| शब्द का अर्थ | 
					
				| पछँही					 : | वि० [सं० पश्चिम] पश्चिम में होने या रहनेवाला। | 
			
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				| पछ					 : | वि० हिं० पीछे (पीछे) का वह संक्षिप्त रूप जो उसे यौ० पदों के आरंभ में लगने से प्राप्त होता है। जैसे—पछलगा (पिछलगा)। पुं०=पक्ष।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पछइ					 : | अव्य०=पीछे। | 
			
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				| पछटी					 : | स्त्री० [देश०] तलवार। (डिं०) | 
			
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				| पछड़ना					 : | अ० [हिं० ‘पछाड़ना’ का अ०] १. कुश्ती आदि लड़ने में पछाड़ा या पटका जाना। २.प्रतियोगिता आदि में बुरी तरह से परास्त होना या हराया जाना। अ०=पिछड़ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पछताना					 : | अ० [हिं० पछताव] पश्चात्ताप करना। | 
			
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				| पछतानि					 : | स्त्री०=पछतावा (पश्चात्ताप)। | 
			
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				| पछताव					 : | पुं०=पछतावा। | 
			
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				| पछतावना					 : | अ०=पछताना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पछतावा					 : | पुं० [सं० पश्चात्ताप] पछताने की क्रिया या भाव। मन में होनेवाला इस बात का दुःखजन्य विचार कि मैंने ऐसा अनुपयुक्त या अनुचित काम क्यों किया अथवा अमुक उचित या उपयुक्त काम क्यों न किया। पश्चात्ताप। | 
			
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				| पछना					 : | अ० [हिं० पाछना का अ० रूप] पाछा अर्थात् छुरे के आघात से हलका चीरा लगाया जाना। | 
			
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				| पछमन					 : | अव्य०=पीछे। | 
			
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				| पछरना					 : | अ० १.=पछड़ना। २.=पिछड़ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पछरा					 : | पुं०=पछाड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पछलगा					 : | पुं०=पिछलगा। | 
			
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				| पछलत					 : | स्त्री०=पिछलत्ती।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पछ-लागा					 : | पुं०=पिछलगा। | 
			
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				| पछवत					 : | स्त्री० [हिं० पीछे+वत] ऐसी फसल जिसकी बोआई उपयुक्त ऋतु के अंत में या ठीक समय के बाद हुई हो। | 
			
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				| पछवाँ					 : | वि० [सं० पश्चिम] १. पश्चिम-दिशा संबंधी। २.पश्चिम की ओर से आनेवाला। जैसे—पछवाँ हवा। स्त्री० पश्चिम की ओर से आनेवाली हवा। पुं० [हिं० पीछे] अंगिया,कुरती आदि का वह भाग जो पीछे की ओर रहता है। पुं० दे० ‘पछुआ’। अव्य०=पीछे। | 
			
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				| पछवारा					 : | पुं० [हिं० पीछा] १. पिछला भाग। २. पीठ। पृष्ठ। ३. दे० ‘पिछवाड़ा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि०=पिछल्ला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पछाँह					 : | पुं० [सं० पश्चात्,प्रा० पच्छ] किसी प्रदेश की दृष्टि से, उसके पश्चिम विशेषतः सुदूर पश्चिम में स्थित प्रदेश। | 
			
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				| पछाँहिया					 : | वि०=पछाँही। | 
			
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				| पछाँही					 : | वि० [हिं० पछाँह+ई (प्रत्य०)] १. पछाँह-संबंधी। २. जो पछाँह में रहता या होता हो। | 
			
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				| पछाड़					 : | स्त्री० [हिं० पछाड़ना] १. पछाड़ना की क्रिया या भाव। २. पछाड़े जाने की अवस्था या भाव। ३. वह अवस्था जिसमें मनुष्य बहुत बड़े शोक का आघात होने पर खड़ा-खड़ा एक दम से जमीन पर गिर जाता और प्रायः बेसुध-सा हो जाता है। मुहा०—पछाड़ खाकर गिरना=बहुत अधिक शोकाकुल होने के कारण खड़े-खड़े बेसुध होकर गिरना। | 
			
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				| पछाड़ना					 : | स० [सं० प्रक्षालन] धोकर साफ करने के लिए किसी कपड़े को जोर जोर से जमीन या पत्थर पर पटकना। स० [हिं० पीछे+ढकेलना] १. कुश्ती आदि में किसी को जमीन पर चित गिराना और उसे जीतना। २. किसी प्रकार की प्रतियोगिता,वादविवाद आदि में किसी को बुरी तरह से नीचा दिखाना,परास्त करना या हराना। संयो० क्रि०—डालना।—देना। | 
			
