| शब्द का अर्थ | 
					
				| नाद					 : | पुं० [सं०√नद् (शब्द)+घञ्] १. आवाज। शब्द। २. जोर की वह आवाज या ध्वनि, जो कुछ समय तक बराबर होती रहे। ३. वेदांत में, विश्व में उत्पन्न होनेवाला वह क्षोभ जो उपाधियुक्त चैतन्य से उपाधियुक्त शक्ति का संयोग होने के समय होता है। इसे ‘परनाद’ भी कहते हैं। ४. हठयोग में, अंतरात्मा में होती रहनेवाली एक प्रकार की सूक्ष्म ध्वनि या शब्द जो एकाग्र चित्त होकर अभ्यास करने पर सुनाई पड़ती है और जिसे सुनते रहने से चित्त अंत में नाद-रूपी ब्रह्म में लीन हो जाता है। ५. वर्णों का अव्यक्त मूल-रूप। ६. भाषा-विज्ञान और व्याकरण में वर्णों के उच्चारण में होनेवाला एक विशेष प्रकार का प्रयत्न जिसमें कंठ से वायु का स्वर निकालने के लिए न तो उसे बहुत फैलाना ही पड़ता है और न बहुत सिकोड़ना ही पड़ता है। ७. गाना-बजाना। संगीत। पद–नाद-विद्या=संगीत शास्त्र। ८. कुछ-कुछ अनुस्वार के समान उच्चारित होनेवाला वर्ण या स्वर जो अर्द्ध-चंद्र पर बिंदु देकर इस प्रकार लिखा जाता है। ९. सिंगी नामक बाजा। उदा०–सेली नाद बभूत न बटवो अजूँ मुनी मुख खोल।–मीराँ। | 
			
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				| नादना					 : | अ० [सं० नाद] १. ध्वनि या शब्द होना। २. बजना। ३. गरजना, चिल्लाना या शोर मचाना। स० १. ध्वनि या शब्द उत्पन्न करना। २. बजाना। अ० [सं० नंदन] १. दीए की लौ का हवा लगने से रह-रहकर हिलना। २. प्रसन्नतापूर्वक इधर-उधर हिलना-डोलना। उदा०–उठित दिया लौ, नादि हिर लिये तिहारो नाम।–बिहारी। ३. लहराना। | 
			
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				| नाद-मुद्रा					 : | स्त्री० [सं० मध्य० स०] तंत्र में हाथ की वह मुद्रा जिसमें दाहिने हाथ का अँगूठा सीधा और खड़ा रखा जाता है और मुट्ठी बंधी रहती है। | 
			
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				| नादली					 : | स्त्री० [अ० नादे अली] संग यशब नामक पत्थर की वह चौकोर टिकिया जिसे रोग या बाधा दूर करने के लिए गले में या बाँह पर पहनते हैं। हौल-दिली। (दे०) | 
			
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				| नादान					 : | वि० [फा०] [भाव० नादानी] १. अवस्था में कम होने के कारण जिसे समझ न आई हो। ना-समझ। २. जो अकुशल या अनाड़ी हो। ३. मूर्ख। | 
			
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				| नादानी					 : | स्त्री० [फा०] १. नादान होने की अवस्था या भाव। २. अकुशलता। अनाड़ीपन। ३. मूर्खता या मूर्खतापूर्ण कोई कार्य। | 
			
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				| नादार					 : | वि० [फा०] [भाव० नादारी] जिसके पास कुछ न हो। परम निर्धन। कंगाल। पुं० गंजीफे के खेल में; बिना रंग या बिना मीर की बाजी। | 
			
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				| नादारी					 : | स्त्री० [फा०] ‘नादार’ होने की अवस्था या भाव। निर्धनता। गरीबी। | 
			
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				| नादि					 : | वि० [सं० नादिन] १. शब्द करनेवाला। २. गरजनेवाला। | 
			
