| शब्द का अर्थ | 
					
				| पाटल					 : | पुं० [सं०√पट्+णिच्+कलप] १. पाडर या पाढर नामक पेड़, जिसके पत्ते आकार-प्रकार में बेल वृक्ष के पत्तों के समान होते हैं। २. गुलाब। वि० १. गुलाब-संबंधी। २. गुलाब के रंग का। उदा०—कर लै प्यौ पाटल बिमल प्यारी।—बिहारी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| पाटलक					 : | वि० [सं० पाटल+कन्] पाटल के रंग का। गुलाबी रंग का। पुं० गुलाबी रंग। | 
			
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				| पाटलकीट					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार का कीड़ा। | 
			
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				| पाटल-द्रुम					 : | पुं० [सं० उपमि० स०] पुन्नाग वृक्ष। राज-चंपक। | 
			
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				| पाटला					 : | स्त्री० [सं० पावल+टाप्] १. पाडर का वृक्ष। २. लाललोध। ३. जलकुंभी। ४. दुर्गा का एक रूप। पुं० [सं० पटल] एक प्रकार का बढ़िया और साफ सोना। | 
			
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				| पाटलवती					 : | स्त्री० [सं० पाटला+मतुप्, वत्व,+ङीष्] १. दुर्गा। २. एक प्राचीन नदी। | 
			
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				| पाटलि					 : | स्त्री० [सं०√पट्+णिच्+अलि] १. पाडर का वृक्ष। २. पांडुफली। | 
			
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				| पाटलिक					 : | वि० [सं० पाटलि+कन्] १. जो दूसरों के भेद या रहस्य जानता हो। २. जिसे देश और काल का ज्ञान हो। पुं० १. चेला। शिष्य। २. पाटलिपुत्र नगर। | 
			
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				| पाटलित					 : | भू० कृ० [सं० पाटल+णिच्+क्त] गुलाबी रंग में रँगा हुआ। | 
			
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				| पाटलि-पुत्र					 : | पुं० [सं० ष० त० ?] अज्ञातशत्रु द्वारा बसाई हुई प्राचीन मगध की एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगरी जो आधुनिक पटना नगर के पास थी। पुष्पपुर। कुसुमपुर। विशेष—कुल लोग वर्तमान पटने को ही पाटिलपुत्र समझते हैं परंतु पटना शेरशाह सूरी का बसाया हुआ है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| पाटलिमा (मन्)					 : | स्त्री० [सं० पाटल+इमनिच्] १. गुलाबी रंग। २. गुलाबी रंगत। ३. गुलाबी होने की अवस्था या भाव। गुलाबीपन। | 
			
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				| पाटली					 : | स्त्री० [सं० पाटलि+ङीष्]=पाटलि। | 
			
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				| पाटली-तैल					 : | पुं० [सं० ष० त०] एक प्रकार का औषध तैल जिसके लगाने से जले हुए स्थान की जलन, पीड़ा और चेप बहना दूर होता है। | 
			
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				| पाटलीपुत्र					 : | पुं०=पाटलिपुत्र। | 
			
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				| पाटल					 : | पुं० [सं०√पट्+णिच्+कलप] १. पाडर या पाढर नामक पेड़, जिसके पत्ते आकार-प्रकार में बेल वृक्ष के पत्तों के समान होते हैं। २. गुलाब। वि० १. गुलाब-संबंधी। २. गुलाब के रंग का। उदा०—कर लै प्यौ पाटल बिमल प्यारी।—बिहारी। | 
			
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				| पाटलक					 : | वि० [सं० पाटल+कन्] पाटल के रंग का। गुलाबी रंग का। पुं० गुलाबी रंग। | 
			
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				| पाटलकीट					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार का कीड़ा। | 
			
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				| पाटल-द्रुम					 : | पुं० [सं० उपमि० स०] पुन्नाग वृक्ष। राज-चंपक। | 
			
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				| पाटला					 : | स्त्री० [सं० पावल+टाप्] १. पाडर का वृक्ष। २. लाललोध। ३. जलकुंभी। ४. दुर्गा का एक रूप। पुं० [सं० पटल] एक प्रकार का बढ़िया और साफ सोना। | 
			
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				| पाटलवती					 : | स्त्री० [सं० पाटला+मतुप्, वत्व,+ङीष्] १. दुर्गा। २. एक प्राचीन नदी। | 
			
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				| पाटलिक					 : | वि० [सं० पाटलि+कन्] १. जो दूसरों के भेद या रहस्य जानता हो। २. जिसे देश और काल का ज्ञान हो। पुं० १. चेला। शिष्य। २. पाटलिपुत्र नगर। | 
			
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				| पाटलित					 : | भू० कृ० [सं० पाटल+णिच्+क्त] गुलाबी रंग में रँगा हुआ। | 
			
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				| पाटलि-पुत्र					 : | पुं० [सं० ष० त० ?] अज्ञातशत्रु द्वारा बसाई हुई प्राचीन मगध की एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगरी जो आधुनिक पटना नगर के पास थी। पुष्पपुर। कुसुमपुर। विशेष—कुल लोग वर्तमान पटने को ही पाटिलपुत्र समझते हैं परंतु पटना शेरशाह सूरी का बसाया हुआ है। | 
			
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				| पाटलिमा (मन्)					 : | स्त्री० [सं० पाटल+इमनिच्] १. गुलाबी रंग। २. गुलाबी रंगत। ३. गुलाबी होने की अवस्था या भाव। गुलाबीपन। | 
			
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				| पाटली					 : | स्त्री० [सं० पाटलि+ङीष्]=पाटलि। | 
			
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				| पाटली-तैल					 : | पुं० [सं० ष० त०] एक प्रकार का औषध तैल जिसके लगाने से जले हुए स्थान की जलन, पीड़ा और चेप बहना दूर होता है। | 
			
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				| पाटलीपुत्र					 : | पुं०=पाटलिपुत्र। | 
			
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