३. आने-जाने के सब द्वार या रास्ते बंद करके किसी को घेरना। ३. कठिनता या वाधा दूर करना या पार करना। उदा०–मैं नहिं काहू कौ कछु घाल्यौं पुन्यनि करवर नाक्यो।–सूर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाक-नाथ					 : | पुं० [सं० ष० त०]=नाक-पति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाक-पति					 : | पुं० [सं० ष० त०] स्वर्ग के स्वामी, इंद्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाक-पृष्ठ					 : | पुं० [सं० ष० त०] स्वर्ग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाक-बुद्धि					 : | वि० [हिं० नाक+बुद्धि] १. जो नाक से सूँघकर या गंध द्वारा ही भक्ष्याभक्ष्य भले-बुरे आदि का विचार कर सके, बुद्धि द्वारा नहीं। अर्थात् क्षुद्र या तुच्छ बुद्धिवाला। स्त्री० उक्त प्रकार की क्षुद्र या तुच्छ बुद्धि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाक-वनिता					 : | स्त्री० [सं० ष० त०] अप्सरा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाक-वास					 : | पुं० [सं० ष० त०] स्वर्ग में होनेवाला वास। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाक-षेधक					 : | पुं० [सं० ष० त०] इन्द्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाका					 : | पुं० [हिं० नाकना] १. रास्ते आदि का वह छोर जिससे होकर लोग किसी ओर जाते, बढ़ते या मुड़ते हैं। प्रवेश द्वार। मुहाना। २. वह स्थान जहाँ से दुर्ग, नगर आदि में प्रवेश किया जाता है। जैसे–नाके पर पहरेदार खड़े थे। क्रि० प्र०–छेंकना।–बाँधना। पद–नाकेबंदी। (दे०) ३. उक्त के अंतर्गत वह स्थान जहाँ चौकी, पहरे आदि के लिए रक्षक या सिपाही रहते हों, अथवा जहाँ प्रवेश कर आदि उगाहे जाते हों। ४. चौकी। थाना। ५. सूई के सिरे का वह छेद जिसमें डोरा या तागा पिरोया जाता है। ६. करघे का वह अंश जिसमें तागे के ताने बँधे रहते हैं। पुं० [सं० नक्र] घड़ियाल या मगर की तरह का एक जल-जंतु।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० [अ० नाक] मादा ऊँट। ऊँटनी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाकादार					 : | वि०, पुं०=नाकेदार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाका-बंदी					 : | स्त्री०=नाकेबंदी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| ना-काबिल					 : | वि० [फा० ना+अ० काबिल] [भाव० ना-काबिलियत] जो काबिल अर्थात् योग्य न हो। अयोग्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| ना-काम					 : | वि० [फा०] [भाव० नाकामी] जिसे अपने प्रयत्न में सफलता न मिली हो। ना-कामयाब। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| ना-कामयाब					 : | वि० [फा०] [भाव० ना-कामयाबी]=ना-काम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाकारा					 : | वि० [फा० नाकारः] १. निष्कर्म। २. (व्यक्ति) जो किसी काम का न हो। निकम्मा। ३. (पदार्थ) जो काम में न आ सके। निष्प्रयोजन। पुं०=नकुल (नेवला)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाकिस					 : | वि० [अ० नाकिस] १. जिसमें कोई नुक्स या दोष हों, अर्थात् खराब या बुरा। २. जिसमें अपूर्णता या त्रुटि हो। ३. निकम्मा। रद्दी। पुं० अरबी भाषा में वह शब्द जिसका अंतिम वर्ण अलिफ, वाव या ये हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाकी (किन्)					 : | वि० [सं० नाक+इनि] स्वर्ग में वास करनेवाला। पुं० देवता। स्त्री०=नक्की।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाकु					 : | पुं० [सं०√नम् (झुकना)+उ, नाक् आदेश] १. दीमकों की मिट्टी का दूह। बिभौट। बल्मीक। २. टीला। भीटा। ३. पर्वत। पहाड़। ४. एक प्राचीन ऋषि। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाकुल					 : | वि० [सं० नकुल+अण्] १. नकुल संबंधी। नेवले का। २. नेवले की तरह का। पुं० १. नकुल के वंशज या सन्तान। २. चव्य। चाब। ३. यवतिक्ता। ४. सेमल का मूसला। ५. रास्ना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाकुलक					 : | वि० [सं० नकुल+ठञ्–क] नेवले की पूजा करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाकुलि					 : | पुं० [सं० नकुल+इञ्] १. नकुल का पुत्र। २. नकुल गोत्र का मनुष्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाकुली					 : | वि० [सं०] नकुल संबंधी। नकुल का। नाकुल। स्त्री० [सं० नकुल+अण्-ङीष्] १.एक प्रकार का कंद जो सब प्रकार के विषों, विशेषकर सर्प के विष को दूर करनेवाला कहा गया है। नाकुली दो प्रकार की होती है। एक नाकुली, दूसरी गंध-नाकुली जो कुछ अच्छी होती है। २. यवतिक्ता। ३. रास्ना। ४. चव्य। चाब। ५. सफेद भटकटैया। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाकू					 : | पुं० [सं० नक्र] घड़ियाल। मगर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाकेदार					 : | वि० [हिं० नाका+फा० दार] जिसमें कोई चीज पहनाने या पिरोने के लिए नाका या छेद हो। पुं० १. वह रक्षक या सिपाही जो किसी नाके पर चौकी पहरे आदि के लिए नियुक्त हो। २. एक अफसर या कर्मचारी जो आने-जाने के मुख्य स्थानों पर किसी प्रकार का कर, महसूल आदि वसूल करने के लिए नियत रहता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाकेबंदी					 : | स्त्री० [हिं० नाका+फा० बंदी] १.ऐसी व्यवस्था जो नाका अर्थात् कहीं आने-जाने का मार्ग रोकने के लिए हो। २. आधुनिक राजनीति में विपक्षी या शत्रु के किसी तट, बंदरगाह अथवा स्नान को इस प्रकार घेरना कि न तो उसके अंदर कोई प्रवेश करने पावे और न वहाँ से कोई बाहर निकलने पावे। (ब्लाकेड)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाकेश					 : | पुं० [सं० नाक-ईश, ष० त०] इंद्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाक्षत्र					 : | वि० [सं० नक्षत्र+अण्] १. नक्षत्र संबंधी। २. नक्षत्रों की गति आदि के विचार से जिसका मान निश्चित हो। जैसे–नाक्षत्र दिन, नाक्षत्र मास। पुं० चांद्र मास। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाक्षत्र-दिन					 : | पुं० [कर्म० स०] उतना समय जितना चंद्रमा को एक नक्षत्र से दूसरे नक्षत्र तक पहुँचने अथवा एक को एक बार याम्योत्तर रेखा से होकर फिर वहीं आने में लगता है। नाक्षत्र मास का पूरा एक दिन। विशेष–यह ठीक उतना ही समय है जितना पृथ्वी को एक बार अपने अक्ष पर घूमने में लगता है। यह समय कभी घटता-बढ़ता नहीं; सदा एक सा रहता है; इसलिए ज्योतिषी लोग दिन-मान का ठीक और पूरा विचार करने के समय इसी का व्यवहार करते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाक्षत्र-मास					 : | पुं० [कर्म० स०] वह समय जितने में चंद्रमा को एक नक्षत्र से चल कर क्रमशः सब नक्षत्रों पर होते हुए फिर उसी नक्षत्र पर आने में लगता है और जो प्रायः २७-२८ दिनों का होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाक्षत्र-वर्ष					 : | पुं० [कर्म० स०] १२ नाक्षत्र मासों का समूह। | 
			
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				| नाक्षत्रिक					 : | वि० [सं० नक्षत्र+ठक्–इक] [स्त्री० नाक्षत्रिकी] नक्षत्र संबंधी। नाक्षत्र। पुं० १. नाक्षत्र अर्थात् चांद्रमास। २. छंद शास्त्र में २७ मात्राओं के छंदों की संज्ञा। | 
			
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				| नाख					 : | स्त्री० [फा० नाख] एक प्रकार का बढ़िया नाशपाती और उसका वृक्ष। | 
			
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				| नाखना					 : | स० [सं० नाशन] १. नष्ट करना। २. बिगाड़ना। ३. गिराना, डालना, फेंकना या रखना। ४. (शस्त्र) चलाना। स०=नाकना। | 
			
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				| नाखुदा					 : | वि० [फा० नाखुदा] खुदा को न माननेवाला। नास्तिक। पुं० १. मल्लाह। नाविक। २. कर्णधार। | 
			
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				| नाखुन					 : | पुं०=नाखून।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| नाखुना					 : | पुं० [फा० नाखुनः ] १.आँख का एक रोग जिसमें उसके तल पर खून की बिंदी या दाग पड़ जाता है। २. घोड़ों का एक रोग जिसमें उनकी आँखों में लाल डोरे या धारियां पड़ जाती हैं। ३. एक प्रकार का अंगुश्ताना जिसे पहनकर चीराबंद लोग चीरा लगाते या बाँधते थे। पुं०=नाखूना (कपड़ा)। | 
			
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				| नाखुर					 : | पुं०=नहछू। | 
			
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				| ना-खुश					 : | वि० [फा०] [भाव० ना-खुशी] जो खुश या प्रसन्न न हो। अप्रसन्न। नाराज। | 
			
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				| नाखून					 : | पुं० [फा० नाखुन] १. हाथों तथा पैरों की उँगलियों के ऊपरी तल का वह सफेद अंश जो अधिक कड़ा और तेज धारवाला होता है। २. उक्त का वह चंद्राकार अगला भाग जो कैंची आदि से काटकर अलग किया जाता है। ३. चौपायों के पैरों का वह अगला भाग जो मनुष्य के नखों के समान कड़ा होता है। मुहा०—नाख़ून लेना=नाखून काटकर अलग करना। (घोड़े का) नाख़ून लेना=चलने में घोड़े का ठोकर खाना। | 
			
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				| नाखूना					 : | पुं० [हिं० नाखून] एक तरह का कपड़ा जिसका ताना सफेद होता है और बाने में कई रंगों की धारियाँ होती हैं। यह आगरे में बहुत बनता था। पुं०=नाखुना। | 
			
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				| नाग					 : | पुं० [सं० नग=पर्वत+अण्] [स्त्री० नागिन] १. सर्प। साँप। २. काले रंग का, बड़ा और फनवाला साँप। करैत। मुहा०—नाग खेलाना=नागों या साँपों को खेलाने की तरह का ऐसा विकट काम करना जिससे प्राण जाने का भय हो। ३. पुराणानुसार पाताल में रहनेवाला एक उप-देवता जिसका ऊपरी आधा भाग मनुष्य का और नीचेवाला आधा भाग साँप का कहा गया है। ४. कद्रु से उत्पन्न कश्यप की संतान जिनका निवास पाताल में माना गया है। इनके वासुकि, तक्षक, कुलक, कर्कोटक, पद्म, शंख, चूड़, महापद्म और धनंजय ये आठ कुल हैं। ५. एक प्राचीन देश। ६. उक्त देश में बसनेवाली एक प्राचीन जाति। विशेष–नाग जाति संभवतः भारत के उत्तर में और हिमालय के उस पार रहती थी,क्योंकि तिब्बतवाले अपने आपको नाग-वंशी कहते हैं। महाभारत काल तक ये लोग भारत में आ गये थे। और उत्तर भारतीय आर्यों से इनका बहुत वैमनस्य था। इसी लिए जनमेजय ने बहुत से नागों का नाश किया था। बाद में ये लोग मध्यभारत में आ कर फैल गए थे; जहाँ नागपुर, छोटा नागपुर आदि नगर और प्रदेश इनके नाम की स्मृति के रूप में अब तक अवशिष्ट हैं। ये लोग नागों (बड़े बड़े फनदार साँपों) की पूजा करते थे। इसी से इनका यह नाम पड़ा था। बंगाल में अब तक हिंदुओं में ‘नाग’ एक जाति का नाम मिलता है। ७. एक प्राचीन पर्वत। ८. हाथी। ९. एक प्रकार की घास। १॰. नागकेसर। ११. पुन्नाग। १२. नागर-मोथा। १३. तांबूल। पान। १४. सीसा नामक धातु। १५. ज्योतिष के करणों मे से तीसरा, करण जिसे ‘ध्रुव’ भी कहते हैं। १६. बादल। मेघ। १७. दीवार में लगी हुई खूँटी। १८. कुछ लोगों के मत से सात की और कुछ के मत से आठ की संख्या। १९. आश्लेषा नक्षत्र का एक नाम। २॰. शरीर में रहनेवाले पाँच प्राणों या वायुओं में से एक जिससे डकार आता है। वि० १. (व्यक्ति) जो बहुत अधिक क्रूर घातक और दुष्ट हो। २. यौ० के अंत में, सब में श्रेष्ठ। जैसे–पुरुष नाग। | 
			
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				| नाग-कंद					 : | पुं० [ब० स०] हस्तिकंद। | 
			
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				| नाग-कन्या					 : | स्त्री० [ष० त०] नाग जाति की बालिका या स्त्री। | 
			
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				| नाग-कर्ण					 : | पुं० [ष० त०] १. हाथी का कान। २. एरंड या रेंड जिसका पत्ता हाथी के कान के आकार का होता है। | 
			
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				| नाग-किंजल्क					 : | पुं० [ब० स०] नागकेसर। | 
			
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				| नाग-कुमारिका					 : | स्त्री० [ष० त० ] १. गुरुच। गिलोय। २. मजीठ। ३. नाग-कन्या। | 
			
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				| नाग-केसर					 : | पुं० [ब० स०] एक सदाबहार वृक्ष और उसके सुगंधित फूल। इसके बीजों की गिनती गंध द्रव्यों में होती है। | 
			
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				| नाग-खंड					 : | पुं० [मध्य० स०] पुराणानुसार जंबू द्वीप के अंतर्गत भारतवर्ष के नौ खंडों में से एक खंड। | 
			
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				| नाग-गंधा					 : | स्त्री० [ब० स०, टाप्] नकुलकंद। | 
			
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				| नाग-गति					 : | स्त्री० [सं०] किसी ग्रह की अश्विनी भरणी और कृतिका नक्षत्रों से होकर निकलने की अवस्था या गति। | 
			
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				| नाग-गर्भ					 : | पुं० [ब० स०] सिंदूर। | 
			
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				| नाग-चंपा					 : | पुं० [सं०] नागकेसर (पेड़ और उसका फूल)। | 
			
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				| नाग-चूड़					 : | पुं० [ब० स०] शिव। | 
			
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				| नागच्छत्रा					 : | स्त्री० [सं०] नागदंती (वृक्ष)। | 
			
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				| नागज					 : | वि० [सं० नाग√जन् (उत्पत्ति)+ड] नाग से उत्पन्न। पुं० १. सिंदूर। २. राँगा। | 
			
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				| नाग-जिह्वा					 : | स्त्री० [सं० ष० त०] १. अनंतमूल। २. सारिवा। | 
			
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				| नाग-जिह्विका					 : | स्त्री० [ब० स० कप्, टाप्, इत्व] मैनसिल नामक खनिज द्रव्य। | 
			
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				| नाग-जीवन					 : | पुं० [ब० स०] फूँका हुआ राँगा। | 
			
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				| नाग-झाग					 : | पुं० [सं० नाग+हिं० झाग] १. साँप की लार। अहिफेन। २. अफीम। | 
			
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				| नाग-दंत					 : | पुं० [ष० त०] १. हाथी दांत। २. [नागदन्त+अच्] दीवार पर गड़ी हुई खूँटी। | 
			
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				| नाग-दंतिका					 : | स्त्री० [ब० स०, कप्, टाप्, इत्व] वृश्चिकाली नामक पौधा। | 
			
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				| नाग-दंती					 : | स्त्री० [ब० स०, ङीष्] कुंभा नामक औषधि। | 
			
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				| नाग-दमन					 : | पुं० [ष० त०] नागदौना (पौधा)। | 
			
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				| नाग-दमनी					 : | स्त्री०=नागदमन (नागदौना)। | 
			
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				| नागदला					 : | पुं० [सं० नाग-दल] एक प्रकार का बड़ा पेड़ जिसकी लकड़ी बहुत कड़ी और मजबूत होती है और पानी में भी जल्दी नहीं सड़ती। इसलिए इसकी लकड़ी से नावें बनती हैं। इसके बीजों का तेल जलाने के काम आता है। | 
			
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				| नागदुमा					 : | वि० [सं० नाग+फा० दुम] जिसकी दुम या पूँछ नाग के फन के समान हो। पुं० उक्त प्रकार की दुमवाला हाथी जो ऐबी माना जाता है। | 
			
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				| नागदौन					 : | पुं० [सं० नागदमन] १. छोटे आकार का एक पहाड़ी पेड़। २. एक प्रकार का पौधा जिसमें डालियाँ नहीं होतीं, केवल हाथ-हाथ भर लंबे-लंबे पत्ते होते हैं जो देखने में साँप के फन की तरह होते हैं। कहते हैं कि इसके पास भी साँप नहीं आता। ३.एक प्रकार का कँटीला पेड़ जिसकी सूखी पत्तियां लोग कागजों और कपड़ों की तहों में उन्हें कीड़ों से बचाने के लिए रखते हैं। | 
			
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				| नाग-द्रु (द्रुम)					 : | पुं० [मध्य० स०] १. सेंहुड़। थूहर। २. नागफनी। | 
			
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				| नाग-द्वीप					 : | पुं० [मध्य० स०] भारतवर्ष के नौ खंडों में से एक खंड। (विष्णु पुराण)। | 
			
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				| नाग-धर					 : | वि० [ष० त०] नाग को धारण करनेवाला। पुं० शिव। | 
			
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				| नाग-ध्वनि					 : | स्त्री० [सं०] मल्लार और केदार या सूहा अथवा कान्हड़े और सारंग के योग से बनी हुई एक संकर रागिनी। | 
			
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				| नाग-नक्षत्र					 : | पुं० [मध्य० स०] आश्लेषा नक्षत्र। | 
			
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				| नाग-नग					 : | पुं० [सं० नाग+हिं० नग]=गज मुक्ता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाग-नामक					 : | पुं० [ब० स०, कप्] रांगा। | 
			
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				| नाग-नामा (मन्)					 : | पुं० [ब० स०] तुलसी। | 
			
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				| नाग-पंचमी					 : | स्त्री० [मध्य० स०] श्रवण शुक्ला पंचमी के जिस दिन नागों की पूजा करने का विधान है। | 
			
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				| नाग-पति					 : | पुं० [ष० त०] १. साँपों के राजा, वासुकि। २. हाथियों के राजा, ऐरावत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाग-पत्रा					 : | स्त्री० [ब० स०, टाप्]=नागदमनी (नागदौना)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाग-पत्री					 : | स्त्री०[ब० स०, ङीष्] लक्ष्मणा (कंद)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाग-पद					 : | पुं० [सं०] एक प्रकार का रतिबंध जो सोलह रतिबंधों में से दूसरा माना जाता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाग-पर्णी					 : | स्त्री० [ब० स०, ङीष्] पान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाग-पाश					 : | पुं० [उपमि० स०] १. वरुण का एक अस्त्र जिससे वे शत्रुओं को लपेटकर उसी प्रकार बाँध लेते थे जिस प्रकार नाग या सांप किसी चीज को अपने शरीर से लपेटकर बाँध लेता है। २. सर्पों का फंदा जो किसी चीज के चारों ओर अपना शरीर लपेटकर बनाते हैं ३. डोरी आदि का ढाई फेर का फंदा। नाग-बंध। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाग-पुर					 : | पुं० [ष० त०] १. नागों का पुर, पाताल। २. हस्तिना नामक पुर जहाँ पर्वत के रूप में स्वलील दानव ने गंगा का मार्ग रोका था। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाग-पुष्प					 : | पुं० [ब० स०] १. नागकेसर। २. पुन्नाग। ३. चंपा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाग-पुष्पिका					 : | स्त्री० [ब० स० कन्, टाप्, इत्व] १. पीली जूही। २. नागदौन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाग-पुष्पी					 : | स्त्री० [ब० स०, ङीष्] १. नागदौन। २. मेढ़ा सींगी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नागपूत					 : | पुं० [सं० नागपुत्र कचनार की जाति की एक प्रकार की लता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नागफनी					 : | स्त्री० [हिं० नाग+फन] १. थूहर की जाति का एक प्रसिद्ध पौधा जिसमें टहनियाँ नहीं होतीं, केवल सांप के फन के आकार के मोटे गूदेदार दल एक दूसरे के ऊपर निकलते जाते हैं। इन दलों में बहुत से काँटे होते हैं जिनसे किसी स्थान को घेरने के लिए इसकी बाढ़ लगाई जाती है। २. नागफनी के दल के आकार की एक प्रकार की कटार जिसकी फल आगे की ओर चौड़ा और पीछे की ओर पतला होता है। ३. नरसिंघे की तरह का एक प्रार का नेपाली बाजा। ४. कान में पहनने का एक प्रकार का गहना। ५. वह कौपीन या लँगोटी जो नागा साधु पहनते या बाँधते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाग-फल					 : | पुं० [ब० स०] परवल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नागफाँस					 : | पुं० [सं० नाग+हिं० फाँस ] नाग-पाश। (दे०) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाग-फेन					 : | पुं० [ष० त०] १. सांप की लार। २. अफीम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाग-बंध					 : | पुं० [उपमि० स०] किसी चीज को लपेटकर बाँधने का वह विशेष प्रकार जो प्रायः वैसा ही होता है जैसा नाग का किसी जीव-जंतु या वृक्ष आदि को अपने शरीर से लपेटने का होता है। उदा०–सेस नाग कौ नाग-बंध तापर कसि बाँध्यौ।–रत्ना०। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाग-बंधु					 : | पुं० [ष० त०] पीपल का पेड़। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाग-बल					 : | वि० [ब० स०] हाथी की तरह बलवान्। पुं० भीम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाग-बला					 : | स्त्री० [ब० स०, टाप्] गँगेरन। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नागबेल					 : | स्त्री० [सं० नागवल्ली ] १.पान की बेल। पान। २. किसी चीज पर बनाई जानेवाली वह लहरियेदार बेल जो देखने में साँप की चाल की तरह जान पड़े। ३. घोड़े आदि पशुओं की टेढ़ी-तिरछी चाल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाग-भगिनी					 : | स्त्री० [ष० त०] जरत्कारु (वासुकि की बहन)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाग-भिद्					 : | पुं० [नाग√भिद् (विदारण)+क्विप्] १. सर्पों की एक जाति। २. उक्त जाति का सर्प, जो बहुत ही जहरीला और भीषण होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाग-भूषण					 : | पुं० [ब० स०] शिव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नागमंडलिक					 : | पुं० [सं० नाग-मंडल, ष० त०+ठन्–इक] सँपेरा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नागमरोड़					 : | पुं० [हिं० नाग+मरोड़ना] कुश्ती का एक पेंच जिसमें प्रतिद्वंद्वी को अपनी गर्दन के ऊपर या कमर से एक हाथ से घसीटते हुए गिराते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाग-मल्ल					 : | पुं० [सं० त०] ऐरावत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाग-माता (तृ)					 : | स्त्री० [ष० त०] १. नागों की माता, कद्रु। २. सुरसा नाम की राक्षसी। ३. मनसा देवी। ४. मैनसिल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाग-मार					 : | पुं० [नाग√मृ (मरना)+णिच्+अच्] काला भँगरा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाग-मुख					 : | पुं० [ब० स०] गणेश। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाग-यष्टि					 : | स्त्री० [मध्य० स०] तालाब के बीचोबीच गढ़ा हुआ लकड़ी या पत्थर का खंभा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाग-रंग					 : | पुं० [ब० स०] नारंगी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नागर					 : | वि० [सं० नगर+अण्] [स्त्री० नागरी, भाव० नागरता] १. नगर-संबंधी। नगर का। (अर्बन) २. नगरवासियों में होने अथवा उनसे संबंध रखनेवाला। (सिविल)। जैसे–नागर अधिकार। (सिविल राइट) नगरपालिका, महापालिका या नगर परिषद् से संबंध रखनेवाला। (म्युनिस्पल) जैसे–नागर निधि। (म्युनिस्पल फंड) ४. नागरिकों और उनके अधिकारों तथा कर्तव्यों से संबंध रखनेवाला। (सिविक) ५. चतुर। होशियार। पुं० १. नगर में रहनेवाला व्यक्ति। नागरिक। २. चतुर, शिष्ट, और सभ्य व्यक्ति। ३.विवाहिता स्त्री का देवर। ४. सोंठ। ५. नागर मोथा। ६. नारंगी। ७. गुजरात प्रदेश में रहनेवाले ब्राह्मणों की एक जाति। ८. नागरी लिपि का कोई अक्षर। पुं० [?] दीवार का टेढ़ापन। | 
			