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				| नादित					 : | भू० कृ० [सं० नाद+इतच्] १. जो नाद से युक्त किया गया हो अथवा हुआ हो। २. शब्द करता हुआ। बजता हुआ। ३. गूँजता हूँ। | 
			
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				| नादिम					 : | वि० [अ०] [भाव० नदामत] १. लज्जित। शर्मिंदा। २. पश्चात्ताप करनेवाला। | 
			
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				| नादिया					 : | पुं० [सं० नंदी] १. नंदी। २. वह विकृत, विलक्षण, या अधिक अंग या अंगोवाला साँड़, जिसे जोगी अपने साथ लेकर भीख माँगने निकलते हैं। | 
			
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				| नादिर					 : | वि० [फा० नादिर] १. विचित्र। विलक्षण। २. उत्तम। श्रेष्ठ। | 
			
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				| नादिरशाह					 : | पुं० [अ०] पारस (फारस) देश का एक प्रसिद्ध राजा जिसने मुहम्मद शाह के समय में भारत में आक्रमण किया था। विशेष–यह अपनी क्रूरता के लिए प्रसिद्ध है। इसने एक छोटी-सी बात पर क्रुद्ध होकर दिल्ली के लाखों निवासियों की हत्या करवा डाली थी। | 
			
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				| नादिरशाही					 : | स्त्री० [हिं० नादिरशाह] १. नादिरशाह का वह बर्बरता पूर्ण व्यवहार जो उसने दिल्ली में किया था और जिसके फल-स्वरूप लाखों आदमी मारे गए थे। २. ऐसा आचरण, व्यवहार या शासन, जो बहुत ही निर्दयतापूर्ण और मनमाने ढंग से किया जाय। वि० वैसा ही उग्र, कठोर और मनमाना, जैसा दिल्ली में नादिरशाह का आचरण या व्यवहार था। नादिरी। | 
			
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				| नादिरी					 : | वि० [अ०] १. नादिरशाह-संबंधी। २. अत्याचार और क्रूरतापूर्ण। स्त्री० १. एक प्रकार की कुरती या सदरी जो मुगल बादशाहों के समय में पहनी जाती थी। पुं० गंजीफे का वह पत्ता जो खेल के समय निकालकर अलग रख दिया जाता है। मुहा०–(किसी पर) नादिरी चढ़ाना=बहुत बुरी तरह से मात करना या हराना। | 
			
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				| नादिहंद					 : | वि० [फा०] जो किसी की चीज या धन लेकर जल्दी लौटाता न हो। देन लौटाने में बराबर टाल-मटोल करता रहनेवाला। | 
			
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				| नादिहंदी					 : | स्त्री० [फा०] नादिहंद होने की अवस्था या भाव। देन लौटाने में टाल मटोल करना। | 
			
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				| नादी					 : | वि० [सं० नादिन्] [स्त्री० नादिनी] १. नाद या शब्द-संबंधी। २. नाद या शब्द करनेवाला। ३. बजानेवाला। | 
			
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				| नादेअली					 : | स्त्री० दे० ‘नादली’। | 
			
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				| नादेय					 : | वि० [सं० नदी+ढक्–एय] [स्त्री० नादेयी] १. नदी-संबंधी। २. नदी में होनेवाला। पुं० १. सेंधा नमक। २. सुरमा। ३. जलबेंत। ४. काँस नामक घास। | 
			
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				| नादेयी					 : | स्त्री० [सं० नादेय+ङीष्] १. जलबेंत। २. भुईं जामुन। ३. नारंगी। ४. वैजयन्ती। ५. जपा। अड़हुल। ६. अग्निमंथ। अँगेथू। वि० सं० ‘नादेय’ का स्त्री०। | 
			
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				| नादेहंद					 : | वि०=नादिहंद। | 
			
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				| नाद्य					 : | वि० [सं० नदी+ढ्यण्] नदी-संबंधी। कमल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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