| शब्द का अर्थ | 
					
				| पटन					 : | पुं० दे० ‘पट्टन’। | 
			
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				| पटना					 : | अ० [हिं० पाटना का अनु०] १. पाटा जाना। २. गड्ढे आदि का भरे जाने के कारण आस-पास के तल के बराबर होना। ३. किसी स्थान का किसी चीज से बहुत अधिक भर जाना। जैसे—आजकल बाजार आम (या खरबूजों) से पट गया है। ४. दीवारों के ऊपर इस प्रकार छत या छाजन बनना कि उनके बीच की भूमि पर छाया हो जाय। पाटन पड़ना या बनना। ५. खेतों आदि का पानी से सींचा जाना। ६. रुचि,विचार,स्वभाव आदि में समानता होने के कारण आपस में एक-रसता,निर्वाह या सौजन्यपूर्ण संबंध होना। जैसे—दोनों भाइयों में अब फिर पटने लगी है। ७. उक्त प्रकार की अवस्था में किसी पर विश्वास होना। उदा०—मीराँ कहै प्रभु हरि अविनासी तन-मन ताहि पटै रे।—मीराँ। ८.लेन-देन,व्यवहार आदि में दोनों पक्षों में ब्योरे की बातों में सहमति होना। खरीद-बिक्री आदि के संबंध की सब बातें तय या निश्चित होना। जैसे—सौदा पटना। ९. ऋण,देन आदि का चुकता हो जाना। जैसे—अब उनका सारा ऋण पट गया। पुं० [सं० पट्टन ] भारत की प्राचीन प्रसिद्ध नगरी पाटलिपुत्र का आधुनिक नाम जो आधुनिक बिहार राज की राजधानी है। | 
			
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				| पटनिया					 : | वि० [हिं० पटना+इया (प्रत्य०)] पटना नगर का। पटना नगर से संबंध रखनेवाला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पटनिहा					 : | वि०=पटनिया। | 
			
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				| पटनी					 : | स्त्री० [हिं० पटना=तै होना] १. पटने की अवस्था या भाव। २. पाटने की क्रिया या भाव। ३. छत। ४. वह कमरा जिसके ऊपर कोई और कमरा भी हो। ५. चीजें आदि रखने के लिए दीवार में लगा हुआ तख्ता या पटरी। ६. जमीन या जमींदारी का वह अंश जो किसी को निश्चित लगान पर सदा के लिए दे दिया गया हो। ७. मध्ययुग की वह पद्धति, जिसके अनुसार जमीनों का बंदोबस्त उपर्युक्त रूप से सदा के लिए कर दिया जाता था। | 
			
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