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				| नागरक					 : | पुं० [सं० नगर+वुञ्–अक] १. नगर का प्रबंध या शासन करनेवाला अधिकारी। २. कारीगर। शिल्पी। ३. चोर। ४. कामशास्त्र में एक प्रकार का आसन या रतिबंध। ५. सोंठ। वि०=नागर। | 
			
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				| नाग-रक्त					 : | पुं० [मध्य० स०] १. सर्प का रक्त। २. हाथी का रक्त। ३. सिंदूर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नागर-धन					 : | पुं० [मयू० स०] नागर मोथा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नागरता					 : | स्त्री० [सं० नागर+तल्–टाप्] नागर होने की अवस्था, गुण या भाव। (सिटिजनशिप) २. आचार, व्यवहार आदि का वैसा सभ्यतापूर्ण और शिष्ट प्रकार जैसा साधारणतः सिक्षित और सभ्य नगरवासियों में प्रचलित हो। (सिविलिटी) ३. चतुरता। ४. दे० नागरिकता’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नागरनट					 : | पुं०=नटनागर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नागर-बेल					 : | स्त्री० [सं० नागवल्ली] पान की बेल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नागर-मुस्ता					 : | स्त्री० [उपमि० स०]=नागरमोथा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नागरमोथा					 : | पुं० [सं० नागरोत्थ] एक प्रकार का तृण जिसकी पत्तियाँ मूँज या सर की पत्तियों की तरह होती और दवा के काम आती हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाग-राज					 : | पुं० [ष० त०] १. बहुत बड़ा सर्प। २. शेषनाग। ३. ऐरावत। ४. नराच या पंचामर चंद का एक नाम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नागराह्वन					 : | पुं० [सं० नागर-आह्वा, ब० स०] सोंठ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नागरिक					 : | वि० [सं० नगर+ठञ्–इक] [भाव० नागरिकता] १. (व्यक्ति) जिसने नगर में जन्म लिया हो और नगर में ही जिसका पालन-पोषण हुआ हो। २. चतुर। चालाक। पुं० किसी राज्य में जन्म लेनेवाला वह व्यक्ति जिसे उस राज्य में रहने, नौकरी या व्यापार आदि करने, संपत्ति रखने तथा स्वतन्तत्रापूर्वक अपने विचार आदि प्रकट करने के अधिकार जन्म से ही स्वतः प्राप्त होते हैं। (सिटिजन) विशेष–अन्य राज्यों में जन्म लेनेवाले व्यक्ति भी कुछ विशिष्ट अवस्थाओं में तथा कुछ विशिष्ट शर्तें पूरी करने पर किसी दूसरे राज्य के नागरिक बन सकते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नागरिकता					 : | स्त्री० [सं० नागरिक+तल्–टाप्] १. नागरिक होने की अवस्था, पद या भाव। २. नागरिक होने पर प्राप्त होनेवाले अधिकार तथा सुविधाएँ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नागरिक-शास्त्र					 : | पुं० [ष० त० या मध्य० स०] वह शास्त्र जिसमें नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों का उल्लेख और उसके देश, जाति आदि के परस्पर संबंधों पर विचार होता है। (सिविक्स) | 
			
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				| नाग-रिपु					 : | पुं० [ष० त०] शेर। सिंह। | 
			
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				| नाग-रिपुछाला					 : | स्त्री० दे० ‘बाघंबर।’ | 
			
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				| नागरी					 : | स्त्री० [सं० नागर+ङीष्] १. नगर की रहनेवाली स्त्री। शहर की औरत। २. चतुर या होशियार स्त्री। ३. पशु आदि की मादा। जैसे–नाग-नागरी=हथिनी। ४. थूहर। ५. पत्थर की मोटाई नापने की एक नाप। ६. पत्थर का बहुत बड़ा और मोटा चौकोर टुकड़ा। ७. देव-नागरी नाम की लिपि। दे० ‘देवनागरी’। | 
			
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				| नागरीट					 : | पुं० [सं० नागरी√इट् (गति)+क०] १. कामुक और व्यसनी पुरुष। २. स्त्री का उपपति। जार। ३. विवाह करानेवाला व्यक्ति। घटक। | 
			
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				| नागरुक					 : | पुं० [सं० नाग√रु (गति)+क बा०] नारंगी (वृक्ष और फल)। | 
			
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				| नाग-रेणु					 : | पुं० [ष० त०] सिंदूर। | 
			
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				| नागरेयक					 : | वि० [सं० नगर+ठकञ्—एय] १. जो नगर में उत्पन्न हुआ हो। २. नागरिक संबंधी। जैसे–नागरेयक अधिकार। | 
			
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				| नागरोत्थ					 : | पुं० [सं० नागर-उद्√स्था (स्थिति)+क] नागरमोथा। | 
			
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				| नागर्य्थ					 : | पुं० [सं० नागर+ष्यञ्] १. नागरता। २. नगरवासियों की सी चतुराई या चालाकी। | 
			
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				| नागल					 : | पुं० [देश०] १. हल। २. वह रस्सी जिससे बैल जूए में जोड़े या बाँधे जाते हैं। | 
			
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				| नाग-लता					 : | स्त्री० [उपमि० स०] पान की बेल। | 
			
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				| नाग-लोक					 : | पुं० [ष० त०] नागों का देश, पाताल। | 
			
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				| नाग-वंश					 : | पुं० [ष० त०] १. नागों का वंश। २. शक जाति की एक शाखा। | 
			
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				| नागवंशी (शिन्)					 : | वि० [सं० नागवंश+इनि] १. नागवंश में उत्पन्न २. नागवंश-संबंधी। | 
			
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				| नाग-वल्लरी					 : | स्त्री० [उपमि० स०] पान। | 
			
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				| नाग-वल्ली					 : | स्त्री० [उपमि० स०] पान की लता। | 
			
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				| ना-गवार					 : | वि० [फा० ना+गवार=अच्छा लगनेवाला] [भाव० नागवारी] अच्छा न लगनेवाला। अप्रिय या अरुचिकर। | 
			
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				| ना-गवारा					 : | वि०=नागवार। | 
			
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				| नाग-वारिक					 : | पुं० [सं० नाग-वार, ष० त०+ठक्–इक] १. राज-कुंजर। २. हाथियों का झुंड। 3. महावत ४. गरुड़। ५.मोर। | 
			
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				| नाग-वीथी					 : | स्त्री० [ष० त०] १. चन्द्रमा के मार्ग का वह अंश जिसमें अश्विनी, भरणी, और कृत्तिका नक्षत्र पड़ते हैं। २. कश्यप की एक पुत्री। | 
			
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				| नाग-वृक्ष					 : | पुं० [मध्य० स०] नागकेसर नामक पेड़। | 
			
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				| नाग-शत					 : | पुं० [ब० स०] एक प्राचीन पर्वत। (महाभारत) | 
			
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				| नाग-शुंडी					 : | स्त्री० [सं० नाग-शुंड, ष० त०,+अच्–ङीष्] एक प्रकार की ककड़ी। | 
			
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				| नाग-शुद्धि					 : | स्त्री० [ष० त०] मकान की नींव रखते समय इस बात का रखा जानेवाला ध्यान कि कहीं पहला आघात सर्प के मस्तक या पीठ पर न पड़े। विशेष–फलित ज्योतिष में, विशिष्ट समयों में सर्प का मुख निश्चित दिशाओं में माना जाता है। भादों, कुआर और कार्तिक में पूरब की ओर अगहन, पूस और माघ में दक्षिण की ओर आदि आदि सर्प का मुख होता है। कहते हैं कि सर्प के मस्तक पर पहला आघात लगने से स्वामिनी की मृत्यु होती है। पेट पर होनेवाला आघात शुभ माना जाता है। | 
			
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				| नाग-संभव					 : | पुं० [ब० स०] १. सिंदूर। २. एक प्रकार का मोती। | 
			
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				| नाग-संभूत					 : | पुं० [पं० त०]=नाग-संभव। | 
			
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				| नाग-साह्वय					 : | पुं० [ब० स०] हस्तिनापुर। | 
			
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				| नाग-सुगंधा					 : | स्त्री० [ब० स०, टाप्] एक प्रकार की रास्ना। | 
			
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				| नाग-स्तोकक					 : | पुं० [सं०] वत्सनाभ नामक विष। | 
			
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				| नाग-स्फोता					 : | स्त्री० [उपमि० स०] १. नागदंती। २. दंतीवृक्ष। | 
			
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				| नाग-हनु					 : | पुं० [ष० त०] नख नामक गंध द्रव्य। | 
			
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				| ना-गहाँ					 : | क्रि० वि० [फा०] १. अचानक। अकस्मात्। एकाएक। २. कुसमय में। | 
			
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				| ना-गहानी					 : | वि० [फा०] अकस्मात् या अचानक आकर उपस्थित होनेवाला। जैसे–नागहानी, आफत बला या मौत। | 
			
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				| नागांग					 : | पुं० [नाग-अंग, ब० स०] हस्तिनापुर। | 
			
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				| नागांगना					 : | स्त्री० [ना-गअंगना, ष० त०] हथिनी। | 
			
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				| नागांचला					 : | स्त्री० [नाग-अंचल, ब० स०, टाप्०] नाग-यष्टि। | 
			
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				| नागांजना					 : | स्त्री० [नाग-अंजन, ब० स०, टाप्] १. नागयष्टि। २. हथिनी। | 
			
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				| नागांतक					 : | वि० [नाग-अंतक, ष० त०] नागों का अंत या नाश करनेवाला। पुं० १. गरुड़। २. मोर। ३. सिंह। | 
			
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				| नागा					 : | वि० [सं० नग्न] १. नंगा २. खाली। रहित। रीता। उदा०–नागे हाथ ते गए जिनके लाख करोड़।–कबीर। पुं० १. शैव साधुओं का एक प्रसिद्ध संप्रदाय। २. उक्त संप्रदाय के साधु जो प्रायः बिलकुल नंगे रहते हैं। पुं० [सं० नाग] १. असम देश की एक पर्वत-माला। २. एक प्रकार की अर्द्ध-सभ्य जंगली जाति जो उक्त पर्वत-माला पर रहती है। पुं० [तुं० नागः] १. वह दिन जिसमें कोई व्यक्ति अपने काम पर उपस्थित न हुआ हो। जैसे–नौकर ने इस महीने में चार नागे किये हैं। २. वह दिन जिमसें परम्परा आदि के कारण कोई काम नहीं किया जाता अथवा काम पर उपस्थित नहीं हुआ जाता। जैसे–रविवार को प्रायः नौकर नागा करते हैं। ३. वह दिन जिसमें कोई नित्य किया जानेवाला काम छूट या रह जाय। जैसे–पढ़ाई का नागा, दूकान का नागा। ४. अनवधान के कारण होनेवाली चूक या व्यतिक्रम। उदा०–नागा करमन कौ करत दुरि छिपि छिपि।–सेनापति। क्रि० प्र०–करना।–देना।–पड़ना। | 
			
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				| नागाख्य					 : | पुं० [नाग-आख्या, ब० स०] नागकेसर। | 
			
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				| नागानंद					 : | पुं० [सं०] हर्ष का एक प्रसिद्ध नाटक। | 
			
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				| नागानन					 : | पुं० [नाग-आनन, ब० स०] गणेश। | 
			
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				| नागाभिभू					 : | पुं० [सं०] महात्मा बुद्ध। | 
			
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				| नागाराति					 : | वि०, पुं० [नाग-आरति, ष० त०]=नागांतक। | 
			
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				| नागारि					 : | पुं० [नाग-अरि, ष० त०]=नागांतक। | 
			
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				| नागार्जुन					 : | पुं० [सं०] एक प्रसिद्ध बौद्ध चिंतक जो माध्यमिक शाखा के प्रवर्तक और बौद्ध धर्म के प्रचारक थे और जिन्होंने बौद्ध धर्म को दार्शनिक रूप दिया था। इनका समय ईसा से लगभग १00 वर्ष अथवा ईशवी पहली शती के आस-पास माना गया है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नागार्जुनी					 : | स्त्री० [सं०] दुद्धी नाम की घास। | 
			
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				| नागालाबु					 : | पुं० [नाग-अलाबु, उपमि० स०] गोल कद्दू। | 
			
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				| नागाशन					 : | वि० [नाग-अशन, ष० त०] नागों का नाशक। पुं० १. गरुण। २. मोर। ३. सिंह। शेर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नागाश्रय					 : | पुं० [नाग-आश्रय, ष० त०] हस्तिकंद। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नागाह्व					 : | पुं० [ब० स०]नागकेसर (वृक्ष और फूल)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नागाह्वा					 : | स्त्री० [सं० नाग-आह्व√हवे (स्पर्धा)+अच्–टाप्] लक्ष्मणकंद। | 
			
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				| नागिन					 : | स्त्री० [सं०] १. नाग जाति की स्त्री। २. नाग (सर्प) की मादा। ३. बोलचाल में दूसरों का अपकार, अहित आदि करनेवाली दुष्ट और निष्ठुर स्त्री। ४. मनुष्यों, पशुओं आदि की गरदन या पीठ पर होनेवाली एक प्रकार की भौंरी या लंबी रोमावली जो बहुत ही अशुभ मानी जाती है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नागिनी					 : | स्त्री०=नागिन। | 
			
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				| नागो (गिन्)					 : | पुं० [नाग+इनि] शिव। महादेव। स्त्री० सं० [‘नाग’ की स्त्री०] हथिनी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नागुला					 : | पुं० [सं० नकुल] १. नेवला। २. नाकुली नाम की वनस्पति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नागेंद्र					 : | पुं० [नाग-इंद्र, ष० त०] १. बहुत बड़ा साँप। २. वासुकि, शेष आदि नाग। ३. बहुत बड़ा हाथी। ४. ऐरावत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नागेश					 : | पुं० [नाग-ईश, ष० त०] १. नागेश। शेषनाग। २. वैद्यक में एक प्रकार का रसौषध। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नागेसर					 : | पुं० १.=नागकेसर। २.=नागेश्वर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नागेसरी					 : | वि० [हिं० नागेसर] नागकेसर के रंग का। पुं० उक्त प्रकार का रंग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नागोद					 : | पुं० [सं०] लोगे का तवे के आकार का वह उपकरण, जिसे प्राचीन काल में योद्धा छाती पर बाँधते थे। पुं०=नागौद।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नागोदर					 : | पुं० [नाग-उदर, ब० स०, कप-टाप् इत्व] एक प्रकार का दस्ताना जो युद्ध में हाथ की रक्षा के लिए पहना जाता था। (कौ०) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नागोद्भेद					 : | पुं० [नाग-उद्भेद, ब० स०] मेरु पर्वत का एक स्थान जहां सरस्वती की गुप्त धारा ऊपर देखाई पड़ती है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नागौद					 : | पुं० [हिं० नव+नगर] मारवाड़ के अंतर्गत एक नगर जहाँ की गौएँ और बैल बहुत प्रसिद्ध हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नागौर					 : | पुं०=नागौद। वि०=नागौरा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नागौरा					 : | वि० [हिं० नागौद] [स्त्री० नागौरी] १. नागौद या नागौर नाम नगरी से संबंध रखनेवाला। २. अच्छी या बढ़िया जाति या नसल का (चौपाया)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नागौरी					 : | वि० [हिं० नागौद] १. नागौर का। २. अच्छी जाति या नसल का (चौपाया)। जैसे नागौरी जाति का बैल। पुं० नागौर का बैल। स्त्री० १. नागौर की गाय। २. छोटी टिकिया की तरह की एक प्रकार की फूली हुई पूरी। (पकवान) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाच					 : | पुं० [सं० नृत्य, प्रा० नच्च या नाच्च] १. नाचने की क्रिया जो संगीत का एक प्रसिद्ध अंग है और जिसमें अनेक प्रकार के हावभाव कलात्मक ढंग से प्रदर्शित करने के लिए पैर थिरकाते हुए शरीर के भिन्न-भिन्न अंग आकर्षक तथा मनोहर रूप से और ताल-लय आदि से युक्त रखकर संचालित किये जाते हैं। (दे० ‘नाचना’)। विशेष–नाच का आरम्भ मुख्यतः अपने मन का उल्लास और निश्चिंतापूर्ण प्रसन्नता प्रकट करने के प्रसंग में हुआ था; और अब तक जंगली था अर्द्धसभ्य जातियों के लोग तथा अनेक पशु-पक्षी इसी प्रकार नाचते हैं; पर बाद में जब इसका कला-पक्ष विशेष विकसित हुआ, तब दूसरों के मनोरंजन के लिए भी लोग नाच दिखाने लगे और कुछ पशुओं को अपने ढंग पर नाच सिखाने लगे। मुहा०–नाच काछना=नाचने के लिए तैयार होना। २. लाक्षणिक रूप में अनेक प्रकार के कौतुकों से युक्त कुछ विलक्षण प्रकार की होनेवाली क्रियाएँ और गतियाँ। मुहा०–(किसी को) तरह-तरह के नाच नचाना=मनमाने ढंग से किसी को अनेक प्रकार के ऐसे असंगत और विलक्षण कार्य में प्रवृत्त करना, जिससे वह तंग, दुःखी या परेशान हो। ३. किसी प्रकार की कौतुकपूर्ण क्रिया या गति, जो देखने में क्रीड़ा या खेल की तरह जान पड़े। जैसे–वह बहुत तरह के नाच नाच चुका है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाच-कूद					 : | स्त्री० [हिं० नाच+कूद] १. रह-रहकर नाचने और कूदने की क्रिया या भाव। २. ऐसा कृत्य जो दूसरों की दृष्टि में तमाशे का-सा मनोरंजक और हास्यास्पद हो। ३. ऐसा बड़ा उद्योग या प्रयत्न जो अंत में प्रायः निरर्थक सिद्ध हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाच-घर					 : | पुं० [सं० नाच+घर] वह स्थान जहाँ नाचना-गाना आदि होता हो। नृत्यशाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाचना					 : | अ० [सं० नर्तन, हिं० नाच] १. उमंग में आकर और विशुद्ध हार्दिक प्रसन्नता प्रकट करने के लिए पैरों को थिरकाते हुए और अनेक प्रकार से शरीर के भिन्न-भिन्न अंग हिलाते हुए मनमाने ढंग से उछलना-कूदना। जैसे–सरदार को सकुशल लौटते देखकर सब भील नाचने लगे। मुहा०–नाच उठना=बहुत अधिक प्रसन्नता के आवेग में उछल पड़ना। जैसे–पिताजी के हाथ में खिलौने और मिठाइयाँ देखकर बच्चे नाच उठे। २. उक्त प्रकार के अंग-संचालन और शारीरिक गतियों का वह कलात्मक विकसित रूप, जो आज-कल शिक्षित और सभ्य समाजों में प्रचलित है, और जिसके साथ ताल और लय का मेल तथा गाना-बजाना भी सम्मिलित हो गया है। ३. किसी पदार्थ का बहुत-कुछ उसी प्रकार की चक्राकार गति में आना या होना, जैसे चक्राकार गति नाच के समय मनुष्य की होती है। जैसे–आतिशबाजी की चरखी या लट्टू का नाचना। ४. किसी वस्तु या व्यक्ति का रह-रहकर जल्दी-जल्दी इधर-उधर आना-जाना, हिलना-डुलना या किसी प्रकार की गति में होना। जैसे–(क) यह लड़का दिन भर इधर-उधर नाचता रहता है; कहीं स्थिर होकर नहीं बैठता। (ख) जब हवा चलती है, तब दीए की लौ नाचती रहती है। (ग) शिकारी का तीर नाचता हुआ सामने से निकल गया। मुहा०–(किसी अशुभ बात का) सिर पर नाचना=इतना पास आ पहुँचना कि तुरन्त कोई बुरा परिणाम दिखाई पड़ सकता हो। जैसे–(क) ऐसा जान पड़ता है कि उसके सिर पर मौत नाच रही है। (ख) अब तुम्हारा पाप तुम्हारे सिर पर नाचने लगा है। आँखों के सामने नाचना=उपस्थित या प्रस्तुत न होने पर भी रह-रहकर सामने आता या होता हुआ दिखाई देना। जैसे–वह भीषण दृश्य अब तक मेरी आँखों के सामने नाच रहा है। ५. किसी प्रकार के तीव्र मनोवेग के फलस्वरूप उग्र या विकट रूप से इधर-उधर होना। जैसे–क्रोध से नाच उठना। ६. अनेक प्रकार के ऐसे सांसारिक प्रपंचों और प्रयत्नों में लगे रहना जिनका कोई विशेष सुखद परिणाम न हो। उदा०–अब मैं नाच्यौं बहुत गोपाल।–सूर। ७. दूसरों के कहने पर चलना अथवा उनके इंगितों का अनुसरण करते चलना। जैसे–तुम जिस तरह नचाते हो, मैं उसी तरह नाचता हूँ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाच-महल					 : | पुं० नाचघर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाच-रंग					 : | पुं० [हिं० नाच+रंग] १. वह उत्सव या जलसा जिसमें नाचगाना हो। २. आमोद-प्रमोद। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| ना-चाकी					 : | स्त्री० [फा० ना+तु० चाकी] १. वैमनस्य। २. अनबन। ३. रोग। | 
			
