| शब्द का अर्थ | 
					
				| पग					 : | पुं० [सं० पदक, प्रा० पऊक,पक] १. पैर। पाँव। मुहा०—पग रोपना=कोई प्रतिज्ञा करके किसी जगह दृढ़ता पूर्वक पैर जमाना। २. उतना अन्तर या दूरी जितनी चलने में एक पैर से दूसरे पैर तक होती है। फाल। ३.चलने के समय हर बार पैर उठाकर आगे रखने की क्रिया। डग। पद—पग-पग पर=(क) बहुत ही थोड़ी-थोड़ी दूरी पर। (ख) बराबर। लगातार। | 
			
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				| पगडंडी					 : | स्त्री० [हिं० पग+डंडा] १. खेतों आदि के बीच का पतला या संकीर्ण मार्ग। २. जंगल या मैदान की संकीर्ण राह जो आने-जाने के कारण बन गयी हो। | 
			
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				| पगड़ी					 : | स्त्री० [सं० पटक,हिं० पाग+ड़ी (प्रत्य०)] १. सिर पर लपेटकर बाँधा जानेवाला लंबा कपड़ा। उष्णीण। पाग। साफा। क्रि० प्र०—बँधना।—बाँधना। विशेष—मध्ययुग में पगड़ी प्रतिष्ठा और मान-मर्यादा की सूचक होती थी; इसी से इसके कई अर्थों और मुहावरों का विकास हुआ है। मुहा०—(किसी की) पगड़ी उतारना या उतार लेना=छीन या ठगकर किसी से बहुत-कुछ धन ले लेना। (किसी के सिर) पगड़ी बँधना=(क) महत्वपूर्ण या शीर्ष स्थान प्राप्त होना। (ख) किसी का उत्तराधिकारी या स्थानापन्न बनाया जाना। (किसी से) पगड़ी बदलना=किसी से भाई-चारे और घनिष्ठ मित्रता का संबंध स्थापित करना। विशेष—१. मध्ययुग में जब किसी से बहुत अधिक या घनिष्ठ मित्रता का संबंध हो जाता था,तब उस मित्रता को स्थायी बनाये रखने के प्रतीक के रूप में अपनी पगड़ी सिर पर रख दी जाती थी और उसकी पगड़ी आप पहन ली जाती थी। २. पगड़ी बाँधनेवाले अर्थात् वयस्क पुरुष का वाचक शब्द या संज्ञा। जैसे—गाँव भर से पगड़ी पीछे एक रुपया ले लो; अर्थात् प्रत्येक वयस्क पुरुष से एक रुपया ले लो। ३. व्यक्ति की प्रतिष्ठा या मान-मर्यादा। मुहा०—(किसी से) पगड़ी अटकना=किसी के साथ ऐसा मुकाबला विरोध या स्पर्धा होना कि उसकी हार-जीत पर प्रतिष्ठा की हानि या रक्षा अवलंबित हो। आपस में पगड़ी उलछना=एक के हाथों दूसरे की दुर्दशा और बेइज्जती होना। जैसे—आज-कल उन दोनों में खूब पगड़ी उछल रही है। (किसी की) पगड़ी उछालना=किसी को अपमानित करके उपहासास्पद बनाना। दुर्दशा करना। (किसी को) पगड़ी उतारना-अपमानित या दुर्दशा-ग्रस्त करना। (किसी के सिर किसी बात की) पगड़ी बँधना=किसी काम या बात का यश या श्रेय प्राप्त होना। जैसे—इस काम के लिए प्रयत्न चाहे जिसने किया हो, पर इसकी पगड़ी तो तुम्हारे ही सिर बँधी है। (किसी की) पगड़ी रखना=प्रतिष्ठा या मान-मर्यादा की रक्षा करना। (किसी के आगे) पगड़ी रखना या रख देना=किसी से दीनता और नम्रतापूर्वक यह कहना कि हमारी प्रतिष्ठा या लाज की रक्षा आप ही कर सकते हैं। ४. आज-कल दुकान,मकान आदि किराये पर लेने के समय उसके मालिक को अनुकूल तथा संतुष्ट करने के लिए अवैध रूप से पेशगी दिया जानेवाला धन। जैसे—इस दुकान का किराया तो ५॰) महीना ही है, पर दुकान का मालिक हजार रुपये पगड़ी माँगता है। | 
			
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				| पगतरा					 : | पुं० [हिं० पग+तरा (निचला भाग)] [स्त्री० अल्पा० पगतरी] जूता। | 
			
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				| पग-तल					 : | पुं० [हिं० पग+सं० तल] पैर का नीचेवाला भाग। पैर का तलवा। | 
			
