| शब्द का अर्थ | 
					
				| पाषाण					 : | पुं० [सं०√पिष् (चूर्ण करना)+आनच्, पृषो० सिद्धि] १. पत्थर। प्रस्तर। शिला। नीलम, पन्ने आदि रत्नों का एक दोष। ३. गन्धक। वि० [स्त्री० पाषाणी] १. निर्दय। २. कठोर। ३. नीरस। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पाषाण-गदर्भ					 : | पुं० [सं० ष० त० ?] दाढ़ में सूजन होने का एक रोग। | 
			
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				| पाषाण-चतुर्दशी					 : | स्त्री० [मध्य० स०] अगहन मास की शुक्ला चतुर्दशी। अगहन सुदी चौदस। | 
			
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				| पाषाण-दारण					 : | पुं० [ष० त०] [वि० पाषाणदारक] पत्थर तोड़ने का काम। | 
			
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				| पाषाण-भेद					 : | पुं० [ष० त०] एक प्रकार का पौधा जो अपनी पत्तियों की सुन्दरता के लिए बगीचों में लगाया जाता है। पाखानभेद। पथरचूर। | 
			
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				| पाषाण-भेदन					 : | पुं० [पाषाण√भिद् (तोड़ना)+ल्युट्—अन]=पाषाण भेद। | 
			
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				| पाषाणभेदी (दिन्)					 : | पुं० [सं० पाषाण√भिद्+णिनि] पाखान भेद। पथरचूर। | 
			
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				| पाषाण-मणि					 : | पुं० [मयू० स०] सूर्यकांत मणि। | 
			
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				| पाषाण-रोग					 : | पुं० [ष० त०] अश्मरी या पथरी नाम का रोग। | 
			
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				| पाषाण-हृदय					 : | वि० [ब० स०] जिसका हृदय बहुत ही कठोर या अत्यन्त क्रूर हो। | 
			
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				| पाषाणी					 : | स्त्री० [सं० पाषाण+ङीष्] बटखरा। वि० स्त्री० निर्दय (स्त्री)। | 
			
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				| पाषाण					 : | पुं० [सं०√पिष् (चूर्ण करना)+आनच्, पृषो० सिद्धि] १. पत्थर। प्रस्तर। शिला। नीलम, पन्ने आदि रत्नों का एक दोष। ३. गन्धक। वि० [स्त्री० पाषाणी] १. निर्दय। २. कठोर। ३. नीरस। | 
			
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				| पाषाण-गदर्भ					 : | पुं० [सं० ष० त० ?] दाढ़ में सूजन होने का एक रोग। | 
			
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				| पाषाण-चतुर्दशी					 : | स्त्री० [मध्य० स०] अगहन मास की शुक्ला चतुर्दशी। अगहन सुदी चौदस। | 
			
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				| पाषाण-हृदय					 : | वि० [ब० स०] जिसका हृदय बहुत ही कठोर या अत्यन्त क्रूर हो। | 
			
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				| पाषाणी					 : | स्त्री० [सं० पाषाण+ङीष्] बटखरा। वि० स्त्री० निर्दय (स्त्री)। | 
			
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