| शब्द का अर्थ | 
					
				| नेत					 : | पुं० [सं० नेत्रम्] १. वह रस्सी जिससे मथानी चलाई जाती है। नेती। २. एक तरह का बढ़िया रेशमी कपड़ा। ३. झंडे में लगा हुआ फहरानेवाला कपड़ा। पताका। ४. बिछाने की चादर। उदा०–पुनि गज हस्ति चढ़ावा नेत बिछावा बाट।–जायसी। पुं०[सं०नियति=ठहराव] १.किसी बात का स्थिर होना। ठहराव। निर्धारण। २.दृढ़ निश्चय या संकल्प। ३.प्रबंध। व्यवस्था। स्त्री० दे० ‘नीयत’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| नेतली					 : | स्त्री० [सं० नेत्रम्] १. मथानी चलाने की डोरी। २. एक प्रकार की पतली डोरी (लश०)। | 
			
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				| नेता(तृ)					 : | पुं० [सं०√नी (ले जाना)+तृच्] [स्त्री० नेत्री] १. वह पशु जो अपने झुंड के आगे आगे चलता हो। २. मनुष्यों में वह जो लोगों को मार्ग दिखलाता हुआ आगे चलता हो और दूसरों को अपने साथ ले जाता हो। अगुआ। नायक। ३. आजकल किसी धार्मिक संप्रदाय अथवा किसी राजनीतिक या सामाजिक दल का वह व्यक्ति जो आवश्यक बातों में लोगों का मार्ग प्रदर्शन करता हो और लोगों को अपना अनुयायी बनाकर रखता हो। (लीडर)। ४. प्रभु। मालिक। स्वामी। ५. कार्य का निर्वाह या संचालन करनेवाला अधिकारी। ६. नीम का पेड़। ७. वह जो दूसरों को दंड आदि देता हो। ८. नाटक का नायक। ९. विष्णु का एक नाम। पुं० [हिं० नेत] मथानी की रस्सी। नेती। | 
			
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				| नेतागिरी					 : | स्त्री० [हिं० नेता+फा० गिरी] नेता बनकर दूसरों का मार्ग प्रदर्शन करने का काम। | 
			
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				| नेति					 : | अव्य० [सं० न+इति,व्यस्तपद] इसका कहीं अंत नहीं है। यह अनन्त है। (प्रायः ईश्वर,ब्रह्म आदि की महिमा में प्रयुक्त)। स्त्री०=नेती। | 
			
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				| नेती					 : | स्त्री० [सं० नेत्रम्] १. मथानी चलाने की रस्सी। २. दे० ‘नेती धोती’। | 
			
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				| नेती-धोती					 : | स्त्री० [सं० नेत्र,हिं० नेता+सं० धौति] आँतों और पेट का मल साफ करने की हठयोग की एक क्रिया जिसमें कपड़े की लंबी पट्टी मुँह के रास्ते पेट में उतारी जाती है और तब इसे बाहर खींचने पर इसके साथ मल बाहर निकलता है। | 
			
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				| नेतुल्ली					 : | पुं० [हिं० नेता+तुल्ली (प्रत्य०)] छोटा या तुच्छ नेता। (उपहास और व्यंग्य)। | 
			
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				| नेतृत्व					 : | पुं० [सं० नेतृ+त्व] नेता बनाकर किसी सम्प्रदाय या दल का मार्ग-दर्शन तथा उसके कार्यों का संचालन करना। | 
			
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				| नेत्र					 : | पुं०[ सं०√नी+ष्ट्रन्] १. आँख। २. दोनों आँखों के आधार पर दो की संख्या। ३. मथानी की रस्सी। ४. पेड़ की जड़। ५. जटा। ६. रथ। ७. नाड़ी। ८. एक तरह का रेशमी कपड़ा। ९. वैद्यक में वस्ति-कर्म में काम आनेवाली सलाई। १॰. दे० ‘नेता’। | 
			
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				| नेत्र-कनीनिका					 : | स्त्री० [ष० त०] आँख की पुतली। | 
			
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				| नेत्रच्छद					 : | पुं० [सं० नेत्र√छद् (ढँकना)+णिच्+क,ह्रस्व] पलक। | 
			
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				| नेत्रज					 : | पुं० [सं० नेत्र√जन् (उत्पत्ति)+ड] आँसू। | 
			
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				| नेत्र-जल					 : | पुं०आँसू। | 
			
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				| नेत्रण					 : | पुं०[सं० नेत्र से] किसी को ठीक मार्ग दिखलाते हुए ले चलना। | 
			
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				| नेत्र-पर्यंत					 : | पुं०[ष० त०] आँख का कोना। | 
			
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				| नेत्र-पाक					 : | पुं०[ष० त०] आँख का एक रोग। | 
			
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				| नेत्र-पिंड					 : | पुं०[ष० त०] १.आँख का डेला। २. [ब० स०] बिल्ली। | 
			
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				| नेत्र-पुष्करा					 : | स्त्री०[ब० स०, टाप्] रुद्र जटा नामक लता। | 
			
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				| नेत्र-बंध					 : | पुं०[ब० स०] आँख मिचौली का खेल। (महाभारत)। | 
			
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				| नेत्र-बाला					 : | स्त्री०[सं०] सुगंधबाला नामक वनौषधि। | 
			
