| शब्द का अर्थ | 
					
				| पनंग					 : | पुं० [सं० पन्नग] सर्प। साँप। (डिं) | 
			
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				| पन					 : | पुं० [सं० पर्वन्] आयु अथवा जीवन-काल की कोई अवस्था या स्थिति। जैसे—उन्हें चौथे पन में कुछ आराम मिला। प्रत्य० एक प्रत्यय जो कुछ संज्ञाओं और गुणवाचक विशेषणों के अन्त में लगकर उनका भाववाचक रूप बनाता है। जैसे—बचपन, लड़कपन, पीलापन, हरापन आदि। पुं० [हिं० पान] पान का वह संक्षिप्त रूप जो उसे यौगिक पदों के आरंभ में लगने पर प्राप्त होता है। जैसे—पनवाड़ी। पुं० [हिं० पानी] पानी का वह संक्षिप्त रूप जो उसे यौ० पदों के आरंभ में लगने पर प्राप्त होता है। जैसे—पन-चक्की, पन-डुब्बी, पन-बिजली, पन-भरा आदि। पुं०= प्रण।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) क्रि० प्र०—रोपना।—लेना। पुं०=पण्य (मूल्य)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पन-कटा					 : | पुं० [हिं० पानी+काटना] वह मनुष्य जो खेतों में नालियाँ काटकर इधर-उधर पानी ले जाता या सींचता हो। | 
			
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				| पन-कपड़ा					 : | पुं० [हिं० पानी+कपड़ा] चोट, घाव आदि पर बाँधा जानेवाला गीला कपड़ा। | 
			
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				| पन-काल					 : | पुं० [हिं० पानी+काल या अकाल] १. पानी का अकाल। २. अत्यधिक वर्षा तथा उसके फलस्वरूप खेती आदि नष्ट होने के कारण पड़नेवाला अकाल। | 
			
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				| पन-कुकड़ी					 : | स्त्री०=पनकौआ। | 
			
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				| पन-कुट्टी					 : | स्त्री० [हिं० पान+कूटना] पान कूटने का छोटा खरल। | 
			
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				| पन-कौआ					 : | पुं० [हिं० पानी+कौआ] एक प्रकार का जल-पक्षी। जल-कौआ। | 
			
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				| पनखट					 : | पुं० [हिं० पनहा+काठ] जुलाहों की वह लचीली धुनकी जिस पर उनके सामने बुना कपड़ा फैला रहता है। | 
			
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				| पनग					 : | पुं० [स्त्री० पनगनि] पन्नग (साँप)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पनगाचा					 : | पुं० [हिं पानी+गाछी (बाग)] वह खेत जिसमें पानी भरा या सींचा गया हो। | 
			
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				| पनगोटी					 : | स्त्री० [हिं० पानी+गोटी] मोतिया शीतला। | 
			
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				| पनघट					 : | पुं० [हिं० पानी+घाट] १. वह घाट जहाँ से लोग पानी भरते हों। २. कोई ऐसा स्थान जहाँ से पानी घड़े में भरकर ले जाया जाता हो। जैसे—कूआँ। | 
			
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				| पनच					 : | स्त्री० [सं० पतंचिका] प्रत्यंचा। | 
			
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				| पन-चक्की					 : | स्त्री० [हिं० पानी+चक्की] आटा आदि पीसने की ऐसी चक्की जो पानी के बहाव के जोर से चलती हो। | 
			
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				| पनची					 : | स्त्री० [देश०] गेड़ी के खेल में खेलने के लिए पतली लकड़ी या गेड़ी। | 
			
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				| पनचोरा					 : | पुं० [हिं० पानी+चोर] जल भरने का एक तरह का बरतन जिसका पेट चौड़ा और मुँह सँकरा हो। | 
			
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				| पनडब्बा					 : | पुं० [हिं० पान+डब्बा] [स्त्री० अल्पा० पनडब्बी] पानदान। | 
			
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				| पनडब्बी					 : | स्त्री० [हिं० पन+डब्बी] पानों के लगे हुए वीड़े रखने की छोटी डिबिया। | 
			
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				| पनडूब्बा					 : | पुं० [हिं० पानी+डूबना] १. पानी में गोता लगानेवाला। गोताखोर। २. [स्त्री० पनडुब्बी] काले रंग का एक प्रसिद्ध पक्षी जो जलाशय में गोता लगाकर मछलियाँ पकड़ता हो। ३. मुरगाबी। ४. एक प्रकार का कल्पित भूत जिसके विषय में प्रसिद्ध है कि वह जलाशय में नहानेवालों को डुबा देता है। | 
			