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				| ना-चार					 : | वि० [फा०] [भाव० नाचारी] १. जिसका कोई चारा या प्रतिकार न हो सकता हो। ३. लाचार। विवश। ३. तुच्छ। निरर्थक। व्यर्थ। (क्व०)। क्रि० वि० लाचार या विवश होकर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाचिकेत					 : | पुं० [सं० नचिकेतस्+अण्] १. अग्नि। २. नचिकेता (ऋषि)। | 
			
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				| ना-चीज					 : | वि० [फा० नाचीज] १. जिसकी गिनती किसी चीज में न हो अर्थात् तुच्छ और हीन। २. निकम्मा या रद्दी। विशेष–कभी-कभी वक्त इसका प्रयोग अति नम्रता प्रदर्शित करने के लिए अपने संबंध में भी करता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाचीन					 : | पुं० [सं०] १. एक प्राचीन देश। २. उक्त देश का निवासी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाज					 : | पं० [हिं० अनाज] १. अनाज। अन्न। २. भोजन की सामग्री। खाद्य पदार्थ। पुं० [फा० नाज] १. आकृष्ट करने या लुभाने के लिए दिखाये जानेवाले कोमल हाव-भाव। चोचला। ठसक। नखरा। मुहा०–(किसी के) नाज उठाना=किसी को प्रसन्न रखने के लिए बिना रुष्ट हुए उसके चोचले या नखरे सहना। पद–नाज-अदा, नाज-नखरा। २. किसी की वह देख-रेख जो बहुत दुलार, प्यार, लाड़ या सम्मान से की जाय। जैसे–यह लड़का बहुत नाज (या नाजों) से पाला हुआ है। ३. ऐसा अभिमान या गर्व जो साधारण होने के सिवा प्रशंसनीय या वांछनीय भी हो। जैसे–हमें अपने मुल्क पर नाज है। | 
			
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				| नाज-अदा					 : | स्त्री० [फा०] अंगभंगी। (दे०) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाज-नख़रा					 : | पुं० [फा०] किसी को आकृष्ट करने के लिए कुछ कुछ मानपूर्वक की जानेवाली मोहक चेष्टाएँ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाज़नी					 : | वि० [फा०] सुंदर। स्त्री०=सुंदर स्त्री। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाज़-बरदारी					 : | स्त्री० [फा०] किसी के चोचले या नखरे सहन करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाजबू					 : | स्त्री० [फा०] मरुआ (पौधा और फूल)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाज़रीन					 : | पुं० बहु० [अ० नाज़िर (=दर्शक) का बहु०, शुद्ध रूप नाजिरीन] उपस्थित दर्शक-गण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाजाँ					 : | वि० [फा० नाजाँ] किसी प्रकार के गुण, विशेषता आदि का अभिमान या गर्व करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| ना-जायज					 : | वि० [फा० नाजायज़] १. जो जायज अर्थात् उचित न हो। २. जो नियम, विधि आदि के विरुद्ध हो। अवैध। | 
			
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				| नाजिम					 : | पुं० [फा० नाज़िम] १. मुसलमानी शासन में किसी प्रदेश या प्रान्त का प्रबन्ध करनेवाला अधिकारी। २. आज-कल कचहरी या न्यायालय के किसी विभाग के लिपिकों आदि का प्रधान अधिकारी। २. मंत्री। सेक्रेटरी। | 
			
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				| नाजिर					 : | वि० [अ० नाज़िर] १. देखनेवाला। दर्शक। २. देख-रेख करनेवाला। निरीक्षक। पुं० १. वह जो किसी विभाग के लिपिकों आदि का प्रधान अधिकारी हो। २. मुसलमानी शासन में अन्तःपुर, या महल की रक्षा करनेवाला अधिकारी जो हिजड़ा होता था। ३. नाचने-गानेवाली वेश्याओं का दलाल। | 
			
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				| नाजिरात					 : | स्त्री० [हिं० नाज़िर+आत (प्रत्य०)] १. नाजिर का काम, पद या भाव। २. नाजिर का कार्यालय। ३. वह दलाली जो नाजिर को नाचने-गानेवाली वेश्याओं आदि से मिलती है। | 
			
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				| नाजिरीन					 : | पुं०=नाज़रीन। | 
			
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				| नाज़िल					 : | वि० [अ० नाज़िल] १. जो ऊपर से (अर्थात् ईश्वर की ओर से) नीचे आया या उतरा हो। अवतरित। २. आया हुआ। | 
			
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				| नाजी					 : | पुं० [जर० नात्सी] १. जर्मनी का एक प्रसिद्ध राजनीतिक दल, जो अपने आप को राष्ट्रीय साम्यवादी कहता था, और जिसका पराभव दूसरे महायुद्ध में हुआ था। २. उक्त दल या सदस्य। वि० बहुत ही क्रूर। | 
			
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				| नाजीवाद					 : | पुं० [हिं०+स०] यह सिद्धान्त कि जो प्रबल या सबल हों, उन्हीं को राष्ट्र और फलतः संसार का शासन-सूत्र बलपूर्वक अपने हाथों में लेकर चलाना चाहिए। यह सिद्धांत व्यक्ति-स्वातंत्र्य और जनतंत्र का परम विरोधी है। | 
			
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				| नाजुक					 : | वि० [फा० नाजुक] [भाव० नजाकत] १. कोमल। सुकुमार। २. पतला। बारीक। महीन। गूढ़ और सूक्ष्म (भाव या विचार)। ४. इतना कोमल कि सहज में टूट-फूट जाय या बिगड़ जाय। ५. (समय) जिसमें अनिष्ट, अपकार, हानि कि विशेष संभावना हो। | 
			
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				| नाजुक-दिमाग					 : | वि० [फा०+अ०] १. जिसका दिमाग या मस्तिष्क इतना कोमल हो कि अपनी इच्छा, रुचि आदि के विपरीत होनेवाली छोटी-सी बात भी न सह सके। २. बात-बात पर चिड़चिड़ाने या बिगड़नेवाला व्यक्ति। | 
			
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				| नाजुक-बदन					 : | वि० [फा०] सुकुमार शरीरवाला। कोमलांग। पुं० १. डोरिए की तरह की एक प्रकार की (पुरानी चाल की) मलमल। २. गुल्लाला नामक पौधे और फूल का एक प्रकार। | 
			
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				| नाजुक-मिजाज					 : | वि० [फा०+अ०] १. बहुत ही कोमल और मृदु प्रकृतिवाला। २. दे० ‘नाजुक दिमाग’। | 
			
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				| ना-जेब					 : | वि० [फा० नाजेबा] १. जो देखने में उपयुक्त या ठीक न जान पड़े। अनपयुक्त। बेमेल। २. भद्दा। भोंड़ा। ३. अश्लील। | 
			
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				| नाजो					 : | स्त्री० [फा० नाज] १. चटक-मटक से रहने और नाज-नखरे दिखानेवाली स्त्री। २. कोमल और प्यारी या लाड़ली स्त्री। | 
			
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				| नाट					 : | पुं० [सं०√ नट् (नाचना)+घञ्] १. नृत्य। नाच। २. नकल। स्वाँग। ३. कर्नाटक के पास का एक प्राचीन देश। ४. उक्त देश का निवासी। ५. संगीत में, एक प्रकार का राग, जो किसी के मत से मेघराग का और किसी के मत से दीपक राग का पुत्र है। पुं० [?] काँटे, कील आदि की नोक जो चुभने पर शरीर के अंदर टूट कर रह जाती है। उदा०–चुबैक साँवरे पीय बिनु क्यों निकसहिं ते नाट।–नंददास।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| नाटक					 : | पुं० [सं०√नट्+ण्वुल–अक] १. नाट्य या अभिनय करनेवाला। नट। २. नटों या अभिनेताओं के द्वारा रंगमंच पर होनेवाला ऐसा अभिनय, जिसमें दूसरे पात्रों का रूप धरकर उनके आचरणों, कार्यों, चरित्रों, हाव-भावों, आदि का प्रदर्शन करते हैं। अभिनय। (ड्रामा) ३. वह साहित्यिक रचना, जिसमें किसी कक्ष या घटना का ऐसे ढंग से निरूपण हुआ हो कि रंग-मंच पर सहज में उसका अभिनय हो सके। ४. कोई ऐसा आचरण या व्यवहार जो शुद्ध हृदय से नहीं, बल्कि केवल दूसरों को दिखलाने या धोखे में रखने के उद्देश्य से किया जाय। जैसे–यह पंचायत क्या हुई है, उसका नाटक भर हुआ है। | 
			
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				| नाटक-शाला					 : | स्त्री०=नाट्यशाला। | 
			
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				| नाटका-देवदारु					 : | पुं० [नाटक+देवदारु] दक्षिण भारत में होनेवाला एक प्रकार का छोटा पेड़, जिसकी लकड़ी से एक प्रकार का तेल निकलता है। इसकी फलियों का साग बनता है और फल गरीब लोग दुर्भिक्ष के समय खाते हैं। | 
			
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				| नाटकावतार					 : | पुं० [सं० नाटक-अवतार, ष० त०] किसी नाटक में अभिनय के अंतर्गत होनेवाला दूसरे नाटक का अभिनय। | 
			
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				| नाटकिया					 : | पुं० [सं० नाटक+हिं० ईया (प्रत्य०)] १. नाटक में अभिनय करनेवाला। २. बहुरूपिया। | 
			
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				| नाटकी					 : | स्त्री० [सं०] इंद्रसभा। पुं० [सं० नाटक] नाटक करके जीविका उपार्जन करनेवाला व्यक्ति। नाटकिया। वि०=नाटकीय। | 
			
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				| नाटकीय					 : | वि० [सं० नाटक+छ–ईय] १. नाटक-संबंध। नाटक का। २. बहुत ही आकस्मिक रूप से, परन्तु कुशलता और चतुरता पूर्वक किया जानेवाला। | 
			
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				| नाटना					 : | अ०=नटना (पीछे हटना या मुकरना)। | 
			
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				| नाट वसंत					 : | पुं० [सं०] संगीत में एक प्रकार का संकर राग। | 
			
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				| नाटा					 : | वि० [सं० नत=नीचा] [स्त्री० नाती] १. जिसकी ऊँचाई या डील साधारण से कम हो। छोटे कद या डील का। कम ऊँचा या कम लंबा। जैसे–नाटा आदमी, नाटा पेड़। पुं० कम ऊँचा या छोटे डील का बैल। | 
			
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				| नाटा करंज					 : | पुं० [हिं० नाटा+करंज] एक प्रकार का करंज। | 
			
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				| नाटाभ्र					 : | पुं० [सं०] तरबूज। | 
			
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				| नाटार					 : | पुं० [सं० नटी+आरक्] अभिनेत्री का पुत्र। | 
			
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				| नाटिका					 : | स्त्री० [सं० नाटक+टाप्, इत्व] कल्पित कथावाला एक प्रकार का दृश्य-काव्य जिसका नायक राजा, नायिका कनिष्ठा तथा अधिकतर पात्र राज-कुल के होते हैं। इसमें स्त्री-पात्रों और नृत्य-गीत आदि की बहुलता होती है। | 
			
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				| नाटित					 : | भू० कृ० [सं०√ नट्+णिच्+क्त] (नाटक) जिसका अभिनिय हो चुका हो। अभिनीत। पुं० अभिनय। | 
			
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				| नाट्य					 : | पुं० [सं० नट+ञ्य] १. नट का काम या भाव। २. नाचने-गाने, बाजे आदि बजाने और अभिनय करने का काम। ३. अभिनय आदि के रूप में किसी की नकल करने या स्वाँग भरने की क्रिया या भाव। ४. ऐसा नक्षत्र जिसमें नाट्य या नाटक का आरंभ शुभ माना जाता हो। | 
			
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				| नाट्यकार					 : | पुं० [सं० नाट्य√ कृ (करना)+अण्] १. नाटक करनेवाला। नट। २. नाटक में अभिनय करनेवाला व्यक्ति। अभिनेता। ३. नाटककार। | 
			
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				| नाट्यधर्मिता					 : | स्त्री० [सं० नाट्य-धर्म, ष० त०+ठन्–इक] वह पुस्तिका जिसमें अभिनय-संबंधी निर्देश हों। | 
			
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				| नाट्य-प्रिय					 : | पुं० [ब० स०] महादेव। | 
			
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				| नाट्य-मंदिर					 : | पुं० [ष० त०] नाट्यशाला। | 
			
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				| नाट्य-रासक					 : | पुं० [सं०] एक प्रकार का उपरूपक दृश्य-काव्य जिसमें एक ही अंक होता है। इसका नायक उदात्त, नायिका वासक-सज्जा और उपनायक पीठमर्द होता है। इसमें अनेक प्रकार की गीत और नृत्य होते हैं। | 
			
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				| नाट्य-शाला					 : | स्त्री० [सं० ष० त०] विशिष्ट आकार-प्रकार का बना हुआ वह भवन या मकान जिसमें एक ओर अभिनय या नाटक करने का मंच और दूसरी ओर दर्शकों के बैठने के लिए स्थान होता है। रंग-शाला। | 
			
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				| नाट्य-शास्त्र					 : | पुं० [ष० त०] वह शास्त्र जिसमें नाचने-गाने और अभिनय आदि करने की कलाओं का विवेचन होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाट्यागार					 : | पुं० [नाट्य-आगार, ष० त०] नाट्यशाला। | 
			
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				| नाट्यालंकार					 : | [पुं० नाट्य-अलंकार, ष० त०] अभिनय या नाटक का सौंदर्य बढ़ानेवाली वे विशिष्ट बातें, जिन्हें साहित्यकारों ने उनके अलंकार के रूप में माना है। विशेष–साहित्य-दर्पण में ये ३३ नाट्यालंकार कहे गए हैं–आशीर्वाद, अक्रेंद, कपट, अक्षमा, गर्व, उद्यम, आश्रय, उत्प्रासन, स्पृहा, क्षोभ, पश्चात्ताप, उपयति, आशंसा, अध्यवसाय, विसर्प, उल्लेख, उत्तेजन, परीबाद, नीति, अर्थ विशेषण, प्रोत्साहन, सहाय्य, अभिमान, अनुवृत्ति, उतकीर्तन, यांचा, परिहार, निवेदन, पवर्तन, आख्यान, युक्ति, प्रहर्ष और शिक्षा। | 
			
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				| नाट्योक्ति					 : | स्त्री० [नाट्य-उक्ति, स० त०] भारतीय नाट्यशास्त्र में विशिष्ट पात्रों के लिए बतलाई हुई कुछ विशिष्ट रूप की उक्तियाँ या कथन-प्रकार; यथा–ब्राह्मणों को ‘आर्य’ राजा को ‘देव’ पति को ‘आर्यपुत्र’ आदि कहकर संबोधित करने का विधान। | 
			
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				| नाट्योचित					 : | वि० [नाट्य-उचित, ष० त०] १. जो नाट्य या नाटक के लिए उचित या उपयुक्त हो। २. जिसका अभिनय हो सके। | 
			
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				| नाठ					 : | पुं० [सं० नष्ट, प्र० नट्ठ] १. नाश। ध्वंस। २. अभाव। कमी। ३. ऐसी संपत्ति, जिसका कोई अधिकारी या स्वामी न रह गया हो। मुहा०–नाठ पर बैठना=ऐसी संपत्ति का अधिकार पाना, जिसका कोई स्वामी न रह गया हो। | 
			
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				| नाठना					 : | स० [सं० नष्ट, प्रा० नष्ट] नष्ट करना, ध्वस्त करना। अ० नष्ट होना। अ० दे० ‘नटना’। | 
			
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				| नाठा					 : | पुं० [हिं० नाठ] वह जिसके आगे-पीछे कोई वारिस न रह गया हो। पुं० [सं० नासिका] नाक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| नाड़					 : | स्त्री० [सं० नाल, डस्म लः] १. ग्रीचा। गर्दन। २. दे० ‘नार’। ३. दे० ‘नार’। | 
			
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				| नाड़क					 : | वि० [सं०] नली या नल के आकार का और लंबा। पुं० एक प्रकार की बड़ी और बहुत लंबी मछली। | 
			
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				| नाडा़					 : | पुं० [सं० नाड़] १. सूत की वह मोटी डोरी, जिससे स्त्रियाँ घाघरा बाँधती हैं। इजारबंद। नीबी। मुहा०–नाड़ा खोलना=किसी के साथ संभोग करने के लिए उद्यत होना। (बाजारू) २. वह पीला या लाल रँगा हुआ गंडेदार सूत जिसका उपयोग देव-पूजन आदि में होता है। मौली। मुहा०–नाड़ा बाँधना=किसी को कोई कला या विद्या सिखलाने के लिए अपना शिष्य बनाना। ३. पेट की अंदर की वह नली जिससे होकर मल आँतों की ओर आता है। मुहा०–नाड़ा उखड़ना उक्त नली का अपने स्थान से कुछ खिसक जाना, जिसके फलस्वरूप दस्त आने लगते हैं। नाड़ा बैठाना=झटके आदि से उस नली को फिर से अपने स्थान पर लाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाडिंधम					 : | वि० [सं० नाडी√ध्या (शब्द)+खश्, मुम् धमादेश ह्रस्व] १. नली के द्वारा हवा फूँकनेवाला। २. नाड़ियों को हिला देनेवाला। ३. श्वास-प्रश्वास की क्रिया को तीव्र करनेवाला। पुं० सुनार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाडिंधय					 : | वि० [सं० नाड़ी√धे (पीना)+खश्, मुम, ह्रस्व] नाड़ी के द्वारा पान करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाडि					 : | स्त्री० [सं०√नड्+णिच्+इन्] १. नाड़ी। २. नली। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाड़िक					 : | पुं० [सं० नाडि+कन्] १. एक प्रकार का साग जिसे पटुआ भी कहते हैं। २. समय का घटिका या दंड नामक मान। ३. दे० नाड़ी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाड़िका					 : | स्त्री० [सं० नाड़ी+कन्०–टाप्, ह्रस्व] एक घड़ी का समय। घटिका। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाड़िकेल					 : | पुं० [सं०=नारिकेल+रस्य डः] नारियल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाड़िपत्र					 : | पुं० [सं०] एक प्रकार का साग। पटुआ नामक साग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाड़िया					 : | पुं० [हिं० नाड़ी] नाड़ी देखकर रोग का पता लगानेवाला अर्थात् वैद्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाड़ी					 : | स्त्री० [सं० नाड़ि+ङीष्] १. नली। २. शरीर के अंदर मास और तंतुओं से मिलकर भी हुई बहुत-सी नालियों में से कोई या हर एक जो हृदय से शुद्ध रक्त लेकर सब अंगों में पहुँचाती है। धमनी। ३. कलाई पर की वह नाड़ी, जिसकी गति आदि देखकर रोगी की शारीरिक अवस्था विशेषतः ज्वर आदि का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। (वैद्य) मुहा०–नाड़ी चलना=कलाई की नाड़ी में स्पंदन या गति होना, जो जीवित रहने का लक्षण है। नाड़ी छूटना=उक्त नाड़ी का स्पंदन बंद हो जाना जो मृत्यु हो जाने का सूचक होता है। नाड़ी देखने=कलाई की नाड़ी पर उंगलियाँ रखकर उनकी गति देखना और उसके आधार पर रोग का निदान करना। (वैद्यों की परिभाषा) नाड़ी धरना या पकड़ना=नाड़ी देखना। नाड़ी बोलना=नाड़ी में गति या स्पंदन होता रहना। जैसे–अभी नाड़ी बोल रही है, अर्थात् अभी शरीर में प्राण हैं। ४. बंदूक की नली। ५. काल का एक मान जो 6 क्षणों का होता है। ६. गाँडर दूब। ७. वंशपत्री। ८. कपट। छल। ९. फोड़े आदि का मुँह। १॰. फलित ज्योतिष में, वैवाहिक गणना में काम आनेवाले चक्रों में बैठाये हुए नक्षत्रों का समूह। ११. तृण या वनस्पति का पोला डंठल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाड़ीक					 : | पुं० [सं० नाड़ी√कै (मालूम पड़ना)+क] एक प्रकार का साग। पटुआ साग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाड़ी-कलापक					 : | पुं० [सं० ब० स०, कप्] सर्पाक्षी का भिड़नी नाम की घास। | 
			
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				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाड़ीका					 : | स्त्री० [सं० नाड़ी+कन्–टाप्] श्वास-नलिका। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाड़ी-कूट					 : | पुं० [सं० ब० स०] नाड़ी-नक्षत्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाड़ी-केल					 : | पुं० [सं०=नारिकेल, पृषो० सिद्धि] नारियल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाड़ीच					 : | पुं० [सं० नाड़ी√चि (चयन)+ड] पटुआ (साग)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाड़ी-चक्र					 : | पुं० [सं०] १. हठयोग के अनुसार नाभिदेश में कल्पित एक अंडाकार गाँठ, जिससे निकलकर सब नाड़ियाँ फैली हुई मानी गई हैं। २. फलित ज्योतिष में वह चक्र जो वैवाहिक गणना के लिए बनाया जाता है और जिसके भिन्न-भिन्न कोष्ठों में भिन्न-भिन्न नक्षत्रों के नाम लिखे होते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाड़ी-चरण					 : | पुं० [सं० ब० स०] पक्षी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाड़ी-जंघ					 : | पुं० [सं० ब० स०] १. महाभारत के अनुसार एक बगला जो कश्यप का पुत्र, ब्रह्मा का अत्यंत प्रिय-पात्र और दीर्घ-जीवी था। २. एक प्राचीन ऋषि। ३. कौआ। | 
			
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				| नाड़ी-तरंग					 : | पुं० [सं० ब० स०] १. काकोल। २. हिंडक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाड़ी-तिक्त					 : | पुं० [तृ० त०] नेपाली नीम। नेपाल निंब। | 
			
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				| नाड़ी-देह					 : | वि० [ब० स०] अत्यंत दुबला-पतला। पुं० शिव का एक द्वारपाल। | 
			
