| शब्द का अर्थ | 
					
				| नाख					 : | स्त्री० [फा० नाख] एक प्रकार का बढ़िया नाशपाती और उसका वृक्ष। | 
			
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				| नाखना					 : | स० [सं० नाशन] १. नष्ट करना। २. बिगाड़ना। ३. गिराना, डालना, फेंकना या रखना। ४. (शस्त्र) चलाना। स०=नाकना। | 
			
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				| नाखुदा					 : | वि० [फा० नाखुदा] खुदा को न माननेवाला। नास्तिक। पुं० १. मल्लाह। नाविक। २. कर्णधार। | 
			
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				| नाखुन					 : | पुं०=नाखून।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| नाखुना					 : | पुं० [फा० नाखुनः ] १.आँख का एक रोग जिसमें उसके तल पर खून की बिंदी या दाग पड़ जाता है। २. घोड़ों का एक रोग जिसमें उनकी आँखों में लाल डोरे या धारियां पड़ जाती हैं। ३. एक प्रकार का अंगुश्ताना जिसे पहनकर चीराबंद लोग चीरा लगाते या बाँधते थे। पुं०=नाखूना (कपड़ा)। | 
			
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				| नाखुर					 : | पुं०=नहछू। | 
			
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				| नाखून					 : | पुं० [फा० नाखुन] १. हाथों तथा पैरों की उँगलियों के ऊपरी तल का वह सफेद अंश जो अधिक कड़ा और तेज धारवाला होता है। २. उक्त का वह चंद्राकार अगला भाग जो कैंची आदि से काटकर अलग किया जाता है। ३. चौपायों के पैरों का वह अगला भाग जो मनुष्य के नखों के समान कड़ा होता है। मुहा०—नाख़ून लेना=नाखून काटकर अलग करना। (घोड़े का) नाख़ून लेना=चलने में घोड़े का ठोकर खाना। | 
			
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				| नाखूना					 : | पुं० [हिं० नाखून] एक तरह का कपड़ा जिसका ताना सफेद होता है और बाने में कई रंगों की धारियाँ होती हैं। यह आगरे में बहुत बनता था। पुं०=नाखुना। | 
			
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