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				| पनडुब्बी					 : | स्त्री० [हिं० पानी+डूबना] १. जलाशयों में डुबकी लगाकर मछलियाँ पकड़नेवाली एक चिड़िया। २. पानी के अन्दर डूबकर चलनेवाली एक प्रकार की आधुनिक नाव। (सब-मेरीन) | 
			
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				| पनदनियाँ					 : | स्त्री० [हिं० पानदान का स्त्री० अल्पा०] पानों के लगे हुए बीड़े रखने की छोटी डिब्बी। पन-डब्बी। | 
			
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				| पनपना					 : | अ० [सं० पर्ण+पर्ण=पत्ता; या पर्णय=हरा होना] १. पेड़-पौधों के सम्बन्ध में, उनका भली-भाँति विकास और वृद्धि होना। २. रोजगार आदि के संबंध में, उसका उन्नति पर होना। चमकना। ३. व्यक्ति के संबंध में, उसका नये सिरे से या फिर से तन्दुरुस्त, सम्पन्न अथवा सशक्त होने लगना। अच्छी स्थिति में आने लगना। | 
			
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				| पनपनाहट					 : | स्त्री० [अनु०] बार-बार होनेवाले पन-पन शब्द का भाव। | 
			
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				| पनपाना					 : | स० [हिं० पनपाना का स० रूप] किसी को पनपने में प्रवृत्त करना या सहायता करना। | 
			
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				| पनपिआइ					 : | स्त्री० [हिं० पानी+पिलाना] नाश्ता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पन-बट्टा					 : | पुं० [हिं० पान+बट्टा (डिब्बा)] वह छोटा डिब्बा जिसमें लगे हुए पानों के बीड़े रखे जाते हैं। | 
			
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				| पन-बदरा					 : | पुं० [हिं० पानी+बादल] ऐसी वातावरणिक स्थिति जिसमें पानी और बादल के साथ धूर भी निकली होती है। | 
			
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				| पनबिच्छी					 : | स्त्री० [हिं० पानी+बीछी] बिच्छी की तरह का डंक मारनेवाला एक जल-जंतु। | 
			
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				| पन-बिछिया					 : | स्त्री०=पनबिच्छी। | 
			
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				| पन-बिजली					 : | स्त्री० [हिं० पानी+बिजली] झरनों और नदियों के बहाववाले पानी से तैयार की जानेवाली बिजली। | 
			
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				| पनबिजली-शक्ति					 : | स्त्री० दे० ‘जलविद्युत्-शक्ति’। | 
			
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				| पनबुड़वा					 : | पुं०=पनडुब्बा। | 
			
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				| पनभता					 : | पुं० [हिं० पानी+भात] केवल पानी में उबले हुए चावल। साधारण भात। | 
			
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				| पन-भरा					 : | पुं० [हिं० पानी+भरना] वह जो घरों में पानी भरकर पहुँचाने या ले जाने का काम करता हो। पनहरा। | 
			
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				| पन-मँड़िया					 : | स्त्री० [हिं० पानी+माँड़ी] एक तरह की पतली माँड़ जिससे जुलाहे बुनाई के समय टूटे हुए तागों को जोड़ते हैं। | 
			
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				| पनरंगा					 : | वि० [हिं० पानी+रंग] [स्त्री० पनरंगी] पानी के रंग जैसा अर्थात् मटमैलापन लिये सफेद। उदा०—कटि धोती पनरंगी घरे गमछा-कल काँधे।—रत्ना०। | 
			
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				| पनलगवा, पनलगा					 : | पुं० [हिं० पानी+लगना] खेतों में पानी लगाने या सींचनेवाला व्यक्ति। पनकटा। | 
			
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				| पनलोहा					 : | पुं० [हिं० पानी+लोहा] एक प्रकार का जल-पक्षी जो हर ऋतु में रंग बदलता है। | 
			
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				| पनव					 : | पुं०=प्रणव। | 
			
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				| पनवाँ					 : | पुं० [हिं० पान+वाँ (प्रत्य०)] हुमेल आदि में लगी हुई बीचवाली चौकी जो पान के आकार की होती है। टिकड़ा। पान। | 
			
