| शब्द का अर्थ | 
					
				| पुलक					 : | पुं० [सं० पुल+कन्] १. प्रेम, भय, हर्ष आदि मनोविकारों की प्रबलता के समय शरीर में होनेवाला रोमांच। त्वककंप। विशेष—पुलक और रोमांच के अंतर के लिए दे० ‘रोमांच’ का विशेष। २. मन में होनेवाली वह कामना या वासना जो कोई काम करने की प्रवृत्ति करती हो। (अर्ज) जैसे—संभोग पुलक। ३. एक प्रकार का मोटा अन्न। ४. एक प्रकार का नगीना या रत्न, जिसे चुन्नी, महताब और याकूत भी कहते हैं। ५. एक प्रकार का कीड़ा जो शरीर के गले हुए अंगों में उत्पन्न होता है। ६. जवाहिरात या रत्नों का एक प्रकार का दोष। ७. हाथी का रातिब। ८. हरताल। ९. प्राचीन काल का एक प्रकार का मद्यपात्र। १॰. एक प्रकार की राई। ११. एक प्रकार का कंदा। १२. एक गंधर्व का नाम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| पुलकना					 : | अ. [सं० पुलक+ना (प्रत्य०)] प्रेम, हर्ष आदि से पुलकित होना। | 
			
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				| पुलक-बंध					 : | पुं० [सं० ब० स०] चुनरी। चुंदरी। | 
			
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				| पुलकांग					 : | पुं० [सं० पुलक-अंग, ब० स०] वरुण का पाश। | 
			
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				| पुलकाई					 : | स्त्री०=[सं० पुलक] पुलकित होने की अवस्था या भाव। पुलक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पुलकालय					 : | पुं० [सं० पुलक-आलय, ब० स०] कुबेर का एक नाम। | 
			
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				| पुलकालि					 : | [सं० पुलक-आलि, ष० त०]=पुलकावलि। | 
			
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				| पुलकावलि					 : | स्त्री० [सं० पुलक-आवलि, ष० त०] हर्ष से प्रफुल्ल रोम। हर्षजन्य रोमांच। | 
			
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				| पुलकित					 : | भू० कृ० [सं० पुलक+इतच्] प्रेम, हर्ष आदि के कारण जिसे पुलक हुआ हो, या जिसके रोएँ खड़े हो गये हों। प्रेम या हर्ष से गद्गद। रोमांचित। | 
			
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				| पुलकी (किन्)					 : | वि० [सं० पुलक+इनि] १. जिसे पुलक हुआ हो। पुलकित। २. जो प्रेम, हर्ष आदि में गद्गद् और रोमांचित हुआ हो। पुं० १. कदंब। २. धारा कदंब। | 
			
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				| पुलकोद्गम, पुलकोदभेद					 : | पुं० [सं० पुलक-उद्गम, पुलक-उद्भेद, ष० त०] रोम खड़े होना। लोमहर्षण। | 
			
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				| पुलक					 : | पुं० [सं० पुल+कन्] १. प्रेम, भय, हर्ष आदि मनोविकारों की प्रबलता के समय शरीर में होनेवाला रोमांच। त्वककंप। विशेष—पुलक और रोमांच के अंतर के लिए दे० ‘रोमांच’ का विशेष। २. मन में होनेवाली वह कामना या वासना जो कोई काम करने की प्रवृत्ति करती हो। (अर्ज) जैसे—संभोग पुलक। ३. एक प्रकार का मोटा अन्न। ४. एक प्रकार का नगीना या रत्न, जिसे चुन्नी, महताब और याकूत भी कहते हैं। ५. एक प्रकार का कीड़ा जो शरीर के गले हुए अंगों में उत्पन्न होता है। ६. जवाहिरात या रत्नों का एक प्रकार का दोष। ७. हाथी का रातिब। ८. हरताल। ९. प्राचीन काल का एक प्रकार का मद्यपात्र। १॰. एक प्रकार की राई। ११. एक प्रकार का कंदा। १२. एक गंधर्व का नाम। | 
			
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				| पुलक-बंध					 : | पुं० [सं० ब० स०] चुनरी। चुंदरी। | 
			
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				| पुलकांग					 : | पुं० [सं० पुलक-अंग, ब० स०] वरुण का पाश। | 
			
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				| पुलकाई					 : | स्त्री०=[सं० पुलक] पुलकित होने की अवस्था या भाव। पुलक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| पुलकालि					 : | [सं० पुलक-आलि, ष० त०]=पुलकावलि। | 
			
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				| पुलकावलि					 : | स्त्री० [सं० पुलक-आवलि, ष० त०] हर्ष से प्रफुल्ल रोम। हर्षजन्य रोमांच। | 
			
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				| पुलकित					 : | भू० कृ० [सं० पुलक+इतच्] प्रेम, हर्ष आदि के कारण जिसे पुलक हुआ हो, या जिसके रोएँ खड़े हो गये हों। प्रेम या हर्ष से गद्गद। रोमांचित। | 
			
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				| पुलकी (किन्)					 : | वि० [सं० पुलक+इनि] १. जिसे पुलक हुआ हो। पुलकित। २. जो प्रेम, हर्ष आदि में गद्गद् और रोमांचित हुआ हो। पुं० १. कदंब। २. धारा कदंब। | 
			
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				| पुलकोद्गम, पुलकोदभेद					 : | पुं० [सं० पुलक-उद्गम, पुलक-उद्भेद, ष० त०] रोम खड़े होना। लोमहर्षण। | 
			
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