| शब्द का अर्थ | 
					
				| पखंड					 : | पुं०=पाखंड। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| पखंडी					 : | वि०=पाखंडी। पुं० कठपुतलियाँ नचानेवाला व्यक्ति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पख					 : | पुं० [सं० पक्ष] पक्ष। पखवारा। स्त्री० १. अलग या ऊपर से जोड़ी या लगाई हुई ऐसी बात या शर्त जो तो बिलकुल व्यर्थ हो या जिससे कोई अड़चन या बाधा खड़ी होती हो। अडंगा। क्रि० प्र०—लगना।—लगाना। २. व्यर्थ ही तंग या परेशान करनेवाला काम या बात। झंझट। बखेड़ा। ३. व्यर्थ का छिद्रान्वेषण या दोष-दर्शन। जैसे—तुम तो यों ही हर बात में एक पख निकाला करते हो। क्रि० प्र०—निकालना। | 
			
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				| पखड़ी					 : | स्त्री०=पंखड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पखनारी					 : | स्त्री० [सं० पक्ष+नाल] चिड़ियों के पंखों की डंठी जो ढरकी के छेद में तिल्ली रोकने के लिए रखी जाती है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पख-पान					 : | पुं०=पाँवदान। | 
			
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				| पखरना					 : | अ० [हिं० पखारना का अ० रूप] पखारा या धोया जाना। स०=पखारना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पखराना					 : | स० [हिं० पखारना का प्रे०] किसी को पखारने में प्रवृत्त करना। | 
			
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				| पखरिया					 : | पुं० [हिं० पखारना] वह जो पखारने का काम करता हो। स्त्री०=पखरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पखरी					 : | स्त्री० [हिं० पख+री (प्रत्य०)] गद्दी,कुरसी आदि आसनों में दोनो तरफ के वे स्थान जो बगल में पड़ते हैं। उदा०—गाधी पखरी पीठि लगे लोने लचकीले।—रत्ना०। स्त्री०=पंखड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [हिं० पाखर] १. वह घोड़ा या हाथी जिस पर पाखर पड़ी हो। २. ऐसे घोड़े या हाथी का सवार योद्धा। | 
			
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				| पखरैत					 : | पुं० [हिं० पाखर+ऐत (प्रत्य०)] वह घोड़ा, बैल या हाथी जिस पर पाखर आर्थ लोहे की झूल पड़ी हो। | 
			
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				| पखरौटा					 : | पुं० [हिं० पखड़ी+औटा (प्रत्य०)] पान का बीड़ा जिस पर सोने या चाँदी का वरक लगा हो।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पखवाड़ा					 : | पुं० [सं० पक्ष=आधा चांद्रमास+हिं० वाड़ा (प्रत्य०)] १. चांद्रमास का कोई पक्ष। २. पूरे १५ दिनों का समय। जैसे—तुमने जरा-से काम में एक पखवाड़ा लगा दिया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पखवारा					 : | पुं०=पखवाड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पखा					 : | पुं० [?] दाढ़ी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) पुं० १.=पक्ष। २.=पंख। (जैसे—मोर-पखा)। | 
			
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				| पखाउज					 : | पुं०=पखावज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पखाटा					 : | पुं० [सं० पक्ष] धनुष का कोना। | 
			
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				| पखान					 : | पुं०=पाषाण। (पत्थर)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [सं० उपाख्यान] किसी घटना या बात का लम्बा-चौड़ा ब्यौरा। मुहा०—पखान बखानना=बहुत ही विस्तार-पूर्वक किसी की त्रुटियों, दोषों आदि का उल्लेख करना। (पश्चिम)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पखाना					 : | पुं० [सं० उपाख्यान] कहावत। लोकोक्ति। पुं०=पाखाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पखा-पखी					 : | स्त्री० [सं० पक्ष] कई पक्षों की आपस में होनेवाली खींचातानी या विरोध। उदा०—पषा-पषी के पेषणैं सब जगत भुलाना।—कबीर। | 
			