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				| नेत्र-भाव					 : | पुं०[ष० त०] नृत्य और संगीत में वे भाव जो केवल आँखों की मुद्रा से प्रकट किये जाते हैं। | 
			
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				| नेत्र-मंडल					 : | पुं० [ष० त०] आँख का डेला। | 
			
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				| नेत्र-मल					 : | पुं०[ष० त०] आँख में से निकलनेवाला कीचड़ या मल। गिद्द। | 
			
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				| नेत्र-मार्ग					 : | पुं०[ष० त०] हठयोग में माना जानेवाला अन्तःकरण के पास का वह नेत्र-गोलक जिसका एक सूत्र के द्वारा मस्तिष्क तक संबंध होता है। | 
			
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				| नेत्र-मीला					 : | स्त्री०[ब० स० पृषो० ल-न] यवतिक्ता लता। | 
			
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				| नेत्र-योनि					 : | पुं०[ब० स०] १.इंद्र (गौतम के शाप से इनके शरीर पर योनि के आकार के चिन्ह निकल आये थे)। २.चंद्रमा। | 
			
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				| नेत्र-रंजन					 : | पुं०[ष० त०] कज्जल। काजल। | 
			
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				| नेत्र-रोग					 : | पुं०[ष० त०] आँखों में होनेवाला रोग। | 
			
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				| नेत्ररोगहा(हन्)					 : | पुं०[सं० नेत्ररोग√हन्(हिंसा)=+क्विप्] वृश्चिकाली (वृक्ष)। | 
			
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				| नेत्र-रोम(न्)					 : | पुं० [ष० त०] बरौनी। | 
			
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				| नेत्रवस्ति					 : | स्त्री०[ष० त०] एक प्रकार की छोटी पिचकारी। | 
			
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				| नेत्र-वारि					 : | पुं०[ष० त०] आँसू। | 
			
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				| नेत्रविट्(ष्)					 : | पुं०[ष० त०] आँख का कीचड़। | 
			
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				| नेत्र-विष					 : | पुं०[ब० स०] एक प्रकार का साँप जिसकी आँखों में विष होना माना जाता है। कहते हैं कि इसके देखने मात्र से प्राणियों पर विष का प्रभाव पड़ता है। | 
			
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				| नेत्रा-संधि					 : | स्त्री०[ष० त०] आँख का कोना। | 
			
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				| नेत्र-स्तंभ					 : | पुं०[ष० त०] वह स्थिति जिसमें आँखों की पलकों का उठना और गिरना बन्द हो जाता है। | 
			
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				| नेत्र-स्राव					 : | पुं०[ष० त०] आँखों से पानी बहना। | 
			
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				| नेत्रहा(हन्)					 : | पुं०[सं०नेत्र√हन्+क्विप्] वृश्चिकाली (वृक्ष)। | 
			
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				| नेत्रांत					 : | पुं०[ष० त०] आँख का बाहरी कोना। | 
			
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				| नेत्राबु					 : | पुं०[नेत्र-अंबु,ष० त०] आँसू। | 
			
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				| नेत्रांभ(स्)					 : | पुं०[नेत्र-अंभस्,ष० त०] आँसू। | 
			
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				| नेत्राभिष्यंद					 : | पुं० [नेत्र-अभिष्यंद,ष० त०] छूत से फैलनेवाला एक नेत्र-रोग। | 
			
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				| नेत्रामय					 : | पुं० [नेत्र-आमय,ष० त०] आँख का रोग। | 
			
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				| नेत्रारि					 : | पुं० [नेत्र-अरि,ष० त०] थूहर। सेहुँड़। | 
			
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				| नेत्रिक					 : | पुं० [सं० नेत्र+ठन्–इक] १. एक प्रकार की छोटी पिचकारी(सुश्रुत)। २. कलछी। | 
			
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				| नेत्री					 : | स्त्री० [सं० नेत्र+ङीप्] १. सं० ‘नेता’ का स्त्री०। स्त्री नेता। २. लक्ष्मी। ३. नाड़ी। ४. नदी। | 
			
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				| नेत्रोत्सव					 : | पुं० [नेत्र-उत्सव, ष० त०] १. नेत्रों का आनन्द। देखने का मजा। २. दर्शनीय और सुन्दर वस्तु। | 
			
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				| नेत्रोपमफल					 : | पुं० [नेत्र-उपमा,ब० स० नेत्रोपम-फल,कर्म० स०] बादाम। (भाव प्रकाश)। | 
			
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				| नेत्रौषध					 : | पुं० [नेत्र-औषध,ष० त०] १. आँख की दवा। २. पुष्प। कसीस। | 
			
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				| नेत्रौषधि(धी)					 : | स्त्री० [नेत्र-औषधि,ष० त०] मेढ़ासिंगी (पौधा)। | 
			
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				| नेत्र्य					 : | वि० [सं०] १. नेत्र संबंधी। २. नेत्रों को सुख देनेवाला। | 
			
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				| नेत्र्य-गण					 : | पुं० [सं० नेत्र+यत्,नेत्र्य-गण,कर्म० स०] रसौत,त्रिफला,लोध,ग्वालपाठा, बनकुलथी आदि ओषधियों का वर्ग। | 
			
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