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				| पनवाड़ी					 : | स्त्री० [हिं० पान+वाड़ी] वह खेत या भूमि जिसमें पान पैदा होता है। पुं० दे० ‘तमोली’। | 
			
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				| पनवार					 : | स्त्री० [सं० पर्ण] पत्तों की बनी हुई पत्तल। | 
			
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				| पनवारा					 : | पुं० [हिं० पान=पत्ता+वार (प्रत्य०)] १. पत्तों की बनी हुई पत्तल जिस पर रखकर लोग भोजन करते हैं। मुहा०—पनवारा लगाना=पत्तल पर भोजन परोसना। २. पत्तल पर परोसा हुआ उतना भोजन जितना एक आदमी खा सके। (दे० ‘पत्तल’) पुं० [?] एक प्रकार का साँप। | 
			
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				| पनवारी					 : | स्त्री० =पनवाड़ी। पुं०=तमोली। | 
			
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				| पनस					 : | पुं० [सं०√पन् (स्तुति)+असच्] १. कटहल का वृक्ष। २. कटहल का फल। ३. राम की सेना का एक बंदर। ४. विभीषण का एक मंत्री। | 
			
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				| पन-सखिया					 : | स्त्री० [हिं० पाँच+शाखा] १. एक प्रकार का पौधा। २. उक्त पौधे का फूल। | 
			
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				| पनसतालिका					 : | स्त्री० [सं० पनस-ताल, कर्म० स०,+ ठन्—इक,+टाप्] कटहल। | 
			
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				| पनसनालका					 : | पुं० [सं०] कटहल। | 
			
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				| पनसल्ला					 : | पुं०=पनसाल (प्याऊ)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पनसाखा					 : | पुं० [हिं० पाँच+शाखा] एक प्रकार की मशाल जिसमें तीन या पाँच बत्तियाँ साथ जलती हैं। | 
			
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				| पनसार					 : | पुं० [हिं० पानी+सं० आसार=धार बाँधकर पानी गिराना] पानी से किसी स्थान को तर करने या सींचने की क्रिया या भाव। भरपूर सिंचाई। | 
			
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				| पनसारी					 : | पुं०=पंसारी। | 
			
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				| पनसाल					 : | स्त्री० [हिं० पानी+सं० शाला] १. वह स्थान जहाँ सर्वसाधारण को पानी पिलाया जाता है। पौसरा। प्याऊ। २. नदी आदि में नावों के चलने के समय पानी की गहराई नापने की क्रिया। ३. वह उपकरण जिससे वक्त अवसरों पर पानी की गहराई नापी जाती है। | 
			
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				| पनसिंगा					 : | पुं० [देश०] जलपीपल। | 
			
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				| पनसिका					 : | स्त्री० [सं० पनस+ठन्—इक,+टाप्] कान में होनेवाली एक तरह की फुंसी जो कटहल के काँटों की तरह नोकदार होती है। | 
			
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				| पनसी					 : | स्त्री० [सं० पनस+ङीष्] १. कटहल का फल। २. पनसिका। | 
			
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				| पनसुइया					 : | स्त्री० [हिं० पानी+सूई] एक तरह की पतली तथा छोटी नाव। | 
			
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				| पनसूर					 : | पुं० [देश०] एक तरह का बाजा। | 
			
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				| पनसेरी					 : | स्त्री०=पंसेरी। | 
			
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				| पनसोई					 : | स्त्री०=पनसुइया। | 
			
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				| पनसोह					 : | वि० [हिं० पानी+सुहाना] १. जिसका स्वाद जल जैसा हो। २. फीका। ३. नीरस। | 
			
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				| पनस्यु					 : | वि० [सं० पन+क्यच्, सुगागम,+ड] प्रशंसा या तारीफ सुनने का इच्छुक। जिसे प्रशंसित होने की लालसा हो। | 
			
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				| पनह					 : | स्त्री०=पनाह (शरण)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पनहड़ा					 : | पुं० [हिं० पान+हाँड़ी] वह पात्र जिसमें तमोली पान आदि धोने के लिए पानी रखते हैं। | 
			
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				| पनहरा					 : | पुं० [हिं० पानी+हरा (प्रत्य०)] [स्त्री० पनहारन, पनहारिन] १. वह व्यक्ति जो दूसरों के यहाँ पानी भरता हो और इस प्रकार प्राप्त होनेवाले पारिश्रमिक से अपनी जीविका चलाता हो। पन-भरा। २. वह पात्र जिसमें सोनार गहने धोने आदि के लिए पानी रखते हैं। | 
			
