| शब्द का अर्थ | 
					
				| नाका					 : | पुं० [हिं० नाकना] १. रास्ते आदि का वह छोर जिससे होकर लोग किसी ओर जाते, बढ़ते या मुड़ते हैं। प्रवेश द्वार। मुहाना। २. वह स्थान जहाँ से दुर्ग, नगर आदि में प्रवेश किया जाता है। जैसे–नाके पर पहरेदार खड़े थे। क्रि० प्र०–छेंकना।–बाँधना। पद–नाकेबंदी। (दे०) ३. उक्त के अंतर्गत वह स्थान जहाँ चौकी, पहरे आदि के लिए रक्षक या सिपाही रहते हों, अथवा जहाँ प्रवेश कर आदि उगाहे जाते हों। ४. चौकी। थाना। ५. सूई के सिरे का वह छेद जिसमें डोरा या तागा पिरोया जाता है। ६. करघे का वह अंश जिसमें तागे के ताने बँधे रहते हैं। पुं० [सं० नक्र] घड़ियाल या मगर की तरह का एक जल-जंतु।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० [अ० नाक] मादा ऊँट। ऊँटनी। | 
			
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				| नाकादार					 : | वि०, पुं०=नाकेदार। | 
			
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				| नाका-बंदी					 : | स्त्री०=नाकेबंदी। | 
			
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				| नाकारा					 : | वि० [फा० नाकारः] १. निष्कर्म। २. (व्यक्ति) जो किसी काम का न हो। निकम्मा। ३. (पदार्थ) जो काम में न आ सके। निष्प्रयोजन। पुं०=नकुल (नेवला)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| नाका					 : | पुं० [सं० नाभि से फा० नाफः] मृगनाभि। | 
			
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