| शब्द का अर्थ | 
					
				| पीप					 : | स्त्री० [सं० पूय] पके हुए घाव या फोड़े के अन्दर से निकलनेवाला वह सफेद लसदार पदार्थ जो दूषित रक्त का रूपान्तर और विषाक्त होता है। पीब। मवाद। विशेष—रक्त में श्वेत कणों की अधिकता होने से ही इसका रंग सफेद हो जाता है। क्रि० प्र०—निकलना।—बहना। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पीपर					 : | पुं०=पीपल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पीपर-पर्न					 : | पुं० [हिं० पीपल+सं० पर्ण=पत्ता] १. पीपल का पत्ता। २. कान में पहनने का एक आभूषण। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पीपरा-मूल					 : | पुं० [सं० पिप्पलीमूल] पीपल नामक लता की जड़। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पीपरि					 : | पुं० [सं० अपि√पृ (बचाना)+इन्, अकार-लोप, दीर्घ] छोटा पाकर वृक्ष। पुं०=पीपल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० [सं० पिप्पली] एक लता जिसके फल और जड़े औषध के काम आती हैं। इस लता के पत्ते पान के पत्तों की तरह परन्तु कुछ छोटे, अधिक नुकीले तथा अधिक चिकने होते हैं। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पीपल					 : | पुं० [सं० पिप्पल] बरगद की जाति का एक प्रसिद्ध वृक्ष जो भारत में प्रायः सभी स्थानों में अधिकता से पाया जाता है। पर इसमें जटाएँ नहीं फूटती। इसका गोदा (फल) पकने पर मीठा होता है। हिन्दू इसे बहुत पवित्र मानते और पूजते हैं। चलदल। चलपत्र। बोधिद्रुम। स्त्री० [सं० पिप्पली] एक प्रकार की लता जिसकी कलियाँ ओषधि के रूप में काम में आती है। कलियाँ तीन-चार अंगुल लंबी शहतूत (फल) के आकार की और स्वाद में तीखी होती है। पिप्पली। मागधी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पीपलामूल					 : | पुं० [सं० पिप्पलीमूल] एक प्रसिद्ध ओषधि जो पीपल नामक लता की जड़ है। यह चरपरा, तीखा, गरम, रूखा, दस्तावार, पाचक, रेचक तथा कफ वात, आदि को दूर करनेवाला माना जाता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पीपा					 : | पुं० [?] [स्त्री० अल्पा० पीपी] १. लकडी, लोहे आदि का बना हुआ तेल आदि रखने का एक प्रकार का बड़ा आधान। २. राजस्थान के एक प्रसिद्ध राजा जो अपना राज्य छोड़कर साधु और रामानंद के शिष्य बन गये थे। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पीप					 : | स्त्री० [सं० पूय] पके हुए घाव या फोड़े के अन्दर से निकलनेवाला वह सफेद लसदार पदार्थ जो दूषित रक्त का रूपान्तर और विषाक्त होता है। पीब। मवाद। विशेष—रक्त में श्वेत कणों की अधिकता होने से ही इसका रंग सफेद हो जाता है। क्रि० प्र०—निकलना।—बहना। | 
			
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				| पीपर					 : | पुं०=पीपल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पीपर-पर्न					 : | पुं० [हिं० पीपल+सं० पर्ण=पत्ता] १. पीपल का पत्ता। २. कान में पहनने का एक आभूषण। | 
			
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				| पीपरा-मूल					 : | पुं० [सं० पिप्पलीमूल] पीपल नामक लता की जड़। | 
			
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				| पीपरि					 : | पुं० [सं० अपि√पृ (बचाना)+इन्, अकार-लोप, दीर्घ] छोटा पाकर वृक्ष। पुं०=पीपल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० [सं० पिप्पली] एक लता जिसके फल और जड़े औषध के काम आती हैं। इस लता के पत्ते पान के पत्तों की तरह परन्तु कुछ छोटे, अधिक नुकीले तथा अधिक चिकने होते हैं। | 
			
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				| पीपल					 : | पुं० [सं० पिप्पल] बरगद की जाति का एक प्रसिद्ध वृक्ष जो भारत में प्रायः सभी स्थानों में अधिकता से पाया जाता है। पर इसमें जटाएँ नहीं फूटती। इसका गोदा (फल) पकने पर मीठा होता है। हिन्दू इसे बहुत पवित्र मानते और पूजते हैं। चलदल। चलपत्र। बोधिद्रुम। स्त्री० [सं० पिप्पली] एक प्रकार की लता जिसकी कलियाँ ओषधि के रूप में काम में आती है। कलियाँ तीन-चार अंगुल लंबी शहतूत (फल) के आकार की और स्वाद में तीखी होती है। पिप्पली। मागधी। | 
			
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				| पीपलामूल					 : | पुं० [सं० पिप्पलीमूल] एक प्रसिद्ध ओषधि जो पीपल नामक लता की जड़ है। यह चरपरा, तीखा, गरम, रूखा, दस्तावार, पाचक, रेचक तथा कफ वात, आदि को दूर करनेवाला माना जाता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पीपा					 : | पुं० [?] [स्त्री० अल्पा० पीपी] १. लकडी, लोहे आदि का बना हुआ तेल आदि रखने का एक प्रकार का बड़ा आधान। २. राजस्थान के एक प्रसिद्ध राजा जो अपना राज्य छोड़कर साधु और रामानंद के शिष्य बन गये थे। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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