| शब्द का अर्थ | 
					
				| पंजर					 : | पुं० [सं०√पंज् (रोकना)+अरन्] १. शरीर। देह। २. हड्डियों आदि का वह ढाँचा जिस पर मांस, त्वचा आदि होते हैं और जिनके आधार पर शरीर ठहरा रहता है। कंकाल। ठठरी। ३. किसी चीज का वह भीतरी ढाँचा, जिस पर कुछ आवरण रहते हैं और जिनसे उसका अस्तित्व बना रहता है। मुहा०—अंजर-पंजर ढीला होना=आघात, प्रहार, भार आदि के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न होना कि कार्यों या शरीर का ठीक तरह निर्वाह न हो सके। ४. पिंजड़ा। ५. कलियुग। ६. कोल नामक कन्द। ७. गाय या गौ का एक संस्कार। | 
			
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				| पंजरक					 : | पुं० [सं० पंजर+कन्] डंठलों आदि का बुना हुआ बड़ा टोकरा। खाँचा। झाबा। | 
			
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				| पंजरना					 : | अ०=पजरना। | 
			
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				| पँजरी					 : | स्त्री० [सं० स्त्रीत्वात्-ङीप्, पंजर=ठठरी] अर्थी। टिकठी। वि० [सं० पंजर] जो पंजर के रूप में या पंजर मात्र हो। | 
			
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