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				| पखारना					 : | स० [सं० प्रक्षालन,प्रा० पक्खाड़न] किसी चीज पर पानी डालकर उस पर की धूल,मैल आदि छुड़ाना। धोकर साफ करना। धोना। जैसे—पाँव या बरतन पखारना। | 
			
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				| पखाल					 : | स्त्री० [सं० पक्ष+खल्ल] १. बैल आदि के चमड़े की बनी हुई पानी भरने की मशक। २. धौंकनी। | 
			
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				| पखाल-पेटिया					 : | वि० [हिं० पखाल+पेट+ईया (प्रत्य०)] १. पखाल अर्थात् मशक की तरह बहुत बड़े पेटवाला। २. बहुत खानेवाला। पेटू। | 
			
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				| पखाली					 : | वि० [हिं० पखाल] पखाल अर्थात् मशक संबंधी। पुं० मशक से पानी भरनेवाला। भिश्ती। | 
			
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				| पखावज					 : | स्त्री० [सं० पक्षावाद्य,प्रा० पक्खाउज्ज] मृदंग के आकार-प्रकार का परन्तु उससे कुछ छोटा एक प्रकार का बाजा। | 
			
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				| पखावजी					 : | वि० [हिं० पखावज+ई (प्रत्य०)] पखावज-संबंधी। पुं० वह जो पखावज बजाकर अपनी जीविका चलाता हो अथवा पखावज बजाने में निपुण हो। | 
			
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				| पखिया					 : | वि० [हिं० पख] १. हर बात में पख या व्यर्थ का दोष निकालनेवाला। २. व्यर्थ का झगड़ा-बखेड़ा खड़ा करनेवाला झगड़ालू। बखेड़िया। | 
			
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				| पखी					 : | वि०=पखिया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=पक्षी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पखीरा					 : | पुं० [स्त्री० पखीरी]=पक्षी (चिड़िया)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पखुआ					 : | पुं०=पखुरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पखड़ी					 : | स्त्री०=पंखड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पखुरा					 : | पुं० [सं० पक्ष] १. बाँह का कंधे और कोहनी के बीच का अंश या अवयव। (पूरब) २. पाखा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पखुरी					 : | स्त्री०=पंखड़ी। | 
			
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				| पखेरु					 : | पुं० [सं० पक्षालु,प्रा० पक्खाड़ु] पक्षी। चिड़िया।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पखेव					 : | पुं० [देश०] उड़द,मूँग सोंठ आदि का वह मिश्रण जो गायों-भैसों को प्रसव के बाद ६ दिनों तक खिलाया जाता है। | 
			
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				| पखौंड़ा					 : | पुं०=पखुरा (वृक्ष)। | 
			
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				| पखौआ					 : | पुं० [सं० पक्ष] किसी पक्षी विशेषतः मोर का पर जो टोपी या सिर के बालों में शोभा आदि के लिए लगाया जाता था। उदा०—क्रीट-मुकुट सिर जाँड़ि पखौआ मोरन कौ क्यौं धार्यौ।—भारतेन्दु।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पखौटा					 : | पुं० [हिं० पंख] १. डैना। पर। २. मछली का पक्ष या पर। | 
			
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				| पखौड़ा					 : | पुं०=पखुरा। | 
			
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				| पखौरा					 : | पुं०=पखुरा। | 
			
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				| पख्तून					 : | पुं० [फा० पुख्तोन] पुख्तो अर्थात् पश्तो भाषा बोलनेवाला व्यक्ति। | 
			
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				| पख्तूनिस्तान					 : | पुं० [फा० पुख्तोनिस्तान] अविभाजित भारत का और अब पाकिस्तान की उत्तर पश्चिमी सीमा पर स्थित अफगानिस्तान से सटा हुआ वह प्रदेश, जहाँ की भाषा पुख्तो अर्थात् पश्तो है। | 
			
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				| पख्तो					 : | स्त्री० [फा० पुख्तो] पश्तो भाषा जो पख्तूनिस्तान में बोली जाती है। | 
			
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