| शब्द का अर्थ | 
					
				| पिचक					 : | स्त्री० [हिं० पिचकना] १. पिचकने की क्रिया या भाव। २. पिचके हुए होने की अवस्था। स्त्री० ३.=पिचकारी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पिचकना					 : | अ० [सं० पिच्च=दबाना] उभरे या फूले हुए अंग के उभार या फूलन के कम होना। जैसे—गिरने के कारण लोटे का पिचकना, बीमारी के कारण गाल पिचकना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पिचकवाना					 : | स० [हिं० पिचकाना का प्रे०] पिचकाने का काम दूसरे से कराना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पिचका					 : | पुं० [हिं० पिचकाना] बड़ी पिचकारी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पिचकाना					 : | स० [हिं० पिचकना का प्रे०] ऐसा काम करना जिससे उभरी या फूली हुई चीज का तल दबता या पिचकता हो। पिचकने में प्रवृत्त करना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पिचकारी					 : | स्त्री० [हिं० पिचकना] १. नली के आकार का धातु का बना हुआ एक उपकरण जिसके मुँह पर एक या अनेक ऐसे छोटे-छोटे छेद होते हैं, जिनके मार्ग से नली में भरा हुआ तरल पदार्थ दबाव से धार या फुहार के रूप में दूसरों पर या दूर तक छिड़का या फेंका जाता है। मुहा०—पिचकारी चलाना, छोड़ना या मारना=पिचकारी में रंग, गुलाब-जल आदि भरकर दूसरों पर छोड़ना। पिचकारी भरना=पिचकारी की नली का डाट पर इस प्रकार ऊपर खींचना कि उसमें रंग या और कोई तरल पदार्थ भर जाय। २. पिचकारी में से निकलनेवाली तरल पदार्थ की धार। ३. किसी चीज में से जोर से निकलनेवाली तरल पदार्थ की धार। मुहा०—(किसी चीज में से] पिचकारी छूटना या निकलना=किसी चीज या जगह में से किसी तरल पदार्थ का बहुत वेग से बाहर निकलना। जैसे—सिर से लहू की पिचकारी छूटने लगी। ४. चिकित्सा-क्षेत्र में, एक तरह की छोटी पिचकारी जिसके अगले भाग में खोखली सूई लगी रहती है और जिसे चुभोकर शरीर की नसों या रक्त में दवाएँ पहुँचाई जाती हैं। सूई। वस्ति। (सीरिंज) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पिचकी					 : | स्त्री०=पिचकारी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पिचक					 : | स्त्री० [हिं० पिचकना] १. पिचकने की क्रिया या भाव। २. पिचके हुए होने की अवस्था। स्त्री० ३.=पिचकारी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पिचकना					 : | अ० [सं० पिच्च=दबाना] उभरे या फूले हुए अंग के उभार या फूलन के कम होना। जैसे—गिरने के कारण लोटे का पिचकना, बीमारी के कारण गाल पिचकना। | 
			
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				| पिचकवाना					 : | स० [हिं० पिचकाना का प्रे०] पिचकाने का काम दूसरे से कराना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| पिचका					 : | पुं० [हिं० पिचकाना] बड़ी पिचकारी। | 
			
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				| पिचकाना					 : | स० [हिं० पिचकना का प्रे०] ऐसा काम करना जिससे उभरी या फूली हुई चीज का तल दबता या पिचकता हो। पिचकने में प्रवृत्त करना। | 
			
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				| पिचकारी					 : | स्त्री० [हिं० पिचकना] १. नली के आकार का धातु का बना हुआ एक उपकरण जिसके मुँह पर एक या अनेक ऐसे छोटे-छोटे छेद होते हैं, जिनके मार्ग से नली में भरा हुआ तरल पदार्थ दबाव से धार या फुहार के रूप में दूसरों पर या दूर तक छिड़का या फेंका जाता है। मुहा०—पिचकारी चलाना, छोड़ना या मारना=पिचकारी में रंग, गुलाब-जल आदि भरकर दूसरों पर छोड़ना। पिचकारी भरना=पिचकारी की नली का डाट पर इस प्रकार ऊपर खींचना कि उसमें रंग या और कोई तरल पदार्थ भर जाय। २. पिचकारी में से निकलनेवाली तरल पदार्थ की धार। ३. किसी चीज में से जोर से निकलनेवाली तरल पदार्थ की धार। मुहा०—(किसी चीज में से] पिचकारी छूटना या निकलना=किसी चीज या जगह में से किसी तरल पदार्थ का बहुत वेग से बाहर निकलना। जैसे—सिर से लहू की पिचकारी छूटने लगी। ४. चिकित्सा-क्षेत्र में, एक तरह की छोटी पिचकारी जिसके अगले भाग में खोखली सूई लगी रहती है और जिसे चुभोकर शरीर की नसों या रक्त में दवाएँ पहुँचाई जाती हैं। सूई। वस्ति। (सीरिंज) | 
			
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				| पिचकी					 : | स्त्री०=पिचकारी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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