| शब्द का अर्थ | 
					
				| पथ					 : | पुं० [सं०√पथ् (गति)+क] १. मार्ग। रास्ता। राह। २. कार्य-संपादन, आचार, व्यवहार आदि का निश्चित और प्रकाशित रीति। ३. ऐसा द्वार या साधन जिसमें होकर कुछ आगे बढ़ता हो। जैसे—कर्ण-पथ, दृष्टि-पथ। पुं०=पथ्य।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथक					 : | वि० [सं० पथ+कन्] पथ या मार्ग बतलानेवाला। पथदर्शक। पुं० प्रांत। देश। पं०=पथिक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथ-कर					 : | पुं० [ष० त०]=मार्ग-कर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथ-कल्पना					 : | पुं० [ब० स०] जादू के खेल। बाजीगरी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथगामी (मिन्)					 : | पुं० [सं० पथ√गम् (जाना)+णिनि] पथ या रास्ते पर चलनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथचारी (रिन्)					 : | पुं० [सं० पथ√चर (गति)+णिनि] पथिक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथ-दर्शक					 : | पुं० [ष० त०] रास्ता दिखानेवाला। मार्ग-दर्शक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथ-दर्शन					 : | पुं० दे० ‘मार्ग-दर्शन’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथना					 : | अ० [हिं० पाथना का अ० रूप] पाथा जाना। स० १. खूब मारना-पीटना। २. दे० ‘पाथना’। वि०=पथेरा। (पाथनेवाला)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथ-प्रदर्शक					 : | पुं० [ष० त०] दे० ‘मार्गदर्शक’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथर					 : | पुं० [हिं० पत्थर] ‘पत्थर’ का वह संक्षिप्त रूप जो उसे समस्त पदों के आरंभ में लगने से प्राप्त होता है। जैसे—पथरकला, पथरचटा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथर-कला					 : | स्त्री० [?] पुरानी चाल की एक तरह की बंदूक जिसमें लगे हुए चकमक पत्थर की सहायता से रगड़ उत्पन्न कर उसमें का बारूद जलाया जाता था। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथर-चटा					 : | पुं० [?] पखान भेद-नाम की वनस्पति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथरना					 : | स० [हिं० पत्थर+ना (प्रत्य०)] औजारों को पत्थर पर रगड़कर तेज करना। अ० पत्थर की तरह कठोर तथा ठोस होना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथराना					 : | अ० [हिं० पत्थर+आना (प्रत्य०)] १. सूखकर पत्थर की तरह कड़ा हो जाना। पत्थर की तरह कठोर तथा ठोस होना। २. सूखकर निष्प्रभ या शुष्क हो जाना। ३. पत्थर की तरह स्तब्ध और स्थिर हो जाना। जैसे—आँखें पथराना। स० १. ऐसी क्रिया करना जिससे कोई चीज पत्थर की तरह कठोर, जड़ या नीरस हो जाय। २. किसी को आघात पहुँचाने के लिए उस पर पत्थर के टुकड़े आदि फेंकना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथराव					 : | पुं० [हिं० पथराव=पत्थर की तरह होना] पत्थर की तरह कठोर और स्तब्ध होने की क्रिया, दशा या भाव। जैसे—आँखों का पथराव। पुं० [हिं० पथराना=पत्थरों से मारना] किसी पर बार-बार पत्थर के टुकड़े फेंकते रहने की क्रिया। जैसे—वह उसकी कामनाओं के शीशमहल पर इसी प्रकार पथराव करती रही। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथरी					 : | स्त्री० [हिं० पत्थर+ई (प्रत्य०)] १. पत्थर का बना हुआ कटोरी या कटोरे के आकार का पात्र। २. पत्थर का वह टुकड़ा जिस पर रगड़कर छुरे आदि की धार तेज करते है। सिल्ली। ३. कुरंड पत्थर जिसके चूर्ण को लाख आदि में मिलाकर औजार तेज करने की सान बनाते हैं। ४. चकमक पत्थर। ५. एक प्रकार का रोग जिसमे मूत्राशय में पत्थर के टुकड़ों के समान कोई चीज उत्पन्न की जाती है, जिसके फलस्वरूप पेशाब रुक-रुककर और बहुत कष्ट से होता है और कभी-कभी बन्द भी हो जाता है। ६. पक्षियों के पेट का वह पिछला भाग जिसमें अनाज आदि के बहुत कड़े दाने जाकर पचते हैं। ७. एक प्रकार की मछली। ८. जायफल की जाति का एक वृक्ष जो कोंकण आदि के जंगलों में होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथरीला					 : | वि० [हिं० पत्थर+ईला (प्रत्य०)] [स्त्री० पथरीली] १. जिस जमीन में पत्थर के कण मिले हों। २. जिसमें पत्थर हों, अथवा जो पत्थर या पत्थरों से बना हो। जैसे—पथरीला रास्ता। ३. पत्थर के समान कठोर, ठोस अथवा शुष्क। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथरौटा					 : | पुं० [हिं० पत्थर+औटा (प्रत्य०)] [स्त्री० अल्पा० पथरौटी] पत्थर का बना हुआ कटोरे की तरह का एक प्रकार का बड़ा पात्र। बड़ी पथरी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथरौड़ा					 : | पुं० [हिं० पाथना] वह स्थान जहाँ पर गोबर (अथवा कंडे) पाथे जाते हों। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथ-शुल्क					 : | पुं० पथ-कर (दे०)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथ-सुन्दर					 : | पुं० [सं० स० त०] एक प्रकार का पौधा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथस्थ					 : | वि० [सं० पथ√स्था (ठहरना)+क] जो पथ या मार्ग में स्थित हो। मार्गस्थ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथारना					 : | स० [सं० प्रस्तार]=पसारना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) अ०=पथराना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथिआ					 : | स्त्री० [?] टोकरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथिक					 : | पुं० [सं० पथिक्+कन्] १. वह जो पथ पर चल रहा हो। बटोही। राही। २. वह जो किसी लक्ष्य तक पहुँचने के लिए प्रयत्नशील हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथिक-चत्वर					 : | पुं० [च० त०] पथिकों के बैठकर सुस्ताने के लिए रास्ते में बना हुआ चबूतरा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथिका					 : | स्त्री० [सं० पथिक+टाप्] १. मुनक्का। २. एक प्रकार की शराब जो पहले मुनक्के या अंगूर से बनाई जाती थी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथिकाश्रय					 : | पुं० [सं० पथिक-आश्रय, ष० त०] १. विशेष रूप से निर्मित पथिकों के लिए आश्रय-स्थान। २. धर्मशाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथिकृत्					 : | पुं० [सं० पथिक्√कृ (करना)+क्विप्, तुक्] मार्गदर्शक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथिचक्र					 : | पुं० [सं०√पथ+इन्, पथि-चक्र, कर्म० स०] फलित ज्योतिष में एक प्रकार का चक्र जिससे यात्रा का शुभ और अशुभ फल जाना जाता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथि-देय					 : | पुं० [सं० अलुक् स०] पथ-कर (दे०)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथिद्रुम					 : | पुं० [सं० पथि√पथ्+इन, पथिद्रुम, कर्म० स०] खैर का पेड़। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथि-प्रिय					 : | पुं० [सं० अलुक् स०] साथ यात्रा करनेवाला मित्र। हमराही। हमसफर। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथिया					 : | स्त्री० [?] टोकरी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथिल					 : | पुं० [सं०√पथ+इलच्] पथिक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथि-वाहक					 : | वि० [सं० अलुक् स०] निष्ठुर। निर्दय। पुं० १. शिकारी। बहेलिया। २. बोझ ढोनेवाला मजदूर। मोटिया। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथिस्थ					 : | वि० [सं० पथि√स्था+क] जो पथ पर चल रहा हो। जाता हुआ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथी (थिन्)					 : | पुं० [सं० पथ+इनि] १. रास्ता चलनेवाला मुसाफिर। यात्री। पथिक। २. मार्ग। रास्ता। ३. यात्रा। ४. मत। सम्प्रदाय। ५. एक नरक का नाम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथीय					 : | वि० [सं० पथ+छ—ईय] १. पथ-सम्बन्धी। पथ या मार्ग का। २. किसी मत या सम्प्रदाय से संबंध रखनेवाला। पंथी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथु					 : | पुं०=पथ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथेय					 : | पुं०=पाथेय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथेरा					 : | वि० [हिं० पाथना+एरा (प्रत्य०)] पाथनेवाला। पुं० १. गोबर को पाथकर कंडे बनानेवाला व्यक्ति। २. वह व्यक्ति जो भट्ठे में पकाने के लिए कच्ची ईँटें ढालता हो। ३. कुम्हार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथौड़ा					 : | पुं०=पथौरा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथौरा					 : | पुं०=पथौड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० महाराज पृथ्वीराज चौहान का एक नाम जो उर्दू-फारसी के ग्रंथों में मिलता है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथ्य					 : | वि० [सं० पथिन्+यत् ] १. पथ-संबंधी। पथ का। २. (आहार, व्यवहार) जो स्वास्थ्य विशेषतः रोगी की स्वास्थ्य-रक्षा के विचार से आवश्यक या उचित हो। ३. गुणकारी। लाभदायक। हितकर। उदा०—पूत पथ्य गुरु आयसु अहई।—तुलसी। ४. अनुकूल। मुआफिक। पुं०१.वह हलका भोजन जो रोगी अथवा अस्वस्थ व्यक्ति को दिया जाय। २. स्वास्थ्य के लिए हितकर खान-पान और रहन-सहन। मुहा०—पथ्य से रहना=संयम से रहना। परहेज से रहना। ३. सेंधा नमक। ४. छोटी हर्रे। ५. कल्याण। मंगल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथ्यका					 : | स्त्री० [सं० पथ्य+कन्+टाप्] मेथी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथ्य-शाक					 : | पुं० [सं० कर्म० स०] चौलाई का साग। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथ्या					 : | स्त्री० [सं० पथ्य+टाप्] १. हरीतकी। हड़। २. बनककोड़ा। ३. सैंधनी। ४. चिरमिटा। ५. गंगा। ६. आर्या छन्द का एक भेद जिसके कई उपभेद हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथ्यादिक्वाथ					 : | पुं० [सं० पथ्या-आदि ब०, स० पथ्यादिक्वाथ कर्म० स०] त्रिफला, गुडुच, हलदी, चिरायते, नीम आदि का काढ़ा जो पाचक माना जाता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथ्यापंक्ति					 : | पुं० [सं० ब० स०] पाँच चरणोंवाला वैदिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में आठ-आठ वर्ण होते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथ्यापथ्य					 : | पुं० [सं० पथ्य-अपथ्य, द्व० स०] पथ्य और अपथ्य। रोग की अवस्था में हितकर और अहितकर चीज। जैसे—तुम्हें पथ्यापथ्य का सदा ध्यान रखना चाहिए। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथ्याशन					 : | पुं० [सं० पथ्य-अशन, कर्म० स०] पाथेय। संबल। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पथ्याशी (शिन्)					 : | वि० [सं० पथ्य√अश् (खाना)+णिनि] जो पथ्य (रोग के अनुकूल भोजन) खाकर रहता हो। पद—पुं० [सं०√पद् (गति)+अच्] १. कदम। पाँव पैर। मुहा०—पद टेकना=किसी जगह पैर जमाकर रखना। (किसी के आगे पद टेकना=दीनतापूर्वक घुटने टेककर बैठना। उदा०—भरद्वाज राखे पद टेकी।—तुलसी। २. चलते समय दो पैरों के बीच में होनेवाली दूरी। डग। पग। ३. चलने के समय पैरों से बननेवाला चिन्ह। ४. चिन्ह। निशान। ५. जगह। स्थान। ६. प्रदेश। जैसे—जन-पद। ७. त्राण। रक्षा। ८. निर्वाण। मोक्ष। ९. चीज। वस्तु। १॰. आवाज। शब्द। ११. किसी चीज का चौथाई अंश या भाग। पाद। १२. छंद, श्लोक आदि का चतुर्थांश। चरण। १३. एक प्रकार की पुरानी नाप। १४. शतरंज आदि की बिसात में बना हुआ चौकोर खाना। १५. व्याकरण में, किसी वाक्य में आया हुआ वह शब्द या शब्द-वर्ग जिसका कुछ अर्थ हो। वाक्य का अंश या खण्ड। १६. वह स्थान जिस पर रहकर कोई विशिष्ट कार्य करता हो। ओहदा। जगह। जैसे—उन्हें भी कार्यालय में एक पद मिल गया। १७. सम्मानजनक उपाधि या स्थान। १८. ऐसा गीत या भजन जिसमें ईश्वर की महिमा आदि वर्णित हों। जैसे—तुलसी या सूर के पद। १९. पुराणानुसार दान के लिए जूते, छाते, कपडे, अँगूठी, आसन, बरतन और भोजन का समूह। जैसे—विवाह के समय ब्राह्मणों को तीन पद दिये जाते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं |