| शब्द का अर्थ | 
					
				| निद					 : | वि० [सं०√निंद (निंदा करना)+क, नलोप] निंदा करनेवाला। पुं० [सं०] विष। | 
			
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				| निदई					 : | वि०=निर्दय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| निदद्रु					 : | वि० [सं० नि-दद्रु, ब० स०] जिसे दाद रोग न हुआ हो। | 
			
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				| निदय					 : | वि० [सं० निर्दय] १. जिसमें दया न हो। दयाहीन। २. निष्ठुर। निर्दय। उदा०–निर्दय हृदय में हूक उठी क्या।–प्रसाद। | 
			
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				| निदरना					 : | स० [हिं० निरादर] १. अनादर या तिरस्कार करना। २. तुच्छ या हेय ठहराना या सिद्ध करना। स० [हिं० नि+दलन] १. दलन करना। २. पराजित करना। | 
			
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				| निदरसना					 : | अ० [हिं० नि+दरसना] अच्छी तरह दिखलाई देना या पड़ना। स० अच्छी तरह देखना। | 
			
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				| निदर्शक					 : | वि० [सं० नि√दृश् (देखना)+णिच्+ण्वुल्–अक] निदर्शन करके अर्थात् दिखाने या प्रदर्शित करनेवाला। | 
			
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				| निदर्शन					 : | पुं० [सं० नि√दृश+ल्युट्–अन्] १. दिखाने या प्रदर्शित करने की क्रिया या भाव। २. किसी कथन या सिद्धान्त की पुष्टि के लिए उदाहरण-स्वरूप कही जानेवाली ऐसी बात जो बहुधा कल्पित या स्वरचित परन्तु सादृश्य के तत्त्व या भाव से युक्त होती है। ३. भौतिक विज्ञान, रेखागणित आदि में किसी मूल कथन को सिद्ध करने के लिए खींची या बनाई जानेवाली आकृतियाँ। (इलस्ट्रेशन, उक्त दोनों अर्थों में) | 
			
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				| निदर्शना					 : | स्त्री० [सं० नि√दृश्+णिच्+ल्यु–अन, टाप्] साहित्य में, एक अलंकार जिसमें उपमान और उपमेय में सादृश्य का आरोप करके इस प्रकार संबंध स्थापित किया जाता है कि दोनों में बिंब-प्रतिबिंब का भाव प्रकट होता है। जैसे–यह मुख चंद्रमा की शोभा धारण कर रहा है। | 
			
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				| निदलन					 : | पुं०=निर्दलन। | 
			
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				| निदहना					 : | स० [निदहन] जलाना। अ० जलना। | 
			
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				| निदाध					 : | पुं० [सं० नि√दह् (जलाना)+घञ्] १. गरमी। ताप। २. धूप। ३. रोग का निदान। | 
			
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				| निदान					 : | पुं० [सं० नि√दा देनावा√दो (छेदन)+ल्युट्–अन] १. किसी क्रिया का कारण विशेषतः कोई मूल और प्रमुख कारण। २. चिकित्सा-शास्त्रों में, यह निश्चय करना कि (क) रोगी को कौन रोग है। और (ख) इस रोग का मूल और प्रमुख कारण क्या है। (डायग्नोसिस) ३. उक्त विषय की विद्या या शास्त्र। निदानशास्त्र। (इटियॉलाजी) ४. अंत। अवसान। ५. घर। ६. स्थान। जगह। अव्य० १. अंत में। २. इसलिए। | 
			
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				| निदान-गृह					 : | पुं० [ष० त०] वह चिकित्सालय, जहाँ रोगियों के रोगों का निदान होता या पहचान की जाती है। (क्लीनिक) | 
			
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				| निदानज्ञ					 : | पुं० [सं० निदान√ज्ञा (जानना)+क] वह चिकित्सक जो निदान-शास्त्र का ज्ञाता हो; और फलतः रोगों का ठीक निदान करता हो। (पैथालोजिस्ट) | 
			
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				| निदान-शास्त्र					 : | पुं० [ष० त०] वह शास्त्र जिसमें रोगों के निदान या पहचान का विवेचन होता है। (इटियॉलोजी) | 
			
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				| निदारा					 : | वि० [सं० निर्दार] जिसकी दारा अर्थात् पत्नी न हो। बिनब्याहा हुआ या रँडुवा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| निदारुण					 : | वि० [सं० नि-दारुण, प्रा० स०] १. घोर और भयानक या भीषण। २. दुःसह। ३. निर्दय। निष्ठुर। | 
			
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				| निदाह					 : | पुं०=निदाघ। | 
			
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				| निदिग्ध					 : | वि० [सं० नि√दिह् (उपचय)+क्त] छोपा या लीपा हुआ। | 
			