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				| पनहा					 : | पुं० [सं० परिणाह=विस्तार, चौड़ाई] १. कपड़े, दीवार आदि की चौड़ाई। अरज। २. गूढ़ आशय। तात्पर्य। मर्म। भेद। पुं० [सं० पण=रुपया-पैसा+हार] १. चोरी का पता लगानेवाला। २. वह पुरस्कार जो चुराई हुई वस्तु लौटा या दिला देने के लिए दिया जाय। स्त्री०=पनाह।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| पनहारा					 : | पुं०=पनहरा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| पनहिया					 : | स्त्री०=पनही।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पनहिया-भद्र					 : | पुं० [हिं० पनही+भद्र=मुंडन] सिर पर इतने जूते पड़ना कि बाल उड़ जायँ। जूतों की मार। | 
			
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				| पनही					 : | स्त्री० [सं० उपानह] जूता। | 
			
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				| पना					 : | पुं० [सं० प्रपानक या पानीय] भुने हुए आम, इमली आदि का बनाया जानेवाला एक तरह का खट-मीठा शरबत। पन्ना। प्रत्य०=पन। जैसे—पाजीपना। | 
			
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				| पनाती					 : | पुं० [सं० प्रन्प्तृ] [स्त्री० पनातिन] पुत्र अथवा कन्या का नाती। पोते अथवा नाती का पुत्र। परनाती। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनार (रा)					 : | पुं०=पनारा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनारि					 : | स्त्री० [हिं० प=पर+नारि] पराई स्त्री। उदा०—जो पनारि कौ रसिक...। मतिराम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनाला					 : | पुं० [स्त्री० अल्पा० पनाली]=परनाला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनालिया					 : | वि० [हिं० पनाला=परनाला] पनाले या परनाले के समान गंदा और त्याज्य। जैसे—पनालिया पग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनालिया-पत्र					 : | पुं० [हिं० पनालिया+सं० पत्र] वह समाचार-पत्र (या समाचार-पत्रों का वर्ग) जिसमें अधिकतर बातें अशिष्टतापूर्ण और अश्लील ढंग से कही जाती हैं और दूषित भाव से लोगों पर कीचड़ उछाला जाता है। (गटर प्रेस) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनास					 : | पुं० [हिं० पनासना] १. पालन-पोषण। २. दे० ‘पोस’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनासना					 : | स० [सं० पानाशन] पोषण करना। पालना-पोसना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनाह					 : | स्त्री० [फा०] १. शत्रु के उपद्रव या दूसरे संकटों से प्राणरक्षा या अपना बचाव करने की क्रिया या भाव। त्राण। २. उक्त आशय से किसी की रक्षा या शरण में जाने की क्रिया या भाव। मुहा०—(किसी काम, बात या व्यक्ति से) पनाह माँगना=किसी बहुत ही अप्रिय या अनिष्ट वस्तु अथवा विकट व्यक्ति से दूर रहने की कामना करना। किसी से बहुत बचने की इच्छा करना। जैसे—मैं आप से पनाह माँगता हूँ। ३. ऐसा स्थान जहाँ छिप या रहकर कोई शत्रु संकट आदि से बचता हो। बचाव या रक्षा की जगह। क्रि० प्र०—देना।—पाना।—माँगना। मुहा०—पनाह लेना= विपत्ति से बचने के लिए रक्षित स्थान में पहुँचना। शरण लेना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| पनिक					 : | पुं० [देश०] दो बाँसों की कैंचीनुमा रचना। (जुलाहे) विशेष—ऐसी ही दो रचनाओं के बीच में पाई करने के उद्देश्य से ताना फैलाया जाता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनिख					 : | पुं०=पनिक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनिगर					 : | वि०=पानीदार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनिघट					 : | पुं०=पनघट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनिच					 : | स्त्री०=पनच (प्रत्यंचा)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनिड़ी					 : | स्त्री०=पुंडरीक (ईख का एक भेद)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनियाँ					 : | वि० [हिं० पानी+इया (प्रत्य०)] १. जल-संबंधी। पानी का। २. पानी में रहने या होनेवाला। जैसे—पनियाँ साँप। ३. जिसमें पानी हो या मिला हो। जैसे—पनियाँ दूध। ४. पानी के रंग का। पुं० दे० ‘पनुआ’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनियाना					 : | स० [हिं० पानी+आना (प्रत्य०)] खेत आदि को पानी से सींचना। स०=पनिहाना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनियार					 : | पुं० [हिं० पानी+यार (प्रत्य०)] १. वह स्थान जहाँ पानी ठहरता या रुकता हो। २. वह दिशा जिधर ढाल होने के कारण पानी बहता हो। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनियारा					 : | पुं० [हिं० पानी] १. पानी की बाढ़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि०, पुं०=पनियाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनियाला					 : | पुं० [?] एक प्रकार का वृक्ष और उसका फल। वि०=पनियाँ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनियाँव					 : | पुं० [हिं० पानी+इयाव (प्रत्य०)] कूआँ खोदते समय मिलनेवाला वह स्थान जहाँ पानी यथेष्ट होता है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनिया-सोत					 : | वि० [हिं० पानी+सोता] (तालाब या खाई) जिसके तल में पानी का प्राकृतिक सोता निकला हो। अर्थात् बहुत गहरा। जैसे—पनिया-सोत खाईं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनिवा					 : | पुं०=पनुआँ। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनिसिंगा					 : | पुं० दे० ‘जल पीपल’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनिहरा					 : | पुं०=पनहरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनिहा					 : | पुं० [?] चोर पकड़ने अथवा उनका पता बतलानेवाले तांत्रिक। पुं० दे० ‘पनुआ’। वि०=पनियाँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनिहाना					 : | स० [हिं० पनही=जूता] १. जूतों से मारना। २. बहुत अधिक मारना-पीटना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनिहार					 : | पुं० [स्त्री० पनिहारिन]=पनहरा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पनिहारिन					 : | स्त्री० [हिं० पनिहरा=पानी भरनेवाला] १. वह स्त्री० जो लोगों के घर पानी भर कर पहुँचाने का काम करती हो। २. गाँव-देहातों में कहरवा की तरह के एक प्रकार के गीत जो उक्त अथवा कहार जाति की स्त्रियाँ पानी भरने और लोगों के घर पानी पहुँचाने के समय गाती हैं। | 
			