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				| नाड़ी-नक्षत्र					 : | पुं० [मध्य० स०] फलित ज्योतिष में, वैवाहिक गणना के काम के लिए बनाए हुए कल्पित चक्रों में स्थित नक्षत्र। | 
			
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				| नाड़ी मंडल					 : | पुं० [सं०] विषुवत् रेखा। (दे०) | 
			
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				| नाड़ी-यंत्र					 : | पुं० [उपमि० स०] एक प्रकार का प्राचीन उपकरण, जिससे नाड़ियों की चीर-फाड़ की जाती थी और उनमें घुसी हुई चीजें निकाली जाती थीं। (सुश्रुत) | 
			
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				| नाड़ी-वलय					 : | पुं० [ष० त०] समय का ज्ञान करानेवाली एक प्रकार का प्राचीन उपकरण। | 
			
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				| नाड़ी-व्रण					 : | पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का घाव जो नली के छेद के समान होता है तथा जिसमें से मवाद निकलता रहता है। नासूर। (साइनस) | 
			
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				| नाड़ी-शाक					 : | पुं० [मध्य० स०] पटुआ (साग)। | 
			
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				| नाड़ी-हिंगु					 : | पुं० [मध्य० स०] १. एक तरह का वृक्ष जिसके गोद में हींग की सी गंध होती है। २. उक्त वृक्ष का गोंद जो ओषधि के काम आता है। | 
			
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				| नाडूदाना					 : | पुं० [देश०] मैसूर राज्य में होनेवाले एक तरह के बैल, जो कद में छोटे होने पर भी अधिक परिश्रमी होते हैं। | 
			
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				| नाणाक					 : | पुं० [सं०√अण् (शब्द)+ण्वल्–अक, न० त०] १. धातु। २. निष्क नाम का पुराना सिक्का। ३. सिक्का। | 
			
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				| नात					 : | स्त्री० [अ० नअत] १. मुहम्मद साहब की छंदोबद्ध स्तुति। २. प्रशंसा। स्तुति। पुं० १.=नाता (संबंध)। २.=नातेदार (संबंधी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नातका					 : | पुं० [अ० नातिक] बोलने की शक्ति। वाक्-शक्ति। मुहा०–(किसी का) नातका बंद करना=वाद-विवाद में निरुत्तर और परास्त करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| ना-तमाम					 : | वि० [फा०] १. जो अभी पूरा न हुआ हो। अपूर्ण। २. जिसका कुछ अंश अभी पूरा होने को बाकी हो। अधूरा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नातरि					 : | अव्य०=नातरु। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नातरु					 : | अव्य० [हिं० न+तो+अरु] नहीं तो। अन्यथा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नातवाँ					 : | वि० [फा० नातुवाँ] [भाव० नातवानी] शारीरिक दृष्टि से अशक्त। दुर्बल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नातवानी					 : | स्त्री० [फा० नातुवानी] शारीरिक अशक्तता। दुर्बलता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाता					 : | पुं० [सं० ज्ञाति, प्रा०, णाति, हिं०, नात] १. मनुष्यों में होनेवाला वह पारिवारिक लगाव या संबंध जो रक्त-संबंध के कारण अथवा विवाह आदि सूत्रों के कारण स्थापित होता है। रिश्ता। जैसे–वे नाते में हमारे भतीजे होते हैं। पद–नाता-पोता, नातेदार। (दे०) २. वैवाहिक संबंध का निश्चय। जैस–अभी उनके लड़के का नाता कहीं पक्का नहीं हुआ है। ३. किसी प्रकार का लगाव या संबंध। जैसे–प्यार या मुहब्बत का नाता, दोस्ती का नाता। क्रि० प्र०–जोड़ना।–तोड़ना।–लगाना। | 
			
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				| ना-ताकत					 : | वि० [फा० ना०+अ० ताकत] [भाव० नाताकती] जिसमें ताकत न हो। अशक्त। | 
			
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				| ना-ताकती					 : | स्त्री० [फा० ना+अ० ताकत+ई (प्रत्य०)] नाताकत होने की अवस्था या भाव। कमजोरी। दुर्बलता। | 
			
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				| नाता-गोता					 : | पुं० [हिं० नाता+गोता] वंश और गोत्र के कारण होनेवाला पारस्परिक संबंध। | 
			
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				| नातिन					 : | स्त्री० हिं० ‘नाती’ का स्त्री०।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| नातिनी					 : | स्त्री०=नातिन। | 
			
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				| नाती					 : | पुं० [सं० नप्तृ] [स्त्री० नतिनी, नातिन] १. लड़की का लड़का। बेटी का बेटा। २. लड़के का लड़का। उदा०–उत्तम कुल पुलस्त्य का नाती।–तुलसी। | 
			
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				| नाते					 : | अव्य० [हिं० नाता] १. लगाव या संबंध के विचार से। २. किसी प्रकार के संबंध के विचार से। ब्याज से। जैसे–चलो इसी नाते उनका आना-जाना तो शुरू हुआ। ३. वास्ते। हेतु। पद–किस नाते=किस उद्देश्य से। किस लिए। | 
			
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				| नातेदार					 : | वि० [हिं० नाता+दार] [भाव० नातेदारी] (व्यक्ति) जिससे कोई नाता हो। रिश्तेदार। संबंध। | 
			
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				| नात्र					 : | पुं० [सं०√नम् (प्रणाम करना)+ष्ट्रन्, आत्व] शिव। | 
			
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				| नाथ					 : | पुं० [सं०√नाथ (ऐश्वर्य)+अच्] १. प्रभु। स्वामी। जैसे–दीनानाथ, विश्वनाथ। २. अधिपति। मालिक। ३. विवाहिता स्त्री का पति। ४. शिव। ५. आदिनाथ और मत्स्येन्द्रनाथ के अनुयायियों या गोरखपंथियों का संप्रदाय। ६. उक्त संप्रदाय के अनुयायी साधुओं के नाम के अंत में लगनेवाली उपाधि। ७. उक्त संप्रदाय के अनुयायियों के अनुसार वह सबसे बड़ा योगीश्वर जो सब बातों से अलिप्त रहकर मोक्ष का अधिकारी हो चुका हो। ८. साँप पालनेवाले एक प्रकार के मदारी। स्त्री० [सं० नाथ या हिं० नाथना] १. नाथने की क्रिया या भाव। २. वह रस्सी जो ऊँटों, बैलों, आदि के नथनों में उन्हें वश में रखने के लिए डाली या बाँधी जाती है। स्त्री०=नथ (नाक में पहनने की)। | 
			
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				| नाथता					 : | स्त्री० [सं० नाथ+त्व]=नाथता। | 
			
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				| नाथ-द्वारा					 : | पुं० [सं० नाथद्वार] उदयपुर के अंतर्गत वल्लभ-संप्रदाय के वैष्णवों का एक प्रसिद्ध तीर्थ, जहाँ श्रीनाथजी की मूर्ति स्थापित है। | 
			
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				| नाथना					 : | स० [सं० नस्तन] १. कुछ विशिष्ट पशुओं के नथने में छेद करना। जैसे–ऊँट या बैल नाथना। २. इस प्रकार किए हुए छेद में लंबी रस्सी पहनाना जो लगाम का काम करती हो तथा जिससे पशु को वश में रखा जाता है। मुहा०–नाक पकड़कर नाथना=बलपूर्वक वश में करना ! ३. किसी चीज के सिरे में छेद करके उसे डोरे, रस्सी आदि से बाँधना। ४. कई चीजें एक साथ रखने की लिए उन में उक्त प्रकार की क्रिया करना। नत्थी करना। ५. लड़ी के रूप में गूँथना, जोड़ना या पिरोना। संयो० क्रि०–डालना।–देना। | 
			
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				| नाथ-पंथ					 : | पुं० [सं०] गुरु गोरखनाथ और उनके शिष्यों का चलाया हुआ एक संप्रदाय जिसकी ये बारह शाखाएँ हैं–सत्यनाथी, घर्मनाथी, रामपंथ, नटेश्वरी, कन्हण, कपिलानी, वैरागी, माननाथी, आईपंथ, पागलपंथ, धजपंथ और गंगानाथी। ये सभी शिव के भक्त हैं। | 
			
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				| नाथपंथी					 : | पुं० [सं०] नाथ पंथ का अनुयायी। | 
			
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				| नाथवान् (वत्)					 : | वि० [सं० नाथ+मतुप्] पराधीन। | 
			
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				| नाथ-हरि					 : | पुं० [सं० नाथ√ह् (हरण)+इन] पशु। | 
			
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				| नाद					 : | पुं० [सं०√नद् (शब्द)+घञ्] १. आवाज। शब्द। २. जोर की वह आवाज या ध्वनि, जो कुछ समय तक बराबर होती रहे। ३. वेदांत में, विश्व में उत्पन्न होनेवाला वह क्षोभ जो उपाधियुक्त चैतन्य से उपाधियुक्त शक्ति का संयोग होने के समय होता है। इसे ‘परनाद’ भी कहते हैं। ४. हठयोग में, अंतरात्मा में होती रहनेवाली एक प्रकार की सूक्ष्म ध्वनि या शब्द जो एकाग्र चित्त होकर अभ्यास करने पर सुनाई पड़ती है और जिसे सुनते रहने से चित्त अंत में नाद-रूपी ब्रह्म में लीन हो जाता है। ५. वर्णों का अव्यक्त मूल-रूप। ६. भाषा-विज्ञान और व्याकरण में वर्णों के उच्चारण में होनेवाला एक विशेष प्रकार का प्रयत्न जिसमें कंठ से वायु का स्वर निकालने के लिए न तो उसे बहुत फैलाना ही पड़ता है और न बहुत सिकोड़ना ही पड़ता है। ७. गाना-बजाना। संगीत। पद–नाद-विद्या=संगीत शास्त्र। ८. कुछ-कुछ अनुस्वार के समान उच्चारित होनेवाला वर्ण या स्वर जो अर्द्ध-चंद्र पर बिंदु देकर इस प्रकार लिखा जाता है। ९. सिंगी नामक बाजा। उदा०–सेली नाद बभूत न बटवो अजूँ मुनी मुख खोल।–मीराँ। | 
			
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				| नादना					 : | अ० [सं० नाद] १. ध्वनि या शब्द होना। २. बजना। ३. गरजना, चिल्लाना या शोर मचाना। स० १. ध्वनि या शब्द उत्पन्न करना। २. बजाना। अ० [सं० नंदन] १. दीए की लौ का हवा लगने से रह-रहकर हिलना। २. प्रसन्नतापूर्वक इधर-उधर हिलना-डोलना। उदा०–उठित दिया लौ, नादि हिर लिये तिहारो नाम।–बिहारी। ३. लहराना। | 
			
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				| नाद-मुद्रा					 : | स्त्री० [सं० मध्य० स०] तंत्र में हाथ की वह मुद्रा जिसमें दाहिने हाथ का अँगूठा सीधा और खड़ा रखा जाता है और मुट्ठी बंधी रहती है। | 
			
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				| नादली					 : | स्त्री० [अ० नादे अली] संग यशब नामक पत्थर की वह चौकोर टिकिया जिसे रोग या बाधा दूर करने के लिए गले में या बाँह पर पहनते हैं। हौल-दिली। (दे०) | 
			
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				| नादान					 : | वि० [फा०] [भाव० नादानी] १. अवस्था में कम होने के कारण जिसे समझ न आई हो। ना-समझ। २. जो अकुशल या अनाड़ी हो। ३. मूर्ख। | 
			
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				| ना-दानिस्ता					 : | क्रि० वि० [फा० नादानिस्तः] १. बिना जाने या समझे हुए। २. अनजान में। | 
			
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				| नादानी					 : | स्त्री० [फा०] १. नादान होने की अवस्था या भाव। २. अकुशलता। अनाड़ीपन। ३. मूर्खता या मूर्खतापूर्ण कोई कार्य। | 
			
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				| नादार					 : | वि० [फा०] [भाव० नादारी] जिसके पास कुछ न हो। परम निर्धन। कंगाल। पुं० गंजीफे के खेल में; बिना रंग या बिना मीर की बाजी। | 
			
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				| नादारी					 : | स्त्री० [फा०] ‘नादार’ होने की अवस्था या भाव। निर्धनता। गरीबी। | 
			
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				| नादि					 : | वि० [सं० नादिन] १. शब्द करनेवाला। २. गरजनेवाला। | 
			
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				| नादित					 : | भू० कृ० [सं० नाद+इतच्] १. जो नाद से युक्त किया गया हो अथवा हुआ हो। २. शब्द करता हुआ। बजता हुआ। ३. गूँजता हूँ। | 
			
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				| नादिम					 : | वि० [अ०] [भाव० नदामत] १. लज्जित। शर्मिंदा। २. पश्चात्ताप करनेवाला। | 
			
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				| नादिया					 : | पुं० [सं० नंदी] १. नंदी। २. वह विकृत, विलक्षण, या अधिक अंग या अंगोवाला साँड़, जिसे जोगी अपने साथ लेकर भीख माँगने निकलते हैं। | 
			
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				| नादिर					 : | वि० [फा० नादिर] १. विचित्र। विलक्षण। २. उत्तम। श्रेष्ठ। | 
			
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				| नादिरशाह					 : | पुं० [अ०] पारस (फारस) देश का एक प्रसिद्ध राजा जिसने मुहम्मद शाह के समय में भारत में आक्रमण किया था। विशेष–यह अपनी क्रूरता के लिए प्रसिद्ध है। इसने एक छोटी-सी बात पर क्रुद्ध होकर दिल्ली के लाखों निवासियों की हत्या करवा डाली थी। | 
			
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				| नादिरशाही					 : | स्त्री० [हिं० नादिरशाह] १. नादिरशाह का वह बर्बरता पूर्ण व्यवहार जो उसने दिल्ली में किया था और जिसके फल-स्वरूप लाखों आदमी मारे गए थे। २. ऐसा आचरण, व्यवहार या शासन, जो बहुत ही निर्दयतापूर्ण और मनमाने ढंग से किया जाय। वि० वैसा ही उग्र, कठोर और मनमाना, जैसा दिल्ली में नादिरशाह का आचरण या व्यवहार था। नादिरी। | 
			
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				| नादिरी					 : | वि० [अ०] १. नादिरशाह-संबंधी। २. अत्याचार और क्रूरतापूर्ण। स्त्री० १. एक प्रकार की कुरती या सदरी जो मुगल बादशाहों के समय में पहनी जाती थी। पुं० गंजीफे का वह पत्ता जो खेल के समय निकालकर अलग रख दिया जाता है। मुहा०–(किसी पर) नादिरी चढ़ाना=बहुत बुरी तरह से मात करना या हराना। | 
			
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				| नादिहंद					 : | वि० [फा०] जो किसी की चीज या धन लेकर जल्दी लौटाता न हो। देन लौटाने में बराबर टाल-मटोल करता रहनेवाला। | 
			
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				| नादिहंदी					 : | स्त्री० [फा०] नादिहंद होने की अवस्था या भाव। देन लौटाने में टाल मटोल करना। | 
			
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				| नादी					 : | वि० [सं० नादिन्] [स्त्री० नादिनी] १. नाद या शब्द-संबंधी। २. नाद या शब्द करनेवाला। ३. बजानेवाला। | 
			
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				| नादेअली					 : | स्त्री० दे० ‘नादली’। | 
			
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				| नादेय					 : | वि० [सं० नदी+ढक्–एय] [स्त्री० नादेयी] १. नदी-संबंधी। २. नदी में होनेवाला। पुं० १. सेंधा नमक। २. सुरमा। ३. जलबेंत। ४. काँस नामक घास। | 
			
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				| नादेयी					 : | स्त्री० [सं० नादेय+ङीष्] १. जलबेंत। २. भुईं जामुन। ३. नारंगी। ४. वैजयन्ती। ५. जपा। अड़हुल। ६. अग्निमंथ। अँगेथू। वि० सं० ‘नादेय’ का स्त्री०। | 
			
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				| नादेहंद					 : | वि०=नादिहंद। | 
			
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				| नाद्य					 : | वि० [सं० नदी+ढ्यण्] नदी-संबंधी। कमल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाधन					 : | स्त्री० [हिं० नाधना] १. नाधने की क्रिया या भाव। २. चरखे के तकले में लगा हुआ गत्ते, चमड़े आदि का वह गोल टुकड़ा जो तागे को इधर-उधर होने से रोकता है। | 
			
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				| नाधना					 : | स० [सं० नद्ध] १. कोई कार्य अनुष्ठित या आरंभ करना। ठानना। २. दे० ‘नाथना’ (सभी अर्थों में)। | 
			
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				| नाधा					 : | पुं० [हिं० नाधना] वह रस्सी या चमड़े की पट्टी जिससे जुए में कोल्हू, हल आदि बाँधे जाते हैं। पुं० [?] वह स्थान जहाँ जलाशय से पानी निकालकर फेंका जाता है और जहाँ से नालियों में होता हुआ वह सिंचाई के लिए खेतों में जाता है। | 
			
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				| नान					 : | स्त्री० [फा०] १. मोटी बड़ी रोटी। पद–नान-नुफका=रोटी और कपड़ा; अर्थात् खाने-पीने और पहनने आदि की सामग्री। २. तंदूर में पकाई जानेवाली एक प्रकार की मोटी खमीरी रोटी। ३. खमीरी रोटी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नानक					 : | वि० [पं० नानका=ननिहाल] [स्त्री० नानकी] जो ननिहाल में उत्पन्न हुआ हो। पुं० कबीर के समकालीन एक प्रसिद्ध निर्गुण ज्ञानी भक्त जो सिक्ख संप्रदाय के आदि गुरु माने जाते हैं। (वि० सं० १5२6-97) | 
			
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				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नानक-पंथ					 : | पुं० [हिं०] गुरु नानक का चलाया हुआ सिक्ख-संप्रदाय। | 
			
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				| नानक-पंथी					 : | वि० [हिं० नानक+पंथ] १. नानक पंथ-संबंधी। २. नानक का अनुयायी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नानकशाह					 : | पुं०=नानक (महात्मा)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नानकशाही					 : | वि०=नानकपंथी। | 
			
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				| नानकार					 : | स्त्री० [फा० नान=रोटी+कार (प्रत्य०)] वह जमीन जो सेवक को पुरस्कार रूप में जीविका-निर्वाह के लिए दी जाती थी। | 
			
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				| नानकीन					 : | पुं० [चीनी नानकिङ्] चीन के नानकिङ् नगर में बननेवाला एक तरह का बढ़िया सूती कपड़ा, जो अब सभी देशों में बनने लगा है और ‘मारकीन’ के नाम से प्रसिद्ध है। | 
			
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				| नान-ख़ताई					 : | स्त्री० [फा० नान=रोटी+खता (एक प्रदेश का नाम)] २. खता नामक प्रदेश में बननेवाली एक प्रकार की मीठी खस्ता रोटी। २. मैदे, सूजी आदि का बना हुआ एक तरह का मीठा खस्ता पकवान। | 
			
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				| नानबाई					 : | पुं० [फा० नान+बा=बेचनेवाला] वह जो नान अर्थात् रोटियाँ बेचता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नानस					 : | स्त्री० [?] ननिया सास का संक्षिप्त रूप। | 
			
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				| नाना					 : | वि० [सं० न०+नाञ्] [भाव० नानत्व] १. अनेक प्रकार के। बहुत तरह के। विविध। (बहु०) २. अनेक। बहुत। पुं० [देश०] [स्त्री० नानी] माता का पिता या मातामह। स० [सं० नमन] १. नवाना। झुकाना। २. प्रविष्ठ करना। घुसाना। ३. अन्दर रखना। डालना। ४. संयो० क्रि० के रूप में, पूरा करना। उदा०–अस मनमथ महेश कै नाई।–तुलसी। पुं० [अ० नऽनऽ] पुदीना। जैसे–अर्कनाना=पुदीने का अरक। | 
			
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				| नानाकंद					 : | पुं० [सं०] पिंडालु। | 
			
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				| नानात्मवादी (दिन्)					 : | वि० [सं० नाना-आत्मन्, कर्म० स०, नानात्मन्√वद् (बोलना)+ णिनि] सांख्य दर्शन का अनुयायी जो यह मानता हो कि व्यक्ति की आत्मा विश्वात्मा से अलग अस्तित्व रखती है। | 
			
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				| नानार्थ					 : | वि० [सं० नाना-अर्थ, ब० स०] १. (शब्द) जिसके अनेक अर्थ हों। २. (वस्तु) जो अनेक कामों में प्रयुक्त हो सके। | 
			
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				| नानी					 : | स्त्री० [हिं० नाना का स्त्री०] माँ की माँ। माता की माता। मातामही। मुहा०–नानी मरना या मर जाना=(क) इतना उदास, खिन्न या दुःखी हो जाना कि मानों नानी मर गई हो। (ख) बहुत अधिक विपत्ति या झंझट में पड़ना। नानी याद आना=ऐसी विपत्ति या संकट में पड़ना कि मानों बच्चों की तरह नानी की सहायता या संरक्षण की अपेक्षा कर रहे हो। (परिहास और व्यंग्य) पद–नानी की कहानी=पुरानी और व्यर्थ की लंबी-चौड़ी बातें। | 
			
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				| ना-नुकर					 : | पुं० [हिं० न+करना] नहीं, ‘नहीं’ कहने की क्रिया या भाव। इन्कार। | 
			
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				| नानुसारी					 : | वि० [हिं० न+अनुसारी] अनुसरण न करनेवाला। | 
			
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				| नान्ह					 : | वि० [प्रा० लान्हा] १. नन्हा। छोटा। २. तुच्छ या हीन कुल अथवा वंश का। ३. पतला। बारीक। महीन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) मुहा०–नान्ह कातना=ऐसा बारीक या सूक्ष्म काम करना जिसमें बहुत अधिक परिश्रम और समझदारी की आवश्यकता हो। | 
			
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				| नान्हक					 : | पुं०=दे० ‘नानक’। | 
			
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				| नान्हरिया					 : | वि०=नान्हा (नन्हा)। | 
			
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				| नान्हा					 : | वि० दे० ‘नन्हा’। २. दे० ‘नान्ह’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाप					 : | स्त्री० [हिं० नापना] १. नापने की क्रिया या भाव। किसी पदार्थ के विस्तार का निर्धारण। जैसे–यह थान नाप में पूरा बीस गज उतरेगा। पद–नाप-जोख, नाप-तौल। (दे०) २. किसी चीज की ऊँचाई, लंबाई, चैड़ाई, गहराई-मोटाई आदि के विस्तार का वह परिणाम जो उसे नापने पर जाना जाता या निकलता है। माप। जैसे–इस जमीन की नाप १00 गज लंबी और चौड़ाई 50 गज है। ३. वह निर्दिष्ट परिमाण जिसे इकाई मानकर कोई चीज नापी जाती है। जैसे–कपड़े के गज की नाप 36 इंच की और लकड़ी के गज की नाप २4 इंच की होती है। ४. वह उपकरण जो उक्त प्रकार की इकाई का मानक प्रतीक हो और जिससे चीजें नापी जाती हों। जैसे–कपड़ा या लकड़ी नापने का गज, तेल या दूध नापने का नपना या नपुआ। | 
			