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				| निदिग्धा					 : | स्त्री० [सं० निदिग्ध+टाप्] इलायची। | 
			
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				| निदिग्धिका					 : | स्त्री० [सं० निदिग्ध+कन्, इत्व]=निदिग्धा। | 
			
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				| निदिध्यास					 : | पुं० [सं० नि√ध्यै (चिन्तन)+सन्+घञ्]=निदिध्यासन। | 
			
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				| निदिध्यासन					 : | पुं० [सं० नि√ध्यै+सन+ल्युट्–अन्] १. अनवरत चिंतन। २. निरंतर या सदा किसी का स्मरण करना। | 
			
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				| निदिया					 : | स्त्री०=निंदिया (नींद)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| निदिष्ट					 : | वि०=निर्दिष्ट। | 
			
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				| निदेश					 : | पुं० [सं० नि√दिश् (बताना)+घञ्] १. दे० ‘निर्देश’। २. शासन। ३. किसी आज्ञा, नियम, निश्चय आदि के संबंध में लगाई हुई कोई शर्त या बंधन। (प्रॉविजन) ४. उक्ति। कथन। ५. बातचीत। ६. पड़ोस। ७. सान्निध्य। | 
			
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				| निदेशक					 : | पुं० [सं०] वह जो दूसरों को कोई काम कैसे, कहाँ और कब करने के संबंध में सूचनाएँ या आदेश देता हो। (डाइरेक्टर) | 
			
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				| निदेशालय					 : | पुं० [सं०] निदेशक का कार्यालय। | 
			
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				| निदेशिनी					 : | स्त्री० [सं० नि√दिश्+ल्युट्–अन, ङीप्] दिशा। | 
			
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				| निदेशी (शिन्)					 : | वि० [सं० नि√दिश्+णिनि] निर्देशक। (दे०) | 
			
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				| निदेष्टा (ष्ट्ट)					 : | पुं० [सं० नि√दिश्+तृच] निर्देशक। (दे०) | 
			
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				| निदेस					 : | वि०=निर्देश। | 
			
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				| निदोष					 : | वि०=निर्दोष। | 
			
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				| निद्धि					 : | स्त्री०=निधि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| निद्र					 : | पुं० [सं०] प्राचीन काल का एक प्रकार का अस्त्र जिसे चलाने पर शत्रुओं को नींद आ जाती थी। | 
			
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				| निद्रा					 : | स्त्री० [सं० √निंद+रक्, नलोप टाप्] प्राणियों की वह स्थिति जिसमें वे सुस्ताने तथा आरोग्य लाभ करने के निमित्त प्रकृतिशः कुछ समय तक चुपचाप निश्चेष्ट होकर पड़े रहते हैं। नींद। (साहित्य में यह एक संचारी भाव माना गया है।) | 
			
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				| निद्रा-गति					 : | स्त्री० [स० त०] एक प्रकार का रोग जिसमें रोगी निद्रा की अवस्था में ही उठकर चलने-फिरने या कोई काम करने लगता है। (स्लीप वाकिंग) २. वनस्पतियाँ आदि का निद्रित अवस्था में भी बराबर बढ़ते या इधर-उधर होते रहना। (स्लीपिंग मूवमेन्ट) | 
			
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				| निद्राण					 : | वि० [सं० नि√द्रा (सोना)+क्त, तस्य, न, णत्व] १. जो सो रहा हो। २. मुदा हुआ। मीलित। | 
			
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				| निद्रायमान					 : | वि० [सं० नि√द्रा+यक्+शानच्, मुक्] जो निद्रित अवस्था में हो। सोया हुआ। | 
			
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				| निद्रालस					 : | वि० [निद्रा-अलस, तृ० त०] १. जो नींद आने के कारण शिथिल हो रहा हो। २. गहरी नींद में सोया हुआ। | 
			
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				| निद्रालु					 : | वि० [सं० नि√द्रा+आलुच्] १. जो निद्रा में हो या सो रहा हो। २. जिसे बहुत नींद आ रही हो। ३. जिससे नींद आने का परिचय मिल रहा हो। जैसे–निद्रालु आँखें। स्त्री० १. बन-तुलसी। २. बैंगन। ३. नली नामक गंध-द्रव्य। | 
			
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				| निद्रासेजन					 : | पुं० [सं० निद्रा-सम्जन् (उत्पत्ति)+णिच्+ल्युट्–अन्] कफ निकलने का रोग (जिसके कारण बहुत नींद आती है)। | 
			
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				| निद्रित					 : | भू० कृ० [सं० निद्र+क्त] जो सोया या निद्रा से भरा हो। | 
			
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