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				| पछाड़ी					 : | स्त्री०=पिछाड़ी। (पिछला भाग)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पछानना					 : | स०=पहचानना। (पश्चिम)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पछाया					 : | पुं० दे० ‘पिछाड़ी’। | 
			
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				| पछार					 : | स्त्री०=पछाड़। अव्य०=पछवाँ (पीछे)। | 
			
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				| पछारना					 : | स०=पछाड़ना। | 
			
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				| पछावर (रि)					 : | स्त्री० [हिं० पीछे ?] छाछ आदि का बना हुआ एक प्रकार का पेय जो भोजन के अंत में पिया जाता है। | 
			
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				| पछाँह					 : | पुं०=पछाँह।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पछाह					 : | वि०, पुं०=पछाँही।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०=परछाईं।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पछिआना					 : | स० [हिं० पीछे+आना] १. किसी भागते हुए व्यक्ति को पकड़ने या पाने के लिए उसके पीछे-पीछे तेजी से बढ़ना। पीछा करना। २. किसी के पीछे-पीछे अनुगामी बनकर चलना। अनुकरण करना। | 
			
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				| पछिउँ					 : | पुं०=पश्चिम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पछिताना					 : | अ०=पछताना। | 
			
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				| पछितानि					 : | स्त्री०=पछतावा। | 
			
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				| पछिताव					 : | पुं० [देश०] पशुओं का एक प्रकार का रोग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=पछतावा। | 
			
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				| पछियाँव					 : | स्त्री० [सं० पश्चिम+वायु] पश्चिम दिशा से आनेवाली हवा। क्रि० प्र०—चलना।—बहना। | 
			
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				| पछियाना					 : | स०=पछिआना (पीछा करते हुए दौड़ना)। | 
			
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				| पछियाव					 : | स्त्री० [हिं०पश्चिम+वायु] पश्चिम की हवा। पुं०=पीछा (पिछला भाग)। | 
			
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				| पछियावर					 : | स्त्री०=पछावर। | 
			
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				| पछिलना					 : | अ० १.=पिछड़ना। २.=फिसलना। | 
			
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				| पछिला					 : | वि० [स्त्री० पछिली]=पिछला। | 
			
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				| पछिवाँ					 : | वि०, स्त्री०=पछवाँ। | 
			
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				| पछिवाई					 : | स्त्री० [सं० पश्चिम+वायु] पश्चिम दिशा से आनेवाली हवा। | 
			
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				| पछीत					 : | स्त्री० [सं०पश्चात्,प्रा० पच्छा] १. घर का पिछवाड़ा। मकान के पीछे का भाग। २. घर या मकान के पीछे वाली दीवार। अव्य०=पीछे।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पछुआँ					 : | वि०, पुं०, स्त्री०=पछवाँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पछुआ					 : | पुं० [हिं० पीछा] पैरों में पहनने का कड़े के आकार का एक गहना। | 
			
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				| पछेड़ा					 : | पुं० [हिं० पीछे] किसी को तंग करने के लिए उसके पीछे पड़ने की क्रिया या भाव। उदा०—पतवार पुरानी, पवन प्रलय का कैसा किये पछेड़ा है।—प्रसाद।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पछेलना					 : | स० [हिं० पीछे+एलना (प्रत्य०)] १. चलते,दौड़ते अथवा कोई काम करते समय किसी को पीछे छोड़ या डालकर स्वयं उससे आगे निकलना या बढ़ना। २. पीछे की ओर ढकेलना या हटाना। | 
			
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				| पछेला					 : | वि० [स्त्री० पछेली]=पिछला। पुं०=पिछेला (गहना)। | 
			
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				| पछेलिया					 : | स्त्री०=पिछेली (गहना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पछेली					 : | स्त्री०=पिछेली (गहना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पछोड़न					 : | स्त्री० [हिं० पछोड़ना] अनाज पछोड़ने पर निकलने वाला कूड़ा-करकट। | 
			
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				| पछोड़ना					 : | स० [सं० प्रक्षालन,प्रा० पच्छाड़ना] अन्न आदि सूप में रखकर इस प्रकार उछालना और हिलाना कि उसमें का कूड़ा-करकट निकलकर अलग हो जाय। (अनाज) फटकना। संयो० क्रि०—डालना।—देना। पद—पटकना-पछोड़ना=उलट-पुलटकर परीक्षा करना। अच्छी तरह देखना-भालना। उदा०—सूर जहाँ तौ स्याम गत है देखे फटकि पछोरी।—सूर। | 
			
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				| पछोरना					 : | स०=पछोड़ना। | 
			
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				| पछोरा					 : | पुं०=पिछौरा (दुपट्टा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पछ्यावर					 : | स्त्री० [देश०]=पछावर। | 
			
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