| शब्द का अर्थ | 
					
				| पीयूष					 : | पुं० [सं०√पीय् (संतुष्ट करना)+ऊषन्] १. अमृत। सुधा। २. दूध। ३. गाय आदि के प्रसव के उपरांत, पहले सात दिनों का दूध जो अग्राह्य माना जाता है। पेऊस। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पीयूष-ग्रंथि					 : | स्त्री० [मध्य० स०] शरीर के अन्दर मस्तिष्क के निचले भाग की एक ग्रंथि जो कफ उत्पन्न करती है। (पिटयूटरी ग्लैंड)। | 
			
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				| पीयूष-पाणि					 : | वि० [ब० स०] १. जिसके हाथ में अमृत हो। २. जिसके हाथ की दी हुई चीज में अमृत का सा गुण हों। जैसे—वे पीयूष-पाणि वैद्य थे। | 
			
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				| पीयूष-भानु					 : | पुं० [ब० स०] चंद्रमा। | 
			
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				| पीयूष-रुचि					 : | पुं० [ब० स०] चंद्रमा। | 
			
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				| पीयूष-वर्ष					 : | पुं० [सं० पीयूष√वृष् (बरसना)+अण्] १. अमृत की वर्षा करनेवाला, चंद्रमा। २. संस्कृत के जयदेव नामक कवि। ३. कपूर। ४. एक प्रकार का छंद जिसके प्रत्येक चरण में १॰ और ९ के विश्राम से १९ मात्राएँ और अंत में गुरु लघु होता है। इसे आनन्दवर्द्धक भी कहते हैं। | 
			
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				| पीयूष					 : | पुं० [सं०√पीय् (संतुष्ट करना)+ऊषन्] १. अमृत। सुधा। २. दूध। ३. गाय आदि के प्रसव के उपरांत, पहले सात दिनों का दूध जो अग्राह्य माना जाता है। पेऊस। | 
			
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				| पीयूष-पाणि					 : | वि० [ब० स०] १. जिसके हाथ में अमृत हो। २. जिसके हाथ की दी हुई चीज में अमृत का सा गुण हों। जैसे—वे पीयूष-पाणि वैद्य थे। | 
			
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				| पीयूष-भानु					 : | पुं० [ब० स०] चंद्रमा। | 
			
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				| पीयूष-रुचि					 : | पुं० [ब० स०] चंद्रमा। | 
			
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