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			| शब्द का अर्थ |  
				| परिवृत्ति					 : | स्त्री० [सं० परि√वृ+क्तिन्] १. ढकने, घेरने या छिपाने वाली वस्तु। घेरा। वेष्टन। २. घुमाव। चक्कर। ३. विनिमय। ४. अंत। समाप्ति। ५. दोबारा कोई काम करने की क्रिया या भाव। ६. किसी के किये हुए काम को देखकर वैसा ही और कोई काम करना। ६. व्याकरण में, एक शब्द या पद को दूसरे ऐसे शब्द या पद से बदलना जिससे अर्थ वही बना रहे। जैसे—‘कमललोचन’ के ‘कमल’ के स्थान पर पद्म’ अथवा ‘लोचन के स्थान पर ‘नयन’ रखना। ८. साहित्य में, एक अलंकार जिसमें किसी को अनुपात में कम या सस्ती वस्तु देकर अधिक या महंगी वस्तु लेने का वर्णन होता है। |  
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं |  
				| परिवृत्ति					 : | स्त्री० [सं० परि√वृ+क्तिन्] १. ढकने, घेरने या छिपाने वाली वस्तु। घेरा। वेष्टन। २. घुमाव। चक्कर। ३. विनिमय। ४. अंत। समाप्ति। ५. दोबारा कोई काम करने की क्रिया या भाव। ६. किसी के किये हुए काम को देखकर वैसा ही और कोई काम करना। ६. व्याकरण में, एक शब्द या पद को दूसरे ऐसे शब्द या पद से बदलना जिससे अर्थ वही बना रहे। जैसे—‘कमललोचन’ के ‘कमल’ के स्थान पर पद्म’ अथवा ‘लोचन के स्थान पर ‘नयन’ रखना। ८. साहित्य में, एक अलंकार जिसमें किसी को अनुपात में कम या सस्ती वस्तु देकर अधिक या महंगी वस्तु लेने का वर्णन होता है। |  
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं |  |