| शब्द का अर्थ | 
					
				| परिवह					 : | पुं० [सं० परि√वह् (बहना)+अच्] १. सात पवनों में से छठा पवन; जो आकाश गंगा, सप्तऋषियों आदि को वहन करता है। २. अग्नि की सात जिह्वाओं में से एक जिह्वा की संज्ञा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| परिवहन					 : | पुं० [सं० परि√वह्+ल्युट्—अन] माल, यात्रियों आदि को एक स्थान से ढोकर दूसरे स्थान पर ले जाने का कार्य, जो आज-कल रेलों, मोटरों, जहाजों, नावों आदि अनेक साधनों द्वारा किया जाता है। (ट्रान्सपोर्ट) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| परिवहन तंत्र					 : | पुं० [सं०] दे० ‘रक्तवह-तंत्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| परिवह					 : | पुं० [सं० परि√वह् (बहना)+अच्] १. सात पवनों में से छठा पवन; जो आकाश गंगा, सप्तऋषियों आदि को वहन करता है। २. अग्नि की सात जिह्वाओं में से एक जिह्वा की संज्ञा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| परिवहन					 : | पुं० [सं० परि√वह्+ल्युट्—अन] माल, यात्रियों आदि को एक स्थान से ढोकर दूसरे स्थान पर ले जाने का कार्य, जो आज-कल रेलों, मोटरों, जहाजों, नावों आदि अनेक साधनों द्वारा किया जाता है। (ट्रान्सपोर्ट) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| परिवहन तंत्र					 : | पुं० [सं०] दे० ‘रक्तवह-तंत्र। | 
			
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