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				| नापत					 : | स्त्री० १.=नाप। २.=नपत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाप-जोख़					 : | स्त्री० [हिं० नापना+जोखना] १. किसी चीज की लंबाई-चौड़ाई आदि नापने अथवा किसी चीज या बात का गुरुत्व, मान, शक्ति आदि आँकने अथवा समझने की क्रिया या भाव। जैसे–(क) आज-कल देहातों में खेतों की नाप-जोख हो रही है। (ख) किसी से लड़ाई छेड़ने (या ठानने) से पहले उसके बल, साधनों आदि की नाप-जोख कर लेनी चाहिए। २. दे० ‘नाप-तौल’। विशेष–साधारण बोल-चाल में ‘नाप-जोख’ पद का प्रयोग मूर्त पदार्थों के सिवा अमूर्त तत्त्वों या बातों के संबंध में भी देखने में आता है, जैसे कि ऊपर के (ख) उदाहरण से स्पष्ट है। अतः कहा जा सकता है कि अर्थ की दृष्टि से ‘नाप-तौल’ की तुलना में ‘नाप-जोख’ पद अधिक व्यंजक तथा व्यापक है। | 
			
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				| नाप-तौल					 : | स्त्री० [हिं० नापना+तौलना] १. कोई चीज नापने या तौलने की क्रिया या भाव। २. दे० ‘नाप-जोख’ और उसके अंतर्गत विशेष टिप्पणी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नापना					 : | [सं० मापन] १. नियत या निर्धारित नाप, मान या माप-दंड की सहायता से किसी चीज की लंबाई-चौड़ाई, गहराई-ऊँचाई आदि अथवा किसी प्रकार के आयत या विस्तार का ठीक ज्ञान प्राप्त करना या पता लगाना। मापने की क्रिया करना। जैसे–गज, बित्ते, हाथ आदि से कपड़ा नापना। (गरदन नापना, रास्ता नापना आदि मुहावरों के लिए देखें गरदन, रास्ता आदि के मुहा०)। संयो० क्रि०–डालना।–देना।–लेना। विशेष–चीजें नापने के लिए सुभीते के अनुसार अलग-अलग प्रकार की इकाइयाँ स्थिर कर ली जाती हैं। जैसे–अँगुल, बित्ता, हाथ, गज आदि, और तब उन्हीं इकाइयों के आधार पर चीजों की नाप की जाती है। जैसे–यह धोती नापने पर पौने पाँच गज निकली; अथवा यह रस्सी नापने पर बीस हाथ ठहरी। २. कुछ विशिष्ट तरल पदार्थों के संबंध में, किसी नियत इकाई की सहायता से उसके परिमाण, भार आदि का पता लगाना या स्थिर करना। जैसे–नपने से तेल या दूध नापना। विशेष–वास्तव में इस क्रिया का उद्देश्य किसी पदार्थ को तौलना ही होता है; परंतु इसके लिए कोई ऐसा पात्र स्थिर कर लिया जाता है, जिसमें कोई चीज तौल के हिसाब से किसी विशिष्ट इकाई के बराबर आती हो, और तब वही पात्र (जिसे नपना या नपुआ कहते हैं) बार-बार भरकर उस चीज की तौल या मान स्थिर करते हैं। इससे तौलने की झंझट से बचत होती है। आज-कल अधिकतर तरल पदार्थ इसी प्रकार नापे (वस्तुतः तौले) जाते हैं। कुछ ही दिन पहले अनाज आदि भी इसी तरह नाप (वस्तुतः तौल) कर बेचे जाते थे। ३. अंदाज करना। | 
			
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				| नाप-मान					 : | पुं०=मान-दंड। | 
			
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				| ना-पसन्द					 : | वि० [फा०] जो पसन्द न आवे। जो अच्छा न जान पड़े। जो पसन्द न हो। अप्रिय। अरुचिकर। | 
			
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				| नापाक					 : | वि० [फा०] [भाव० नापाकी] १. अपवित्र। अशुचि। २. गंदा या मैला। | 
			
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				| नापाकी					 : | स्त्री० [फा०] १. अशुचिता। २. गंदगी। | 
			
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				| ना-पायदार					 : | वि० [फा० नापाइदार] [भाव० नापायदारी] १. जो अधिक समय तक ठहरने या चलनेवाला न हो। जो टिकाऊ न हो। क्षण भंगुर। २. जो दृढ़ या मजबूत न हो। ३. जिन पर भरोसा न किया जा सके। जैसे–नापायदार जिंदगी। | 
			
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				| ना-पास					 : | वि० [हिं० ना+अ० पास] १. जो पास अर्थात् स्वीकृत न किया गया हो। २. जो परीक्षा में पास या उत्तीर्ण न हुआ हो। अनुत्तीर्ण। | 
			
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				| नापित					 : | पुं० [सं० न√आप् (व्यक्ति)+तन्, इट् आगम] नाई। हज्जाम। | 
			
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				| नापित्य					 : | पुं० [सं० नापित+ष्यञ्] १. नापित होने की अवस्था या भाव। २. नापित का लड़का। ३. नापित का काम या पेशा। | 
			
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				| नापैद					 : | वि० [फा० ना+पैदा] १. जो कभी पैदा ही न हुआ हो। २. जो अब पैदा न होता हो। ३. जो इतना अप्राप्य या दुर्लभ हो कि मानों कहीं पैदा ही न होता हो। | 
			
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				| नाफ					 : | स्त्री० [सं० नाभि से फा० नाफ़] १. नाभि। २. किसी चीज का केंद्र या मध्य-भाग। | 
			
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				| ना-फरमाँ					 : | पुं० [फा०] गुले लाला का एक भेद जो कुछ नीले रंग का होता है। वि० दे० ‘ना-फरमान’। | 
			
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				| ना-फरमान					 : | वि० [फा०] [भाव० नाफरमानी] जो बड़ों की आज्ञा न मानता हो। | 
			
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				| ना-फरमानी					 : | स्त्री० [फा०] बड़ों की आज्ञा न मानने की वृत्ति। | 
			
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				| नाका					 : | पुं० [सं० नाभि से फा० नाफः] मृगनाभि। | 
			
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				| नाब-दान					 : | पुं० [फा०] मकान की मोरी। पनाला। मुहा०–नाबदान में मुँह मारना=बहुत ही घृणित और निंदनीय काम करना। | 
			
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				| ना-बालिग					 : | वि० [अ०+फा०] [भाव० नाबालिगी] १. जो बालिग अर्थात् वयस्क न हो। २. विधिक क्षेत्र में, जो अभी उस नियत अवस्था या वय तक न पहुँचा हो, जिस अवस्था या वय तक पहुँचने पर कोई सब बातें समझने और अपना घर-बार सँभालने के योग्य समझा जाता हो। (साधारणतः २१ वर्ष से कम की अवस्था का व्यक्ति ना-बालिग माना जाता है)। | 
			
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				| ना-बालिगी					 : | स्त्री० [फा०] नाबालिग होने की अवस्था या भाव। | 
			
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				| नाबूद					 : | वि० [फा०] १. जो अस्तित्व में न रह गया हो। २. बरबाद। विध्वस्त। ३. गायब। लुप्त। | 
			
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				| नाभ					 : | पुं० [सं०] नाभि का वह संक्षिप्त रूप जो उसे समस्त पदों के अन्त में लगने पर प्राप्त होता है। जैसे–पद्मनाभ। २. शिव का एक नाम। ३. भगीरथ के एक पुत्र। ४. अस्त्रों का एक संहार। | 
			
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				| नाभक					 : | पुं० [सं०√नभ् (नष्टकरना)+ण्वुल्–अक] हर्रे। | 
			
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				| नाभस					 : | वि० [सं० नभस्+अण्] [स्त्री० नाभसी] १. नभ-संबंधी। २. स्वर्गीय। | 
			
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				| नाभा					 : | पुं०=नाभादास। | 
			
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				| नाभाग					 : | पुं० [सं०] १. वाल्मीकि के अनुसार इक्ष्वाकुवंशीय एक राजा जो ययाति के पुत्र थे और जिनके पुत्र अज थे। परन्तु रामायण के अनुसार नाभाग के पुत्र अंबरीष थे। २. कारुषवंशीय राजा दिष्टि के एक पुत्र। ३. वैवस्वत मनु के एक पुत्र। | 
			
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				| नाभादास					 : | पुं० सत्रहवीं शताब्दी के छठे और सातवें दशक में वर्तमान एक प्रसिद्ध वैष्णव भक्त जो जाति के डोम थे। उन्होंने अपने गुरु अग्रदास की आज्ञा से ‘भक्तमाल’ नामक प्रसिद्ध ग्रंथ लिखा था। | 
			
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				| नाभारत					 : | स्त्री० [सं० नाभ्यावर्त] घोड़े की नाभि के नीचे की भौंरी जो अशुभ मानी जाती है। | 
			
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				| नाभारिष्ट					 : | पुं० [सं०] वैवस्वत मनु के एक पुत्र | 
			
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				| नाभि					 : | स्त्री० [सं०√नह (बंधन)+इञ्, भ आदेश] १. जरायुज जंतुओं के पेट के बीचो-बीच वह छोटा गड्ढा, जिससे गर्भावस्था में जरायु नाल जुड़ा रहता है। ढोंटी। धुन्नी। तुन्नी। तुंदी। २. कस्तूरी। ३. उक्त प्रकार का कोई छोटा गड्ढा। ४. पहिए के बीच का वह गड्ढा जिसमें धुरा पहनाया या बैठाया जाता है। नाह। विशेष–यद्यपि संस्कृत में नाभि इस अंतिम या तीसरे अर्थ में पुं० है, फिर भी हिंदी में इस अर्थ में यह स्त्री० रूप में ही प्रयुक्त होता है। पुं० १. किसी चीज का केंद्र या मध्य-भाग। ऐसा भाग जिसके चारों ओर वस्तुएँ आकर इकट्ठी होती या हुई हों। २. प्रधान या मुख्य व्यक्ति। नेता। मुखिया। ३. परम स्वतन्त्र और बहुत बड़ा राजा। ४. वह पारस्परिक संबंध जो एक ही कुल, गोत्र या परिवार में उत्पन्न होने पर होता है। ५. क्षत्रिय। ६. महादेव। शिव। ७. भागवत के अनुसार आग्नीध्र राजा के पुत्र जिनकी पत्नी मेरु देवी के गर्भ से ऋषभ देव की उत्पत्ति हुई थी। ८. राजा प्रियव्रत के एक पौत्र का नाम। | 
			
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				| नाभि-कंटक					 : | पुं० [ष० त०] नाभि का उभरा हुआ या मांसल अंश। निकली हुई तुंदी। | 
			
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				| नाभिका					 : | स्त्री० [सं० नाभि√कै (मालूम पड़ना)+क–टाप्] १. नाभि के आकार का छोटा गड्ढा। २. कटभी (वृक्ष)। | 
			
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				| नाभिगुलक					 : | पुं० [सं०] नाभिकंटक। | 
			
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				| नाभि-गोलक					 : | पुं० [ष० त०] नाभिकंटक। (दे०) | 
			
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				| नाभि-छेदन					 : | पुं० [ष० त०] गर्भ से निकले हुए जरायुज जीवों का जरायु नाल काटने की क्रिया या भाव। नाल काटना। | 
			
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				| नाभिज					 : | वि० [सं० नाभि√जन् (उत्पत्ति)+ड] नाभि से उत्पन्न। पुं० ब्रह्मा। | 
			
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				| नाभि-नाड़ी					 : | स्त्री० [ष० त०] नाभि की नाड़ी जो गर्भ काल में माता की रसवहा नाड़ी से जुड़ी रहती है। | 
			
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				| नाभि-पाक					 : | पुं० [ष० त०] नाभि पकने का रोग। | 
			
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				| नाभिल					 : | वि० [सं० नाभि+लच्] १. नाभि से युक्त। जिसमें नाभि हो। २. (जीव) उभरी हुई नाभिवाला। | 
			
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				| नाभि-वर्द्धन					 : | पुं० [ष० त०] नाभि बढ़ाना अर्थात् काटना। (मंगलभाषित) | 
			
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				| नाभि-वर्ष					 : | पुं० [ष० त०] जंबूद्वीप का वह भाग (आधुनिक भारत) जो राजा नाभि को उनके पिता राजा आग्नीध्र ने दिया था। विशेष–नाभि के पौत्र भरत हुए जिसके नाम से हमारे देश का नाम भारत हुआ। | 
			
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				| नाभि-संबंध					 : | पुं० [ष० त०] व्यक्तियों का वह पारस्परिक संबंध जो उनके किसी एक गोत्र में जन्म लेने पर होता है। | 
			
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				| नाभी					 : | स्त्री० [सं० नाभि+ङीष्]=नाभि। | 
			
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				| नाभील					 : | पुं० [सं० नाभी√ला (लेना)+क] १. स्त्रियों की कमर के नीचे का भाग। उरु-संधि। २. नाभि का गड्ढा। ३. कष्ट तकलीफ। | 
			
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				| नाभ्य					 : | वि० [सं० नाभि+यत्] नाभि-संबंधी। पुं० महादेव। शिव। | 
			
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				| ना-मंजूर					 : | वि० [फा० ना+अ० मंजूर] [भाव० ना-मंजूरी] जो मंजूर या स्वीकृत न हुआ हो। | 
			
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				| ना-मंजूरी					 : | स्त्री० [फा०+अ०] ना-मंजूर या अस्वीकृत होने की अवस्था या भाव। | 
			
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				| नाम (न्)					 : | पुं० [सं०√म्ना (अभ्यास)+मनिन्] १. वह शब्द या पद जिसका प्रयोग किसी तत्त्व, प्राणी या वस्तु अथवा उसके किसी वर्ग या समूह का परिज्ञान अथवा बोध कराने के लिए उसके वाचक के रूप में किया जाता है और जिससे वह लोक में प्रसिद्ध होता है। आख्या। संज्ञा। जैसे–(क) इस रंग का नाम लाल है। (ख) इस फल का नाम आम है। (ग) इस लड़के का नाम मोहनलाल है। विशेष–हर चीज का कुछ न कुछ नाम इसीलिए रख लिया जाता है कि उसकी पहचान हो सके तथा औरों को सहज में उसका ज्ञान या बोध कराया जा सके। किसी वस्तु या व्यक्ति का नाम लेते ही उसका स्वरूप अथवा उसके संबंध की सब बातें सुननेवाले के ध्यान में आ जाती हैं। प्रयोगों तथा मुहावरों के विचार से नाम कई विशिष्ट तत्त्वों और स्थितियों का भी बोधक होता है। यथा–(क) जब कोई व्यक्ति कुछ अच्छा या बुरा काम करता है, तब लोग उसका नाम लेकर ही कहते हैं कि उसने अमुक काम किया है। इसलिए ‘नाम’ किसी की ख्याति अथवा प्रसिद्धि (अथवा कुख्याति या कुप्रसिद्धि) का भी प्रतीक या वाचक हो गया है। (ख) विशिष्ट प्रसंगों में लोग ईश्वर या उपास्य देव का नाम लेते हैं, इसलिए कभी-कभी यह ईश्वर या देवता का भी वाचक या सूचक होता है। (ग) नाम किसी तत्त्व, वस्तु या व्यक्ति का वाचक मात्र होता है; स्वयं उस तत्त्व, वस्तु या व्यक्ति से उसका कोई आधारिक या तात्त्विक संबंध नहीं होता, इसलिए कुछ अवस्थाओं में यह केवल बाह्य आकृति या रूप अथवा अस्तित्व या सत्ता का ही बोधक होता है; अथवा यह सूचित करता है कि उसे कुछ कहा या किया गया है, वह नामधारी के उद्देश्य या हेतु-मात्र से है। इसी आधार पर लेन-देन आदि व्यवहारों में उस अंश या पक्ष का भी वाचक हो गया है जिसमें किसी को दी हुई या किसी के जिम्मे लगाई हुई कोई चीज या रकम लिखी जाती है। यहाँ जो पद और मुहावरे दिए जाते हैं, वे उक्त सब आशयों के मिले-जुले रूपों से संबद्ध हैं। पद–(किसी के) नाम=किसी के उद्देश्य या हेतु से अथवा किसी के प्रति या उसे लक्ष्य करके। जैसे–(क) पितरों के नाम दान करना। (ख) विधिक क्षेत्र में, किसी के अधिकार या स्वामित्व में। जैसे–उसके कई मकान तो उसकी स्त्री के नाम हैं। नाम का (या को)=दे० ‘नाम मात्र का’ (या को)। नाम-चार का (या को)=दे० ‘नाम-मात्र का’ (या को)। नाम पर=(क) किसी का नाम लेते हुए उसके उद्देश्य या हेतु से। जैसे–बड़ों के नाम पर (या भगवान के नाम पर) कोई काम करना या किसी को कुछ देना। नाम मात्र=नाम लेने या कहने भर के लिए, अर्थात् यथेष्ट और वास्तविक रूप में नहीं, बल्कि जरा-सा या बहुत थोड़ा। जैसे–उनके कथन में नाम मात्र सत्यता है। नाम मात्र का (या को)=उचित, पूर्ण या वास्तविक रूप में नहीं, बल्कि यों ही कहने-सुनने या दिखलाने भर के लिए, और फलतः जरा-सा या थोड़ा-सा। जैसे–दाल में घी तो नाम मात्र का (या को) था। नाम मात्र के लिए=नाममात्र का (या को)। (किसी का) नाम लेकर=नाम का उच्चारण करके। जैसे–जब तुम्हारा नाम लेकर कोई पुकारे तब यहाँ आना। (ईश्वर, देवी-देवता का) नाम लेकर=श्रद्धापूर्वक नाम का उच्चारण और स्मरण करते हुए और शुद्ध हृदय से। जैसे–भगवान का नाम लेकर चल पड़ो। नाम से=(क) नामदारी को जिम्मेदार ठहराते या बतलाते हुए और उसके नाम का उपयोग करते हुए। जैसे–(क) किसी के नाम से खाता खोलना या मकान खरीदना। (ख) नाम का उच्चारण होते ही। नाम भर लेने पर। जैसे–अब तो वह तुम्हारे नाम से काँपता है। (ग) दे० ऊपर ‘नाम पर’। मुहा०–(किसी का) नाम उछलना=बहुत अपकीर्ति, निंदा या बदनामी होना। (अपना या बड़ों का) नाम उछालना=ऐसा घृणित या निंदनीय काम करना कि अपनी या पूर्वजों की बदनामी हो। नाम उठ जाना=अस्तित्व या सत्ता न रह जाना। जैसे–आज-कल संसार से भलमनसत का नाम ही उठ गया है। नाम कमाना=कीर्ति या यश संपादित करते हुए प्रसिद्ध या मशहूर होना। ऐसी उत्कृष्ट स्थिति में होना कि लोग बहुत दिनों तक याद रखे। जैसे–यह धर्मशाला बनवाकर वह भी अपना नाम कर गए। (किसी बात में किसी दूसरे का) नाम करना=दे० नीचे ‘(किसी दूसरे का) नाम लगाना।’ (किसी के) नाम का कुत्ता न पालना=किसी को इतना घृणित, तुच्छ या नीच समझना कि उसका नाम तक लेना या सुनना भी बहुत अप्रिय या बुरा लगे। जैसे–हम तो उसके नाम का कुत्ता भी ना पालें। (कोई काम अपने) नाम के लिए करनाँ=कोई काम केवल कीर्ति या प्रसिद्धि प्राप्त करने अथवा मर्यादा की रक्षा के उद्देश्य से करना। (कोई काम) नाम के लिए या नाममात्र के लिए करना=मन लगाकर या वास्तव में नहीं, बल्कि केवल कहने-सुनने या दिखलाने भर के लिए थोड़ा-सा कार्य या यों ही करना। नाम को मरना=नाम की मर्यादा या लज्जा रखने अथवा कीर्ति या यश बनाये रखने के लिए यथासाध्य प्रयत्न करते रहना। (किसी का) नाम चमकना=चारों ओर कीर्ति परंपरा, वंश आदि का अस्तित्व या क्रम चलता या बना रहना। नाम जगना=(क) ख्याति या प्रसिद्धि होना। (ख) फिर से किसी के नाम की ऐसी चर्चा या प्रचार होना कि लोगों में उसकी स्मृति जाग्रत हो। (किसी का) नाम जगाना=ऐसा काम करना जिससे किसी की याद या स्मृति बनी रहे। (किसी का) नाम जपना=प्रेम, भक्ति श्रद्धा आदि से प्रेरित होकर बराबर किसी का नाम लेते रहना या उसे याद करते रहना। (कोई चीज या रकम किसी के) नाम डालता=बही-खाते में, किसी के नाम के आगे लिखना। यह लिखना कि अमुक चीज या रकम अमुक व्यक्ति के जिम्मे है या उससे ली जाने को है। जैसे–यह रकम हमारे नाम डाल दो। नाम डुबाना=कलंक या लांछन के पात्र बनकर प्रतिष्ठा, मर्यादा आदि नष्ट करना। नाम तक मिटना या मिट जाना=कहीं कुछ भी अवशेष या चिह्न बाकी न रह जाना। (किसी के) नाम देना=खाते में किसी के नाम लिखकर कुछ देना। (किसी को कोई) नाम देना=किसी का नामकरण करना। नाम रखना। (दे० नीचे) (किसी को किसी देवता का) नाम देना=धार्मिक क्षेत्रों में, गुरु बनकर किसी को किसी देवता के नाम या मंत्र का उपदेश देना। (किसी वस्तु या व्यक्ति का) नाम धरना=(क) नाम रखना या स्थिर करना। नामकरण करना। (ख) कोई ऐब या दोष लगाकर बुरा ठहराना या बतलाना। निंदा या बदनामी करना। नाम धरना=(क) नाम स्थिर करना। (ख) लोगों में निंदा या बदनामी कराना। नाम न लेना=अरुचि, घृणा, दुःख, भय आदि के कारण चर्चा तक न करना। बिलकुल अलग या दूर रहना। मन में विचार न करना। जैसे–अब वह कभी वहाँ जाने का नाम न लेगा। नाम निकलना या निकल जाना=किसी बात के लिए नाम प्रसिद्धि हो जाना। किसी विषय में ख्याति हो जाना। (अच्छी और बुरी सभी प्रकार की बातों के लिए युक्त) नाम निकलवाना=(क) किसी प्रकार की ख्याति या प्रसिद्धि कराना। (ख) कोई चीज चोरी जाने पर टोने-टोटके, मंत्र-यंत्र आदि की सहायता से यह पता लगाना कि वह चीज किसने चुराई है। नाम निकालना=(क) किसी काम या बात के लिए नाम प्रसिद्धि करना (ख) टोने-टोटके, मंत्र-यंत्र आदि की सहायता से अपराधी या दोषी के नाम का पता लगाना। नाम पड़ना=नाम निश्चित होना या रखा जाना। नामकरण होना। (कोई चीज या रकम किसी के) नाम पड़ना=बही-खाते आदि में यह लिखा जाना कि अमुक चीज या रकम अमुक व्यक्ति को दी गई है और वह चीज या उसका मूल्य उससे लिया जाने को है। (किसी के) नाम पर बैठना=(क) किसी के भरोसे या विश्वास पर संतोष करके चुपचाप तथा धैर्य-पूर्वक पड़े रहना या बैठे रहना। जैसे–हम तो ईश्वर के नाम पर बैठे ही हैं, जो चाहेगा सो करेगा। (ख) किसी की प्रतिष्ठा की रक्षा के विचार से शांत स्थिर भाव से दिन बिताना। जैसे–उसे विधवा हुए दस वर्ष हो गए; पर आज तक वह अपने पति के नाम पर बैठी है। (किसी के) नाम पर मरना या मिटना=किसी की प्रतिष्ठा या मान-रक्षा के लिए अथवा किसी के प्रेम के आवेग में बहुत-कुछ कष्ट या हानी सहना। जैसे–जाति या देश के नाम पर मरना या मिटना। नाम-पाना=कोई अच्छा काम करके ख्यात या प्रसिद्ध होना। नाम बद या बदनाम करना=ऐब या कलंक लगाना। बदनामी करना। (किसी का) नाम बिकना=ख्याति या प्रसिद्धि हो चुकने पर आदर, प्रचार आदि होना। नाम भर बाकी रहना=और सब बातों का अंत हो जाने पर भी कीर्ति, यश आदि के रूप में केवल नाम की याद या स्मृति बच रहना। जैसे–अब तो इंद्रप्रस्थ का नाम बाकी है। (किसी का) नाम रखना=(क) नाम निश्चित करना। नामकरण करना। कीर्ति या यश सुरक्षित रखना। (ग) किसी चीज या बात में कोई कलंक या दोष निकालना या लगाना। बदनाम करना। (अपकार, अपराध आदि के संबंध में, किसा का) नाम लगना=झूठ-मूठ यह कहा जाना कि अमुक व्यक्ति ने यह अपकार या अपराध किया है। किसी के सिर झूठा कलंक मढ़ा जाना। जैसे–किताब फाड़ी तो उस लड़के ने और नाम लगा तुम्हारा। (किसी का) नाम लगाना=किसी अपराध या दोष के संबंध में किसी के सिर झूठा कलंक मढ़ना। अपराध का कलंक लगाना। जैसे–तुम्हीं ने सारा काम बिगाड़ा, और अब दूसरों का नाम लगाते हो। (कोई चीज या रकम किसी के) नाम लिखना=दे० ऊपर (कोई चीज या रकम किसी के) नाम डालना। (किसी का) नाम लेना=(क) नाम का उच्चारण करना। नाम जपना या रटना। जैसे–सबेरे-संध्या कुछ देर तक ईश्वर का नाम लिया करो। (ख) किसी के उपकार आदि के बदले में कृतज्ञतापूर्वक उसके नाम का उल्लेख या चर्चा करना। जैसे–अब तो उनका घर भर तुम्हारा ही नाम लेता है। (ग) यों ही साधारण रूप से उल्लेख या चर्चा करना। जैसे–अब अगर तुमने उनके घर जाने का नाम लिया, तो ठीक न होगा। नाम से पुजना या बिकना=केवल सुनाम प्राप्त हो चुकने अथवा कीर्ति या यश फैल जाने के कारण आदर या सम्मान का भाजन बनना। नाम होना=(क) खूब ख्याति या प्रसिद्धि होना। (ख) दे० ऊपर ‘नाम लगना’।... तो मेरा नाम नहीं=तो समझ लेना कि मैं कुछ भी नहीं हूँ। तो मुझे बिलकुल अकर्मण्य, तुच्छ या हीन समझ लेना। जैसे–यदि मैं उसे हराकर न छोड़ूँ तो मेरा नाम नहीं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नामक					 : | वि० [सं०] उत्तर पद में,... नाम का या... नाम वाला। जैसे–यहाँ कोई राम नामक लड़का रहता है ? | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाम-करण					 : | पुं० [सं० त०] १. किसी का नाम रखने या किसी को नाम देने की क्रिया या भाव। जैसे–इस नाटक का नाम-करण उसके नायक के नाम पर हुआ है। २. हिंदुओं में एक संस्कार, जिसमें विधिवत् पूजा-पाठ करके बच्चे का नाम रक्खा जाता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाम-कर्म (न्)					 : | पुं० [ष० त०] नामकरण (संस्कार)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाम-कीर्तन					 : | पुं० [ष० त०] कीर्तन का वह प्रकार जिसमें भगवान के किसी एक नाम का कुछ समय तक बराबर उच्च स्वर में जाप किया जाता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाम-कोश					 : | पुं० [ष० त०] ऐसा कोश जिसमें नामवाचक संज्ञाओं का संकलन और उनके अर्थ या व्याख्याएँ हों। (नामेक्लेचर) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाम-चढ़ाई					 : | स्त्री० [हिं नाम+चढ़ाना] वह क्रिया जिसमें सरकारी कागज-पत्रों आदि पर संपत्ति आदि के स्वामित्व पर से एक व्यक्ति का नाम हटाकर दूसरे का नाम चढ़ाया जाता है। दाखिल खारिज। (म्यूटेशन) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाम-जद					 : | वि० [फा० नामजद] [भाव० नामजदगी] १. नामांकित। २. मनोनीत। ३. प्रसिद्धि। ४. (बालिका) जिसकी मंगनी हो चुकी हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाम-जदगी					 : | वि० [फा० नामज़दगी] नामजद अर्थात् नामांकित या मनोनीत करने या होने की क्रिया या भाव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नामतः (तस्)					 : | अव्य० [सं० नामन्+तस्] नाम से। नाम के द्वारा। | 
			