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				| पगदासी					 : | स्त्री० [हिं० पग+दासी] १. जूता। २. खड़ाऊँ। (साधुओं की परिभाषा)। | 
			
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				| पगना					 : | अ० [सं० पाक,हिं० पाग] १. हिं० पागना का अ०। पागा जाना। २. शरबत शोरे आदि के पाग में किसी खाद्य पदार्थ का पड़कर उसके रस में भीगना। मीठे रस से ओत-प्रोत होना। जैसे—मुरब्बा बनाने के समय आँवले या आम का शीरे में पगना। ३. किसी प्रकार का गाढ़े तरल पदार्थ या रस से ओत-प्रोत होना। ४. लाक्षणिक रूप में, बात के रस में अथवा किसी व्यक्ति के प्रेम में पूर्णतः डूबना या मग्न होना। संयो० क्रि०—जाना। | 
			
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				| पगनियाँ					 : | स्त्री०=पगनी (जूती)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पगनी					 : | स्त्री० [सं० पग] १. जूता। २. खड़ाऊँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० [हिं० पगना] पगने या पागने की क्रिया या भाव। | 
			
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				| पग-पान					 : | पुं० [हिं० पग+पान] पैर में पहनने का एक आभूषण। पलानी। गोड़संकर। | 
			
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				| पगरना					 : | पुं० [देश०] सोने,चाँदी आदि के आभूषणों,बरतनों आदि पर नक्काशी करनेवालों का एक उपकरण।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पगरा					 : | पुं० [हिं० पग+रा (प्रत्य०)] पग। डग। कदम। पुं० [फा० पगाह=सबेरा] प्रभात या प्रातःकाल जो यात्रा आरंभ करने के लिए सबसे अच्छा समय माना गया है। वि०=पागल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पगरी					 : | स्त्री०=पगड़ी। | 
			
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				| पगला					 : | वि०=पागल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पगहा					 : | पुं० [सं० प्रग्रह,प्रा० पग्गह] [स्त्री० पगही] पशुओं के गले में बाँधी जानेवाली वह रस्सी जिससे उन्हें खूँटे से बाँधा जाता है। पघा। | 
			
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				| पगा					 : | पुं० १.=पाग। (पगड़ी)। २.=पघा (पगहा)। ३.=पगरा। | 
			
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				| पगाना					 : | स० [हिं० पगना] १. पागने का काम किसी दूसरे से कराना। किसी को पागने में प्रवृत्त करना। २.(पदार्थ) ऐसी स्थिति में रखना कि वह पगे। ३. किसी को किसी ओर या किसी काम में अनुरक्त या पूर्ण रूप से प्रवृत्त करना। | 
			
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				| पगार					 : | पुं० [सं० प्राकार] १. चहारदीवारी। परकोटा। २. घेरा। ३. दीवार। पुं० [हिं० पग+गारना] १. पैरों से कुचलकर जोड़ाई के काम के लिए तैयार किया हुआ गारा। २. कीचड़। पुं० [फा० पायाब] वह नाला या नदी जिसे पैदल चलकर पार किया जा सके। उदा०—जल कै पगार, निज दल के सिंगार आदि...।—केशव। स्त्री० [पुर्त० पागा से मराठी] वेतन। | 
			
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				| पगारना					 : | स०=फैलाना। स० [हिं० पग+गारना] १. पैरों से मिट्टी को रौंदकर गारा बनाना। २. फैलाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पगाह					 : | पुं० [फा०] १. यात्रा आरंभ करने का उपयुक्त समय अर्थात् तड़का या प्रभात। २. प्रातःकाल। सबेरा। | 
			
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				| पगिआना					 : | स०=पगियाना। | 
			
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				| पगिया					 : | स्त्री०=पगड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पगियाना					 : | स० [हिं० पाग=पगड़ी] पगड़ी बाँधना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स०=पगाना। | 
			
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				| पगु					 : | पुं०=पग।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पगुराना					 : | अ० [हिं० पागुर] १. चौपायों का पागुर करना। जुगाली करना। २. पचा जाना। हजम कर लेना। | 
			
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				| पगोडा					 : | पुं० [बर्मी] बुद्ध भगवान का मन्दिर। | 
			
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				| पग्ग					 : | पुं०=पग। | 
			
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				| पग्गड़					 : | पुं० [हिं० पाग=पगड़ी] बहुत बड़ी और भारी पगड़ी। | 
			
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				| पग्गा					 : | पुं० [हिं० पागना या पकाना] पीतल,ताँबा आदि गलाने की घरिया। पागा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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