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				| पनी					 : | वि० [सं० पण] जिसने प्रण या व्रत धारण किया हो। स्त्री०=पन्नी। | 
			
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				| पनीर					 : | पुं० [फा०] १. दही का वह घन अंश जो उसमें पानी निकाल देने पर बच रहे। २. फटे या फाड़े हुए दूध का घन अंश। छेना। मुहा०—(किसी को) पनीर चटाना=काम निकालने के उद्देश्य से किसी को कुछ खिलाना-पिलाना और खुशामद करना। पनीर जमाना=ऐसी बात करना जिससे आगे चलकर कोई बहुत उद्देश्य या स्वार्थ सिद्ध हो। | 
			
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				| पनोरी					 : | वि० [फा०] १. पनीर-संबंधी। २. पनीर का बना हुआ। जैसे—पनीरी मिठाई। स्त्री० [देश०] १. फूल-पत्तोंवाले वे छोटे पौधे जो दूसरी जगह रोपने के लिए उगाये गये हों। फूल-पत्तों के बेहन। क्रि० प्र०—जमाना। २. वह क्यारी जिसमें उक्त प्रकार के पौधे उगाये जाते हैं। ३. गलगल नींबू की फाँक का गूदा। | 
			
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				| पनीला					 : | वि०=पनियाँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [?] एक तरह का सन। | 
			
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				| पनु					 : | पुं०=प्रण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पनुआँ					 : | पुं० [हिं० पानी+उआँ (प्रत्य०)] १. वह शरबत जो गुड़ के कड़ाहे से पाग निकाल लेने के बाद उसे धोकर तैयार किया जाता है। पनियाँ। २. तरबूज। (पूरब) | 
			
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				| पनेथी					 : | स्त्री० [हिं० पानी+पोथी] वह रोटी जिसमें पलेथन के स्थान पर पानी लगाया गया हो। | 
			
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				| पनेरी					 : | स्त्री०=पनीरी। पुं०=पनवाड़ी (तँबोली)। | 
			
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				| पनेवा					 : | पुं० [?] एक प्रकार की चिड़िया। | 
			
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				| पनेहड़ी					 : | स्त्री० दे० ‘पनहड़ी’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=पनहरा। | 
			