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				| नामदार					 : | वि० [फा०] नामवर। प्रसिद्ध। | 
			
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				| नामदेव					 : | पुं० १. वामदेव के दोहित्र एक प्रसिद्ध भक्त जो भगवान कृष्ण (मूर्ति) के दूध न पीने पर आत्म-हत्या करने पर उतारू हो गए थे। कहते हैं कि अंत में भगवान ने स्वयं प्रकट होकर दूध पीया और उन्हें आत्म-हत्या करने से रोका। २. महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध वैष्णव भक्त कवि। (संवत् १3२6-१407 वि०) | 
			
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				| नाम-द्वादशी					 : | स्त्री० [सं०] देवी पुराण के अनुसार अगहन सुदी तीज को रखा जानेवाला व्रत, जिसमें गौरी, काली, उमा, भद्रा, कांति, सरस्वती, मंगला, वैष्णवी, लक्ष्मी, शिवा और नारायणी इन बारह देवियों की पूजा की जाती है। | 
			
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				| नामधन					 : | पुं० [सं०] एक प्रकार का संकर राग जो मल्लार, शंकराभरण, बिलावल, सूदे और केदारे के योग से बना है। | 
			
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				| नाम-धरता					 : | पुं० [हिं० नाम+धरना=रखना] जो किसी का कोई नाम रखे या स्थिर करे। नामकरण करनेवाला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| नाम-धराई					 : | स्त्री० [हिं० नाम+धराना] १. नाम विशेषतः चिढ़ धरने की क्रिया या भाव। २. बदनामी। | 
			
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				| नाम-धाम					 : | पुं० [हिं० नाम+धाम] व्यक्ति का नाम और उसका निवास-स्थान। नाम और पता-ठिकाना। | 
			
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				| नाम-धारक					 : | वि० [सं० ष० त०] जो केवल नाम के लिए हो, पर जिससे कोई कान न निकल सकता हो। नाम मात्र का। | 
			
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				| नामधारी (रिन्)					 : | वि० [सं० नामन्√धृ (धारण)+णिनि] नाम धारक। पुं० [हिं० नाम+धारना] १. सिक्खों का एस संप्रदाय, जिसके संस्थापक थे रामसिंह। २. उक्त संप्रदाय का अनुयायी सिक्ख। | 
			
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				| नामधेय					 : | वि० [सं० नामन्+धेय] नामवाला। पुं० १. नाम। २. नामकरण। | 
			
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				| नाम-निक्षेप					 : | पुं० [सं० ष० त०] नाम स्मरण। (जैन) | 
			
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				| नाम-निर्देशन					 : | पुं० [सं० ष० त०]=नामांकन। | 
			
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				| नाम-निर्देश पत्र					 : | पुं० [सं० नाम-निर्देश, ष० त०, नामनिर्देश-पत्र, ष० त०]=नामांकन पत्र। | 
			
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				| नाम-निवेश					 : | पुं० [सं० ष० त०] १. खाते, रजिस्टर आदि में नाम चढ़ाया जाना। (एन्रोलमेंट) २. दे० ‘नाम-चढ़ाई’। | 
			
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				| नाम-निशान					 : | पुं० [फा०] किसी वस्तु का नाम और उसके सूचक शेष चिह्न या पता-ठिकाना। ऐसा चिह्न या लक्षण जिससे किसी चीज या बात के अस्तित्व का पता चलता या प्रमाण मिलता हो। जैसे–अब तो उस गाँव का नाम-निशान भी नहीं रह गया है। | 
			
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				| नाम-पट्ट					 : | पु. [सं० ष० त०] वह पट्ट या तख्त जिस पर व्यक्ति, संस्था, दुकान आदि का नाम लिखा होता है। (साइनबोर्ड) | 
			
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				| नाम-पत्र					 : | पुं० [सं० ष० त०] कागज की वह चिप्पी जो जिस पर लगाई जाती है उसका विवरण बताती है। (लेबल) | 
			
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				| नामपत्रित					 : | भू० कृ० [सं० नामपत्र+इतच्] जिस पर नामपत्र लगाया गया हो। | 
			
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				| नाम-बोला					 : | पुं० [हिं० नाम+बोलना] ऐसा व्यक्ति, जो ईश्वर या देवता के नाम का उच्चारण या जप करता हो। | 
			
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				| नाम-माला					 : | स्त्री० [सं० ष० त०] १. बहुत से नामों की अवली, माला या श्रृंखला। २. दे० ‘नाम-कोश’। | 
			
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				| नाम-यज्ञ					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] ऐसा यज्ञ जो नाम कमाने के लिए किया जाय। | 
			
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				| नाम-रासी					 : | वि० [हिं० नाम+सं० राशि] किसी की दृष्टि में उसी के नाम और राशिवाला। हम-नाम। | 
			
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				| नाम-रूप					 : | पुं० [सं० द्व० स०] १. किसी वस्तु या व्यक्ति का वह नाम और रूप जिससे उसका परिज्ञान होता हो। २. मन से युक्त दृश्यमान् शरीर। ३. बौद्ध दर्शन में, गर्भ में स्थित एक महीने के भ्रूण की संज्ञा। | 
			
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				| नामर्द					 : | वि० [फा०] [भाव० नामर्दी] १. जो मर्द अर्थात् पुरुष न हो। २. जिसमें पुरुष की शक्ति न हो। नपुंसक। जिसमें पुरुषों जैसा हौसला न हो। भीरु। | 
			
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				| नामर्दी					 : | स्त्री० [फा०] १. नामर्द होने की अवस्था या भाव। २. वह रोग या स्थिति जिसमें पुरुष स्त्री से संभोग करने में असमर्थ होता है। नपुंसकता। ३. कायरता। भीरुता। | 
			
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				| नाम-लिखाई					 : | स्त्री० [हिं० नाम+लिखना] १. किसी संस्था आदि के सदस्य बनने पर उसी पंजी, तालिका आदि में नाम लिखा जाना। २. वह धन या शुल्क जो उक्त अवसर पर देना पड़ता है। | 
			
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				| नाम-लेवा					 : | पुं० [हिं० नाम+लेवा=लेनेवाला] १. ऐसा व्यक्ति जो किसी का विशेषतः उसके मरने पर उसका स्मरण करे। २. औलाद। संतान। | 
			
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				| नामवर					 : | वि० [फा०] [भाव० नामवरी] जिसका नाम आदर से लिया जाता हो। अति प्रसिद्ध। | 
			
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				| नामवरी					 : | स्त्री० [फा०] प्रसिद्धि। | 
			
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				| नाम-शेष					 : | वि० [सं० ब० स०] १. जो अस्तित्व में न रह गया हो, बल्कि जिसका केवल नाम ही लोग जानते हों। २. ध्वस्त। ३. मृत। | 
			
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				| ना-महरम					 : | वि० [फा०+अ०] १. अनजान। अपरिचित। २. पराया। गैर। ३. (व्यक्ति) जिसके सामने स्त्रियाँ न हो सकती हों और जिनसे बात-चीत करना उनके लिए धर्म-शास्त्रानुसार निषिद्ध हो। जिससे परदा करना स्त्रियों के लिए उचित तथा विहित हो। (मुसल०) | 
			
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				| नाम-हँसाई					 : | स्त्री० [हिं० नाम+हँसना] लोगों में किसी के नाम की हँसी उड़ाना या उपहास होना। उपहास करानेवाली बदनामी। | 
			
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				| नामांक					 : | पुं० [सं० नामन्-अंक, ब० स०] वह संख्या जो किसी सूची में लिखित नामों पर क्रमशः लगाई गई हो। वि०=नामांकित। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नामांकन					 : | पुं० [स० नामन्-अंकन, ष० त०] १. नाम अंकित करने की क्रिया या भाव। २. किसी का किसी पद, स्थान, निर्वाचन आदि के लिए अधिकारिक रूप से नाम प्रस्तावित किया जाना। ३. वह स्थिति जिसमें किसी को किसी पद, सेवा आदि के लिए आधिकारिक रूप में नियुक्त किया जाता है। (नामिनेशन, उक्त सभी अर्थों में) | 
			
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				| नामांकन-पत्र					 : | पुं० [सं० ष० त०] वह पत्र जिसमें संबद्ध अधिकारी को यह सूचित किया जाता है कि अमुक पद के लिए अमुक व्यक्ति उम्मेदवार के रूप में खड़ा हो गया है, और उस अधिकारी से तत्संबंधी स्वीकृति की प्रार्थना की जाती है। (नामिनेशन पेपर) | 
			
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				| नामांकित					 : | वि० [सं० नामन्-अंकित ब०, स०] १. जिस पर नाम अंकित किया अर्थात् लिया या खुदा हो। २. जिसका किसी काम या पद के लिए नामांकन हुआ हो। नामजद। (नामिनेटेड) ३. प्रसिद्ध। | 
			
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				| नामांकित					 : | पुं० [सं० नामांकित] वह जो किसी चुनाव, पद, कार्य में नामांकित किया गया हो। (नामिनी) | 
			
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				| नामांतर					 : | पुं० [सं० नामन्-अंतर, मयू० स०] १. किसी एक ही व्यक्ति का दूसरा नाम। २. उपनाम। ३. पर्याय। | 
			
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				| नामांतरण					 : | पुं० [सं० नामान्तर+णिच्+ल्युट्–अन] १. नाम बदलने की क्रिया या भाव। २. किसी संपत्ति पर स्वामी के रूप में लिखा हुआ पुराना नाम हटाकर उसकी जगह किसी दूसरे नये व्यक्ति का स्वामी के रूप में नाम चढ़ाया जाना। दाखिल खारिज। (म्यूटेशन) | 
			
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				| नामांतरित					 : | भू० कृ० [सं० नामांतर+णिच्+क्त] १. जिसका नामांतरण हुआ हो। २. जिसका नाम किसी पुराने स्वामी के नाम की जगह नये सिरे से चढ़ा या लिखा गया हो। | 
			
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				| नामा					 : | वि० [सं० नाम] नामधारी। पुं० प्रसिद्ध भक्त नामदेव का संक्षिप्त रूप। पुं० [हिं० नाम (पड़ी हुई रकम)] १. किसी से प्राप्य धन। पावना। २. रुपया-पैसा। नाँवाँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [फा० नामः] पत्र। चिट्ठी। | 
			
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				| ना-माकूल					 : | वि० [फा० ना+अ० माकूल] [भाव० नामाकलियत] १. जो माकूल अर्थात् उचित, उपयुक्त या ठीक न हो। २. अपूर्ण। अधूरा। ३. बेढंगा। बेढब। ४. अयोग्य। ५. नालायक। | 
			
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				| नामानुशासन					 : | पुं [सं० नामन्-अनुशासन, ष० त०] शब्दकोश। | 
			
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				| नामाभिधान					 : | पुं० [सं० नामन्-अभिधान, ष० त०] शब्दकोश। | 
			
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				| ना-मालूम					 : | वि० [फा० ना+अ० मालूम] जो मालूम अर्थात् ज्ञात न हो अज्ञात। | 
			
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				| नामावली					 : | स्त्री० [सं० नाम्न्-आवली, ष० त०] १. ऐसी सूची जिसमें चीजों या व्यक्तियों के नाम दिए हुए हों। २. भक्तों के ओढ़ने-पहनने का वह कपड़ा जिसपर कृष्ण, राम, शिव आदि देवताओं के नाम छपे होते हैं। | 
			
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				| नामि					 : | पुं० [सं०] विष्णु। | 
			
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				| नामिक					 : | वि० [सं०] १. नाम या संज्ञा-संबंधी। २. जो केवल नाम के लिए या संकेत रूप में हो और जिसका वास्तविक तथ्य से कोई विशेष संबंध न हो। नाम भर का। (नॉमिनल) | 
			
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				| नामित					 : | वि० [सं०√नम् (झुकना)+णिच्+क्त] झुकाया हुआ। | 
			
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				| नामी					 : | वि० [फा०] १. नामवाला। २. जिसका नाम या प्रसिद्धि हो। नामवर। प्रसिद्ध। मशहूर। | 
			
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				| नामी-गिरामी					 : | वि० [फा०] प्रसिद्ध और पूजनीय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| ना-मुआफिक					 : | १. [फा० नामुआफ़िक] जो मुआफिक या अनुकूल न हो। २. प्रतिकूल। विरुद्ध। ३. जो किसी से सहमत न हो। अ-सहमत। | 
			
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				| ना-मुनासिब					 : | वि० [फा०+अ०] जो मुनासिब अर्थात् उचित न हो। अनुचित। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| ना-मुमकिन					 : | वि० [फा० ना+अ० मुम्किन] जो मुमकिन अर्थात् संभव न हो। असंभव। | 
			
