| शब्द का अर्थ | 
					
				| पंचो					 : | पुं० [देश०] गुल्ली-डंडे के खेल में, बाएँ हाथ से गुल्ली को उछाल कर दाहिने हाथ में पकड़े हुए डंडे से उस पर किया जानेवाला आघात। | 
			
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				| पँचोतर सौ					 : | पुं० [सं० पंचोत्तर शत] सौ और पाँच की संख्या या अंक। एक सौ पाँच की संख्या जो अंकों में इस प्रकार लिखी जाती है—१0५। | 
			
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				| पँचोतरा					 : | पुं० [सं० पञ्चोत्तर] कन्या-पक्ष के पुरोहित का एक नेग जिसमें उसे दायज में विशेषकर तिलक के समय वर-पक्ष को मिलने वाले रुपयों आदि में से सैकड़े पीछे पाँच मिलते हैं। | 
			
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				| पंचोपचार					 : | पुं० [पंचन्-उपचार, द्विगु स०] हिंदुओं में देव-पूजन के अवसर पर षोडशोपचार के साधन में किसी कारणवश असमर्थ होने पर केवल गंध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य (इन पाँच उपचारों) से किया जानेवाला पूजन। | 
			
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				| पंचोपविष					 : | पुं० [पंचन्-उपविष, द्विगु स०] थूहड़, मंदांर, कनेर, जलपीपल और कुचला—ये पाँच प्रकार के उपविष। | 
			
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				| पंचोपसिना					 : | स्त्री०=पंचोपचार। | 
			
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				| पंचोली					 : | स्त्री० [सं० पंच-आवलि] एक पौधा जो पश्चिमी और मध्य भारत में होता है। इसकी पत्तियों और डंठलों से सुगन्धित तेल निकलता है। पुं० [सं० पंचकुल, पंचकुली] कुछ जातियों में वंश-परम्परा से चली आती हुई एक उपाधि। | 
			
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				| पंचोषण					 : | पुं० [पंचन्-उषण, द्विगु स०] पिप्पली, पिप्पलीमूल, चव्य, मिर्च और चित्रक ये पाँच ओषधियाँ। | 
			
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				| पंचोष्मा (ष्मन्)					 : | पुं० [पंचन्-ऊष्मन्, द्विगु स०] शरीर के अन्दर की वे पाँच प्रकार की अग्नियाँ जो भोजन पचाती हैं। | 
			
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