| शब्द का अर्थ | 
					
				| नीराँजन					 : | पुं० दे० ‘नीराजन।’ | 
			
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				| नीराँजनी					 : | स्त्री० [सं० नीराजन] वह आधार या पात्र जिसमें आरती के लिए दीप जलाये जाते हैं। आरती। | 
			
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				| नीरा					 : | स्त्री० [सं० नीर] खजूर या ताड़ के वृक्ष का वह रस जो प्रातःकाल उतारा जाता है और जो पीने में बहुत स्वादिष्ट और गुणकारी होता है। अव्य० [हिं० नियर] समीप। पास। उदा०–दूरि बात खत पाया नीरा।–कबीर। | 
			
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				| नीराखु					 : | पुं० [सं० नीर-आखु, ष० त०] ऊदबिलाव। | 
			
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				| नीराजन					 : | पुं० [सं० निर्√राज् (शोभित होना)+ल्युट्–अन] १. देवता को दीप दिखाने की क्रिया। आरती। दीपदान। क्रि० प्र०–उतारना।–वारना। २. हथियारों को साफ करके चमकाने की क्रिया या भाव। ३. मध्य युग में वर्षाकाल बीतने पर और प्रायः आश्विन् मास में राजाओं के यहाँ होनेवाला एक पर्व जिसमें युद्ध से पहले सब हथियार साफ करके चमकाये जाते थे। | 
			
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				| नीराजना					 : | स० [सं० नीरांजन] १. नीराजन में दीप जलाकर किसी देवी या देवता की आरती करना। २. हथियार माँजकर साफ करना और चमकाना। | 
			
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				| नीराशय					 : | पुं०=जलाशय। | 
			
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