| शब्द का अर्थ | 
					
				| पालक					 : | वि० [सं०√पाल्+णिच्+ण्वुल्—अक] [स्त्री० पालिका] पालन करनेवाला। पुं० १. पालकर अपने पास रखा हुआ लड़का। २. प्रधान शासक या राजा। ३. घोड़े का साईस। ४. चीते का पेड़। चित्रक। पुं० [सं० पाल्यंक] एक प्रकार का प्रसिद्ध साग। पुं०=पलंग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) उदा०—खँड खँड सजी पालक पीढ़ी।—जायसी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पालकजूही					 : | स्त्री० [देश०] एक प्रकार का छोटा पौधा जो दवा के काम में आता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पालकरी					 : | स्त्री० [हिं० पलंग] लकड़ी का वह छोटा टुकड़ा जो पलंग, चारपाई, चौकी आदि के पायों को ऊँचा करने के लिए उसके नीचे रखा जाता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पालकाप्य					 : | पुं० [सं०] १. एक प्राचीन मुनि जो अश्व, गज आदि से संबंध रखनेवाली विद्या के प्रथम आचार्य माने गये हैं। २. वह विद्या या शास्त्र जिसमें हाथी घोड़े आदि के लक्षणों, गुणों आदि का निरूपण हो। शालिहोत्र। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पालकी					 : | स्त्री० [सं० पल्यंक; प्रा० पल्लंक] एक प्रसिद्ध सवारी जिसमें सवार बैठता या लेटता है और जिसे कहार या मजदूर लोग कंधे पर उठा कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं। स्त्री० [सं० पालंक] पालक का शाक। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पालकी गाड़ी					 : | स्त्री० [हिं० पालकी+गाड़ी] एक तरह की घोड़ागाड़ी जिसका ऊपरी ढाँचा पालकी के आकार का तथा छायादार होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पालक					 : | वि० [सं०√पाल्+णिच्+ण्वुल्—अक] [स्त्री० पालिका] पालन करनेवाला। पुं० १. पालकर अपने पास रखा हुआ लड़का। २. प्रधान शासक या राजा। ३. घोड़े का साईस। ४. चीते का पेड़। चित्रक। पुं० [सं० पाल्यंक] एक प्रकार का प्रसिद्ध साग। पुं०=पलंग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) उदा०—खँड खँड सजी पालक पीढ़ी।—जायसी। | 
			
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				| पालकजूही					 : | स्त्री० [देश०] एक प्रकार का छोटा पौधा जो दवा के काम में आता है। | 
			
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				| पालकरी					 : | स्त्री० [हिं० पलंग] लकड़ी का वह छोटा टुकड़ा जो पलंग, चारपाई, चौकी आदि के पायों को ऊँचा करने के लिए उसके नीचे रखा जाता है। | 
			
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				| पालकाप्य					 : | पुं० [सं०] १. एक प्राचीन मुनि जो अश्व, गज आदि से संबंध रखनेवाली विद्या के प्रथम आचार्य माने गये हैं। २. वह विद्या या शास्त्र जिसमें हाथी घोड़े आदि के लक्षणों, गुणों आदि का निरूपण हो। शालिहोत्र। | 
			
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				| पालकी					 : | स्त्री० [सं० पल्यंक; प्रा० पल्लंक] एक प्रसिद्ध सवारी जिसमें सवार बैठता या लेटता है और जिसे कहार या मजदूर लोग कंधे पर उठा कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं। स्त्री० [सं० पालंक] पालक का शाक। | 
			
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				| पालकी गाड़ी					 : | स्त्री० [हिं० पालकी+गाड़ी] एक तरह की घोड़ागाड़ी जिसका ऊपरी ढाँचा पालकी के आकार का तथा छायादार होता है। | 
			
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