| शब्द का अर्थ | 
					
				| निद्रा					 : | स्त्री० [सं० √निंद+रक्, नलोप टाप्] प्राणियों की वह स्थिति जिसमें वे सुस्ताने तथा आरोग्य लाभ करने के निमित्त प्रकृतिशः कुछ समय तक चुपचाप निश्चेष्ट होकर पड़े रहते हैं। नींद। (साहित्य में यह एक संचारी भाव माना गया है।) | 
			
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				| निद्रा-गति					 : | स्त्री० [स० त०] एक प्रकार का रोग जिसमें रोगी निद्रा की अवस्था में ही उठकर चलने-फिरने या कोई काम करने लगता है। (स्लीप वाकिंग) २. वनस्पतियाँ आदि का निद्रित अवस्था में भी बराबर बढ़ते या इधर-उधर होते रहना। (स्लीपिंग मूवमेन्ट) | 
			
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				| निद्राण					 : | वि० [सं० नि√द्रा (सोना)+क्त, तस्य, न, णत्व] १. जो सो रहा हो। २. मुदा हुआ। मीलित। | 
			
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				| निद्रायमान					 : | वि० [सं० नि√द्रा+यक्+शानच्, मुक्] जो निद्रित अवस्था में हो। सोया हुआ। | 
			
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				| निद्रालस					 : | वि० [निद्रा-अलस, तृ० त०] १. जो नींद आने के कारण शिथिल हो रहा हो। २. गहरी नींद में सोया हुआ। | 
			
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				| निद्रालु					 : | वि० [सं० नि√द्रा+आलुच्] १. जो निद्रा में हो या सो रहा हो। २. जिसे बहुत नींद आ रही हो। ३. जिससे नींद आने का परिचय मिल रहा हो। जैसे–निद्रालु आँखें। स्त्री० १. बन-तुलसी। २. बैंगन। ३. नली नामक गंध-द्रव्य। | 
			
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				| निद्रासेजन					 : | पुं० [सं० निद्रा-सम्जन् (उत्पत्ति)+णिच्+ल्युट्–अन्] कफ निकलने का रोग (जिसके कारण बहुत नींद आती है)। | 
			
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