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				| ना-मुराद					 : | वि० [फा०] [भाव० ना-मुरादी] १. जिसका मुराद अर्थात् कामना पूरी न हुई हो। विफल मनोरथ। २. अभागा। बद-नसीब। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| ना-मुवाफिक					 : | वि०=ना-मुआफिक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नामूद					 : | स्त्री० [फा० नामूद] १. आविर्भाव। २. धूम-धाम। तड़क-भड़क। ३. ख्याति। प्रसिद्धि। वि० प्रसिद्धि। मशहूर। (अशुद्ध प्रयोग)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नामूसी					 : | स्त्री० [अ० नामूस=इज्जत] १. बेज्जती। अप्रतिष्ठा। २. बदनामी। निंदा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| ना-मेहरबान					 : | वि० [फा० नामेह्रबाँ] [भाव० नामेह्रबानी] जो मेहरबान अर्थात् अनुकूल या प्रसन्न न हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नामोल्लेख					 : | पुं० [नामन्-उल्लेख, ष० त०] किसी प्रसंग या विषय में किसी के नाम का होनेवाला उल्लेख। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| ना-मौजूँ					 : | वि० [फा०] १. जो मौजूँ या उपयुक्त न हो। अनुपयुक्त। २. अनुचित। ना मुनासिब। ३. (शेर का पद अर्थात् चरण) जो वजन से खारिज हो अर्थात् जिसमें मात्राएँ या वर्ण कम-बैशी हों। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाम्ना					 : | वि० [सं० नामन् शब्द के तृतीया विभक्ति का एक वचन रूप ?] [स्त्री० नाम्नी] नामवाला। नायक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाम्य					 : | वि० [सं०√नम्+णिच्+यत्] १. झुकाये जाने के योग्य। २. जो झुकाया जा सके। लचीला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नायँ					 : | पुं०=नाम।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) अव्य० नहीं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाय					 : | पुं० [सं०√नी (ले जाना)+घञ्] १. नय। नीति। २. उपाय। युक्ति। ४. अगुआ। नेता। ४. नेतृत्व। स्त्री०=नाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नायक					 : | पुं० [सं०√णी+ण्वुल–अक] १. लोगों को अपनी आज्ञा के अनुसार चलानेवाला व्यक्ति। जैसे–सामाजिक या राजनैतिक नेता। जैसे–सेनानायक। ४. साहित्य-शास्त्र के अनुसार किसी साहित्यिक रचना का प्रधान पुरुष पात्र। धीरललित, धीरशांत, धीरोदात्त और धीरोद्धत इसके ये चार प्रमुख भेद हैं। ५. श्रृंगार रस की कविताओं या पद्यों में आलंबन विभाव। इसके पति, अनुकूल पति, दक्षिणानायक शठनायक, धृष्टनायक, उपपत्ति, वैशिक, मानी, वचन-चतुर, क्रियाचतुर, प्रेषित आदि अनेक भेद हैं। ६. बंजारा। ७. हार के मध्य की मणि या रत्न। ८. एक प्रकार का वर्ण-वृत्त। ९. एक राग जो दीपक राग का पुत्र माना जाता है। १॰. संगीत-कला में निपुण व्यक्ति। ११. एक जाति जिसके पुरुष नाचने-गाने आदि की शिक्षा देते हैं और स्त्रियाँ वेश्यावृत्ति भी करती हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नायका					 : | स्त्री० [सं० नायिका] १. वह वयस्क या वृद्धा स्त्री, जो युवती स्त्रियों को अपने पास रखकर उनसे गाने-बजाने का पेशा और व्याभिचार कराती हों। २. कुटनी। ३. दे० ‘नायिका’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नायकी					 : | वि० [सं० नायक] नायक संबंधी। नायक या नायकों का। जैसे–नायकी कान्हड़ा। स्त्री० नायक होने की अवस्था, पद या भाव। नायकत्व। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नायकी कान्हड़ा					 : | पुं० [हिं० नायकी+कान्हड़ा] एक प्रकार का कान्हड़ा (राग) जिसमें सब कोमल स्वर लगते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नायकी मल्लार					 : | पुं० [सं० नायक+मल्लार] संपूर्ण जाति का एक प्रकार का मल्लार (राग) जिसमें सब शुद्ध स्वर लगते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नायत					 : | पुं० [?] वैद्य। (डिं०) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नायन					 : | स्त्री० [हिं० नाई का स्त्री० रूप] १. नाई जाति की स्त्री। २. नाई की पत्नी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नायब					 : | वि० [अ० नाइब] १. (अधिकारी) जो किसी प्रधान अधिकारी का सहायक हो। जैसे–नायब तहसीलदार। २. स्थानापन्न। ३. किसी का प्रतिनिधि बनकर काम करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नायबी					 : | स्त्री० [हिं० नायब+ई (प्रत्य०)] नायब होने की अवस्था, पद या भाव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नायाब					 : | वि० [फा०] [भाव० नायाबी] १. जो न मिलता हो। अप्राप्य। २. जो सहज में न मिलता हो। दुष्प्राप्य। ३. बहुत बढ़िया या श्रेष्ठ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नायिका					 : | स्त्री० [सं० नायक+टाप्, इत्व] १. स्वामिनी। २. पत्नी। ३. साहित्य शस्त्र में, किसी नाटक की प्रधान पात्री। ४. श्रृंगार रस में पुरुष से संबंध रखनेवाली पात्री जिसके धर्म के विचार से स्वकीया, परकीया और सामान्या से तीन प्रमुख भेद। स्वभाव के अनुसार उत्तमा, मध्यमा और अधमा तथा अन्य अनेक दृष्टियों से दूसरे बहुत-से भेद माने गए हैं। ४. कहानी उपन्यास आदि की मुख्य पात्री। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नायिकाधिप					 : | पुं० [सं० नायिका-अधिप, ष० त०] राजा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नारंग					 : | पुं० [सं०√नृ (ले जाना)+अंगच्, वृद्धि] १. नारंगी। २. गाजर। ३. पिप्पलिरस। ४. यमज प्राणी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नारंगी					 : | स्त्री० [सं० नागरंग, अ० नारंज] १. नीबू की जाति का एक प्रकार की मझोला पेड़, जिसमें मीठे सुगंधित और रसीले फल लगते हैं। २. उक्त पेड़ का फल। वि० नारंगी (फल) के छिलके की तरह के पीले रंग का। पुं० उक्त प्रकार का रंग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नार					 : | वि० [सं० नर+अण्] १. नर या मनुष्य-संबंधी। नर का। २. आध्यात्मिक। पुं० १. गौ का बछड़ा। २. जल। पानी। ३. मनुष्यों का झुंड, दल या समूह। ४. सोंठ। स्त्री० [सं० नाल] १. गला। २. गरदन। ग्रीवा। मुहा०–नार नवाना या नीची करना=लज्जा संकोच आदि से अथवा आदर-सम्मान प्रकट करने के लिए किसी के आगे गरदन या सिर झुकाना। ३. वह नाड़ी या नली जिससे नव-जात शिशु माता के गर्भ से बँधा रहता है। नाल। (दे०) पद–नार-बेवार। (दे०) ४. छोटा रस्सा। ५. वह डोरी जो घाघरे, पाजामे आदि के नेफे में पिरोई रहती है और जिसकी सहायता से वे कमर में बाँधे जाते हैं। नाड़ा। नाला। ६. पौधों के वे डंठल जो बालें काट लेने के बाद बच रहते हैं। ७. मैदानों में चरनेवाले चौपायों का झुंड। स्त्री०=नारि (स्त्री)। उदा०–नीके है छींके हुए ऐसे ही रह नार।–बिहारी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नारक					 : | पुं० [सं० नरक+अण्] १. नरक। २. नरक में रहनेवाला प्राणी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नारकिक					 : | वि०=नारकी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नारकी					 : | वि० [सं० नारकिन्] १. नरक में पड़ा हुआ। जो नरक भोग रहा हो। २. जिसका नरक में जाना निश्चित हो; अर्थात् परम दुराचारी या पापी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नारकीट					 : | पुं० [सं०] १. एक प्रकार का कीड़ा। अश्मकीट। २. वह जो किसी को आशा में रखकर निराश करे; फलतः अधम या नीच। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नारकीय					 : | वि० [सं० नरक+छण्–ईय] १. नरक-संबंधी। २. नरक में रहने या होनेवाला। ३. बहुत ही अधम या पापी (व्यक्ति)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नारद					 : | पुं० [सं० नार=आत्मज्ञान√दा (देना)+क] १. एक प्रसिद्ध देवर्षि और भगवान के परम भक्त जो ब्रह्मा के पुत्र कहे गए हैं, और जिनका नाम अनेको आख्यानों, कथाओं आदि में आता है। २. उक्त के आधार पर ऐसा व्यक्ति जो प्रायः लोगों में लड़ाई-झगड़े कराता रहता हो। ३. विश्वामित्र के एक पुत्र का नाम। ४. एक प्रजापति। ५. चौबीस बुद्धों में से एक बुद्ध। ६. कश्यप ऋषि की संतान, एक गन्धर्व। ७. शाक द्वीप का एक पर्वत। | 
			
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				| नारद-पुराण					 : | पुं० [सं० मध्य स०] १. अठारह पुराणों में से एक जिसमें सनकादिक ने नारद को संबोधन करके अनेक कथाएँ कही हैं और उपदेश दिए हैं। इसमें तीर्थों और व्रतों के माहात्मय बहुत अधिक हैं। २. एक-उपपुराण, जिसे बृहन्नारदीय भी कहते हैं। | 
			
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				| नारदी (दिन्)					 : | पुं० [सं० नारद+इनि] विश्वामित्र के एक पुत्र का नाम। | 
			
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				| नारदीय					 : | वि० [सं० नारद+छ–ईय] नारद का। नारद-संबंधी। जैसे–नारदीय पुराण। | 
			
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				| नारन					 : | पुं० [सं० नार+हिं० न (प्रत्य०)] नर-समूह। मनुष्यों का समुदाय। उदा०–मनौं तज्यो तारन बिरद, बारक नारन तारि।–बिहारी। | 
			
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				| नारना					 : | वि० [सं० ज्ञान, प्रा० णाण+हिं० न] थाह लगाना। पता लगाना। भाँपना। नाड़ना। | 
			
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				| नारफ़िक					 : | पुं० [अं० नारफ़िक] इंग्लैण्ड के नारफॉक प्रदेश में होनेवाले घोड़ों की एक जाति। | 
			
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				| नार-बेबार					 : | पुं० [हिं० नार+सं० विवार=फैलाव] तुरंत के जनमे हुए बच्चे की नाल, खेड़ी आदि। | 
			
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				| नारमन					 : | पुं० [अं०] १. फ्रांस के नारमंडी प्रदेश का निवासी, व्यक्ति या इन व्यक्तियों की जाति। २. जहाज पर का वह खूँटा जिसमें रस्सा बाँधा जाता है। स्त्री० फ्रांस के नारमंडी प्रदेश की बोली या भाषा ! | 
			
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				| ना-रसा					 : | वि० [फा०] [भाव० ना-रसाई] १. जो पहुँच न सके। २. जिसकी पहुँच न हो। | 
			
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				| ना-रसाई					 : | स्त्री० [फा०] पहुँच न होने की अवस्था या भाव। | 
			
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				| नारसिंह					 : | पुं० [सं० नरसिंह+अण्] १. नरसिंह रूपधारी विष्णु। २. एक उप-पुराण जिसमें नृ-सिंह अवतार की कथा है। ३. एक तांत्रिक ग्रंथ। | 
			
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				| नारसिंही					 : | वि० [सं० नारसिंह] १. नारसिंह-संबंधी। नारसिंहका। २. बहुत उग्र, प्रबल या विकट। जैसे–नरसिंही टोना-टोटका। | 
			
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				| नारांतक					 : | पुं० [सं०] रावण का एक पुत्र। | 
			
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				| नारा					 : | पुं० [सं० नाल, हिं० नार] १. घाघरे, पाजामे आदि के नेफे में की वह मोटी डोरी जो पहनावे पहनते समय कमर में बाँधी जाती है। २. रँगा हुआ लाल रंग का वह सूत जो प्रायः पूजन के अवसर पर देवताओं को चढ़ाया जाता है। ३. हल के जूए में बँधी हुई रस्सी। पुं० [स्त्री० नारी] बड़ी नाली। नारा। पुं० [अ० नडारः] १. जोर का शब्द। २. किसी दल, समुदाय आदि की तीव्र अनुभूति और इच्छा का सूचक कोई पद या गठा हुआ वाक्य जो लोगों को आकृष्ट करने के लिए उच्च स्वर से बोला और सब को सुनाया जाता है। जैसे–भारत माता की जय। | 
			
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				| नाराइन					 : | पुं०=नारायण। | 
			
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				| नाराच					 : | पुं० [सं० नार-आ√चम् (खाना)+ड] १. ऊपर से नीचे तक लोहे का बना हुआ तीर या बाण। २. ऐसा दिन जिसमें बादल घिरे रहें। मेघों से आच्छादिन दिन। दुर्दिन। ३. एक प्रकार का मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में २4 मात्राएँ होती हैं। ४. एक प्रकार का वर्ण-वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में दो नगण और चार रगण होते हैं। इसे महामालिनी और नारका भी कहते हैं। | 
			
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				| नाराच घृत					 : | पुं० [सं०] चीते की जड़, त्रिफला, भटकटैया, बायविडंग आदि एक साथ मिलाकर तथा घी में पकाकर तैयार किया हुआ एक औषध जो मालिश, लेप आदि के काम आता है। | 
			
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				| नाराचिका					 : | स्त्री० [सं० नाराच+ठन्–इक, टाप्] सुनारों आदि का छोटा काँटा या तराजू। | 
			
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				| नाराची					 : | स्त्री० [सं० नाराच+अच्–ङीष्] सुनारों आदि का छोटा काँटा। | 
			
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				| नाराज					 : | वि० [फा० नाराज] [भाव० नाराजगी] अप्रसन्न। रुष्ट। नाखुश। खफा। | 
			
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				| नाराजगी					 : | स्त्री० [फा०] नाराज होने की अवस्था या भाव। | 
			
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				| नाराजी					 : | स्त्री०=नाराजगी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| नारायण					 : | पुं० [सं० नार-अयन, ब० स०] १. ईश्वर। परमात्मा। भगवान। २. विष्णु। ३. कृष्ण यजुर्वेद के अंतर्गत एक उपनिषद्। ४. एक प्रकार का प्राचीन अस्त्र। ५. ‘अ’ अक्षर की संज्ञा। ६. पूस का महीना। पौष मास। | 
			
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				| नारायण-क्षेत्र					 : | पुं० [ष० त०] गंगा के प्रवाह से चार हाथ तक की भूमि। | 
			
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				| नारायण तैल					 : | पुं० [सं०] आयुर्वेद में एक तरह का तेल जो मालिश करने के काम आता है। | 
			
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				| नारायण-प्रिय					 : | पुं० [ष० त० या ब० स०] १. महादेव। शिव। २. पाँचों पांडवों में के सहदेव। ३. पीला चंदन। | 
			
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				| नारायण-बलि					 : | स्त्री० [मध्य० स० या च० त०] आत्म-हत्या आदि करके मरे हुए व्यक्ति की आत्मा की शांति तथा शुद्धि के लिए उसके दाह-संस्कार से पहले प्रायश्चित्त के रूप में ब्रह्मा, विष्णु, शिव, यम और प्रेत के उद्देश्य से दी जानेवाली बलि। | 
			
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				| नारायणी					 : | स्त्री० [सं० नारायण+अण्–ङीप्] १. दुर्गा। २. लक्ष्मी। ३. गंगा। ४. मुद्ल ऋषि की पत्नी का नाम। ५. श्रीकृष्ण की वह प्रसिद्ध सेना जो उन्होंने महाभारत के युद्ध में दुर्योधन को उसकी सहायता के लिए दी थी। ६. शतावर। ७. संगीत में, खम्माच ठाठ की एक रागिनी। वि०=नारायणी। जैसे–नारायणी माया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| नारायणीय					 : | वि० [सं० नारायण+छ–ईय] नारायण-संबंधी। नारायण का। पुं० महाभारत के शांति-पर्व का एक उपाख्यान जिसमें नारद और नारायण ऋषि की कथाएँ हैं। | 
			
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				| नाराशंस					 : | वि० [सं० नर-आ√शंस् (स्तुति)+घञ् नाराशंस=पितर+अण्] मनुष्यों की प्रशंसा या स्मृति से संबंध रखनेवाला। पुं० १. वेद में के रुद्र दैवत्य मंत्र, जिनमें मनुष्यों की प्रशंसा की गई है। २. ऊम, और्व और काव्य, ये तीन पितृगण। ३. उक्त पितृगणों के निमित्त यज्ञ आदि में छोड़ा जानेवाला सोमरस। ४. एक तरह का पात्र जिससे यज्ञ में उक्त उद्देश्य से सोमरस छोड़ा जाता था। ५. पितर। | 
			
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				| नाराशंसी					 : | स्त्री० [सं० नार-आशंसी, ष० त०] १. मनुष्यों की प्रशंसा या स्तुति। २. वेदों का वह मंत्र-भाग जिसमें अनेक राजाओं के दानों आदि का प्रशंसात्मक उल्लेख है। | 
			
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				| नारि					 : | स्त्री० [हिं० नाल] १. बड़ी तोप, विशेषतः हाथी पर रखकर चलाई जानेवाली तोप। २. दे० ‘नाड़’। ३. गरदन। उदा०–अति अधीन सुजान कनौड़े गिरिधर नारि बनावति।–सूर स्त्री० [सं० नार] १. समूह। झुंड। २. आगार। भंडार। स्त्री०=नारी (स्त्री)। | 
			
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				| नारिक					 : | वि० [सं० नार+ठक्–इक] १. जल का। जल-संबंधी। २. जल से युक्त। अध्यात्म-संबंधी। आध्यात्मिक। पुं० [?] पीतल, फूल आदि के वे पुराने बरतन जो दूकानदार लोग मरम्मत करके फिरसे नये के रूप में बेचते हैं। (कसेरे) | 
			
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				| नारिकेर					 : | पुं०=नारिकेल (नारियल)। | 
			
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				| नारिकेरी					 : | स्त्री०=नारिकेली। | 
			
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				| नारिकेल					 : | पुं० [सं०√किल् (क्रीड़ा)+घञ्, नारी-केल, ष० त०, पृषो० ह्रस्व] नारियल नामक वृक्ष और उसका फल। | 
			
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				| नारिकेल-क्षीरी					 : | स्त्री० [सं०] दूध में गरी डालकर बनाई जानेवाली खीर। | 
			
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				| नारिकेल					 : | खंड | 
			
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				| नारिकेली					 : | स्त्री० [सं० नारिकेल+अण्–ङीष्] नारियल के पानी से बनाई जानेवाली एक तरह की मदिरा। | 
			
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				| नारिदान					 : | पुं०=नाबदान (पनाला)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| नारि-माला					 : | स्त्री० [हिं० नली+माला] हल के पीछे लगी हुई वह नली और उसके ऊपर बना हुआ कटोरी के आकार का पात्र जिसमें बीज बोने के लिए छोड़े जाते हैं। नली को नारि और उसके मुँह पर के पात्र को माला कहते हैं।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| नारियल					 : | पुं० [सं० नारिकेल] १. समुद्र के किनारे और उसके आस-पास की भूमि में होनेवाला खजूर की जाति का एक तरह का ऊँचा बड़ा पेड़ जिसके फल की ऊपरी खोपड़ी को तोड़ने पर अंदर से गरी निकलती है। २. उक्त पेड़ का फल। पद–नारियल की जटा=नारियल के फल के ऊपर के कड़े और मोटे रेशे जिनसे रस्से आदि बनाये जाते और गद्दे भरे जाते हैं। मुहा०–नारियल तोड़ना=मुसलमानों की एक रीति जो गर्भ रहने पर की जाती है। नारियल तोड़कर उससे लड़का या लड़की होने का शकुन निकालते हैं। ३. नारियल की खोपड़ी से बनाया हुआ हुक्का। | 
			
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				| नारियल पूर्णिमा					 : | स्त्री० [हिं० +सं०] बम्बई प्रदेश में मनाया जानेवाला एक उत्सव जिसमें समुद्र में नारियल फेंकते हैं। | 
			
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				| नारियली					 : | स्त्री० [हिं० नारियल+ई (प्रत्य०)] १. नारियल की खोपड़ी। २. उक्त खोपड़ी का बना हुआ हुक्का। ३. नारियल की ताड़ी। | 
			
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				| नारी					 : | स्त्री० [सं० नृ.+अञ्–ङीन्] [भाव० नारीत्व] १. सं० ‘नर’ का स्त्री० रूप। मनुष्य जति का लिंग के विचार से वह वर्ग जो गर्भाधारण करके प्राणियों को जन्म देता है। २. विशेषतः वह स्त्री जिसमें लज्जा, सेवा, श्रद्धा आदि गुणों की प्रधानता हो। ३. युवती तथा वयस्क स्त्रियों की सामूहिक संज्ञा। ४. धार्मिक क्षेत्र में तथा साधकों की परिभाषा में (क) प्रकृति और (ख) माया। ५. तीन गुरु वर्णों की एक वृत्ति। स्त्री० [हिं० नार] वह रस्सी जिससे जुए में हल बाँधा जाता है। स्त्री० [सं० नारीष्टा] चमेली। मल्लिका।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० [?] जलाशयों के किनारे रहनेवाली एक तरह की भूरे रंग की चिड़िया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० १.=नाड़ी। २.=थाली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नारी-कवच					 : | पुं० [ब० स०] एक सूर्यवंशी राजा जिसे स्त्रियों ने अपने बीच में घेर कर परशुराम से वध किये जाने से बचा लिया था। क्षत्रियों का वंश विस्तार इन्हीं से माना जाता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नारीकेल					 : | पुं०=नारिकेल (नारियल)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नारीच					 : | पुं० [सं० नाडीच, ड=र] नालिता नाम का शाक। | 
			
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				| नारी-तरंगक					 : | पुं० [ष० त०] १. वह व्यक्ति जो नारी का हृदय तरंगित करे। २. प्रेमी। ३. व्यभिचारी व्यक्ति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नारी-तीर्थ					 : | पुं० [मध्य० स०] एक तीर्थ जहाँ अर्जुन ने ब्राह्मण के शाप से ग्राह बनी हुई पाँच अप्सराओं का उद्धार किया था। | 
			
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				| नारी-मुख					 : | पुं० [ब० स०] पुराणानुसार कूर्म विभाग से नैर्ऋत् की ओर का एक देश। | 
			
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				| नारीष्टा					 : | स्त्री० [नारी-इष्टा, ष० त०] चमेली। मल्लिका। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नारुंतुद					 : | वि० [सं० न-अरुन्तुद] जिसके शरीर पर कोई आघात न लगता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नारू					 : | पुं० [देश०] १. जूँ। ढील। २. एक प्रसिद्ध रोग जिसमें शरीर में होनेवाली फुंसियों में से सफेद रंग के सत के सूत के समान लंबे-लंबे कीड़े निकलते हैं। ये कीड़े त्वचा के तंतु-जाल में से निकलते हैं, रक्त में से नहीं। पुं० [हिं० नाली, पु० हिं० नारी] क्यारियों में की जाने या होनेवाली बोआई। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नार्दल					 : | पुं० [देश०] पुरानी चाल का एक प्रकार का बाजा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नार्पत्य					 : | वि० [सं० नृपति+ष्यञ्] नृपति अर्थात् राजा से संबंध रखनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नार्मद					 : | वि० [सं० नर्मदा+अण्] नर्मदा-संबंधी। नर्मदा नदी का। पुं० नर्मदा में से निकलनेवाले एक प्रकार के शिव लिंग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नार्मर					 : | पुं० [सं०] ऋग्वेद में वर्णित एक असुर जिसका वध इन्द्र ने किया था। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नार्य्यग					 : | पुं० [सं० नारी-अंग, ब० स०] नारंगी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नार्य्यतिक्त					 : | पुं० [सं०] चिरायता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नालंदा					 : | पुं० [सं०] मगध में स्थित एक जगत्-विख्यात् प्राचीन विश्व-विद्यालय जो पाटिलपुत्र से 30 कोस दक्षिण में था। | 
			
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				| नालंब					 : | वि० [स्त्री० नालंबा] निरवलंब। उदा०–पर हाय आज वह हुई निपट नालंबा।–मैथिलीशरण गुप्त।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नालंबी					 : | स्त्री० [सं०] शिव की वीणा। | 
			
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				| नाल					 : | स्त्री० [सं०√नल् (बंधन)+ण] १. कमल, कुमुद आदि फूलों की पोली डंडी। डाँडी। २. पौधों में डंठल। कांड। ३. गेहूँ, जौ आदि की वह डंडी जिसमें बालें निकलती हैं। ४. नल या नली। २. बंदूक के आगे निकला हुआ पोला लंबा अंश जिसमें से गोली निकलती है। ७. जुलाहों की नली जिसमें वे सूत लपेटकर रखते हैं। छूँछा। कैंडा। छुज्जा। ८. वह रेशा जो कलम बनाते समय छीलने पर निकलता है। ९. रस्सी के आकार की वह नली जो एक ओर गर्भ के बच्चे की नाभि और दूसरी ओर गर्भाशय से मिली होती है। आँवला। मुहा०–नाल काटना=बच्चे का जन्म होने पर नाल काटकर उसे माता के शरीर से अलग करना। (किसी की कहीं) नाल गड़ी होना=(क) किसी स्थान से अति घनिष्ठ प्रेम या संबंध होना। (ख) किसी स्थान पर कोई स्वत्व होना। १॰. बाँस या मोटे कागज की वह नली जो आतिशबाजी की चरखियों में लगी रहती है और जिसमें विस्फोटक मसाले भरे रहते हैं। ११. छोटा नाला या पनाला। स्त्री० [अ० नअल] १. लोहे का वह अर्द्ध-चंद्राकार टुकड़ा जो घोड़ों की टाप में नीचे की ओर जड़ा जाता है। क्रि० प्र०–जड़ना। २. उक्त आकार का लोहे का पतला टुकड़ा जो जूतों के नीचे उनकी एड़ी घिसने से बचाने के लिए लगाया जाता है। ३. पत्थर का वह भारी कुंडलाकार टुकड़ा जिसे कसरत करनेवाले अभ्यास के लिए उठाते हैं। ४. लकड़ी का वह कुंडलाकार घेरा या चक्कर जिसके ऊपर कूएँ की जोड़ाई की जाती है। ५. वह धन जो जूआ खेलनेवाला व्यक्ति हर बार जीतनेवाले व्यक्ति से वसूल करता है। क्रि० वि० [?] संग या साथ में। (पश्चिम) | 
			