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				| पनेहरा					 : | पुं०=पनहरा। | 
			
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				| पनैला					 : | वि०=पनियाँ। पुं०=पनीला। | 
			
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				| पनौआ					 : | पुं० [हिं० पान+औआ (प्रत्य०)] पान के पत्तों का पकौड़ा या पकौड़ी। | 
			
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				| पनौटी					 : | स्त्री० [हिं० पान+औटी (प्रत्य०)] पान रखने की पुरानी चाल की पिटारी। | 
			
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				| पन्न					 : | वि० [सं०√पद्+क्त] १. गिरा या पड़ा हुआ। जैसे—शरणापन्न। २. जो नष्ट या समाप्त हो चुका हो। पुं० खिसकते या सरकते हुए चलना। रेंगना। पुं०=पर्ण (पत्ता)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पन्नई					 : | वि० [हिं० पन्ना+ई (प्रत्य०)] पन्ने के रंग का। फिरोजी या गहरे हरे रंग का। | 
			
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				| पन्नग					 : | पुं० [सं० पन्न√गम् (जाना)+ड] [स्त्री० पन्नगी] १. सर्प। साँप। २. एक प्रकार की जड़ी या बूटी। ३. सीसा। पुं०=पन्ना (मरकत)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पन्नग-केसर					 : | पुं० [ब० स०] नागकेसर। | 
			
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				| पन्नगारि					 : | पुं० [पन्नग-अरि, ष० त०] गरुड़। | 
			
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				| पन्नगाशन					 : | पुं० [पन्नग-आशन, ब० स०] गरुड़। | 
			
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				| पन्नगिनि					 : | स्त्री०=पन्नगी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पन्नगी					 : | स्त्री० [सं० पन्नग+ङीष्] १. सर्पिणी। साँपिन। २. सर्पिणी नाम की जड़ी या बूटी। | 
			
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				| पन्नद्धा, पन्नध्री					 : | स्त्री० [सं० पद्-नद्धा, स० त०, पद्-नध्री, ष० त०] जूता। | 
			
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				| पन्ना					 : | पुं० [सं० पर्ण] एक तरह का गहरे हरे या फिरोजी रंग का बहुमूल्य रत्न। पुं० [हिं० पान] १. पृष्ठ। वरक। २. भेड़ों के कान का वह भाग जहाँ का ऊन काटा जाता है। ३. पान के आकार का जूते का वह अंग जिसे ‘पान’ कहते हैं। | 
			
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				| पन्निक					 : | पुं०=पनिक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पन्नी					 : | स्त्री० [हिं० पन्ना] १. राँगे, पीतल आदि का पत्तर जिसे सौंदर्य और शोभा के लिए छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर अन्य वस्तुओं पर चिपकाया जाता है। २. एक तरह का रंगीन चमकीला कागज। ३. सुनहला या रुपहला कागज। स्त्री० [हिं० पना] इमली, कच्चेआम आदि से बनने वाला एक पेय। स्त्री० [?] १. बारूद की एक तौल जो आध सेर के बराबर होती है। २. एक तरह की घास जो छप्पर छाने के काम आती है। | 
			
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				| पन्नीसाज					 : | पुं० [हिं० पन्नी+फा० साज़=बनानेवाला] [भाव० पन्नीसाजी] पन्नी बनानेवाले कारीगर। | 
			
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				| पन्नीसाजी					 : | स्त्री० [हिं० पन्नीसाज] पन्नी बनाने का काम या व्यवसाय। | 
			
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				| पन्नू					 : | पुं० [देश०] १. एक प्रकार का पौधा। २. उक्त पौधे का फूल। | 
			
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				| पन्यारी					 : | स्त्री० [देश०] एक तरह का जंगली वृक्ष, जिसकी लकड़ी चमकदार तथा मजबूत होती है। | 
			
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				| पन्हाना					 : | स० १.=पहनाना। २.=पनिहाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) अ०= पेन्हाना (थन में दूध उतरना)। | 
			
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				| पन्हारा					 : | पुं० [हिं० पानी+हरा] एक प्रकार का तृण धान्य जो गेहूँ के खेतों में आप से आप होता है। अँकरा। | 
			
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				| पन्हीं					 : | स्त्री० [देश०] एक तरह की घास। गाँडरा। बीरन। | 
			
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				| पन्हैया					 : | स्त्री०=पनही। | 
			
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