| शब्द का अर्थ | 
					
				| निर्मल					 : | वि० [सं० निर्-मल, ब० स०] [भाव० निर्मलता] १. (वस्तु) जिसमें मल या मलिनता न हो। साफ। स्वच्छ। २. (व्यक्ति) जिसके चरित्र पर कोई धब्बा न लगा हो। ३. (हृदय) जिसमें दूषित या बुरी भावनाएँ न हों। शुद्ध। पुं० १. अभ्रक। अबरक। २. दे० ‘निर्मली’। | 
			
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				| निर्मलता					 : | स्त्री० [सं० निर्मल+तल्–टाप्] निर्मल होने की अवस्था या भाव। | 
			
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				| निर्मलांगी					 : | स्त्री० [सं०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी। | 
			
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				| निर्मला					 : | पुं० [सं० निर्मल] १. एक नानकपंथी त्यागी संप्रदाय, जिसके प्रवर्त्तक गुरु रामदास थे। इस संप्रदाय के लोग गेरुए वस्त्र पहनते और साधु-संन्यासियों की तरह रहते हैं। २. उक्त संप्रदाय का अनुयायी साधु। | 
			
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				| निर्मली					 : | स्त्री० [सं० निर्मल] १. एक प्रकार का मझोला सदाबहार पेड़ जिसकी लकड़ी इमारत और खेती और औजार बनाने के काम में आती है। २. रीठे का वृक्ष और उसका फल। | 
			
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				| निर्मलोत्पल					 : | पुं० [सं० निर्मल-उपल, कर्म० स०] स्फटिक। | 
			
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				| निर्मलोपल					 : | पुं० [सं० निर्मल-उपल, कर्म० स०] स्फटिक। | 
			
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				| निर्मल्या					 : | स्त्री० [सं० निर्मल+यत्–टाप्] असबरग। स्पृक्का। | 
			
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