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				| नालक					 : | पुं० [देश०] १. पीतल की एक किस्म। २. उक्त किस्म के पीतल का बना हुआ पात्र। ३. एक प्रकार का बाँस। | 
			
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				| नाल-कटाई					 : | स्त्री० [हिं०] तुरन्त के जन्मे हुए बच्चे की नाक काटने की क्रिया, भाव या मजदूरी। | 
			
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				| नालकी					 : | स्त्री० [सं० नाल=डंडा] एक तरह की लंबी पालकी जिसमें वर की बैठाकर बरात निकाली जाती है। विशेष–कुछ नालकियाँ खुली होती हैं और कुछ पर मेहराबदार छाजन होती है। | 
			
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				| नालकेर					 : | पुं० [सं० नारिकेल] नारियल। | 
			
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				| नालबंद					 : | पुं० [अ०+फा०] [भाव० नालबंदी] १. वह व्यक्ति जो घोड़ों के खुर में नाल जड़ता हो। २. ऐसे मोची जो जूतों में नाल लगाता हो। | 
			
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				| नालबंदी					 : | स्त्री० [अ० नाल+फा० बंदी] जूतों की एड़ी अथवा घोड़ों के खुर में नाल जड़ने का काम। पुं० मुसलिम शासन-काल में एक प्रकार का कर जो जमींदार और छोटे राजा अपनी प्रजा से, उनकी रक्षा के लिए घुड़सवार रखने के बदले में लिया करते थे। | 
			
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				| नाल-बाँस					 : | पुं० [सं० नल+हिं० बाँस] एक तरह का बढ़िया और मजबूत बाँस। | 
			
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				| नालबंश					 : | पुं० [सं० उपमि० स०] नरसल। नरकट। | 
			
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				| नाल-शतीरी					 : | पुं० [अ० नाल+फा० शहतीर] लकड़ी की एक तरह की मेहराब जिसमें अनेक छोटी-छोटी मेहराबें कटी होती हैं। | 
			
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				| नाल-शाक					 : | पुं० [सं०] सूरन की नाल जिसकी तरकारी बनाई जाती है। | 
			
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				| नाला					 : | पुं० [सं० नाल] [स्त्री० अल्प० नाली] १. वह गहरा तथा लंबा कृत्रिम जल-मार्ग जो नहर आदि की अपेक्षा कम चौड़ा होता है तथा जिसमें बरसाती, गंदा या फालतू पानी बहकर किसी नदी आदि में जा गिरता है। २. रंगीन गंडेदार सूत। ३. दे० ‘नाड़ा’। स्त्री० [सं० नाल+टाप्] १. कमलदंड। २. पौधे का कोमल तना। पुं० [अ० नालः] आर्तनाद। चीत्कार। | 
			
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				| नालायक					 : | वि० [फा० ना+अ० लाइक] १. जिसमें योग्यता का अभाव हो। २. जो मूर्खतापूर्ण दुष्ट आचरण या व्यवहार करता हो। | 
			
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				| नालायकी					 : | स्त्री० [हिं० नालायक+ई (प्रत्य०)] १. नालायक होने की अवस्था या भाव। अयोग्यता। २. मूर्खतापूर्वक किया हुआ कोई दुष्ट आचरण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नालि					 : | स्त्री० [सं०√नल्+णिच्+इन्] १. नालिका। नली। उदा०–जुआलि नालि तसु गरम चेहवी।–पृथ्वीराज। २. बंदूक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नालिक					 : | पुं० [सं० नाल+ठन्–इक] १. कमल। २. बाँसुरी। ३. भैंसा। ४. प्राचीन काल का एक अस्त्र जिसकी नली में कुछ चीजें भरकर चलाई या फेंकी जाती थीं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नालिका					 : | स्त्री० [सं० नाला+कन्–टाप्, इत्व] १. छोटी नाल या डंठल। २. नली। ३. पानी आदि बहने की नाली। ४. करघे में की वह नली जिसके अंदर लपेटा हुआ सूत रहता है। ५. पटुआ नाम का साग। ६. एक प्रकार का गन्ध-द्रव्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नालिकेर					 : | पुं०=नारिकेल (नारियल)। | 
			
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				| नालि-केरी					 : | स्त्री० [सं० नालिकेर+ङीष्] एक तरह का शाक। | 
			
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				| नालि-जंघ					 : | पुं० [सं० ब० स०] डोम कौआ। | 
			
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				| नालिता					 : | स्त्री० [सं०] १. पटसन। पटुआ। २. उक्त के कोमल पत्तों का बनाया जानेवाला शाक। | 
			
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				| नालिनी					 : | स्त्री० [सं०] तंत्र में नाक का छेद। | 
			
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				| नालिश					 : | स्त्री० [फा०] १. किसी के संबंध में की जानेवाली फरियाद। २. किसी के विरुद्ध दायर किया जानेवाला मुकदमा। | 
			
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				| नाली					 : | स्त्री० [हिं० नाला का स्त्री० अल्पा० रूप] १. गंदा पानी बहने का घर, गली आदि में का पतला और छिछला मार्ग। छोटा नाला। मोरी। २. जल-मार्ग जो प्रायः कम चौड़ा और छिछला होता है। जैसे–खेत में की नाली। ३. वह गहरी लकीर तो तलवार की बीचो बीच पूरी लंबाई तक गई होती है। ४. पतला। नल। नली। ५. पुरानी चाल की बंदूक। उदा०–बान नालि हथनाल, तुपक तीरह सब सज्जिय।–चंदबरदाई। ६. कुम्हार के आँवे का वह नीचे की ओर गया हुआ छेद जिससे आग डालते हैं। घोड़े की पीठ पर का गड्ढा। ८. चोंगा। ढरका। स्त्री० [सं० नालि+ङीष्] १. नाड़ी। २. करेमू का साग। ३. कमल का डंठल। ४. एक उपकरण जिससे हाथी का कान छेदा जाता है। ५. एक तरह का बाघ। ६. घड़ी। | 
			
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				| नालीक					 : | पुं० [सं० नाली√कै (शब्द)+क] १. पुरानी चाल का एक तरह का तीर जो बाँस की नली में रखकर चलाया जाता था। तुफंग। २. भाला। ३. कमलों का जाल या समूह। ४. कमल-नाल। ५. कमंडलु। | 
			
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				| नालीकिनी					 : | स्त्री० [सं० नालीक+इनि–ङीप्] १. पद्म समूह। २. कमलों से पूर्ण जलाशय। | 
			
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				| नालीदार					 : | वि० [हिं० नाली+फा० दार] जिसमें नाली या नालियाँ बनी या लगी हों। | 
			
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				| नालीप					 : | पुं० [सं०] कदंब। | 
			
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				| नाली-व्रण					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] नासूर। | 
			
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				| नालूक					 : | वि० [सं०] कृश। दुबला। पुं० एक प्रकार का गन्ध-द्रव्य। | 
			
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				| नालौट					 : | वि० [हिं० ना+लौटना] बात कहकर पलट जानेवाला। मुकरनेवाला। | 
			
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				| नालौर					 : | वि०=नालौट। | 
			
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				| नावँ					 : | पुं०=नाम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| नाव					 : | स्त्री० [सं० नौ से फा०] १. नदी से पार उतरने की एक प्रसिद्ध सवारी जिसे मल्लाह डाँडों या पतवारों से खेते हैं। किश्ती। नौका। २. तलवार आदि में रेखाकार बना हुआ चिह्न। खाँचा। नाली। जैसे–दुनावी तलवार या चौनावा खाँचा। | 
			
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				| नावक					 : | पुं० [फा०] १. पुरानी चाल का एक तरह का तीर जो बहुत गहरी चोट करता था। २. मधुमक्खी का डंक। पुं०=नाविक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| नाव का पुल					 : | पुं० [हिं०] नदी के एक किनारे से दूसरे किनारे तक लगा हुआ आपस में बँधी हुई नावों का क्रम या श्रृंखला, जो पुल का काम देती है। (बोट ब्रिज) | 
			
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				| ना-वक्त					 : | अव्य० [फा०+अ०] १. अनुपयुक्त समय में। २. देर करके। | 
			
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				| नाव-घाट					 : | पुं० [हिं०] नदी, झील आदि का वह स्थान जहाँ नावें रहती हैं।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नावण					 : | पुं०=नहान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नावना					 : | स० [सं० नामन] १. किसी के अंदर कुछ गिराना, डालना या रखना। २. प्रविष्ट करना। घुसाना। स०=नवाना (झुकाना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| नावनीत					 : | वि० [सं० नवनीत+अण्] १. नवनीत-संबंधी। २. मुलायम। | 
			
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				| नावर					 : | स्त्री० [हिं० नाव] १. नाव। नौका। २. नाव को नदी के बीच में जाकर चक्कर खेलाने की क्रीड़ा। | 
			
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				| नावरा					 : | पुं० [देश०] दक्षिण भारत में होनेवाला एक तरह का पेड़ जिसकी लकड़ी चिकनी तथा मजबूत होती है। | 
			
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				| नावरि					 : | स्त्री० नावर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नावाँ					 : | पुं०=नावाँ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| ना-वाकिफ					 : | वि० [फा़ ना+अ० वाक़िफ़] [भाव० नावाकिफीयत] १. जिसे किसी से वाकिफीयत अर्थात् जान-पहचान न हो। २. अनजान। ३. अज्ञात। | 
			
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				| ना-वाजिब					 : | वि० [फा० ना+अ० वाजिब] जो वाजिब अर्थात् उचित न हो। अनुचित। | 
			
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				| नावाषिकरण					 : | पुं० [सं० नौ-अधिकरण, ष० त०=नावधिकरण] १. राज्य या राष्ट्र का वह विभाग जो जहाड़ी बेड़ों से संबंधित हो और नौ-सेना आदि का संचालन करता हो। २. उक्त विभाग के अधिकारियों का वर्ग। ३. राज्य के जहाजी बेड़े। (एडमिरलटी; उक्त सभी अर्थों में) | 
			
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				| नाविक					 : | पुं० [सं० नौ+ठन्–इक] वह जो नौका खेता हो। मल्लाह। माँझी। | 
			
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				| नावी (विन्)					 : | पुं० [सं० नौ+इनि] नाविक। मल्लाह। | 
			
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				| नावेल					 : | पुं० [अं० नावेल] उपन्यास। (देखें) | 
			
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				| नाव्य					 : | वि० [सं० नौ+यत्] १. जिसे नाव से पार किया जा सके। २. नाव से पार करने योग्य। ३. प्रशंसनीय। | 
			
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				| नाव्य-नलमार्ग					 : | पुं० [सं० कर्म० स०] वह जल मार्ग जिसमें नावें चलती या चल सकती हों। नावों के यातायात के लिए उपयुक्त जल-मार्ग। (नैविगेबुल) | 
			
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				| नाश					 : | पुं० [सं०√नश् (नष्ट होना)+घञ्] [कर्ता० नाशक, भू० कृ० नष्ट] १. ऐसी स्थिति जिसमें किसी वस्तु की सत्ता मिल चुकी होती है। २. सत्ता से च्युत या रहित करने या होने की अवस्था, क्रिया या भाव। ३. रचनाओं का टूट-फूटकर ध्वस्त होना। ४. चौपट होने की अवस्था या भाव। | 
			
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				| नाशक					 : | वि० [सं०√नश्+णिच्+ण्वुल्–अक] १. ध्वंस या नाश करनेवाला। मिटाने या दूर करनेवाला। २. मारने या बध करनेवाला। | 
			
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				| नाशकारी (रिन्)					 : | वि० [सं० नाश√कृ (करना)+णिनि] [स्त्री० नाश कारिणी] नाश करनेवाला। नाशक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाशन					 : | पुं० [सं०√नश्+णिच्+ल्युट्–अन] नाश करना। वि० [स्त्री० नाशिनी] नाश करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाशना					 : | सं० [सं० नाश] नाश करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाशपाती					 : | स्त्री० [फा० नाशपाती] सेब की जाति का एक प्रसिद्ध पेड़ और उसका फल जो काश्मीर में बहुत होता है। | 
			
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				| नाश-वाद					 : | पुं० [सं० ष० त०] १. यह वाद या सिद्धान्त कि संसार में जो कुछ है, उसका नाश अवश्य होगा। २. एक आधुनिक पाश्चात्य सिद्धांत जिसके अनुसार सभी धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक मान्यताएँ तथा व्यवस्थाएँ बुरी समझी जाती हैं। (निहलिज्म) | 
			
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				| ना-शाइस्ता					 : | वि० [फा० नाशाइस्तः] १. अनुचित। नामुनासिब। २. अशिष्ट। ३. असभ्य। ४. अश्लील। | 
			
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				| ना-शाद					 : | वि० [फा०] १. जो शाद अर्थात् खुश या प्रसन्न न हो। दुःखी। २. अभागा। बदनसीब। | 
			
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				| नाशित					 : | भू० कृ० [सं०√नश्+णिच्+क्त] जिसका नाश हो चुका हो। नष्ट। | 
			
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				| नाशी (शिन्)					 : | वि० [सं० नाश+इनि] [स्त्री० नाशिनी] १. नाश करनेवाला। नाशक। २. नष्ट होनेवाला। नश्वर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाशुक					 : | वि० [सं०√नश्+उकञ्] नष्ट होनेवाला। नश्वर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| ना-शुदनी					 : | वि० [फा०] १. (घटना या बात) जो कभी न हो सके। असंभव। २. (व्यक्ति) जो बहुत ही अभागा या बुरा हो। स्त्री० ऐसी अनिष्टकारी या अप्रिय घटना जो असंभाव्य होने पर भी अचानक घटित हो जाय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाश्ता					 : | पुं० [फा़ नाश्तः] सबेरे अथवा दोपहर के भोजन के कुछ समय पहले बासी मुँह किया जानेवाला जल-पान। कलेवा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| नाश्य					 : | वि० [सं०√नश्+णिच्+यत्] १. जिसका नाश हो सके या होने को हो। २. जिसका नाश किया जाना उचित हो। | 
			
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				| नाष्टिक					 : | वि० [सं० नष्ट+ठज्+इक] १. जो नष्ट हो चुका हो। पुं० वह व्यक्ति इसकी कोई चीज नष्ट हो चुकी हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाष्टिक					 : | वि० [सं० नष्ट+ठञ्–इक] जो नष्ट हो चुका हो। पुं० वह व्यक्ति जिसकी कोई चीज नष्ट हो चुकी हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाष्टिक-धन					 : | पुं० [सं० कर्म० स०] खोया हुआ धन। (स्मृति) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नास					 : | स्त्री० [सं० नासा] १. वह चूर्ण जो नाक में डाला जाय। वह औषध जो नाक से सूँघी जाय। नस्य। क्रि० प्र०–लेना।–सूँघना। २. नसवार। सुँघनी। पुं०=नाश।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासत्य					 : | पुं० [सं० नअसत्य, नञ्समास, प्रकृतिवद्भाव] अश्विनीकुमार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासत्या					 : | स्त्री० [सं० नासत्य+टाप्] अश्वनी नक्षत्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासदान					 : | पुं० [हिं० नास+फा० दान] सुँघनी रखने की डिबिया। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासना					 : | स० [सं० नाशन्] १. नष्ट या बरबाद करना। २. न रहने देना। अन्त कर देना। ३. मार डालना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासपाली					 : | पुं० [?] अनारी रंग। (टार्टन गोल्ड) वि० उक्त प्रकार के रंग का। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नास-पीटा					 : | वि० [सं० नाश+हिं० पीटना] [स्त्री० नास-पीटी] ऐसा परम नीच और हीन, जिसका कष्ट हो जाना ही अभीष्ट हो। (ब्रज में, स्त्रियों की गाली या शाप) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| ना-समझ					 : | वि० [हिं० ना+समझ] [भाव० ना-समझी] १. (व्यक्ति) जिसे समझ न हो। मूर्ख। २. कम समझवाला। नादान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| ना-समझी					 : | स्त्री० [हिं० ना-समझ] ना-समझ होने की अवस्था या भाव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासा					 : | स्त्री० [सं०√नास्+अ–टाप्] [वि० नास्य] १. नासिका। नाक। २. नाक के दोनों छेद। नथना। ३. दरवाजे में चौखट के ऊपर की लकड़ी। ३. अजूसा। वासक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासाख़त					 : | पुं० दे० ‘नक-घिसनी’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासाग्र					 : | पुं० [सं० नासा+अग्र ष० त०] नाक का अगला नुकीला अंश या भाग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| ना-साज					 : | वि० [फा० नासाज] [भाव० नासाजी] (शारीरिक स्थिति) जिसमें किसी प्रकार की बेचैनी, रोग या शिथिलता न हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासा-ज्वर					 : | पुं० [मध्य० स०] नाक में एक प्रकार की गाँठ होने के फल-स्वरूप चढ़नेवाला बुखार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासानाह					 : | पुं० [सं०] एक तरह का रोग जिसमें कफ से नथने रुँधे रहते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासा-परितोष					 : | पुं० [ष० त०] नासाशोष रोग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासा-पाक					 : | पुं० [ष० त०] नाक का वह चमड़ा जो छेदों के किनारे परदे का काम देता है। नथना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासा-योनि					 : | पुं० [ब० स०] वह नपुंसक जिसे घ्राण करने पर उद्दीपन हो। सौगंधिक नपुंसक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासालु					 : | पुं० [सं०] कायफल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासा-वंश					 : | पुं० [उपमि० स०] नाक की हड्डी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासा-वेष					 : | पुं० [ष० त०] १. नथ आदि पहनने के लिए नाक में छेद करने की रसम। २. उक्त काम के लिए नाक के अगले भाग में किया हुआ छेद। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासामणि					 : | पुं० [सं०] संगीत में, कर्नाट की पद्धति का एक राग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासा-शोष					 : | पुं० [ष० त०] एक रोग जिसमें नाक में कफ जम तथा सूख जाता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासा-स्राव					 : | पुं० [ष० त०] नाक में से कफ या पानी निकलना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासिकंधम					 : | वि० [सं० नासिका√ध्मा (शब्द)+खश्, मुम्, ह्रस्व] बोलते समय जिसके नाक से भी ध्वनि निकलती हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासिक					 : | स्त्री० [सं० नासिक्य] बम्बई राज्य में गोदावरी के तट पर की एक प्रसिद्ध नगरी जो तीर्थ मानी जाती है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासिका					 : | स्त्री० [सं०√नास्+ण्वुल्–अक, टाप्, इत्व] १. नाक। नासा। २. नाक की तरह आगे निकली हुई कोई लंबी चीज। ३. हाथी की सूँड़। ४. दरवाजे में, चौखट के ऊपर की लकड़ी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासिका-भूषणी					 : | स्त्री० [सं०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासिक्य					 : | वि० [सं० नासिका+ण्यञ्] नासिका में उत्पन्न। पुं० १. नासिका। नाक। २. अश्विनीकुमार। ३. दक्षिण भारत का नासिक नामक तीर्थ। ४. अनुनासिक स्वर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासिर					 : | पुं० [अ०] नस्र अर्थात् गद्य लिखनेवाला लेखक। गद्य-लेखक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासी					 : | वि०=नाशी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासीर					 : | वि० [सं०नास्+क्विप्, नास√ईर् (गति)+क] आगे आगे चलनेवाला। पुं० सेना का अगला भाग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासूत					 : | पुं० [अ०] इहलोक। मर्त्यलोक। (सूफी संप्रदाय) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नासूर					 : | पुं० [?] एक प्रकार का घाव जिसका मुँह नली के आकार का होता है और जिसमें से बराबर मवाद निकलता रहता है। नाड़ी व्रण। (साइनस) क्रि० प्र०–पड़ना। मुहा०–(किसी के) कलेजे या छाती में नासूर डालना=किसी को बहुत अधिक दुःखी करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नास्तिक					 : | पुं० [सं० नास्ति+ठक्–क] [भाव० नास्तिकता] ईश्वर, परलोक, मत-मतांतरों आदि को न माननेवाला। ‘आस्तिक’ का विपर्याय। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नास्तिकता					 : | स्त्री० [सं० नास्तिक+तल्–टाप्] नास्तिक होने की अवस्था या भाव। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नास्तिक्य					 : | पुं० [सं० नास्तिक+ष्यज्] नास्तिकता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नास्तिद					 : | पुं० [सं०] आम का पेड़। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नास्तिवाद					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] १. नास्तिकों का तर्क। २. नास्तिकता। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नास्य					 : | वि० [सं० नासा+यत्] १. नासिका-संबंधी। नाक का। २. नासिका से उत्पन्न। पुं० बैल के नथनों में नाथी या बाँधी जानेवाली रस्सी। नाथ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाह					 : | पुं० [सं० नाथ] १. नाथ। स्वामी। मालिक। २. स्त्री० का पति। ३. बन्धन। ४. हिरन आदि फँसाने का जाल या फंदा। पुं० [सं० नाभि] पहिए के बीच का छेद। नाभि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) अव्य०=नहीं।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाहक					 : | क्रि० वि० [फा० ना+अ० हक़] अनुचित रूप से और अकारण। व्यर्थ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाहट					 : | वि० [देश०] १. बुरा। २. नटखट। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाह-नूँह					 : | स्त्री० [हिं० नाहीं] १. कई बार किया जानेवाला ‘ना’ ‘ना’ या ‘नहीं’ ‘नहीं’ शब्द। २. कुछ-कुछ दबी जबान से किया जानेवाला इन्कार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| नाहर					 : | पुं० [सं० नरहरि] १. सिंह। शेर। २. बाघ। ३. बहुत बड़ावीर और साहसी पुरुष। पुं० [?] टेसू का पौधा और फूल। | 
			
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				| नाहर-मुखी					 : | पु. दे० ‘शेर-मुखी’। | 
			
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				| नाहर-साँस					 : | पुं० [हिं० नाहर+साँस] घोड़ों के साँस फूलने का एक रोग। | 
			
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				| नाहरू					 : | पुं० १. नाहर। २. नारू (रोग)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| नाहिन					 : | अव्य० [हिं० नाही] नहीं।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| नाहीं					 : | अव्य० दे० ‘नहीं’। स्त्री० [हिं० नहीं] नहीं करने या कहने की क्रिया या भाव। | 
			
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				| नाही					 : | पुं० [सं० नाथ] स्वामी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| नाहुष					 : | वि० [सं० नहुष+अण्] नहुष-संबंधी। नहुष का। पुं० नहुष के पुत्र ययाति। | 
			
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				| नाहुषि					 : | पुं० नाहुष। | 
			
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